साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम शब्द बाण (भाग-75)
दिनांक 16 मार्च 2025
शैलेन्द्र ठाकुर @ दंतेवाड़ा
राज्य में भले ही भाजपा की सरकार बन गई हो, पर मन्त्रिमण्डल के काम-काज का ढर्रा नहीं बदला है। सवा साल बीतने के बाद भी भाजपा सरकार के मंत्री कांग्रेसी पैटर्न पर चल रहे हैं। ज्यादातर मंत्री राज्य के नहीं, बल्कि अपने ही विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के मंत्री बनकर रह गए हैं। इसके पीछे सोच यह है कि उन्हें दुबारा उसी क्षेत्र से जीतकर विधायक बनना है और वोट भी उसी क्षेत्र से लेना है, तो पूरे राज्य में अपनी एनर्जी क्यों बर्बाद करें। इसका नतीजा हो रहा है कि ज्यादातर जिलों में मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री और जिले के प्रभारी मंत्री को छोड़कर किसी और मंत्री या उनके विभाग को ज्यादातर आम जनता जानती तक नहीं है। स्कूलों के छात्र यह नहीं जानते कि शिक्षा मंत्री कौन है और कॉलेज के छात्रों को यह नहीं पता कि उच्च शिक्षा मंत्री कौन हैं। यह ठीक वैसा ही हो रहा है, जैसे पिछली कांग्रेस सरकार में राजकीय हेलीकॉप्टर के उपयोग को लेकर कका-बाबा में खींचतान मची रहती थी। पंचायत व स्वास्थ्य मंत्री बाबा किराए का हेलीकाप्टर लेकर पहुंच भी जाते तो, सीएम हाउस का दबाव ऐसा रहता था कि कलेक्टर-एसपी छुट्टी लेकर गायब हो जाते थे, ताकि मंत्री से दुआ-सलाम न करना पड़े।
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सुकमा में जंगल राज
सुकमा जिले में डीएफओ के सस्पेंड होने का मामला चर्चा में है। तेंदूपत्ता संग्राहकों की बोनस राशि हकदारों में नहीं बंट पाने पर यह कार्रवाई हुई है। वैसे तो सुकमा में जंगल विभाग के अफसरों का कारनामा जंगलराज वाला ही रहता है। इसके पहले यहां पदस्थ एक डीएफओ ने तो बंगले में स्वीमिंग पुल बनवा लिया था। यहां भले ही वन्य जीव प्यासे मारे-मारे भटकते फिरते हों, उनकी फिक्र विभाग को नहीं रहती। लेकिन जंगल डिपार्टमेन्ट के बड़े साहब को स्वीमिंग पूल में तैरकर ठंडक लेना था, सो साहब ने अपने सरकारी बंगले में ही लाखों रुपए की लागत से स्वीमिंग पूल बनवा लिया। जाहिर सी बात है कि यह पैसा भी मूक वन्य जीवों की प्यास बुझाने खुदवाए जाने वाले पोखर-तालाबों की धनराशि में कटौती से आया होगा। बाद में स्वीमिंग पूल वाला मसला लीक होने से खूब बवाल मच गया था। फिर मामला रफा-दफा करने की पूरी कोशिश हुई।
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आश्वासनजीवी बन गई जनता
दक्षिण बस्तर की जनता भी आश्वासनजीवी बनती जा रही है। नेता हो या अफसर, जनता की समस्याओं पर देखते हैं, करते हैं.. वाला आश्वासन देकर टरकाने लगे हैं। कहीं फंड नहीं होने का मसला होता है, तो कहीं ऊपर दाल नहीं गलने की मजबूरी होती है। पहले नगरीय निकाय, फिर पंचायत चुनाव के बाद विकास की रफ्तार और काम-काज तेज होने की उम्मीद जताई जा रही थी। अब तो ट्रिपल इंजन ही नहीं, बल्कि जिले में सरकार के 4-4 इंजन हो गए हैं। इसके बाद भी विकास की रेलगाड़ी को ग्रीन सिग्नल मिलता नहीं दिख रहा है।
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बीईओ तक नहीं बदल पा रही सरकार
राज्य में भले ही सरकार बदल गई हो, लेकिन दक्षिण बस्तर के विभिन्न ब्लॉकों में ज्यादातर पुराने बीईओ-बीआरसी को बदलने का साहस सरकार नहीं जुटा पाई है। अवैध वसूली, अकर्मण्यता जैसे कई शिकायतों और विवादों में घिरे कुछ बीईओ ने सरकार बदलते ही भाजपा नेताओं को मैनेज कर अपनी कुर्सी बचा ली। अब वे ही शिक्षा व्यवस्था को घसीट-घसीटकर चला रहे हैं। ऐसे सेनापतियों के भरोसे न तो शिक्षण व्यवस्था सुधर रही है, न ही कसावट आ रही है।
कुछ भाजपाई तो मजाक में यह भी कहते सुनाई पड़ते हैं कि इससे अच्छा यह होता कि पार्टी के कुछ ‘काबिल’ नेताओं को इन पदों पर संविदा नियुक्ति दे दी जाती। कम से कम कॉम्पिटिशन में कुछ अच्छा काम कर जाते। खुद कमाते और दूसरों को भी अवसर देते। वैसे भी इन पदों पर दलीय निष्ठा और एप्रोच के आधार पर नियुक्तियां होती ही हैं।
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पहचान की चाह..
त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में इस बार चुनकर आए माननीयों में सार्वजनिक रूप से समारोहपूर्वक शपथ ग्रहण करने की खास ललक दिख रही है। खासकर बस्तर के कुछ जिलों में। जबकि पूर्व में ऐसी परंपरा नहीं थी। जनपद व जिला पंचायत की पहली बैठक में ही सब कुछ सादगीपूर्ण ढंग से निपट जाता था। अब माननीयों की फरमाईश ने संबंधित अफसरों की परेशानी बढ़ा दी है। आखिर ऐसे समारोहों के लिए बजट कहाँ से लाएं?
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तारीख पे तारीख
सुकमा जिला पंचायत में अध्यक्ष-उपाध्यक्ष के चुनाव की तारीख पेशी की तरह आगे बढ़ती ही जा रही है। इसे लेकर कांग्रेसी और सीपीआई नेता कई तरह के आरोप लगाकर थक गए हैं। उनका आरोप है कि जिला पंचायत में भाजपा के अल्प मत में होने की वजह से सरकार तारीख आगे बढ़ाती जा रही है। इस क्षेत्र के कद्दावर कांग्रेसी नेता व विधायक लखमा दादी के जेल में बंद होने का फायदा सरकार उठा रही है। नगरीय निकाय में तो भाजपा का तीसरा इंजन नहीं जुड़ सका, पार्टी में आपसी खींचतान और बगावत का भारी नुकसान उसे उठाना पड़ गया। अब देखना यह है कि चुनाव में देरी से अध्यक्ष-उपाध्यक्ष का ताज किसके सिर सज पाता है। वैसे यहां अध्यक्ष बना पाना भाजपा के लिए गंजे को कंघी बेचने जैसा कठिन काम है। फिर भी, कहा जाता है कि अनिश्चितताओं वाले खेल क्रिकेट और राजनीति में कुछ असंभव नहीं होता।
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‘महोदय’ की वापसी से टेंशन
‘महोदय’ और पुरानी टीम की वापसी की खबर होली पर खूब वायरल हुई। टीम के सदस्यों के नाम तक गिना दिए गए थे। इससे पिछली बार पटाखे फोड़कर विदाई दे चुके लोग सकते में आ गए। टेंशन में कइयों की होली फीकी हो गई। उन्हें यह कैलकुलेशन समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर कितने डेसिबल शोर वाला पटाखा फोड़ना बाकी रह गया था। इस खबर से बाकी लोगों की धड़कनें भी बढ़ गई थी। पिछली बार प्रताड़ना और पेशी झेल चुके लोग तो बीपी-शुगर चेक करवाने की तैयारी में थे। पिछले तोड़ू दस्ते में शामिल रहे कुछ लोग खुश भी हुए। पुराने ठेकेदार अपनी फंसी हुई रकम वापसी की उम्मीद में चहक उठे। खैर, बाद में यह साफ हुआ कि ये तो ‘होली समाचार’ वाला मजाक किसी ने कर दिया था।