बिगड़े पड़े हैं जेल के ग्रह-नक्षत्र ..(शब्द बाण -78)

बिगड़े पड़े हैं जेल के  ग्रह-नक्षत्र ..(शब्द बाण -78)

साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम शब्द बाण (भाग-78 )

7 अप्रैल 2025

शैलेन्द्र ठाकुर @ दंतेवाड़ा

केंद्रीय गृह मंत्री शाह ने दंतेवाड़ा की सभा में भाषण देना शुरू किया, तो अजीब संयोग बन पड़ा। जैसे ही उन्होंने तेंदूपत्ता की ठेकेदारी प्रथा समाप्त कर सरकारी खरीदी की बात कही, संयोग से उसी वक्त हल्की अंधड़ चलने लगी और सूखे पत्ते आसमान में उड़ते नजर आए। कार्यक्रम स्थल पर मौजूद लोगों ने इसे उड़ता तेंदूपत्ता करार दिया। भले ही ‘मोटा भाई’ अंदर वाले दादाओं की लंका लगाने और गर्दा उड़ाने का संदेश देने यहां पहुंचे थे, दादाओं पर क्या असर हुआ होगा, यह तो नहीं पता, लेकिन उनके आगमन पर तेंदूपत्ते जरूर खड़ककर उड़ते दिखे। वैसे भी तेंदूपत्ते की कमाई और अंदर वाले दादाओं के बीच गहरा कनेक्शन रहा है। इसीलिए पत्ते भी मोटा भाई की घोषणा से उत्साहित नजर आए।
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दादा और भाई !!

कांग्रेस के नेताओं को आपत्ति है कि मोटा भाई ने दादाओं को भाई कहा। अब कोई रास्ता भटक कर दूसरी तरफ चला जाए तो भाई भी न कहा जाए। वैसे यह कोई पहला मौका नहीं है, जब किसी मंत्री ने पुचकारने के लिए ‘अंदर वाले’ दादाओं को अपना भाई बताया हो। कांग्रेस की एक बड़ी राष्ट्रीय नेत्री ने तो ‘दादाओं’ को शहीद बता दिया था, जिस पर खूब बवाल मचा था। यह कुर्सी का संतुलन ही है, जो लोगों से सब करवाता है। सत्ता में रहते हुए सब ऐसा कहते हैं, विपक्ष में रहने पर यही उनके लिए मुद्दा बन जाता है। दंतेवाड़ा में डॉ कुमार विश्वास ने अपने व्याख्यान में कहा भी कि किसी भी वर्ष का बजट हमेशा सत्ता पक्ष के लिए बहुत बढ़िया और विपक्ष के लिए सबसे घटिया होता है। यह राजनीति है।

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हड़ताली सचिव और वादाखिलाफी

कुछ साल पहले सत्ता में आते ही पंचायत सचिवों का नियमितीकरण करने की घोषणा कांग्रेस के नेता टीएस बाबा ने चुनावी भाषण में कर दी थी, पर सरकार बनने पर तब के सीएम कका ने उसे पूरा होने ही नहीं दिया और अपने प्रतिद्वंद्वी बाबा को सचिवों के सामने मुंह दिखाने लायक भी नहीं छोड़ा। बाबा भीष्म पितामह की तरह बाणों की शैय्या पर लेटे रह गए।
अब सरकार बदली है, तो इतिहास फिर से खुद को दोहराने को तैयार दिख रहा है। यह भी गज़ब संयोग है कि नियमितीकरण को लेकर सचिवों को चुनाव पूर्व गारंटी देने वालों में कांग्रेस के टीएस बाबा पंचायत मंत्री और डिप्टी सीएम बने और अब भाजपा के विजय शर्मा भी पंचायत मंत्री और डिप्टी सीएम बन चुके हैं। ऐसे में हड़ताली सचिवों की बांयीं आंख फड़क रही है कि गारंटी की हालत पिछली सरकार जैसी न हो जाए। अब तो भाजपा-कांग्रेस के नेताओं की स्थिति ऐसी हो गई है कि वे चाहकर भी समर्थन देने हड़ताल पंडाल नहीं जा पा रहे हैं।
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जेल के ग्रह-नक्षत्र

जिला जेल दंतेवाड़ा के ग्रह- नक्षत्र अब तक ठीक नहीं चल रहे हैं। जिले में केंद्रीय गृह मंत्री के प्रवास से ठीक पहले एक बंदी फरार हो गया। यह वही जेल है, जहां डेढ़ दशक पहले राज्य का सबसे बड़ा जेल ब्रेक हुआ था। 299 बंदी फरार हो गए थे। इतना ही नहीं, कुछ साल पहले भी कचरा गाड़ी में छिपकर कुछ बंदी जेल से निकल भागे थे। अबकी बार फिर एक बंदी जेल की दीवार फांदकर भाग निकला, जिसकी तलाश चल रही है। यह वही बंदी है, जिसने छत्तीसगढ़ आर्म्ड फोर्स की कारली स्थित बटालियन की कैंटीन से 7 लाख रुपए चुराए थे। बताया जाता है कि दीवार फांदने में एक्सपर्ट इस बंदी ने जगदलपुर जेल में भी ऐसी कोशिश की थी, पर दंतेवाड़ा जेल वाले उसके हुनर को पहचान नहीं सके।
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वीवीआईपी प्रवास और गोवंश की मौज

आम तौर पर मवेशी सड़क पर पसरे रहते हैं, और आराम से जुगाली करते दिखते हैं और कोई उन्हें हटाने की कोशिश नहीं करता। पर इस बार मामला ही कुछ ऐसा था। दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय में खुद पालिका के सीएमओ और कुछ प्रमुख पदाधिकारी हाथों में लाठी लिए गोवंशी मवेशियों को खदेड़ते दिखे। जब-जब कहीं मवेशी नजर आते, देखो, भगाओ, पकड़ो वाला शोर सुनाई देता। दरअसल, केंद्रीय गृहमंत्री का प्रवास जो नगर में होने वाला था। अब इतने हाई प्रोफाइल वीवीआईपी प्रवास हो तो इतनी अलर्टनेस तो बनती ही है। बाकी समय जनता कांजी हाउस -कांजी हाउस चिल्लाती रह जाती है, कोई फर्क नहीं पड़ता है। सड़क पर पसरे मवेशियों से टकराकर लोग अपनी हड्डियां तुड़वाते रहते हैं।
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निगम-मंडल को लेकर मायूसी

राज्य सरकार ने निगम-मंडल की जो सूची जारी की, उससे दक्षिण-पश्चिम बस्तर के तीनों जिलों के भाजपाई मायूस हुए। बस्तर छोड़कर किसी भी जिले को एडजस्ट नहीं किया गया। कुछ तजुर्बेकारों को यह मामला तभी समझ में आ गया था, जब कुछ महीने पहले इन जिलों से एक-एक पदाधिकारियों को आयोग की सदस्यता वाला कमंडल पकड़ा दिया गया था। वैसे, यह प्रथा कांग्रेसी कार्यकाल में भूपेश कका ने शुरू की थी, जिसमें अपने विरोधियों को साधने ऐसे किसी गुमनाम बोर्ड का कोई छोटा-मोटा पद थमा दिया जाता था, जिसका नाम बताते-समझाते नेताओं को अटपटा लगता था। शुरुआती विरोध के बाद भागते भूत की लंगोट मानकर नेता शांत भी हो गए। इसके पहले रमन सरकार के कार्यकाल में दक्षिण-पश्चिम बस्तर के हिस्से में कैबिनेट मंत्री, पर्यटन मंडल उपाध्यक्ष पद तक आते रहे थे। लेकिन अब इस क्षेत्र के हिस्से से ये पद राशन दुकान में शक्कर के कोटे की तरह कम और गायब होते जा रहे हैं।
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लोक सुराज बनाम सुशासन तिहार

कोरोना वेरियंट की तरह नाम बदलकर छत्तीसगढ़ सरकार का लोक सुराज अभियान फिर से आने वाला है। इस बार यह सुशासन तिहार के नाम से आएगा, यह बता दिया गया है। यह कोई नई प्रथा नहीं है। अविभाजित मध्यप्रदेश के दौरान आपकी सरकार, आपके द्वार से लेकर ग्राम सुराज, लोक सुराज और अब सुशासन तिहार तक के सफर में कई दलों की सरकारें आती-जाती रही हैं। मूल मुद्दा यह है कि लोक सुराज में मिले आवेदनों का वास्तव में कितना निराकरण हो पाता है, या फिर सिर्फ आवेदनों की संख्या बढ़ाने और सिर्फ खानापूर्ति तक बात सीमित रह जाती है।
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