साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम शब्द बाण (भाग-108)
2 नवम्बर 2025
शैलेन्द्र ठाकुर । दंतेवाड़ा
नेताजी फड़ पर, गार्ड पहरे पर
नक्सल प्रभावित सुकमा जिले में बड़ा दिलचस्प मामला सामने आया है। मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने जुए की फड़ पर छापा मारा तो सरकारी सुरक्षा प्राप्त सत्तापक्ष के एक नेताजी महाभारत वाले शकुनि मामा की तरह द्यूत क्रीड़ा में मग्न पाए गए। उनकी सुरक्षा में तैनात सरकारी अंगरक्षक घेरा बनाकर सुरक्षा दे रहे थे। इसमें अंगरक्षकों का धर्मसंकट यह था कि वे जिसकी सुरक्षा में तैनात हैं, उसकी हिफाजत करें या कानून की। सरकार ने तो नेताओं की सुरक्षा के लिए गार्ड तैनात किए थे। पर नेताजी ने ‘सुरक्षा कवच’ का उपयोग ‘फड़ सुरक्षा योजना’ वाले नवाचार में कर डाला। यहां पत्तों की हिफाजत और दांव की निगरानी जारी थी। गार्ड की आंखें हर कार्ड पर, और नेताजी की मुस्कान हर जीत पर टिकी थी। लेकिन कहते हैं ना -किस्मत का पांसा कब पलट जाए, कोई नहीं जानता। पुलिस को किसी अंदरूनी ‘शुभचिंतक’ ने खबर दे दी। बस फिर क्या था, छापा पड़ा और सत्ता पक्ष के नेताजी समेत साथियों की गिरफ्तारी हो गई। बाद में जमानत पर छूट भी गए। इसी मामले में पकड़े गए एक और भाजपा नेता तो राजनीति के ‘रॉबिनहुड’ बनते नजर आए। इन्होंने समाज के चार-पांच प्रतिष्ठित लोगों का गुनाह भी अपने सिर पर ले लिया।
“साहब, सब मैं ही हूं… बाकी सब निर्दोष हैं।” वैसे, स्टेटस सिंबल बन चुके सुरक्षा गार्ड्स के दुरुपयोग के कई मामले और भी हैं। चर्चा आम है कि सुकमा की एक मैडम के सुरक्षाकर्मी सिर्फ गन नहीं उठाते, बल्कि भिंडी, टमाटर और आलू की थैली भी उठाते हैं। बाजार से सब्जी खरीदारी से लेकर वाहन चालक, प्लम्बर, इलेक्ट्रीशियन का काम तक उन्हें करना पड़ता है। सुरक्षाकर्मी अब समझ नहीं पा रहे कि वे पुलिस विभाग में हैं या घरेलू सेवा आयोग में। शौर्य और बहादुरी के लिए फोर्स में भर्ती होने के बाद निज स्वाभिमान से समझौता करना पड़ रहा है। परेशान गार्ड्स अफसरों से शिकायत भी कर चुके पर कोई फायदा नहीं हुआ।
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केशकाल में भी ऊंट की सवारी !!
रेगिस्तान का जहाज ऊंट को कहा जाता है, जिस पर बैठकर सफर करने और हिचकोले खाने का अलग मज़ा होता है। बस्तर में रेगिस्तान तो नहीं है, पर केशकाल नगर के भीतर ही लोगों को ऊंट की तरह हिचकोले खाने और डगमगाती गाड़ी में बैठकर सफर करने की सुविधा मिली हुई है। करीब 4 किमी लंबे इस पैच पर आधुनिक बीएस-6 मॉडल वाली गाड़ियों में बैठकर ऊंट की सवारी का लुत्फ उठाया जा सकता है। एनएच विभाग जगदलपुर से केशकाल के बीच सिर्फ 2 जगह टोल टैक्स वसूलने के बाद इतना अच्छा एडवेंचर स्पोर्ट्स का मौका दे रहा है, तो लोगों को सरकार और अधिकारियों का एहसानमंद तो होना ही चाहिए।
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40 फीसदी पर तकरार
ग्रामीण क्षेत्रों में होने वाले विकास कार्यों में 40 फीसदी अग्रिम राशि के भुगतान को लेकर तकरार जारी है। महोदय के कार्यकाल में 40 फीसदी अग्रिम सिस्टम का भरपूर दोहन किया गया। लेकिन उसके बाद आए नए साहब ने इस सिस्टम को उलट दिया। काम 100 फीसदी पूरा होने के बाद 40-40-20 के अनुपात में भुगतान की नई व्यवस्था कर दी गई। यानी काम पूर्ण होने के बाद भी महीनों तक निर्माण एजेंसियों व ठेकेदारों के हाथ खाली रहते हैं। इससे गेहूं के साथ घुन भी पिस जाने जैसी स्थिति बन गई है। ग्राम पंचायतों में इसके ज्यादा साइड इफ़ेक्ट दिख रहे हैं। नए चुनकर आए गरीब सरपंच पूंजी के अभाव में सीमेंट, छड़, गिट्टी व अन्य मटेरियल नहीं खरीद पा रहे हैं, पहले से खार खाए व्यापारी उधार देने को राजी नहीं हैं। इसका नतीजा यह हो रहा है कि मंजूरी के बाद भी या तो काम शुरू नहीं हो पा रहे हैं, या शुरू हो भी गया तो प्रोग्रेस नहीं आ रहा है। पंच-सरपंच 40 फीसदी अग्रिम वाला सिस्टम फिर से बहाल करने के आवेदन लिए मारे-मारे फिर रहे हैं। लेकिन पूर्णतः कंप्यूटराइज्ड डबल इंजन सरकार में यह सिस्टम री-स्टोर नहीं हो पा रहा है।
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हर तरफ जेडी की चर्चा..
बस्तर संभाग में फिलहाल सिर्फ जेडी की ही चर्चा है। एक शिक्षा विभाग वाले और दूसरे जमीन के व्यवसाय वाले जेडी। एक की वजह से शिक्षक आंदोलित हैं, तो दूसरे टाइप वाले जेडी से नक्सल पीड़ित ग्रामीण हलाकान है। सलवा जुडूम अभियान के दौरान घर-बार और जमीन छोड़कर शिविरों में शरणार्थी बन गए लोग नक्सलवाद का कुहासा छंटने पर घर लौटना तो चाहते हैं, पर कुछ लोगों की खाली पड़ी जमीनें अपने आप बिकी हुई मिल रहीं हैं। बीजापुर विधायक ने यह रहस्योद्धाटन किया है। यह जमीन कैसे बिकी यह बड़ा सवाल है। जमीन बिकवाने में जिन सरकारी व गैर सरकारी लोगों ने जेडी की भूमिका निभाई, उन तक कानून व सरकार के हाथ पहुंच पाएंगे, तभी घर वापसी का अभियान सार्थक होगा और सरकार व व्यवस्था के प्रति लोगों का भरोसा और पुख्ता होगा।
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बदले-बदले से सरकार नज़र आते हैं..
रीलबाजी का आरोप लगाकर शिक्षकों द्वारा मोर्चा खोले जाने के बाद बस्तर संभाग में शिक्षा विभाग के आला अफसर के तेवर थोड़े ढीले पड़े हैं। अफसर ने स्कूलों का निरीक्षण और दौरे का क्रम जारी तो रखा है, लेकिन अब पहले वाली आतिशी बल्लेबाजी नहीं कर रहे हैं। न तो पहले जैसे वीडियो वायरल की जा रही है, न ही शिक्षकों पर नसीहतों की बौछार हो रही है। वहीं, दूसरी तरफ अफसर के खिलाफ आवाज़ उठाने के बावजूद हटाए जाने का आदेश जारी नहीं होने से नाराज शिक्षक संगठन आंदोलन के लिए नए सिरे से लामबंद होने लगे हैं। राज्योत्सव के बाद आंदोलन करने की रूपरेखा बनाई जा रही है।
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कहीं पर चंदा जगमग चमके, कहीं पर अंधियारा..
सुकमा जिले में इस बार पुलिस ने दीवाली पर शकुनि मामाओं पर वक्र दृष्टि डालने का साहस तो किया ही, जुआ एक्ट के तहत उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया। तोंगपाल इलाके में सत्ता पक्ष के कुछ नेता, कांग्रेसी शासन काल के रसूखदार अफसरों व कुछ प्रभावशाली नेताओं को गिरफ्तार किया तो पुलिस ने बाकायदा प्रेस नोट जारी भी किया, लेकिन वहीं छिंदगढ़ इलाके में जब कुछ रसूखदार लोग शकुनि मामा के चौसर में बैठे मिले, तो उन पर कार्रवाई जरूर की, लेकिन उनका मामला सार्वजनिक करने से पुलिस बचती दिखी। मामला यहां तक पहुंचा कि विधायक प्रतिनिधि को प्रेस नोट जारी कर इस गोपनीयता को भंग करने की मांग करना पड़ा, जिसमें सत्ताधारी पार्टी के रसूखदार नेता के संरक्षण में फड़ सजाने का आरोप लगाया गया।
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डबल इंजन की रफ्तार पर सवाल
पुरानी पड़ती जा रही नई सरकार की सुस्त चाल से सत्ताधारी भाजपाई ही परेशान हैं। दक्षिण बस्तर में भाजपा के एक पदाधिकारी ने ही अपनी सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है। नेता ने तो प्रेस नोट जारी कर सरकार की सुस्त रफ्तार पर सवाल खड़े कर दिए हैं। नेता का कहना है कि पहले पारी वाले 15 साल में भाजपा ने जो धुंआधार विकास किया, वो बात अबकी भाजपा सरकार में नहीं दिख रही है। पंचायतों के पास काम ही नहीं है। विकास कार्य ठप पड़े हैं।
दूसरी तरफ कांग्रेस का आरोप है कि चुनावी फ्रीबिज योजना महतारी वंदन साय सरकार के गले की हड्डी बन गई है। तमाम विकास योजनाओं का पैसा महतारी वंदन की राशि बांटने में जा रहा है। अब देखना है कि आक्रोश उबलने के बाद भी डबल इंजन सरकार रफ्तार पकड़ती है या नहीं।
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चलते-चलते…
बीजापुर जिले में नव पदस्थ रेंजर की ताबड़तोड़ छापामार कार्रवाई से लकड़ी तस्करों में हड़कंप मचा हुआ है। माओवाद के छंटते कुहासे के बीच उन लोगों की बेचैनी बढ़ना स्वाभाविक भी है, जो अब तक इसकी आड़ में आसानी से काला-पीला किया करते थे। देखना तो यह है कि एक कर्मठ अफसर की कार्यप्रणाली को मौजूदा सिस्टम कितना हजम कर पाता है।



नेता जी फड़ पर गार्ड पहरे पर 1 नम्बर ठाकुर जी
40% पर तकरार
हर तरफ जेडी
बदले बदले से सरकार
चलते चलते
अन्य भी शानदार और सटीक है