बस्तर के कण-कण में राम – डॉ कुमार विश्वास
“बस्तर के राम ” विषय पर दंतेवाड़ा में डॉ कुमार विश्वास का व्याख्यान
शैलेन्द्र ठाकुर। दंतेवाड़ा
दंडकारण्य यानी बस्तर के कण-कण में राम बसे हैं। कोंटा का इंजरम गांव इसका प्रमाण है। इंजरम यानी इंजे राम वत्तोर, जिसका अर्थ है-राम यहां अभी आए। रामेश्वरम के साथ ही इंजरम में भी भगवान राम ने शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा की है। बस्तर आना मेरा सौभाग्य है। भगवान राम के कदम इस क्षेत्र में पड़े थे, इसीलिए यहां नंगे पांव चलने पर भी कांटे नहीं चुभते। दंतेवाड़ा जिले के ढोलकल में विराजे गणेश जी की कथा भी अद्भुत है। गीदम नाम गिद्धराज जटायु के आधार पर हुआ। पुराने समय मे यहां गिद्ध बड़ी संख्या में पाए जाते थे। उक्त बातें संभाग स्तरीय बस्तर पंडुम महोत्सव के तीसरे दिन आयोजित व्याख्यान ‘बस्तर के राम’ में प्रख्यात कथाकार व कवि डॉ कुमार विश्वास ने कही। अंधड़ और बारिश के बीच थोड़ी विलंब से कार्यक्रम शुरू हुआ।
राज्य के गृहमंत्री विजय शर्मा, वन मंत्री केदार कश्यप, पूर्व वन मंत्री महेश गागड़ा, विधायक चैतराम अटामी, जिपं अध्यक्ष नंदलाल मुड़ामी भी इस कथा का श्रवण करने पहुंचे। मंच संचालन ओज रस की प्रसिद्ध कवियत्री श्रीमती कविता तिवारी ने किया। बस्तर के राम प्रसंग पर आयोजित इस कथा में डॉ कुमार विश्वास ने कहा-
दंडकारण्य में फैले अत्याचार और आसुरी प्रवृत्ति को समाप्त करने राम यहां से भ्रमण करते गुजरे थे। राक्षसों के हाथों मारे गए मुनियों की अस्थि के ढेर देखे। दंडकारण्य के रकसा हाड़ा के जंगल मे पत्थरों को जलाने पर ऐसी ही गंध आती है।
बाहर के लोग पिछली खबरों के जरिये बस्तर के बारे में जो भी सोचते रहे हों, पर आने वाले कल में बस्तर की माटी, मां दंतेश्वरी को प्रणाम करने पूरा विश्व आतुर होगा। अयोध्या में राम राजकुमार थे, बस्तर में संघर्षशील रहकर मर्यादा पुरुषोत्तम बने।
वर्तमान राजनीतिक स्थिति पर तंज कसते हुए डॉ कुमार विश्वास ने कहा कि आजकल नेता पदयात्रा करते हैं। जिसका पद छिनता है, वह पदयात्रा करता है। लेकिन रामचन्द्र जी ने पद देने पदयात्रा की। सुग्रीव हो या विभीषण, दोनों को राम ने पद दिलाया। आजकल गठबंधन ज्यादा क्षमता वाले से होता है, लेकिन राम वंचित और कमजोर पक्ष से गठबंधन करते थे। उन्हें संबल देकर न्याय दिलाते थे। राम लोक नेता हैं। राम को निष्कासित राजनीति ने किया। लेकिन रामजी को स्थापित लोकनीति ने किया। आजकल बजट सत्ता पक्ष के लिए बढ़िया और विपक्ष के लिए घटिया होता है। संवैधानिक व्यवस्था राम की बनाई हुई है। वे चाहते तो वनवास के लिए 2 किमी दूर कुटिया बना लेते। लेकिन राम जी ने लोक नीति पर चलकर लोगों के संकट हरने का संकल्प लिया। पक्ष-विपक्ष को साथ लेकर चलने की नीति के कारण भगवान राम ही संसदीय प्रणाली के जनक माने जा सकते हैं।
हमें कैकई माता का भी आभारी होना चाहिए कि उनके कारण भगवान राम के चरण इस दंडकारण्य में पड़े।
कई बार शाप वरदान बन जाता है। कैकई का हठ दंडकारण्य और जन सामान्य के लिए वरदान बन गया। राम ने दंडकारण्य बस्तर आकर एक काम और किया। वन्य और नगरीय सभ्यता का भेद खत्म कर दिया। यहां बस्तर आकर उन्होंने भील, कोल, किरात को गले लगाया।
बस्तर के मशहूर लेखक स्व. शानी की किताब ‘साल वनों का द्वीप’ मैंने पढ़ी है। लाला जगदलपुरी के बारे में भी पढ़ा है। राम का संस्कार दंडकारण्य ने किया। माता इंद्रावती ने उनका अभिषेक किया। अगर चित्रकूट से राम लौट जाते तो हमें मर्यादा पुरुषोत्तम नहीं मिलते। राम को जगतपति और मर्यादा पुरुषोत्तम इसी बस्तर दंडकारण्य की मिट्टी ने बनाया।
सीता की रसोई छत्तीसगढ़ के मैनपाट में है। विश्व मे भोजन की कमी हो सकती है, पर बस्तर में नहीं। यहां माता जगदंबा ने रसोई बनाई थी। राम को देखने के लिए दृष्टि होनी चाहिए। इसी दंडकारण्य में 2 महिलाओं ने राम को देखा। जिस एक ने राम में काम देखा, वह सूर्पनखा आज भी अपमानित है। दूसरी ने भाव की घनीभूत भावना से देखा, जिसे राम ने माता कौशल्या के बाद अपनी मां के रूप में देखा, वह इसी बस्तर से शबरी माँ थी।
आयुर्वेद में जिस बेर को अपथ्य माना गया है। उसी से राम तृप्त हुए।
बस्तर के किसी जंगल से भी गुजरो, तो किसी भी बेर के पेड़ को देखकर वट वृक्ष की तरह नमन करो, इसी ने राम को तृप्त किया।
राम के नाम पर भी इस देश में राजनीति हो गई है। 30 साल मुकदमा चला। जिन्होंने काल्पनिक माना, वही काल्पनिक हो गए। वाम पथ पर जाते लोग राम पथ पर लौट आएं, यही कामना माँ दंतेश्वरी से करता हूँ।