घोषणा से पहले ही बवाल
सत्ता के गीदम में केंद्रीयकरण से असंतोष
सत्ताधारी भाजपा में पंचायत चुनाव से पहले अंतर्कलह
तीन बार लगातार गीदम मंडल से जिलाध्यक्ष, अब किस मंडल की बारी?
शैलेन्द्र ठाकुर । दंतेवाड़ा
@ Bastar Update
आसन्न नगरीय निकाय और पंचायत चुनावों से ठीक पहले दंतेवाड़ा जिले में सत्ताधारी भाजपा जिलाध्यक्ष पद को लेकर रस्साकशी तेज हो गई है। हाल ही में इस पद के लिए पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं से रायशुमारी जिले में करने की बजाय राजधानी रायपुर में की गई, जिससे पार्टी के भीतर अंतर्कलह बढ़ने के आसार साफ नजर आ रहे हैं।
दरअसल, रायशुमारी के नाम पर जिन्हें आनन-फानन में राजधानी बुलाया गया था, उनमें से कुछ पहुंचे ही नहीं। इससे जिन्हें पात्रता नहीं थी, वो भी वोट डालने में कामयाब हो गए। यहां मुख्य मुद्दा जिले में भाजपा के भीतर ही सत्ता के केन्द्रीयकरण का है।
जिलाध्यक्ष पद को लेकर गीदम, दंतेवाड़ा, बैलाडीला और नकुलनार जैसे प्रमुख शक्ति केंद्रों के बीच संतुलन बनाना पार्टी रणनीतिकारों के लिए बड़ी चुनौती रही है। इस मामले में गीदम मंडल दिवंगत पूर्व जिलाध्यक्ष स्व अनूप सूद के निधन के बाद से ही पार्टी के पावर सेंटर के तौर पर हावी रहा है। नवीन विश्वकर्मा, अभिमन्यु सोनी और वर्तमान जिलाध्यक्ष चैतराम अटामी को इस मंडल से यह अहम भूमिका निभाने का मौका मिला। चूंकि चैतराम अटामी स्वयं विधायक चुने जा चुके हैं, लिहाजा पार्टी में शक्ति संतुलन बनाये रखने गीदम की जगह दंतेवाड़ा, नकुलनार या बैलाडीला क्षेत्र में से किसी दावेदार को पार्टी नेतृत्व का यह मौका मिलने की उम्मीद जताई जा रही थी।
सत्ताधारी पार्टी का जिलाध्यक्ष बनने इस बार कितनी होड़ मची है, इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस पद के लिए एक-दो नहीं बल्कि 16 उम्मीदवारों के नाम सामने आए, लेकिन पार्टी में हावी गुटबाजी के चलते रायशुमारी की प्रक्रिया जिले की बजाय आश्चर्यजनक ढंग से राजधानी में सम्पन्न कराए जाने से पार्टी का एक बड़ा धड़ा नाराज है। कैडरबेस और सबसे अनुशासित होने का दावा करने वाली इस पार्टी में यह स्थिति असामान्य मानी जा रही है, जिसका असर आसन्न नगरीय निकाय व पंचायत चुनावों पर पड़ने की आशंका जताई जा रही है।
मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति से असंतोष
बता दें, इन दिनों भाजपा संगठन में चुनाव की प्रक्रिया जोरों पर है। इसी प्रक्रिया में दंतेवाड़ा जिला के बूथ स्तर के चुनाव के बाद मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति में काफी नयापन देखने को मिला। भाजपा संगठन के नए नियमों के आधार पर इस बार युवाओं को मौका देने विभिन्न पदों के लिए आयु सीमा निर्धारित की गई है। मंडल अध्यक्ष पद के लिए अधिकतम आयु 45 वर्ष एवं जिलाध्यक्ष के लिए 45 से 60 वर्ष की आयु निर्धारित है। इस नियम के बाद भी सदैव संगठनात्मक रूप से अनुशासित मानी जाने वाली भाजपा में खींचतान और गुटबाजी साफ नजर आ रही है। कई खेमे में बंटी भाजपा की जिला कमेटी ने आयु सीमा को भी ताक पर रखकर अपने-अपने खेमे से मंडल अध्यक्षों की दावेदारी प्रस्तुत कराई। खैर, जैसे-तैसे संगठन ने नियमों को ध्यान में रखते हुए मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति तो कर दी, पर जिला अध्यक्ष चुनाव में नियम-कायदे ताक पर रखे जाने के आरोप पार्टी के भीतर से ही लग रहे हैं।
एक पद पर 16 दावेदार !!
सत्ताधारी पार्टी में सत्ता सुख भोगने और जिलाध्यक्ष बनने के लिए मची होड़ का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिले से अध्यक्ष पद के लिए 2-4 नहीं, बल्कि कुल 16 उम्मीदवारों द्वारा दावेदारी प्रस्तुत करने की बात सामने आ रही है। इतना ही नहीं, इसमें अधिकतम और न्यूनतम आय सीमा तय होने के बाद भी कुछ 45 वर्ष से कम और कुछ लोग 60 वर्ष से अधिक उम्र वालों ने भी दावेदारी पेश की है। कुछ भाजपा कार्यकर्ता तो अपनी दबी जुबान से चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता पर ही सवाल उठा रहे हैं। उनका कहना है कि जिन्हें संगठन चुनाव का प्रभारी और सह प्रभारी बनाया गया है, वह भी जिला अध्यक्ष के लिए अपनी दावेदारी प्रस्तुत किए हुए हैं। ऐसे में चुनाव निष्पक्ष कैसे हो सकता है?
क्राइटेरिया पर सवाल
कुछ भाजपाई यहां तक कह रहे है कि सब दिखावा है। जिलाध्यक्ष का नाम पूर्व से तय है। घोषणा की औपचारिकता ही बाकी है। उनका मानना है कि जिला अध्यक्ष पद के लिए रायशुमारी हेतु जो क्राइटेरिया तय किया है, वही गलत है। इस कमेटी से क्षेत्र के चुने हुए जनप्रतिनिधियों को भी शामिल नहीं किया गया है और ना ही संगठन के युवा मोर्चा, महिला मोर्चा व अन्य महत्वपूर्ण मोर्चाओं को सम्मिलित किया गया। नाराज भाजपाइयों का मानना है कि लंबे समय से संगठन पर वर्चस्व बनाए रखे एक गुट ने चतुराई से राय शुमारी की सूची से महत्वपूर्ण लोगों का नाम हटा दिया था। साथ ही अनेपेक्षित लोगों को सम्मिलित कर अपना दबदबा बना लिया है। वैसे जिले में पिछले तीन बार से भाजपा जिलाध्यक्ष गीदम मंडल से बनाए गए थे। इस बार इस पावर सेंटर का मौका किसी और मंडल को मौका मिलता है, या नहीं, यह देखने वाली बात होगी।
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