“साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम ‘शब्द बाण‘ (भाग-76)
23 मार्च 2025
शैलेन्द्र ठाकुर @ दंतेवाड़ा
राम नाम का सहारा लेकर चुनावी वैतरणी पार करने वाले अधिकांश भाजपाई जनप्रतिनिधि चुनाव के बाद राम से विमुख होते दिख रहे हैं। चूंकि अगले चुनाव में काफी वक्त है, सो धर्म-कर्म में उनकी दिलचस्पी कम रह गई है। हालात ऐसे हो गए हैं कि रामायण मंडलियां मांगती रह जाती हैं, पर ढोलक-मंजीरा तक नहीं मिलता। निमंत्रण के बाद भी जन प्रतिनिधि धार्मिक आयोजनों में पहुंचना तो दूर, फुर्सत मिलने पर भी ऐसे स्थलों में झांकते तक नहीं हैं।
एक रामभक्त का कहना है कि
“ऐसे तो भूपेश कका ही ठीक रिहीस यार। कांग्रेसी होकर भी कम से कम राम वन गमन पथ अऊ माता कौशल्या के धाम ला संवारने के काम करे रिहिसे।”
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मदिरा प्रेमियों की बल्ले-बल्ले
दंतेवाड़ा जिले के कुछ हाई स्कूलों को हायर सेकेंडरी स्कूल में उन्नयन करने और कुछ प्री मैट्रिक छात्रावास खोलने की मांग कई साल से लंबित है। इन पर कोई सुनवाई नहीं होती है। वहीं दूसरी तरफ, नए बजट में सरकार ने मदिरा प्रेमियों की सुविधा का खास ख्याल रखा है। राज्य भर में 5 दर्जन से ज्यादा नई शराब दुकानें खोलने का प्रावधान किया है। शायद, एक-दो नई दुकानें दक्षिण बस्तर के हिस्से में आ जाएं। आखिर, सरकार एकतरफा इन्वेस्टमेंट भला क्यों करे? शराब दुकान खोलने से डायरेक्ट मुनाफा होना है, तो फिर स्कूल-छात्रावास जैसे गैर लाभकारी उपक्रम शुरू करने का झंझट पालने का कोई सवाल ही नहीं उठता।
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उसने कहा था..
नियमितीकरण की मांग कर रहे पंचायत सचिवों की स्थिति मशहूर लेखक चंद्रधर शर्मा गुलेरी की चर्चित कहानी ‘उसने कहा था..’ के शीर्षक जैसी हो गई है। उन्हें मंत्रियों को मोदी की गारंटी वाले वादे याद दिलाने पड़ रहे हैं।
यह भी संयोग है कि पहले कांग्रेसी नेता टीएस सिंहदेव ने चुनाव जीतने से पूर्व पंचायत सचिवों को सरकार बनते ही नियमित करने का शर्तिया वादा किया था। वे चुनाव जीते भी और सरकार भी बनाई, लेकिन वादा पूरा नहीं कर पाए। इसके बाद अगले चुनाव से पहले भाजपा नेता विजय शर्मा व ओपी चौधरी ने भी लगभग ऐसा ही वादा सचिवों से किया और मोदी की 100 दिन वाली गारंटी दी। वे भी जीते और सचिव अब भी हड़ताल पर हैं। यह भी गज़ब संयोग है कि सचिवों से वादा करने वाले टीएस बाबा और विजय शर्मा दोनों ही अपनी-अपनी सरकार में डिप्टी सीएम बने। दोनों के ही वायदों की वीडियो क्लिप वायरल करते सचिव नहीं थक रहे हैं। उनकी पीड़ा है कि पिछली हड़ताल तुड़वाने के लिए जो कमेटी बनी थी, उसकी रिपोर्ट पेश करने ’30 दिनों’ की मियाद साल भर में भी पूरी नहीं हुई।
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अनाथ हुए कड़कनाथ
एक समय दक्षिण बस्तर में सुर्खियों में रहे कड़कनाथ मुर्गे अफसर और सरकार बदलने के बाद अनाथ हो गए हैं। शुरुआती दौर में मीडिया हाइप क्रिएट करने के मकसद से वेटनरी विभाग ने कड़कनाथ मुर्गे-मुर्गियों की शादी तक खूब धूमधाम से करवाई थी। फिर नई सरकार और कोरोना साथ आए। कुछ दिनों तक कड़कनाथ के भरोसे काम चलवाया गया। सरकारी अतिथियों के स्वागत सत्कार से लेकर अन्य समारोहों में खूब कड़कनाथ परोसे गए। इसके बाद न तो कड़कनाथ बचे, न ही उनकी शादी में शामिल बाराती-घराती अब कहीं नज़र आते हैं। कुल मिलाकर सरकारी नवाचारों का आगे पाठ, पीछे सपाट वाली स्थिति हमेशा यहां बनी रहती है।
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फिर निकला स्कूल जतन घोटाले का जिन्न
राज्य भर में स्कूल जतन योजना में हुए घोटाले का जिन्न फिर बोतल से बाहर निकल आया है। इसके कर्ता-धर्ता बड़ी मुश्किल से जिन्न को बोतल में बंद कर पाए थे। खबर है कि पूरे राज्य भर में 1500 करोड़ रुपए का घोटाला उजागर हुआ है। अब स्कूलों में हुए घोटालों की जांच की जिम्मेदारी जिला स्तर पर देने की तैयारी है। दक्षिण बस्तर में इस घोटाले की तीव्रता राज्य के अन्य जिलों के मुकाबले कहीं ज्यादा है। इस व्यंग्य कॉलम में स्कूल जतन योजना के घोटाले का जिक्र महीनों पहले हो चुका। जिन स्कूलों की मरम्मत करने के बाद चूना पुताई करना था, वहां बिना मरम्मत के ही बाहर के ठेकेदारों ने सीधे चूना पोत डाला। कई स्कूलों में शेड ही नहीं बने। इसके बाद स्वीकृत लाखों की पूरी रकम पर चूना लगा डाला। इस मरम्मत की पोल अगले ही मानसून सीजन में खुल गई, जब बच्चों व स्टाफ को स्कूल के भीतर ही छाता तानकर बैठना पड़ा। पिछली सरकार के कार्यकाल के अंतिम वर्ष में हुए इस घोटाले की जांच का साहस नई सरकार भी नहीं जुटा सकी थी। शायद इस बार मामला अंजाम तक पहुंच जाए।
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झंडा पंडुम डॉक्टर
दक्षिण बस्तर के पहुंच विहीन इलाकों में पहले झंडा पंडुम गुरुजी हुआ करते थे, जो बाकी दिन स्कूल नहीं जाते थे। सिर्फ झण्डा पंडुम (उत्सव) यानी 15 अगस्त व 26 जनवरी को झंडा फहराने स्कूल पहुंचते थे। इसीलिए उन्हें ग्रामीण झंडा पंडुम गुरुजी के नाम से जानते थे। ठीक ऐसी ही स्थिति दंतेवाड़ा जिले के कटेकल्याण ब्लॉक व अरनपुर जैसे कुछ दूरस्थ इलाकों में आयुर्वेदिक डॉक्टरों की है। जो कभी-कभार गांव में मुंह दिखाकर लौट जाते हैं। हां, राष्ट्रीय पर्वों पर झंडा जरूर पूरी ईमानदारी से फहराते हैं। इन झंडा पंडुम डॉक्टरों की मॉनीटरिंग का कोई सिस्टम अब तक नहीं बन सका है। कई जगहों पर डॉक्टर की जगह कंपाउंडर या औषधि परिचारक ही आयुष क्लीनिक की कमान संभाले हुए हैं।
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मुख्य अतिथि को लेकर सस्पेंस
पहली बार हो रहे बस्तर पंडुम का ब्लॉक व जिला से लेकर संभाग स्तरीय आयोजन दंतेवाड़ा में हो रहा है। जिला स्तरीय समारोह में कई विचित्र बातें हुईं, जिन्हें लेकर राजनीतिक गलियारे में खूब चर्चा है। इस कार्यक्रम में आमंत्रण कार्ड में जिन मुख्य अतिथि, कार्यक्रम के अध्यक्ष और अति विशिष्ट अतिथियों के आने का जिक्र था, वे ही नहीं आए। मुख्य अतिथि के तौर पर उप मुख्यमंत्री व गृह मंत्री विजय शर्मा को आना था, वे दंतेवाड़ा आए जरूर, लेकिन हाई स्कूल मैदान का निरीक्षण कर सीधे बीजापुर रवाना हो गए। उनकी जगह कृषि व ट्राइबल विभाग के मंत्री रामविचार नेताम मुख्य अतिथि बने। इस बात का पता दर्शकों को तब चला जब कृषि मंत्री कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे। कार्यक्रम की अध्यक्षता के लिए जिले के प्रभारी मंत्री के नाम का जिक्र था, पर नारायणपुर जिले में उनका कार्यक्रम फिक्स हो गया। इसी तरह अति विशिष्ट अतिथियों में शामिल बस्तर सांसद सुकमा जिले के कार्यक्रम में सम्मिलित हुए, तो वहीं स्थानीय विधायक कार्यक्रम में पहुंचे ही नहीं। कांग्रेस पक्ष के जन प्रतिनिधियों ने वैसे ही कार्यक्रम से दूरी बनाकर रखी थी।
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चलते-चलते..
त्रिस्तरीय पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव खत्म हुए और नए जन प्रतिनिधियों के शपथ ग्रहण को काफी वक्त बीत चुका है। इसके बाद भी कई निवर्तमान पुराने जन प्रतिनिधियों का पद से मोह नहीं छूट पाया है। यही वजह है कि घर व गाड़ियों से पदनाम की तख्तियां अब तक नहीं उतरी हैं। इससे विरोधियों को भी नया मुद्दा मिल गया है।