नक्सलवाद पर हावी हुआ ‘डिसमिल’वाद.. (शब्द बाण-107)

नक्सलवाद पर हावी हुआ ‘डिसमिल’वाद.. (शब्द बाण-107)

साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम ‘शब्द बाण’ भाग-107

26 अक्टूबर 2026
शैलेन्द्र ठाकुर । दंतेवाड़ा

नक्सलवाद की जगह अब ‘डिसमिल’वाद

बस्तर में नक्सलवाद अब सिमटता जा रहा है, तो ‘डिसमिल’वाद के रूप में नया वाद शुरू होता दिख रहा है। सुकमा जिले के एक सब डिवीजन में राजस्व विभाग के आला अफसर ने जमीन कारोबार को ऐसा ‘इन्वेस्टमेंट प्लान’ बना डाला है, जिसमें हर खरीदार को प्रति डिसमिल 1 हजार रुपए ‘निछावर’ चढ़ाना पड़ता है, तब कहीं जाकर मालिकाना हक़ की गारंटी मिलती है। अगर भूल से भी ‘जन हित सेवा शुल्क’ के बगैर सीधे रजिस्ट्री कराने निकल पड़े, तो साहब के दरबार में फाइल सरकती तक नहीं है। प्रति डिसमिल उगाही के इस धंधे से लोग परेशान हैं। सनद रहे कि पहले भी राजस्व, वन व पुलिस विभाग के इन्ही अत्याचारों से उपजे असंतोष को हवा देकर नक्सलवाद ने बस्तर में अपनी जड़ें जमाई थी। अब जबकि सरकार बड़ी मुश्किल से इन्हें मनाकर सरेंडर करवा रही है, तब फिर से कुछ अफसरों के ऐसे कारनामे सरकार के प्रयासों पर पानी फेरने का काम कर रहे हैं।
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हाईटेक चोर ने उड़ाई नींद
दंतेवाड़ा जिले में एक हाईटेक चोर ने पुलिस व आम लोगों की नींद उड़ाकर रखा हुआ है। यह चोर आराम से घुसकर चोरी को अंजाम देता है। चोर इतना हाईटेक है कि सीसीटीवी लगे होने का अंदेशा होने पर नकाब पहन लेता है, ताकि उसकी पहचान न हो सके। लेकिन कहते हैं कि बड़े से बड़ा अपराधी भी कोई न कोई सुराग छोड़ जाता है। सावधानी के बावजूद कुछ जगहों पर चोर का चेहरा सीसीटीवी कैमरों में कैद हो चुका है। पता चला है कि इसी हाईटेक चोर ने सबसे सुरक्षित समझे जाने वाले सीएएफ बटालियन हेडक्वार्टर कारली की कैंटीन से लाखों रुपए की चोरी कर अपने कैरियर की शुरुआत की। बाद में पकड़ा भी गया और जेल की हवा खाने को मजबूर हुआ। जेल से फरार होकर फिर से चोरी की घटनाओं को अंजाम देने लगा है। हैरानी की बात यह है कि सीसीटीवी में कैद होने के बावजूद भी पुलिस के लंबे हाथ उस की गर्दन तक नहीं पहुंच पाए हैं।
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इंतज़ार करती रह गईं गौ माता
इस बार दीपावली में गोवर्धन पूजा पर दक्षिण बस्तर में गौ माताओं को खिचड़ी खिलाने नेता नहीं पहुंचे। न सार्वजनिक, न ही निजी आयोजन होते दिखे। इसके पहले गौमाता को खिचड़ी खिलाने वाली तस्वीर और वीडियो की रील्स से सोशल मीडिया कुछ हफ्तों तक गुलज़ार रहा करती थी। खुद को सनातन संस्कृति के संवाहक बताने वाले नेता सत्ता में रहने के बावजूद इस बार गोवर्धन पूजा से दूर ही रहे। जबकि पिछली सरकार में कांग्रेसी होने के बावजूद सीएम कका ने गाय-गरु व गोठान को अपना कर बाजी मार ली थी।

अब इन गोठानों को घास और खरपतवार ढंक चुके हैं। जनता की गाढ़ी कमाई के पैसे फूंक कर बनाई गई संरचनाओं को हाशिए पर डालना आम जन को रास नहीं आ रहा है। अच्छा होता कि इन सरकारी संपत्तियों का सही इस्तेमाल होता। भले ही नाम बदलकर इनका उपयोग किया जाता, तो यह शिकायत नहीं रहती।

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फीकी रही रौनक

बजट आबंटन में कंजूसी की वजह से इस बार ठेकेदारों को निर्माण कार्यों का भुगतान समय रहते नहीं हुआ, जिसका असर त्यौहार की रौनक पर पड़ा। गनीमत यह रही कि राज्य सरकार ने कर्मचारियों को समय रहते वेतन जारी कर दिया, जिससे बाजार में थोड़ी बहुत खरीदारी हो सकी।
हाथ तंग होने की वजह से कई अफसर स्टाफ व परिचितों को सौगात बांटने से बचने के लिए काफी पहले छुट्टी पर निकल लिए। ज्यादातर जनप्रतिनिधि व नेता मिठाई तो दूर कम खर्च में टेक्स्ट मेसेज वाला बधाई संदेश तक नहीं भेज सके।
किसी ने क्या खूब कहा है-
तुम्हारा खत पढ़ा, एक भी अक्षर नहीं लिखा।
समझ गया, तुम्हारे जीवन मे कितना सूनापन है।”

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निलंबित जेडी अब बने डीडी

राज्य में इन दिनों जेडी यानी शिक्षा विभाग के ज्वाइंट डायरेक्टर का पद काफी सुर्खियों में है। शिक्षा मंत्री ने दुर्ग संभाग के जिस जेडी को निलंबित किया था, उन्हें दीवाली पर रिटर्न गिफ्ट के तौर पर बहाल कर जेडी से डीडी यानी उप संचालक बना दिया गया है। इधर बस्तर संभाग के जेडी के खिलाफ शिक्षकों ने रैली-निकालकर धरना-प्रदर्शन किया था, उन्हें हटाने का आदेश अब तक जारी नहीं हुआ। जगदलपुर में सीएम प्रवास के दिन ही शिक्षकों के विरोध-प्रदर्शन व नाराजगी को शांत करवाने की गरज से यह खबर उड़ा दी गई थी कि जेडी को हटाकर नए जेडी की नियुक्ति की जा रही है। इससे खुश होकर शिक्षकों ने बरसात के बावजूद पटाखे-फुलझड़ियां छोड़ी थी, लेकिन सप्ताह भर से ज्यादा समय बीतने के बाद भी आर्डर नहीं आया। जिससे ठगा महसूस कर रहे शिक्षक संगठन अब जेडी हटाने ज्यादा बड़ा आंदोलन करने की तैयारी में हैं।
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पद्मासन से शीर्षासन तक..

सोशल मीडिया पर अपने योगासनों व लचीले शरीर से लोगों को अचंभित करने वाले एक वरिष्ठ आईपीएस अफसर इन दिनों यौन शोषण के आरोपों के चलते सुर्खियों में हैं। उन्हें ऑनलाइन योग ट्रेनिंग दिलाने वाली महिला ने ही आरोप लगाकर सिर के बल वाला आसन यानी शीर्षासन करवा दिया है। इस तरह के आरोप-प्रत्यारोप अक्सर नेताओं-अफसरों पर लगते रहते हैं। आरोप चाहे हनी ट्रेप का हो, या फिर शोषण का, इतना तो तय है कि ज्यादातर मामलों में समझौता एक्सप्रेस पटरी से उतरने के बाद ही आरोपों की बौछार होती है। वरना, इतने लंबे समय बाद अचानक खुद के छले जाने का एहसान कैसे हो सकता है।

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खुद आवास को तरस रहे सीईओ

दक्षिण बस्तर में प्रधानमंत्री आवास का टारगेट पूरा करने चाबुक चलाने वाले जनपद पंचायत के अधिकांश सीईओ के खुद रहने के लिए सरकारी आवास तक नहीं है। जनपद पंचायत के सीईओ, सब इंजीनियर से लेकर अन्य स्टाफ के लिए सरकारी आवासों की पुख्ता व्यवस्था नहीं की गई है। कहीं किराए पर मकान लेकर, तो कहीं अन्य विभागों की कॉलोनियों में आबंटित आवास में रहना इनकी मजबूरी बन गई है। अन्य जनपदों की बात छोड़ दें, तो जिला मुख्यालय दंतेवाड़ा में ही जनपद सीईओ को मुख्य बस्ती से 5 किमी दूर चूड़ी टिकरा के डीपीआरसी कॉलोनी में रहना पड़ता है, जहां मोबाइल कवरेज भी ठीक से नहीं मिलता है। ऐसे में सोशल मीडिया पर ऑनलाइन समीक्षा वाले दौर में अफसरों की दिक्कत बढ़ना स्वाभाविक है।

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कानूनी परामर्श से चल रहा थाना…

दक्षिण बस्तर हमेशा नवाचारों में आगे रहा है। सरकार ने कुछ थानों को पुलिसिंग गुणवत्ता के मानकों के आधार पर ISO-9002 सर्टिफाइड करने का प्रयोग कुछ साल पहले राज्य में किया था। अब सुकमा जिले का एक बड़ा थाना इससे भी दो कदम आगे बढ़ता दिख रहा है। अघोषित रूप से इस “लीगल एक्सपर्ट थाना” में कोई फरियादी एफआईआर करने पहुंचा नहीं, कि सामने वाली अनावेदक पार्टी को बुलवाकर काउंटर एफआईआर दर्ज करवा दी जाती है। यानी फरियादी को शिकायत का और अनावेदक आरोपी को बचाव का समान अवसर मिलता है, बस इसके एवज में ‘सेवा शुल्क’.देना होता है। मामला दायर करने जाएँ तो पहले पूछताछ नहीं, कानूनी परामर्श शुल्क तय होता है। इसके लिए एक वकील साहब फ्री में सलाह देने के लिए पुलिस अफसरों के साथ 24 घंटे तैयार मिलते हैं। अब देखना यह है कि यह तत्परता भविष्य में क्या रंग दिखाती है।

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✍🏻 शैलेन्द्र ठाकुर की कलम से

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