साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम ‘शब्द-बाण’ (भाग-104)
5 अक्टूबर 2025
शैलेन्द्र ठाकुर । दंतेवाड़ा
मोटा भाई के प्रवास के मायने
मोटा भाई यानी बड़े भाई के नाम से लोकप्रिय केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह इस बार बस्तर दशहरा पर्व में शामिल होने जगदलपुर पहुंचे। मुरिया दरबार और जन सभा में उन्होंने मिशन 2026 का संकल्प फिर दुहराया और सशक्त संदेश दे गए। अब उनके प्रवास को लेकर पक्ष और विपक्ष के लोग अपने-अपने हिसाब से अर्थ निकाल रहे हैं। पक्ष वाले सराहना कर रहे हैं, तो विपक्षी आलोचना में जुटे हैं। इसके बावजूद पहली बार किसी केंद्रीय गृह मंत्री की मुरिया दरबार मे उपस्थिति आम जन में चर्चा का विषय जरूर है।
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टलना नहीं चाहते एनआरएलएम कर्मी
बस्तर, और खासकर दक्षिण बस्तर की पोस्टिंग को भले ही ऊपरी तौर पर ‘काला पानी’ की सज़ा के तौर पर प्रचारित किया जाता हो, लेकिन सच तो यह है कि जो एक बार यहां आ जाता है, ऐसा रम जाता है कि वो वापस यहां से जाना ही नहीं चाहता, या फिर घूम-फिरकर यहीं लौट आने की फिराक में लगा रहता है। भले ही वो तबादला मैदानी क्षेत्र में क्यों न हो जाए। ताज़ा मामला राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन एनआरएलएम का है, जिसके एक संविदा अफ़सर का तबादला दूसरे जिले में हुआ, तो मोगली के अस्त्र बूमरेंग की तरह लौट कर फिर से दंतेवाड़ा पोस्टिंग करवा ली। इस बार तीसरे मैदानी जिले में तबादला हुआ है, तो फिर तबादले पर नहीं जाने और यहीं रुकने की जुगाड़ में लगे हुए हैं।
कबीर दास जी का यह दोहा काफी प्रासंगिक है-
माखी गुड़ में गड़ी रहे, पंख लिए लिपटाय
हाथ मले और सिर धुने, लालच बुरी बलाय।
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सिंहासन बत्तीसी का खेल
आपने सिंहासन बत्तीसी की कहानियां पढ़ी होंगी, जिसमें राजा विक्रमादित्य के सिंहासन पर बैठने की कोशिश करते ही हर बार एक पुतली निकलकर राजा भोज को रोकती थी, फिर उसे एक कहानी सुनाकर विक्रमादित्य जैसी अपनी योग्यता साबित करने को कहती थी। ऐसी 32 पुतलियां निकलने की वजह से इस कथा का नाम ही “सिंहासन बत्तीसी” पड़ गया। बस्तर में आधुनिक दौर में सिंहासन बत्तीसी के कई प्रकरण सामने आ रहे हैं। ऐसा ही एक मामला बीजापुर जिले का है, जहां पूर्व में पदस्थ जिला शिक्षा अधिकारी को डीईओ पद वाले सिंहासन से मोह इतना बढ़ गया है कि तबादले के बाद भी नई जगह पर जाने को तैयार नहीं हैं। बेबस सरकार न तो रिलीव कर पा रही है, न ही कोई सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई की हिम्मत जुटा पा रही है। वेतन भी बराबर मिल रहा है। उक्त एग्जिस्टिंग डीईओ के युक्तियुक्तकरण की संभाग स्तरीय प्रक्रिया को पलट देने और पोस्टिंग विवादों में घिरे होने के बावजूद सरकार उनके राजनैतिक रसूख के आगे नतमस्तक है। नए व तेजतर्रार शिक्षा मंत्री के आने से किसी ठोस नतीजे की उम्मीद जागी थी, लेकिन अब तक ऐसा कुछ भी असर पड़ता नहीं दिखा है।
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इकोनॉमी वारियर्स के साथ अन्याय
कोरोना काल जैसे विपरीत समय में राज्य की अर्थव्यवस्था को सहारा देने वाले इकोनॉमी वारियर्स यानी अर्थ योद्धाओं की पीड़ा कोई नहीं सुन रहा है। कोरोना के वक्त न सिर्फ लाइन लगाने की सुविधा थी, बल्कि ऑनलाइन आर्डर पर मदिरा की घर पहुंच सेवा भी सरकार ने दे रखी थी। सरकार का आर्थिक संकट टला तो अब दक्षिण बस्तर में सभी जगह पर मदिरा दुकानों तक पहुंचने के रास्ते जर्जर हो चुके हैं। पैग लगाने से पहले सही सलामत दुकान तक पहुंचने की परीक्षा हो जाती है, तभी इकोनॉमी बूस्टर पेय यानी सुरा पान की सुविधा मिलती है। इतनी ‘कठिन’ परीक्षा तो सीजी पीएससी घोटालेबाज टामन सोनवानी के बोर्ड ने भी नहीं ली होगी। किसी ने दुकान के आस-पास खुले मयखाने में बैठकर मदिरापान कर लिया, तो फिर मेन रोड तक सकुशल पहुंचने की बड़ी चुनौती रहती है। अब यह सड़क पीडब्ल्यूडी बनवाये या फिर आबकारी विभाग, यह तय नहीं हो पा रहा है।
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बेघर हुए लोगों की उम्मीदें
दंतेवाड़ा में साप्ताहिक बाजार स्थल के पास निर्माणाधीन प्रधानमंत्री आवास कॉलोनी किसी किवदंती से कम नहीं रह गया है। दशक भर से यह आवास निर्माण कार्य अधूरा पड़ा है। इस बीच सरकारें बदलती रहीं, लेकिन आवास निर्माण कार्य की प्रगति नहीं हो सकी है। इस बीच इस साल की बाढ़ से बेघर हुए लोग मकान के लिए तरस रहे हैं। सरकार ने जो राहत राशि दिलाई है, उसमें मकान पूरी तरह बनकर तैयार होना संभव तो नहीं, कम से कम ऐसे वैकल्पिक आवास से कुछ तो राहत मिल सकती है।
मुनव्वर राणा कहते हैं-
ज़िंदगी तू कब तलक दर – दर फिराएगी हमें।
टूटा फूटा ही सही, अपना घर बार होना चाहिए।।
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आत्मानंद स्कूलों का खेला
हाल ही में राजधानी के पास के एक जिले में आत्मानंद स्कूलों के नाम पर दर्जनों लॉकर की बेवजह ख़रीदी कर राशि के दुरुपयोग का मामला उजागर हो चुका है। पिछली सरकार में 3 साल पहले दक्षिण बस्तर में आत्मानंद स्कूलों के नाम पर हुई खरीदी-बिक्री की गहराई से जांच हो जाए तो बड़ा बवाल मच सकता है।
अच्छे खासे चल रहे हिंदी मीडियम स्कूलों को स्वामी आत्मानंद स्कूलों में कन्वर्ट करने के नाम पर बड़ा खेला हुआ था। सिर्फ बाहरी साज-सज्जा और सामग्री खरीदी को छोड़कर कुछ भी नयापन नहीं आया। न कोई अतिरिक्त स्टाफ मिले, न ही सुविधाएं मिली। पहले से कार्यरत स्टाफ को प्रतिनियुक्ति पर लिया गया। सबसे अजीबोगरीब बात यह थी कि राज्य के अन्य जिलों में गिनती के चुनिंदा स्कूलों को स्वामी आत्मानंद स्कूल में कन्वर्ट किया गया, जबकि दंतेवाड़ा जिले के शत-प्रतिशत यानी सभी स्कूलों को खुशी-खुशी आत्मानंद स्कूलों में कन्वर्ट करने की हामी अफसरों ने भर दी। सरकार बदलने के बाद भी इस पर उंगली उठाने को कोई तैयार नहीं दिख रहा।
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चलते-चलते..
आखिरकार बस्तर संभाग के पहले सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल की शुरुआत डिमरापाल में होने को है, और इसकी तैयारियां अंतिम चरण में हैं। लोगों की बड़ी उम्मीदें हैं कि गम्भीर व जटिल बीमारियों से पीड़ित लोगों का इलाज बस्तर में हो सकेगा। कम से कम मरीज जीते-जागते व स्वस्थ होकर घर लौट सकेंगे। वरना, पहले से संचालित सरकारी मेडिकल कॉलेज व हॉस्पिटल सिर्फ रेफेरल सेंटर बनकर रह गए हैं। निजी प्रैक्टिस में उलझे ज्यादातर डॉक्टरों व प्रोफेसरों के पास सरकारी मरीजों के लिए फुर्सत कम ही रहती है। डॉक्टर व पैरामेडिकल स्टाफ का इंतजाम तो सरकार कर लेती है, लेकिन संवेदनशीलता कहां से लाएं, ये बड़ी समस्या रहती है।
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बहुत सटीक सामयिक विश्लेषण
वाह -वाह सर