रीलबाजी भारी पड़ी अफसर पर…(शब्द बाण- 106)

रीलबाजी भारी पड़ी अफसर पर…(शब्द बाण- 106)

साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम ‘शब्द-बाण’ भाग-106
(19 अक्टूबर 2025)

शैलेन्द्र ठाकुर @ दंतेवाड़ा

दादाओं का सरेंडर
लगभग 5-6 दशक से जंगल में रहकर सरकार के विरोध में हिंसात्मक गतिविधियां चला रहे ‘अंदर वाले’ दादाओं ने अचानक इतनी बड़ी संख्या में सरेंडर किया, जिसकी कल्पना न तो सरकार ने कभी की थी और न ही जन मानस ने। पहले महाराष्ट्र में उप मुख्यमंत्री के सामने गढ़चिरौली में शीर्ष नक्सली नेता समेत 60 ने हथियार सौंपे। फिर अगले एक-दो दिन के भीतर बस्तर के माड़ से भी 210 नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री व गृहमंत्री को हथियार सौंपकर भारतीय संविधान में आस्था जताई। विपक्ष के कुछ नेता भले ही इसे संदेह की नजर से देखकर विपक्षी धर्म निभा रहे हों, लेकिन हथियारों के साथ सरेंडर करने से इस प्रक्रिया पर अविश्वास की कोई ठोस वजह नहीं दिखती। अंतहीन समझे जा रहे इस रक्तपात की जगह अब शांति का परचम लहराएगा, ऐसी उम्मीद की जा सकती है। बंदूक की नली से क्रांति लाने की कोशिश में अब भी जंगल मे रुके हुए कुछ और लोगों की घर वापसी का इंतज़ार सरकार और समाज को है।

हर शब जलाए रखता हूँ, दहलीज पे चिराग़ ।
कि लौट के आओगे, उम्मीद अब भी बाक़ी है।

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रीलबाजी भारी पड़ी अफसर को
बस्तर में शिक्षा विभाग के जेडी यानी ज्वाइंट डायरेक्टर की रीलबाजी उन पर भारी पड़ी। यह शांति के नोबल पुरस्कार के लिए मचल रहे ट्रम्प के नक्शे-कदम पर चलने जैसी कोशिश थी। जेडी साहब निरीक्षण के दौरान वीडियो बनवाकर सोशल मीडिया पर रील्स अपलोड करते थे। रॉबिनहुड बनने की कोशिश में छपास का रोग लगा चुके इस अफसर से शिक्षक पहले ही खार खाए बैठे थे। शिक्षकों को डांटने-फटकारने, ऑन स्पॉट सस्पेंड करने, नसीहत देने की वीडियो व रील्स बनाकर सार्वजनिक तौर पर जलील करने से संगठन खासे नाराज चल रहे थे। इस बार जीन्स पेंट पहनकर दफ्तर आए शिक्षक को खदेड़कर तो जैसे जेडी ने मधुमक्खी के छत्ते में ही हाथ डाल दिया। शिक्षकों ने पहले तो ऐसी तस्वीरें सोशल मीडिया पर शेयर की, जिनमें अफसर खुद निरीक्षण के दौरान जीन्स पेंट पहने हुए दिख रहे हैं। जेडी की शिकायत पहले तो मंत्री से की गई। फिर सीएम व डिप्टी सीएम प्रवास के दिन ही संभाग मुख्यालय में शिक्षकों की रैली और जोरदार प्रदर्शन से सरकार हड़बड़ा गई। नतीजा यह हुआ कि किरकिरी से बचने के लिए अफसर को हटाकर दूसरे अफसर की पोस्टिंग कर दी गई।
वैसे, जीन्स पेंट पहनने पर आपत्ति से कपड़ा सिलाई करने वाले टेलर्स के दिन फिरने की उम्मीदें जागी थी, जो रेडीमेड कपड़ों, खासकर जीन्स के बढ़ते चलन के बाद से बेरोजगार होते जा रहे हैं।
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आपदा में भी हिस्सेदारी
सुकमा में प्राकृतिक आपदा में अवसर वाला मामला सुर्खियों में है। लेन-देन कोई नई बात नहीं, पर दिक्कत यह है कि इस बार मामला सार्वजनिक हो गया। ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि तहसीलदार 20 हजार और थानेदार 35 हजार लेते हैं। सनद रहे कि सड़क हादसा छोड़कर अन्य अप्राकृतिक मौत पर मृतक के परिजनों को सरकार 4 लाख रुपए देती है, जिसमें थाना और तहसील का अमला अपना हिस्सा वसूल लेता है। मृतकों के नाम का पैसा खाने में भी ये लोग नहीं हिचकते हैं। भागते भूत की लंगोटी मानकर परिजन बाकी पैसा चुपचाप स्वीकार लेते हैं। अच्छा होता कि सरकार इसका विधिवत कमीशन फिक्स कर देती। वसूली योग्य हिस्से को संबंधित अधिकारियों के बैंक खाते में गैस सब्सिडी की तरह डीबीटी याने डायरेक्ट बेनीफिट ट्रांसफर कर दिया जाए, तो धरना-प्रदर्शन की नौबत ही नहीं आएगी। सिस्टम की ऐसी किरकिरी भी नहीं होगी।
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दीवाली से पहले आतिशबाजी
शिक्षा विभाग के संभागीय अफसर यानी जेडी को हटाने की मांग कर रहे शिक्षकों ने दीपावली से पहले ही पटाखे फोड़कर खुशियां मनाई। रैली, धरना-प्रदर्शन के बाद जब सरकार ने जेडी को पद से हटाया, तो शिक्षकों की खुशी का ठिकाना न रहा। बस्तर संभाग में अफसरों के ट्रांसफर की खुशी में पटाखे फोड़ने का यह नया ट्रेंड चल पड़ा है। पहले दंतेवाड़ा, फिर सुकमा जिले में आईएएस अफसर के ट्रांसफर पर आतिशबाजी हो चुकी थी। अब यह ट्रेंड शिफ्ट होकर जगदलपुर यानी बस्तर जिला तक पहुंच गया है। हालांकि इस बार मामला शिक्षा विभाग के रीलबाज अफसर से जुड़ा हुआ था। एक गज़ब संयोग यह है कि तीनों ही बस्तर की माटी में जन्मे व पले-बढ़े होने का सौभाग्य रखते हैं, लेकिन यहां की तासीर के अनुकूल व्यवहार नहीं अपना पाए। खैर, अब आने वाले समय में वक्त-बेवक्त आतिशबाजी कर दीवाली मनाने का यह ट्रेंड और किस जिले तक पहुंचता है, यह देखने वाली बात होगी।

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बलि का बकरा बने एनएचएम कर्मी

सरकार ने एनएचएम यानी राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के कर्मचारियों की लंबी हड़ताल येन-केन-प्रकारेण खत्म करवा दी। स्वास्थ्य सेवा चरमराने से परेशान सरकार ने कई तरह के हथकंडे अपनाए। हड़ताली कर्मचारी नेताओं को बर्खास्त तक कर दिया। इसके बाद कुछ मांगें मानी, कुछ पर आश्वासन की गारंटी थमाई। हमेशा की तरह आश्वासनों पर भरोसा करते हुए कर्मचारी हड़ताल छोड़कर काम पर लौट तो गए, लेकिन बर्खास्त हुए कर्मचारी नेता बहाल नहीं हुए। मोदी की गारंटी सरकार को याद दिलाना उन पर भारी पड़ा। हड़ताल अवधि के वेतन और सेवा बहाली के बगैर अंधेरे में दीवाली मनाना उनकी मजबूरी बन गई है। कुछ बर्खास्त कर्मचारी तो गांव लौट चुके हैं। हड़ताल के बाद काम पर लौटे बाकी साथियों ने चंदा एकत्र कर उनकी कुछ मदद करने की कोशिश की है, पर सरकार के अधिकारी नहीं पसीजे।
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जांच मिसाइल का प्रयोग

दक्षिण बस्तर में पदस्थ आरईएस के एसडीओ के खिलाफ सरपंचों, जन प्रतिनिधियों ने कई स्तर पर लिखित शिकायतें की, लेकिन अफसर पर कार्रवाई तो दूर मामले की सत्यता की जांच तक नहीं की गई। ऐसे ही कई मामले हैं, जिनमें लोग लिखित शिकायत करते थक जाते हैं, पर कोई एक्शन नहीं होता। जबकि पिछली भूपेश सरकार में दंतेवाड़ा में पदस्थ एक अफसर ने विभागीय जांच को एक घातक अस्त्र की तरह जमकर इस्तेमाल किया। अपने ‘मन की बात’ नहीं सुनने वाले मातहत अफसरों-कर्मचारियों की जांच शुरू कर दी जाती थी। गुमनाम और फर्जी शिकायत को आधार बनाकर महोदय की ‘स्माल एक्शन टीम’ हरकत में आ जाती थी, तो सामने वाले के पसीने छूट जाते थे। सरकारी अमला ही नहीं, नेता, ठेकेदार से लेकर हर तरह के विरोधी पर यह अस्त्र आजमाया गया। सत्ता पक्ष के नेताओं को भी नहीं बख्शा गया। हालांकि, यह औजार पाकिस्तान के चाइनीज मिसाइलों की तरह भीगा हुआ सुतली बम ज्यादा साबित हुआ, सत्य परेशान जरूर हुआ, पर पराजित नहीं किया जा सका।

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चलते-चलते…
अंदर वाले दादाओं के बड़े पैमाने पर सरेंडर से बस्तर में शांति का रास्ता खुलता दिख रहा है। इससे हिंसा और रक्तपात से ऊब चुके लोग तो खुश हैं, लेकिन दूसरी तरफ कुछ लोगों के चेहरे की रंगत इस बात से उड़ी हुई है कि अब केंद्र से राज्य को मिलने वाले फंड में कटौती हो जाएगी। एलडब्ल्यूई यानी लेफ्ट विंग एक्ट्रिमिज्म जिलों को मदद के तौर पर केंद्र सरकार से भारी-भरकम राशि मिलती रही है। अब एलडब्ल्यूई जिले का दर्जा हट गया, तो फिर इस राशि का क्या होगा?

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✍🏻 शैलेन्द्र ठाकुर की कलम से

दो शब्द…

दीपोत्सव दीपावली अंधकार पर उजाले की विजय का प्रतीक है। बाहरी अंधकार के साथ ही अंतर्मन के अंधकार को ज्ञान, सत्य और न्याय के प्रकाश से हरने का पर्व है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के लंका विजय उपरांत अयोध्या वापस लौटने की खुशी में दीपोत्सव का आयोजन हुआ था। तब से हमारी भारतीय संस्कृति में दीयों से घर-आंगन और गलियों को दीयों से रोशन करने की परंपरा चली आ रही है।

आइए ! इसी दीपोत्सव की खुशियां मनाएं और विध्वंसक और नकारात्मक शक्तियों पर देवत्व और सत्य की जीत का संकल्प लें।
आपके जीवन में यह पर्व नया प्रकाश, नई उमंग और उत्साह लेकर आए।
आप सभी सुधि पाठकों को दीप पर्व दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।

शैलेन्द्र ठाकुर
संपादक
बस्तर अपडेट डॉट कॉम

2 thoughts on“रीलबाजी भारी पड़ी अफसर पर…(शब्द बाण- 106)

  1. दीपोत्सव की अनेकानेक शुभकामनायें सर जी 🙏🏼💐

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