साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम ‘शब्द-बाण’ (भाग-105)
12 अक्टूबर 2025
शैलेन्द्र ठाकुर @ दंतेवाड़ा
सड़क के गड्ढे पाट रहे पूर्व मंत्री
दक्षिण-पश्चिम बस्तर में सड़कों की हालत इतनी खराब है कि लोग श्रमदान करके गड्ढे पाट रहे हैं, ताकि आम जन इन गड्ढों से होकर सुरक्षित निकल सकें और संबंधितों की आंखें खुल सके। पहले गीदम में कांग्रेसियों ने एनएच-63 पर श्रमदान किया और सड़क की खराब हालत के लिए जिम्मेदारों और सरकार को कोसा। तब तो इसे सिर्फ विपक्ष का चोंचला कहकर अनदेखा कर दिया गया। अब बीजापुर में पूर्व मंत्री व कद्दावर भाजपा नेता ने भी इसी एनएच-63 के बीजापुर वाले हिस्से में श्रमदान कर सड़क पाटने वालों का हाथ बंटाया। उम्मीद है कि पहले ही ‘शर्म’ दान कर चुके एनएच विभाग की आंखें कम से कम इस श्रमदान से खुलेंगी। वरना जो है, सो हइये ही। आम जनता डामरीकृत सड़क के बीच हुए गड्ढों में पेड़ उगाकर हादसों से बचने में लगी हुई है।
हिंदी के मशहूर ग़ज़लकार दुष्यंत कुमार के शब्दों में..
“न हो कमीज तो पाँवों से पेट ढँक लेंगे,
ये लोग कितने मुनासिब हैं, इस सफ़र के लिए।
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धान खरीदी और एग्रीस्टेक पंजीयन
धान की खरीदी का मसला सरकारों के लिए अब चुनौती बनता जा रहा है। आपसी चुनावी होड़ में धान खरीदी रेट की बोली तो बढ़-चढ़कर लगा लेते हैं, यहां तक कि चुनाव जीतने पर किसानों का एक-एक दाना खरीदने के दावे भी करते हैं, पर सरकार में आने के बाद वित्तीय प्रबंधन और आर्थिक भार से वादा पूरा करने में पसीना छूटने लगता है। पहले कांग्रेस सरकार ने रकबा सरेंडर करने और धान के अलावा दूसरी फसल लेने पर प्रोत्साहन राशि देने का प्रावधान किया, ताकि धान की आवक को नियंत्रित कर सकें, अब नई सरकार ने एग्रीस्टैक पोर्टल में पंजीयन की अनिवार्यता कर दी है, जिसको लेकर प्रचार-प्रसार में कंजूसी से ज्यादातर ग्रामीण किसान इस बार धान बेचने से वंचित हो सकते हैं। किसान इस मुगालते में हैं कि पहले की तरह धान खरीदी का पंजीयन रिनीवल अपने आप हो जाएगा।
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मेडिकल कॉलेज बनाम डीएमएफ
दंतेवाड़ा जिले में मेडिकल कॉलेज निर्माण के लिए जिला खनिज न्यास निधि डीएमएफ के 300 करोड़ रुपए जारी करने को लेकर असंतोष बढ़ता ही जा रहा है। कांग्रेसियों के अलावा सत्ताधारी भाजपा के पक्ष के ही पंच-सरपंच व अन्य जनप्रतिनिधि भी खासे नाराज हैं, लेकिन पार्टी लाइन के खिलाफ जाकर कोई ‘ननकीराम कंवर’ बनने का साहस नहीं जुटा पा रहा है। उनका मानना है कि राज्य में स्वीकृत कुल 4 मेडिकल कॉलेजों के लिए जब केंद्र व राज्य से राशि मिलने का प्रावधान है, तो फिर दंतेवाड़ा में खनिज दोहन के एवज में स्थानीय जरूरत के विकास कार्यों में उपयोग के लिए मिले डीएमएफ को झोंकने की क्या जरूरत है? इससे पहले से चल रहे कार्यों के भुगतान और नए कार्यों की मंजूरी के लिए आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। यही सवाल, पत्रकारों ने कैबिनेट मंत्री से किया तो उन्होंने पिछली कांग्रेस सरकार पर इसका ठीकरा फोड़ दिया। साथ ही विकास कार्यों में राशि की कमी नहीं होने का दावा भी किया। अब देखना यह है कि राज्य सरकार महतारी वंदन और मुफ्त चावल जैसी चुनावी फ्रीबिज योजनाओं से बढ़े आर्थिक बोझ के बीच डीएमएफ राशि के बगैर जिले के विकास को कैसे गति देती है।
वैसे, बस्तर में हल्बी की एक लोकोक्ति काफी प्रचलित है-
“घर चो बैला के बिक, अउर रोजगार करूक सीख।”
(घर के बैल को बेचकर रोजगार करना सीखो, अर्थात पहले से उपलब्ध संसाधन को गंवा कर नया उपक्रम शुरू करना)
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कर्जमाफी का सवाल…
महतारी वंदन, सस्ता और मुफ्त का चावल जैसी फ्रीबिज लॉलीपॉप बांटने वाली सरकार बस्तर संभाग के 3-4 ब्लॉक के बाढ़ पीड़ितों के लिए कोई ठोस पैकेज अब तक घोषित नहीं कर सकी है। इन ब्लॉकों में किसानों का फसल ऋण, बकाया बिजली बिल तक माफ नहीं किया गया, जबकि बाढ़ आपदा से सबसे ज्यादा पीड़ित किसान ही हुए हैं। मकानों के नुकसान की थोड़ी बहुत भरपाई तो हुई है, लेकिन रेत-मिट्टी से पट गई फसल के नुकसान का क्या? वैसे भी, आरबीसी 6, 4 के पुराने फॉर्मूले पर ही मकान क्षति की आर्थिक सहायता दी जा रही है। आंशिक क्षति पर मुख्यमंत्री राहत कोष से सिर्फ 6 हजार रुपए अतिरिक्त सहायता देने के अलावा अन्य कोई बड़ी घोषणा नहीं की गई है। बाढ़ के बाद केबिनेट की बैठक और कलेक्टर्स कांफ्रेंस से भी निराशाजनक परिणाम ही प्रभावितों के हाथ लगे हैं।
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कठिन परीक्षा से बनेंगे जिलाध्यक्ष
जिला कांग्रेस कमेटी के नए कप्तान यानी जिलाध्यक्ष के चयन की प्रक्रिया चल रही है। इसके लिए प्रदेश से पर्यवेक्षकों की टीम आकर अलग-अलग जिलों में कार्यकर्ताओं की रायशुमारी करने लगी है। बस पुलिस भर्ती वाले फिजिकल फिटनेस टेस्ट के दौड़-कूद छोड़कर इंटरव्यू, सवाल-जवाब वाले परीक्षा, सब कुछ अग्नि परीक्षा से भावी अध्यक्ष को गुजरना होगा। राजनीतिक गलियारों में तो यह चर्चा आम है कि इतने कड़े मापदंड से ही अगर सफल होना होता, तो आईएएस, आईपीएस ही बन जाते, नेता क्यों बनते? खैर, जिन्हें अध्यक्ष बनना है, उन्हें सिस्टम को बायपास करने और पद पाने में कोई ज्यादा वक्त नहीं लगता है। इस कला में उन्हें पहले से महारत हासिल है।
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डॉक्टर ‘साहिबा’ पर आपत्ति
भाजपा नेता व पूर्व गृहमंत्री ननकीराम कंवर ने अपने ही जिला कलेक्टर के खिलाफ मोर्चा खोल दिया, तो उन्हें हाऊस अरेस्ट कर काबू में करना पड़ा। कलेक्टर पर तमाम आरोप लगाने वाले इस सत्तापक्ष के नेता को साहब की कलेक्टरी से कम, साहब की मैडम की डॉक्टरी पर ऐतराज ज्यादा है। उनका आरोप है कि सरकारी अस्पताल में डीएमएफ मद से नियुक्त डॉक्टर साहिबा द्वारा इलाज कम, साहब की तख्ती वाली गाड़ी का दुरुपयोग ज्यादा किया जाता है। इसकी खिलाफत करने वालों को टॉर्चर किया गया, जो उनके अपने समर्थक हैं। समर्थकों की रक्षा न कर पाने पर खुद की फजीहत से पूर्व मंत्री आपा खो बैठे। इसके बाद पूर्व मंत्रीजी ने वर्तमान तो क्या, अपने ही पूर्व मुख्यमंत्री पर भी आरोपों की बौछार कर दी।
वैसे, मैडम साहिबाओं की संविदा नौकरी का चलन कोई नई बात नहीं है, बस्तर के अधिकांश जिलों में ऐसा पहले से होता रहा है। वैसे भी डॉक्टरी की प्रैक्टिस करना कोई बुरी बात तो नहीं है। कुछेक सेवाभावी अपवाद को छोड़ दें, तो यह आम के आम, गुठलियों के दाम जैसा ही मामला है। भले ही मरीज की नब्ज देखें या न देखें। समय भी कट जाता है और सैलरी भी मिलती रहती है।
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गिरदावरी करने खेतों में उतरे गुरुजी
फसल उत्पादन सर्वेक्षण यानी गिरदावरी कार्य में इस बार शिक्षकों और अन्य विभागों के अधिकारी कर्मचारियों की सेवाएं भी ली जा रही हैं। बस्तर संभाग के कुछ जिलों में भी सम्भवतः ऐसा पहली बार हो रहा है। वरना, इसके पहले राजस्व विभाग के पटवारी, आरआई और कृषि विभाग के अमले पर गिरदावरी, फसल कटाई की जिम्मेदारी रहती थी। ज्यादातर शिक्षक चॉक-डस्टर छोड़कर गिरदावरी टीम का हिस्सा बन गए हैं। क्रिकेट के खिलाड़ियों की तरह शिक्षक भी आल राउंडर बनते जा रहे हैं। जनगणना हो, मतदाता सूची अपडेशन हो, वैक्सीनेशन, तेंदूपत्ता खरीदी या फिर कोई अन्य कार्यक्रम, इनमें शिक्षकों की सेवाएं ली जाने लगी है। कुछ शिक्षक तो दबी जुबान यह भी कहने से नहीं चूकते कि भविष्य में शिक्षकों को सर्जरी करने की ट्रेनिंग दिलाकर परिवार नियोजन कार्यक्रम सफल बनाने में लगा दिया जाए, तो भी आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
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