दाऊ मैनेजमेंट फंड बना डीएमएफ (शब्द बाण-73)

दाऊ मैनेजमेंट फंड बना डीएमएफ (शब्द बाण-73)

साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम शब्द बाण (भाग-73)

शैलेन्द्र ठाकुर @ दंतेवाड़ा (2 मार्च 2025)

डीएमएफ यानी डिस्ट्रिक्ट मिनरल फंड की परिभाषा दक्षिण बस्तर में बदलकर ‘दाऊ मैनेजमेंट फंड’ बना देने वाले ‘महोदय’ की धड़कनें फिर से तेज हो गई हैं। दरअसल, दाऊ मैनेजमेंट फंड का जमकर दोहन कर जा चुके ‘महोदय’ की नजरें अब भी दंतेवाड़ा पर टिकी रहती हैं, ताकि पीछे से कोई गड़े मुर्दे न उखाड़ दे। लेकिन पिछले कर्म भला कहां पीछा छोड़ते हैं। हाल ही में डीएमएफ मद में भ्रष्टाचार का एक मामला दर्ज होने के बाद ईडी की दस्तक का रास्ता जो खुल गया है। दरअसल, ईडी की दखल तभी होती है, जब किसी मामले में एफआईआर दर्ज हुई हो। इसके आधार पर ईडी अपना ईसीआईआर दर्ज करती है। राज्य के कोरबा में डीएमएफ घोटाले में महिला आईएएस समेत कुछ अफसरों को जेल की हवा खिलाने के बाद बस्तर में भी डीएमएफ घोटाले की जांच में ईडी की एंट्री की चर्चा काफी पहले हो रही थी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। मामला ठंडे बस्ते में चला गया। अब अरसे बाद ईडी की एंट्री की चिंता संबंधितों को फिर से खाए जा रही है।
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नहीं चला शोले वाले वीरू का फार्मूला

जैसे ही नगरीय निकाय चुनाव की आचार संहिता हटी, माईजी की धार्मिक नगरी दंतेवाड़ा में बुलडोजर चलना शुरू हो गया। मेन रोड किनारे अतिक्रमण हटाने की गरज से बुलडोजर गरजने लगे। लोगों ने प्रशासनिक अमले को चैलेंज किया कि तोड़ना है तो पहले फारेस्ट कॉलोनी का अतिक्रमण हटाकर दिखाएं, इस पर चैलेंज स्वीकार करते हुए प्रशासन ने वो भी कर कर दिखाया। अतिक्रमण हटाने वाली मार्किंग की जद में कांग्रेसी पार्षद और भाजपाई नपाध्यक्ष का मकान भी आने लगा, तो शुरुआत नगर की प्रथम नागरिक यानी नपा अध्यक्ष के घर से कर दी गई। मार्किंग तक फंस गए टीन-टप्पर को हटवा दिया गया। खैर, कहा भी गया है कि किसी बड़े बदलाव या कार्य की शुरुआत अपने घर से होनी चाहिए। अतिक्रमण हटाने का औपचारिक विरोध जताने न सिर्फ कांग्रेसी, बल्कि सत्ता पक्ष भाजपा के लोग भी आए। भाजपा के बड़े नेता ने तो एक कदम आगे बढ़कर शोले फ़िल्म वाले वीरू की पानी टँकी पर चढ़ने वाले प्रसंग को दुहरा दिया। कहा कि कार्रवाई नहीं रुकी तो बुलडोजर के सामने बैठ जाऊंगा। पर प्रशासन “पुष्पा” की तरह झुकने को तैयार नहीं हुआ। कुल मिलाकर सब कुछ पहले से तयशुदा कार्यक्रम के अनुसार चला। कुछ देर हंगामे के बाद तमाशबीन लोग ठेलों पर बैठकर चाय की चुस्कियां लेते और चर्चा करते दिखे। जिनके टूटे, वो सामान समेटने में लग गए।
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जवान का प्रबल राज योग
चुनाव में लड़ना और जीतकर दिखाना दोनों अलग-अलग बातें हैं। लाखों रुपए पानी की तरह बहा देने के बाद भी कई उम्मीदवारों को निराशा हाथ लगी। लेकिन दक्षिण बस्तर में पुलिस के एक जवान ने एएसआई की नौकरी और एक आउट ऑफ टर्न प्रमोशन छोड़कर एक नहीं बल्कि 2 पदों का चुनाव लड़ा। जवान का राजयोग इतना प्रबल था कि जिला पंचायत सदस्य और सरपंच, दोनों ही पद पर चुनाव जीत गया। माननीय बन चुका पूर्व जवान अब असमंजस में है कि सरपंच बना रहे या फिर जिला पंचायत का सदस्य।
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महोदय की रेलिंग पर चुप्पी
दंतेवाड़ा में अतिक्रमण हटाने और सड़क चौड़ीकरण की गरज से प्रशासन ने मेन रोड के दोनों तरफ जेसीबी लगाकर तोड़-फोड़ करने में बड़ी तत्परता दिखाई, लेकिन भूपेश सरकार के कार्यकाल में दमन का प्रतीक बने रेलिंग को हटाने को लेकर तोड़ू दस्ते के अफसर चुप्पी साध गए। इस रेलिंग ने फागुन मेला और तीज त्यौहारों पर पसरा लगाकर पूजन सामग्री बेचने वाले गरीब ग्रामीणों और कुम्हारों को बेदखल कर दिया। “महोदय” की हठधर्मिता और दमनात्मक कार्रवाई झेल चुके लोगों को उम्मीद थी कि सरकार बदलने के बाद नई सरकार इस रेलिंग को हटवाकर राहत देगी। लेकिन महोदय का तबादला होने और रेलिंग के कट्टर समर्थक नेता के चुनाव हारने के बाद भी रेलिंग अपनी जगह तनी हुई है। रेलिंग का रेस्ट हाउस रोड वाला हिस्सा तो गायब हो चुका है, लेकिन बस स्टैंड से नारायण मंदिर तक की रेलिंग नहीं हटी। इधर फागुन मेला फिर करीब आ चुका है।
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कौन बनेगा सभापति?
बस्तर संभाग की सबसे बड़ी नगर सरकार यानी नगर पालिक निगम जगदलपुर में भाजपा काबिज हो गई है और महापौर का शपथग्रहण भी हो चुका। अब असल कश्मकश सभापति चयन को लेकर है। महापौर के बाद सभापति का पद काफी पावरफुल होता है। सभापति भी भाजपा पक्ष से ही चुना जाना है, लेकिन भाजपा में इस पद के दावेदारों की लंबी सूची है। लिहाजा दावेदार अपने-अपने लिए लॉबिंग करने में जुटे हुए हैं। वहीं, भाजपा के कद्दावर नेता भी अपने खेमे के पार्षद को सभापति बनवाकर शक्ति प्रदर्शन करने की कोशिश में हैं। लेकिन सभापति चुनने के लिए जातीय समीकरण, वरिष्ठता, अनुभव, मुखरता, एप्रोच जैसे कई फैक्टर काम करेंगे, इसमें कोई दो राय नहीं है।
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फिर ढाई-ढाई का फार्मूला!!
जिला पंचायत दंतेवाड़ा में सदस्यों के चुने जाने के बाद अध्यक्ष-उपाध्यक्ष चुनाव में पेंच फंसता नजर आ रहा है। संख्या बल के हिसाब से भाजपा जरूर कांग्रेस से आगे है, लेकिन अध्यक्ष बनाने लायक स्पष्ट बहुमत उसके पास भी नहीं है। उपाध्यक्ष बनने कुछ सदस्यों में जिस तरह की होड़ मची है, उससे ऊंट न जाने किस करवट बैठ जाए, यह कहना मुश्किल है। हो सकता है कांग्रेस-भाजपा ढाई-ढाई साल वाला फार्मूला अपनाएं। वैसे भी कका-बाबा के ढाई-ढाई साल वाले राज्य के फार्मूला को यहाँ कई साल पहले आजमाया जा चुका है, जिसके फेल होने के बाद इस फार्मूला पर कोई भरोसा नहीं करना चाहता है। ऐसी ही स्थिति जिले के जनपद पंचायतों में भी है।
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फ़ूड वालों का चारा छूटा

फ़ूड यानी खाद्य विभाग के अफसरों की उगाही का एक और जरिया हाथ से छूटता नज़र आ रहा है। पहले सरकार ने राशन दुकानों में उपभोक्ताओं के लिए बायोमेट्रिक सिस्टम लगाकर कमाई घटा दी थी, अब, पेट्रोल पंपों में फ़ूड विभाग की एनओसी सिस्टम को भी समाप्त करने का निर्णय ले लिया है। इससे निरीक्षण के नाम पर पेट्रोल पंप संचालकों से अवैध उगाही का रास्ता बंद हो गया है। पेट्रोल पंपों पर ग्राहकों के लिए रात्रिकालीन सेवा, हवा-पानी, टॉयलेट, जनरेटर जैसी बुनियादी सेवाएं रहें न रहें, लेकिन इसके एवज में फ़ूड अफसरों की ‘सेवा’ बराबर होती रहती थी।
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होली का रंग चढ़ा चुनाव पर
रंग-भंग वाले होली त्यौहार के फागुन महीने में पंचायत चुनाव करवाने का असर साफ दिख रहा है। सुकमा जिले में अफसरों ने वोटों की गिनती के बाद जीत का जश्न मना चुके उम्मीदवार की जगह दूसरे उम्मीदवार को जीत का प्रमाणपत्र रात में दिया। इससे कांग्रेसियों को चुनाव परिणाम में धांधली का आरोप लगाने का मौका मिल गया है। इतना ही नहीं, एक पंचायत में दो-दो उम्मीदवारों को जीत का प्रमाणपत्र देने का दिलचस्प मामला सामने आया। हालांकि गलती का आभास होने पर एक प्रमाणपत्र लेकर अफसरों ने फाड़ दिया। निर्वाचन जैसे इतने महत्वपूर्ण कार्य में इतनी बड़ी चूक कैसे हो सकती है? हो सकता है कि होली का असर पहले से पड़ गया हो।

(शैलेन्द्र ठाकुर की कलम से)

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