बैलाडीला पहाड़ का मुंडन संस्कार… (शब्द बाण-79

बैलाडीला पहाड़ का मुंडन संस्कार… (शब्द बाण-79

साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम ‘शब्द-बाण‘ (भाग-79)

14 अप्रैल 2025

शैलेन्द्र ठाकुर । दंतेवाड़ा

कश्मीर समस्या सुलझी, पर कारली की नहीं

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह दंतेवाड़ा प्रवास पर आए तो सड़क के डिवाइडर से लेकर स्ट्रीट लाइट तक दुरुस्त हो गई। जिस युध्द स्तर से तैयारियां चल रही थीं, उसे देखकर लगा कि कम से कम इस बार पुलिस लाइन कारली और कलेक्टर बंगला के सामने कई सालों से उधड़ी हुई सड़क को भी दुरुस्त कर लिया जाएगा। पर ऐसा हुआ नहीं। सड़क पर डिवाइडर की दूसरी तरफ से वीवीआईपी काफिला निकालकर काम चलाया गया।
बेवफा सनम की तरह सड़क की एक परत का साथ छोड़ने वाली दूसरी परत का कोई इलाज पीडब्ल्यूडी और एनएच विभाग नहीं ढूँढ़ पाए। वह भी ऐसे कद्दावर केन्द्रीय गृहमंत्री के प्रवास पर, जिन्हें खुद भाजपाई और राज्य के गृहमंत्री तक सरदार पटेल के बाद दूसरा लौहपुरुष कहते नहीं थकते। असंभव समझी जाने वाली जटिल कश्मीर समस्या, पूर्वोत्तर की हिंसा और नक्सलवाद की समस्या को सुलझाने के करीब पहुंच चुके केंद्रीय गृहमंत्री की धाक जम चुकी है, लेकि यह बड़ी विडंबना ही रही कि उनके काफिले के गुजरने वाली अदना सी सड़क के जख्म नहीं भरे जा सके।
————–

पीडब्ल्यूडी का एटीएम बनी सड़क
गीदम- बारसूर मार्ग पर सप्ताह भर में 2 और महीने भर में 3 बड़े सड़क हादसे की हैट्रिक बन चुकी है, पर इस सड़क की सुध लेने वाला कोई नहीं है। हादसों की असली वजह इस जर्जर सड़क की आधी-अधूरी मरम्मत है। कहने को तो यह स्टेट हाईवे-5 है, लेकिन इसकी स्थिति ग्रामीण सड़क जैसी ही बदतर है। यह सड़क लोक निर्माण विभाग के अफसरों और ठेकेदारों के लिए किसी एटीएम से कम नहीं है। जब भी कोई टारगेट पूरा करना हो, या खर्च-पानी निकालना हो, तब सड़क के किसी भी एक हिस्से की पैच रिपेयरिंग या बीटी का काम कर पैसे निकाल लेते हैं। भले ही सड़क के एक साइड का डामरीकरण छूट जाए, पर टारगेट पूरा होना जरूरी है। अब फिफ्टी-फिफ्टी फॉर्मूले से बनी आधी-अधूरी सड़क पर गिरकर आम जनता अपनी हड्डियां तुड़वाए या परलोक सिधार जाए, विभागीय अफसरों को कोई फर्क नहीं पड़ता।
——
कामरेड पर भी छापा
पहली बार ऐसा हुआ है कि अफसर-मंत्रियों को छोड़कर लूप लाइन में चल रही विपक्षी पार्टी के नेता पर एसीबी-ईओडब्ल्यू की रेड पड़ गई है। मामला सुकमा जिले का है। जहां पूर्व आबकारी मंत्री और वर्तमान विधायक शराब घोटाले के आरोपी बनाकर जेल भेजे गए हैं और अब पूर्व विधायक व कामरेड यानी सीपीआई लीडर पर ईओडब्ल्यू-एन्टी करप्शन का छापा पड़ा है। इस बार मामला तेंदूपत्ता बोनस घोटाले का है। इस मामले में डीएफओ के घर एसीबी की रेड सबसे पहले पड़ी थी। अब कामरेड का कहना है कि घोटाले की शिकायत खुद उन्होंने की है, इससे ही मामले का खुलासा हुआ और छापा भी उन्हीं पर पड़ गया। हमेशा जल, जंगल, जमीन की आवाज़ बुलंद करने वाले नेता की यह पीड़ा स्वाभाविक ही है। कांग्रेस ने भी इस मामले में कामरेड का पक्ष लेते हुए इसे राजनीतिक द्वेषपूर्ण कार्रवाई करार दिया है। अब देखना यह है कि जांच एजेंसियां अपने आरोपों को प्रमाणित कर पाती हैं, या नहीं।
———-

सुराज की अजब-गजब मांगें
लोक सुराज के नए वर्ज़न सुशासन तिहार में एक से बढ़कर एक मांगें सामने आ रही हैं। आम लोगों की जागरूकता बढ़ी है, इसमें कोई संदेह नहीं। पर कुछ अटपटी मांगें सामने आने से सरकार भौंचक रह गई है। शादी के लिए वधु नहीं मिलने से परेशान एक कुंवारे फरियादी ने तो सुयोग्य कन्या की मांग करते आवेदन लिख दिया, वहीं एक आवेदक ने तो कई कदम आगे बढ़ते हुए राज्य के वित्त मंत्री ओपी को ही मंत्रिमंडल से हटाने की मांग कर दी। गनीमत है कि किसी ने मुख्यमंत्री से इस्तीफा नहीं मांग लिया। खैर, ये मांगें शरारतपूर्ण हैं या राजनीति से प्रेरित, पर सरकार के लिए इन आवेदनों का निपटारा करना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं।
———–

सिर दर्द का निवारण

सरकार प्रायोजित बस्तर पंडुम नामक कार्यक्रम इन दिनों सुर्खियों में है। भाजपा की डबल इंजन सरकार इसे अभिनव पहल बताते नहीं थक रही है। बस्तर पंडुम के समापन पर पहुंचे मोटा भाई ने भी इसे सफलतम आयोजन करार दिया।
और कहा कि इसे अगली बार और भी व्यापक बनाएंगे। वहीं, दूसरी तरफ अपना विपक्षी धर्म निभाने वाले नेताओं ने सवाल उठाना शुरू कर दिया कि आखिर शाह बार-बार बस्तर ही क्यों आ रहे हैं? जब कांग्रेस की सरकार राज्य में थी, तब नक्सल समस्या को लेकर इतनी गम्भीरता क्यों नहीं दिखाते थे? दूसरी तरफ कुछ ‘हार्डकोर’ विचारकों को सरकार की सख्ती भी नागवार गुजर रही है और नरमी वाले तौर-तरीके भी पसंद नहीं आ रहे।
खैर, ऐसे राजनीतिक दांव-पेंच चलते रहते हैं, पर आम जनता को इससे क्या मतलब। 4-5 दशकों में स्थानीय जनता ने मौतों और तबाही का जो मंजर देखा है, उसकी पीड़ा वही जानती है। जनता को तो सिर दर्द की पीड़ा से निजात चाहिए, चाहे वो झंडू के ‘बाम’ से मिले, या फिर बायर के ‘अमृतांजन’ से। यह तो सरकार को तय करना है कि शांति कैसे आएगी।
—–

हैसियत देखकर कार्रवाई
दंतेवाड़ा जिले में खनिज विभाग की स्थिति काफी दयनीय हो गई है, जिस पर किताब लिखी जाए तो काफी मोटी हो जाएगी। खाद्य विभाग की तरह खनिज विभाग को कई साल से इंस्पेक्टर ही चला रहे हैं। गलती से किसी जिला स्तरीय अफसर की पोस्टिंग हो भी जाए, तो अधीनस्थ इंस्पेक्टर के नेटवर्क और आमदनी के सोर्स के आगे अफसर की दाल नहीं गल पाती है। यही वजह है कि नियम तोड़ने वाले कि हैसियत और अप्रोच देखकर ही कार्रवाई करने का आरोप खनिज विभाग पर लग रहा है। हाल ही में दिलचस्प मामला सामने आया, जब खनिज विभाग के अमले ने पास के गांवों से कुछ ट्रैक्टरों को रेत निकालते पकड़ कर जब्त कर लिया। इसके बाद ट्रैक्टर मालिकों ने जो सवाल उठाया, उससे खनिज अफसर बगले झांकने लगे। दरअसल, ट्रेक्टर मालिकों ने अमिताभ बच्चन की स्टाइल में कहा कि जाओ, पहले हाईवा और टिप्परों को पकड़ कर लाओ, जो अमीर ठेकेदारों के हैं।
—–
ठेके पर खदानें
भूगर्भ में अकूत प्राकृतिक संपदा छिपाए बस्तर के बैलाडीला पहाड़ हमेशा सुर्खियों में रहे हैं। एनएमडीसी ने यहां 60 के दशक से लौह अयस्क उत्खनन शुरू किया, पर आज तक लौह अयस्क भंडार का एक छोटा अंश ही निकाला जा सका है। अभी भी लाखों मीट्रिक टन लौह अयस्क का भंडार बचा हुआ है।
इसके बावजूद बैलाडीला पर्वत श्रृंखला में कुछ नई जगहों पर खदान शुरू करने बोली लगवाई गई और निजी कंपनियों को ठेका मिल गया है। सरकार अपनी ही नवरत्न कंपनी एनएमडीसी के परफॉर्मेंस से ऊब गई है, ऐसा लगता है।
यानी अब रही-सही हरियाली और जैव-विविधता वाले पहाड़ों का मुंडन संस्कार जल्द शुरू होगा।
——

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

सलाखों के पीछे वन पशु… (शब्द बाण -80)

सलाखों के पीछे वन पशु… (शब्द बाण -80)

साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम 'शब्द बाण' भाग-80 20 अप्रैल 2025 ✍ -शैलेन्द्र ठाकुर / दंतेवाड़ा बदले गए कलेक्टर भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाते हुए...