अपॉइंटमेंट वाले सब इंजीनियर (शब्द बाण-98)

अपॉइंटमेंट वाले सब इंजीनियर (शब्द बाण-98)

साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम शब्द बाण भाग-98

24 अगस्त 2025

शैलेन्द्र ठाकुर । दंतेवाड़ा

अपॉइंटमेंट वाले इंजीनियर साहब

व्यस्ततम नेता और बड़ी हस्तियों से अपॉइंटमेंट लेने की बात आपने सुनी होगी, लेकिन दंतेवाड़ा में पदस्थ एक सब इंजीनियर से मिलने के लिए भी पहले से अपॉइंटमेंट लेने की जरूरत सरपंचों को पड़ती है, यह बात आपको हैरत में डाल देगी। पहली बार दंतेवाड़ा जनपद में आरईएस के हाई प्रोफाइल सब इंजीनियर की पोस्टिंग हुई है, जिसके नखरे उठाने में पंच-सरपंचों के पसीने छूट रहे हैं। किसी काम का इस्टीमेट बनवाना हो या स्थल निरीक्षण करवाना हो, साहब से कुछ दिन पहले अपॉइंटमेंट लेना पड़ता है। बताया जाता है कि कुछ तकनीकी सहायकों को वापस पैवेलियन भेजने के बाद सब इंजीनियरों का वर्कलोड ज्यादा ही बढ़ गया है। ऐसी ही स्थिति एसडीओ की भी है, जो निर्माण कार्यों की तकनीकी स्वीकृति के लिए सरपंचों से चक्कर कटवाते रहते हैं। ट्रिपल इंजन सरकार में पंचायतों का विकास कार्य रफ्तार पकड़ने की बजाय पटरी ने नीचे उतरता जा रहा है। भाजपाई नेता तक इस एसडीओ से खार खाए बैठे हैं, लेकिन अपनी ही सरकार होने के बावजूद एसडीओ पर कोई कार्रवाई नहीं करवा पा रहे हैं।
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मंत्रिमंडल विस्तार और बस्तर की उम्मीदें

साय मंत्री मंडल का बहुप्रतीक्षित विस्तार अंततः हो ही गया, लेकिन दक्षिण बस्तर के हिस्से में एक मंत्री मिलने की उम्मीदों पर पानी फिर गया। इस सरकार में निगम मंडलों में एक भी दमदार पद नहीं मिला, सिर्फ इक्का-दुक्का सदस्य बनाकर खानापूर्ति कर दी गई। इससे समर्थकों की उम्मीद बढ़ गई थी कि तीन जिलों में से एक मात्र भाजपाई विधायक होने के नाते मंत्रिमंडल में जगह जरूर मिल जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ऐसा ही हाल मध्य बस्तर का रहा। मंत्री पद की दावेदारी करने वालों के कंधों पर पार्टी संगठन की जिम्मेदारियां डाल दी गई। एक व्यक्ति एक पद वाले फार्मूला के चलते वो खुलकर दावेदारी भी नहीं कर सके।
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कुत्तों से सावधानी
आवारा कुत्तों को शेल्टर होम भेजने के मामले में बस्तर में जितनी गहमा- गहमी का माहौल बना, उससे लोग हैरान रह गए। फैसले के पक्ष में जितने लोग खड़े दिखे, उतने ही विपक्ष में भी नजर आए।कुत्तों को बचाने के लिए रैली तक निकाली गई। यह बात और है कि कुछ साल पहले तक हिंसा में गाजर-मूली की तरह इंसान कटते रहे, लेकिन उनके अधिकारों की रक्षा के लिए कभी इतनी तत्परता नहीं दिखी। खैर, सड़कों पर झुंड बनाकर दौड़ते और लोगों को दौड़ाते कुत्तों पर काबू पाना अब इतना आसान नहीं रहेगा। अब लोगों को कुत्तों से सुरक्षित बचकर चलने में पहले जैसी ही मशक्कत जारी रखने की जरूरत पड़ेगी।
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आ अब लौट चलें…
आम तौर पर सत्ताधारी राजनीतिक पार्टी की तरफ विपक्षी कार्यकर्ताओं का पलायन होता रहा है। चाहे इसके पीछे की वजह सत्ता सुख भोगने की मंशा हो या फिर उचित पूछ परख और सम्मान पाने की लालसा। लेकिन इन दिनों दक्षिण बस्तर में सत्ता पक्ष भाजपा की तरफ पलायन करने वाले कुछ कांग्रेसी पंच- सरपंचों की पुरानी पार्टी की तरफ वापसी के मामले भी सामने आ रहे हैं। घर वापसी के इन मामलों को लेकर कयास यह लगाए जा रहे हैं कि सत्ताधारी पार्टी में रहने के बाद भी मन मुताबिक काम नहीं हो रहा है। सत्ता का विकेंद्रीकरण की जगह केंद्रीयकरण होता जा रहा है। खैर, वजह जो कुछ भी हो, यह स्थिति सत्ताधारी भाजपा के लिए अच्छी नहीं मानी जा सकती है। अब देखना यह है कि धारा के खिलाफ तैरकर घर वापसी करने वालों की उम्मीदें कितनी फलीभूत होती हैं।
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टोल टैक्स पर बवाल
बस्तर के बढ़ईगुड़ा स्थित टोल टैक्स नाका के विरोध में कांग्रेसियों ने जोरदार प्रदर्शन कर अपनी ताकत तो दिखाई ही, जन हित से जुड़े मुद्दे पर लोगों का ध्यान भी खींचा। जनता की जेब पर डकैती और सरकारी लठैती का पर्याय बन चुके टोल प्लाजा को लेकर जन मानस में आक्रोश तो है, लेकिन विरोध भी पक्ष – विपक्ष की राजनीति में उलझ कर रह जाता है। डबल और ट्रिपल इंजन वाली सरकार में होने की वजह से भाजपाइयों की मजबूरी रही कि वो चाहकर भी इस मुद्दे पर जनता के साथ खड़े नहीं हो सके। बाद में दोनों पक्षों में वाकयुद्ध शुरू हो गया। कांग्रेस ने तंज कसा कि सायरन और हूटर बजाकर टोल प्लाजा मुफ्त में पार करने वालों के लिए आम जनता की पीड़ा समझना कठिन है। वहीं, भाजपा ने कहा कि भूपेश सरकार के दौरान आवाज क्यों नहीं उठाई। कांग्रेस ने फिर पलटवार किया कि एनएच का टोल प्लाजा केंद्र सरकार के अधीन है, राज्य के नियंत्रण में नहीं। अब देखना यह है कि यह विरोध प्रदर्शन क्या रंग दिखाता है?
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सुशासन तिहार और पीएमजीएसवाय विभाग

छत्तीसगढ़ की साय सरकार ने सुशासन तिहार चलाकर आम जनता की समस्याओं और शिकायतों के लाखों आवेदन जुटाए, लेकिन हर बार की तरह इस बार भी दंतेवाड़ा जिले में ग्रामीण सड़कों की बदहाली के लिए जिम्मेदार पीएमजीएसवाय विभाग पर कोई खास असर नहीं पड़ा। जर्जर सड़कों के खिलाफ मिली शिकायतों का निराकरण करने के आवेदन रद्दी में डाल दिए गए। कई साल से अधूरी पड़ी सड़कें जस की तस रह गईं और बनने के बाद जर्जर हुई सड़कों की हालत और खराब होती चली गई। विभाग के अफसर सालाना मेंटेनेंस जरूर ऑनलाइन और कागजी रिकॉर्ड में करते रहते हैं।
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अफसर ही जुटे वसूली में..
दंतेवाड़ा जिले का गीदम ब्लॉक सबसे जागरूक इलाका माना जाता है, लेकिन इस ब्लॉक में व्यवस्था की मॉनिटरिंग के लिए पदस्थ होने वाले अफसरों द्वारा निरीक्षण और विसंगतियों को लेकर उगाही करने की परंपरा हमेशा चर्चा में रहती है। पिछली बार आश्रम-छात्रावास अधीक्षक इस अफसर की वसूली से इतने त्रस्त थे कि विधायक से लिखित शिकायत कर दी। तब जाकर अफसर को मुख्यालय वापस बुलाया गया। अफसर बदलने के बाद कुछ दिनों तक सब कुछ ठीक चलता रहा, अब फिर से यह परंपरा शुरू होने की खबर है। इस बार पीड़ित पक्ष आश्रम अधीक्षक नहीं, बल्कि दूसरे विभाग के मैदानी कर्मचारी बताए जा रहे हैं। जिन्हें हर्जाने के तौर पर अच्छा खासा ‘दसवंद’ जमा करना पड़ा है। जब बाड़ ही खेत चरने लग जाए, तो फसल की रक्षा कैसे हो?

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✍🏻 शैलेन्द्र ठाकुर की कलम से

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