खुफिया आंखों को हुआ मोतियाबिंद (शब्द बाण-74)

खुफिया आंखों को हुआ मोतियाबिंद (शब्द बाण-74)

साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम शब्द बाण (भाग-74)

9 मार्च 2025

शैलेन्द्र ठाकुर । दंतेवाड़ा
आपने इंसानों की आंखों में मोतियाबिंद होने की बात सुनी होगी, जिसका इलाज सर्जरी से हो जाता है। लेकिन दक्षिण बस्तर में पिछले कुछ समय से सरकार की खुफिया आंखों यानी सीसीटीवी कैमरों पर भी यह रोग चढ़ आया है, जिसका कोई इलाज नहीं है। दरअसल, दिल्ली में निर्भया कांड के बाद से चौक-चौराहों और कुछ संवेदनशील जगहों पर सीसीटीवी कैमरे लगाने का अभियान चलाया गया। इसका मकसद असामाजिक तत्वों और संदिग्धों पर नजर रखना और जरूरत पड़ने पर सबूत जुटाना भी है। लेकिन सीसीटीवी कैमरे वाला कांसेप्ट सप्लायरों के लिए दुधारू गाय की तरह हो गया। अब तक कई बार लाखों रुपए के सीसीटीवी कैमरे लगाए जा चुके हैं। हाई रेसोल्यूशन, इंफ्रारेड, वाईफाई और पता नहीं कितनी सारी खूबियां गिनाकर ब्रांडेड के नाम पर सस्ता चाइनीज माल टिका दिया जाता है, जो कुछ महीने बाद काम करना बंद कर देते हैं। वन विभाग के वृक्षारोपण की तर्ज पर एक-दो साल बाद फिर से नई एजेंसी सीसीटीवी कैमरा लगाकर भारी-भरकम बिल टिका जाती है। लेकिन जब भी कोई गम्भीर अपराध होता है, ज्यादातर सीसीटीवी कैमरे वाली आंखों की रेटिना पर मोतियाबिंद का जाला ढंका मिलता है। पता नहीं, ये सिलसिला कब थमेगा?
———-
कुर्सी पर चरण पादुका

सरकारें महिला सशक्तिकरण की लाख कोशिश कर लें, पर आखिरकार नगर से लेकर ग्रामीण सरकार तक ज्यादातर महिलाओं की जगह उनके एसपी, एपी, यूपी, पीपी चलाते हैं। भले ही कुर्सी पर मैडम की चरण पादुका रखकर बाजू वाली कुर्सी पर बैठना पड़े।
हाल ही में कवर्धा जिले में 6 महिला पंचों की जगह उनके पतियों के शपथग्रहण करने से बवाल जरूर मच गया है, लेकिन बस्तर के विभिन्न जिलों में तो यह परंपरा पहले से चली आ रही है। यहां भले ही सार्वजनिक तौर शपथ नहीं खाते हैं, लेकिन पत्नी को मिले पद की जिम्मेदारी तो पतिदेव को ही निभानी पड़ती है।
—————–
पटरी से उतरने से बचा चौथा इंजन
जिला पंचायत दंतेवाड़ा में अध्यक्ष का पद इस बार भाजपा के हाथ से फिसलते-फिसलते रह गया। वरना, संख्या बल में कम होने के बावजूद कांग्रेस ने मुकाबला बराबरी पर ला दिया था। और किस्मत ने इस बार भाजपा का साथ दिया। लॉटरी भाजपा के पक्ष में निकल आई। हैरत की बात यह रही कि उपाध्यक्ष के पद पर भाजपा 6-4 से जीती, तो सवाल यह अनुत्तरित है कि आखिर अध्यक्ष पद के लिए भाजपा से किसने क्रॉस वोटिंग की। खैर, अंत भला तो सब भला। हारे को हरि नाम और जीते की जय जयकार। वैसे भाजपा की जीत में चाणक्य की भूमिका निभाने वाले श्रीनिवास मद्दी का जिक्र न हो, ऐसा सम्भव नहीं। उन्होंने सरकार के चौथे इंजन को डिरेल होने याने पटरी से उतरने नहीं दिया।
——-
मदिरा प्रेमियों की बल्ले-बल्ले
इस बार बजट से पहले ही इकोनॉमी वारियर्स यानी अर्थव्यवस्था के रक्षक मदिराप्रेमियों की बल्ले-बल्ले हो गई।
होली के सीजन में मदिरा का रेट सांय-सांय कम हो गया। भले ही पेट्रोल-डीजल पर दुनिया भर का सेस और सड़कों पर टोल टैक्स लगा हो, पर मदिरा पर लगा टैक्स सरकार से देखा नहीं गया।
वह भी ऐसे योद्धाओं के लिए जो कोरोना काल जैसी वैश्विक महामारी के समय अर्थव्यवस्था को संभालने के जान की परवाह किए बगैर दुकान के सामने लाइन लगाया करते थे। कहते हैं कि पिछली सरकार को मदिरा प्रेमियों की आह लगी। तभी क्रिकेट टेस्ट मैच की तरह पहली ही पारी में सस्ते में सिमट गई।
इस बार नई सरकार ऐसी गलती नहीं करना चाहती है।
——-

अज्ञात बीमारी और मलेरिया की जांच

सुकमा जिले में एक ही गांव में अज्ञात बीमारी से ग्रामीणों की मौतों का सिलसिला जारी है। स्वास्थ्य विभाग अब तक बीमारी का पता नहीं लगा पाया है। खानापूर्ति के लिए गांव में कैम्प लगाकर मलेरिया की जांच की जा रही है। जबकि मोबाइल मेडिकल यूनिट के नाम पर हर साल करोड़ों रुपए फूंके जाते हैं। इस बस में ब्लड, यूरिन, स्टूल तक की जांच के अत्याधुनिक उपकरण और डॉक्टर के उपलब्ध होने का दावा किया जाता है। अफसरों की नजर सिर्फ स्वयंवर वाली मछली की आंख यानी सरकारी फंड पर गड़ी हो, तो मर्ज को पकड़ पाना असंभव है।
—–
गाली-गुफ्तार की ट्रेनिंग

बस्तर के एक पिछड़े जिले में एक बड़े अफसर ने मैदानी कर्मचारी को न सिर्फ मां-बहन की भद्दी गाली से नवाजा, बल्कि मामूली बात पर सस्पेंड भी कर दिया। सस्पेंड करना तो अफसर का विशेषाधिकार माना जा सकता है, लेकिन निजी नौकर की तरह गाली बकना उचित नहीं लगता।  पीड़ित ओबीसी समुदाय से है। खबर है कि इस बात से आहत पिछड़ा वर्ग समुदाय ने अफसर के खिलाफ मोर्चा खोलने की तैयारी की है। नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव में आरक्षण से पूरी तरह वंचित किए गए ओबीसी समुदाय का गुस्सा कहीं सरकार पर भारी न पड़े। पिछली कांग्रेस सरकार में जहां ओबीसी वर्ग को खास तवज्जो दी जाती थी, वहीं वर्तमान भाजपा सरकार ने चुनाव में आरक्षण से लेकर कई मसलों पर ओबीसी के पर कतरने का कोई मौका नहीं छोड़कर सारा हिसाब बराबर कर दिया है।
वैसे, चर्चा तो यह भी है कि बस्तर में पुलिस एन्टी नक्सल ऑपरेशनों में ज्यादा व्यस्त रहती है, इसीलिए इसके बदले में सरकार प्रशासनिक दायित्व संभालने वालों को गाली-गुफ्तार करने की स्पेशल ट्रेनिंग दिलाकर यहां भेजती है। जब यह कला भूलने लग जाते हैं, तो फिर से रिफ्रेशर कोर्स करवाकर भेजते हैं।
——–
कर्ण से मांगा कवच कुंडल

दंतेवाड़ा जिले में एक युवा नेता की पीड़ा है कि इस बार भी महाभारत वाले कर्ण की तरह उससे कवच-कुंडल मांग लिया गया, ताकि लड़ाई में कर्ण पांडवों से जीत ना सके। नेताजी का जीवन कर्ण सा हो गया है और त्याग हमेशा नेताजी के हिस्से में ही आया। इस बात का जिक्र खुद नेता ने सोशल मीडिया में किया है। दरअसल, राजनीतिक मजबूरियों और समीकरणों की दुहाई देकर पार्टी ने 5 साल बाद नेताजी को फिर से बैठने को मजबूर कर दिया। वरना, दोबारा चुनाव जीतने के बाद बड़े पद पर नेताजी की स्वाभाविक दावेदारी बनती ही थी। लेकिन अपनों के लिए त्याग करने पर पार्टी ने फिर से मजबूर कर दिया।

चलते-चलते…


  • सुकमा जिले में गरीब आदिवासी तेंदु पत्ता संग्राहकों के दो साल का बोनस डकारने के मामले में आखिरकार भाजपा सरकार ने डीएफओ को सस्पेंड कर ही दिया। साथ ही यह साफ कर दिया कि पिछली कांग्रेस सरकार ने भले ही न्याय योजनाओं की सीरीज चलाई थी, पर असल न्याय तो अब होगा। लेकिन, बोनस की राशि हजम करने वाले प्रबंधकों पर फिलहाल कोई कार्रवाई होती नहीं दिख रही है। बात तो तब बनेगी, जब संबंधितों से रिकवरी कर गरीबों को उनके हक का पैसा दिलाया जाएगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

बल्ब की तरह बदले अफसर (शब्द बाण-92)

बल्ब की तरह बदले अफसर (शब्द बाण-92)

साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम शब्द बाण भाग- 92 13 जुलाई 2025 शैलेन्द्र ठाकुर । दंतेवाड़ा दवा और दारू... छत्तीसगढ़ में दवा और दारू की सप्लाई का...