आलू-माल के खेल से हो रहे लाल (शब्द बाण -88)

आलू-माल के खेल से हो रहे लाल (शब्द बाण -88)

साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम “शब्द-बाण” (भाग-88)
15 जून 2025

✍🏻 शैलेन्द्र ठाकुर । दंतेवाड़ा

फ़ूड अफसर का राइस मिल
किसी जमाने में बस्तर में पोस्टिंग को अंग्रेज जमाने वाले काला-पानी की सजा समझा जाता था। तभी बस्तर में पोस्टिंग के नाम से ही अफसर-कर्मी सिहर उठते थे। लेकिन पनिशमेंट पाने वाले कई हुनरमंद अफसरों ने इसे स्वर्ग में तब्दील कर अपने लिए चारागाह बनाना शुरू कर दिया। यहां आकर क्रिकेट की तरह पिच की मिजाज भांपने शुरू-शुरू में टुकुर-टुकुर बल्लेबाजी करते और इसके बाद जमकर बल्केबाजी करते थे। अपनी अगली कई पीढ़ियों तक के लिए अकूत संपत्ति जुटा लेते थे। अब छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद भी कई अफसर इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। फिलहाल चर्चा फ़ूड विभाग के एक अफसर की हो रही है, जो राइस मिल में बड़े शेयर होल्डर हैं। जाहिर सी बात है कि धान की कस्टम मिलिंग में अपने मिल के फायदे के लिए तमाम तरह के हथकंडे अपनाएंगे ही। चाहे अपनी शर्त पर मिलिंग करना ही क्यों न हो। वैसे भी फ़ूड और विपणन विभाग के अफसरों की धान खरीदी में अहम भूमिका होती है।
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बोधघाट पर भाषण, अब ग़ायब
मुद्दे वही रहते हैं, बस सरकार के साथ चेहरे बदल जाते हैं। यह बात एक बार फिर साबित हो गई। दरअसल, दंतेवाड़ा प्रवास पर कांकेर सांसद पहुंचे तो मीडियाकर्मी उनका बयान लेने के लिए भाजपा दफ्तर में इंतजार करते रहे, लेकिन यहां मोदी सरकार के 11 साल की उपलब्धि गिनाने प्रेस वार्ता में सिर्फ अंतागढ़ विधायक ही पहुंचे। कांकेर सांसद चुपके से सीधे ही बीजापुर निकल लिए। दरअसल, भूपेश बघेल की कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में बस्तर की बहुचर्चित बोधघाट परियोजना को फिर पुनर्जीवित करने की कवायद शुरू हुई थी, तब सर्वे शुरू होते ही विपक्ष के कई नेता विस्थापितों की सभाओं में बोधघाट परियोजना के विरोध में बड़े जोर-शोर से भाषण देने लगे। इनमें से एक भाजपा नेता भी थे, जिन्होंने विपक्षी धर्म निभाने की गरज से परियोजना के विरोध में करीब घन्टे भर बोला था।

भारी विरोध का चुनावी असर पड़ने की आशंका को देखते हुए भूपेश सरकार ने यू टर्न लिया, और परियोजना से पल्ला झाड़ लिया। इसके बाद भी बस्तर की अधिकांश सीटें और राज्य की सत्ता गंवा बैठे।
अब राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद भाजपा की सरकार है और बोधघाट के विरोध में मोर्चा खोलने वाले उक्त नेता भाजपाई सांसद। इधर, भाजपा की डबल इंजन सरकार ने बोधघाट परियोजना फिर शुरू करने का ऐलान किया है, तो मीडिया को भाजपा नेता के पिछले बयान और भाषणों से नया मसाला मिल गया है। इसी वजह से सांसद की बेसब्री से प्रतीक्षा की जा रही थी।
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आलूमाल से तस्कर हो रहे लाल
कुछ दशक पहले आलूमॉल की टिकिया यानी टेबलेट खूब चलन में थी। बुखार व दर्द निवारक यानी एन्टी पायरेटिक व एनाल्जेसिक गुण के कारण इस ब्रांड का खूब उपयोग होता था। यह चलन से लगभग बाहर हो गया है। अब इसकी जगह पैरासिटामोल के विभिन्न ब्रांड ने ले ली है। खैर, हम यहां चर्चा दक्षिण बस्तर के बैलाडीला लौह अयस्क खदानों के संदर्भ में कर रहे हैं, जहां चोरी छिपे पार होने वाले लौह अयस्क को “आलू -माल” के कोड नाम से तस्कर और पुलिस वाले जानते हैं। एनएमडीसी की वैध खदानों से अलग पहाड़ों में बिखरे पड़े गोल-मटोल आकार वाले पत्थरों को इकट्ठा कर इसकी ट्रांसपोर्टिंग होती रही।
कुछ साल पहले तक यह खुलेआम धड़ल्ले से चलता था। तब राजनैतिक, पुलिस व प्रशासनिक संरक्षण से आलू-माल का कारोबार खूब फला फूला। फारेस्ट, माइनिंग, पुलिस से लेकर इससे जुड़े लोग लाल व मालामाल होते चले गए। बाद में सरकार की सख्ती से यह फौरी तौर पर बंद तो हुआ, लेकिन हाल ही में वैध खदानों के लोडिंग प्लांट से अवैध लोडिंग के कुछ मामले सामने आने से लोग चौंक उठे। राज्य परिवहन निगम को भीतर से घुन की तरह खोखला करने और बंद करवाने वाले कर्मचारियों की तरह एनएमडीसी में भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है। जो उसी थाली में छेद कर रहे हैं, जिसमें खाना खाते हैं। अब देखना यह है कि सरकार व एनएमडीसी इसे कितनी गम्भीरता से लेते हैं।
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अंततः जल ही गई लाल बत्ती
अतिशेष शिक्षक युक्तियुक्तकरण घोटाले में गीदम के विवादास्पद बीईओ अंततः नप ही गए। निलंबन आदेश जारी होने में हो रही देरी से लोग आशंकित थे कि राजनीतिक रसूख और दबाव से कहीं मामला ठंडे बस्ते में न चला जाए। निलंबन की अनुशंसा पर कमिश्नर के अनुमोदन वाली फ़ाइल काफी देर से आई। क्रिकेट मैच की तरह थर्ड अंपायर ने आउट के निर्णय वाली लाल बत्ती जला दी। इस आदेश का बेसब्री से इंतजार कर रहे शिक्षकों ने जमकर एक-दूसरे को बधाई दी, मानो वर्ल्ड कप जीत लिया हो। सत्ता में आने के बाद किसी भी बीईओ को नहीं बदल पाने की कमजोरी ने भाजपा सरकार को काफी बदनामी दिलाई। वह भी ऐसे विभाग में, जिसे स्वयं मुख्यमंत्री अपने पास रखे हुए हों।

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ओटीपी से राशन का चोंचला
दक्षिण बस्तर जैसे पिछड़े हुए क्षेत्र में ओटीपी के जरिये राशन व इलाज देने की कोशिश पत्थर से तेल निकालने जैसी ही है। नेटवर्कविहीन क्षेत्र में, जहां बात करना भी मुश्किल हो, वहां सरकार लोगों से स्मार्टफोन वापरने की उम्मीद करती है। सरकारी राशन दुकान में राशन नहीं मिल रहा। कहीं बॉयोमेट्रिक मशीन फिंगरप्रिंट नहीं पहचान रही, तो कहीं ओटीपी मोबाइल नेटवर्क में फंस रहा है। ऐसे ही
सरकारी हॉस्पिटल में आभा एप डाउनलोड करने के चक्कर में पर्ची नहीं बन पा रही, जिससे ग्रामीण मरीज इलाज से वंचित रह जाते हैं। जब तक पर्ची बनती है,ओपीडी टाइम खत्म हो जाता है। मुन्नाभाई एमबीबीएस फ़िल्म में संजय दत्त के डायलाग की याद दिलाती है- मरीज मरता रहे तो भी फॉर्म भरना जरूरी है क्या? राशन और ईलाज में चोंचला बाजी के चक्कर मे ग्रामीणों की तकलीफ बढ़ती जा रही है।
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डीएमएफ की राशि पर बवाल

दंतेवाड़ा में खुलने वाले मेडिकल कॉलेज का विवादों से चोली दामन का नाता रहा है। हॉस्पिटल निर्माण की जगह को लेकर खींचतान थमी नहीं है, इधर हॉस्पिटल भवन के फंड को लेकर फिर से बवाल मचता नज़र आ रहा है। मामला मेडिकल कॉलेज सह हॉस्पिटल भवन निर्माण की राशि का है। कांग्रेस का आरोप है कि इस निर्माण कार्य के लिए डीएमएफ मद की 300 करोड़ की राशि दी जा रही है, जबकि राज्य के अन्य जिलों में भी मेडिकल कॉलेज खुलने हैं, जिनके लिए राज्य व केंद्र मिलकर नियमित बजट से राशि खर्च करने वाले हैं। ऐसे में जिले के अन्य विकास कार्यों में कटौती कर डीएमएफ की इतनी बड़ी राशि को ट्रांसफर करने का क्या औचित्य है?

कांग्रेस का यह सवाल भी अनुचित नहीं है। जिले में शत-प्रतिशत हाई व हायर सेकेंडरी स्कूलों को आत्मानंद स्कूलों में कन्वर्ट करने की योजना से डीएमएफ की अंतड़ियां पहले ही बाहर निकल आई थीं। प्रतिनियुक्ति पर लिए गए शिक्षकों की तनख्वाह अलग, लीपापोती वाली मरम्मत का भारी-भरकम खर्च अलग। अब मेडिकल कॉलेज के लिए भी इसी फंड से राशि देने से गांवों के विकास कार्यों की कटौती होना स्वाभाविक है।
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विजय-केदार की जोड़ी
प्रदेश के डिप्टी सीएम विजय शर्मा और वन मंत्री केदार कश्यप की गाढ़ी मित्रता इन दिनों चर्चा में है। दोनों मंत्री कई दौरों और विभिन्न कार्यक्रमों में साथ दिखाई दे रहे हैं। दोनों अक्सर एक दूसरे की तारीफ करते भी देखे-सुने जाते हैं। दोनों ही सूबे के कद्दावर मंत्रियों में शुमार किए जाते हैं। ऐसा अक्सर देखने में आता है कि मंत्रियों में आपसी प्रतिद्वंद्विता होती है। अधिकारों को लेकर टकराव भी होता है। लेकिन यहां ऐसी कोई बात फिलहाल नहीं दिख रही है, जो डिप्टी सीएम व गृह मंत्री के प्रभार वाले जिला यानी बस्तर के लिए फायदेमंद ही साबित हो सकती है। उनके पास पंचायत जैसा महत्वपूर्ण विभाग भी है। बस्तर के विकास को लेकर दोनों की जुगलबंदी क्या गुल खिलाती है, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। फिलहाल, महानदी-इंद्रावती लिंक कैनाल योजना की मंजूरी मिल चुकी है। नदियों को जोड़ने की यह परियोजना बस्तर के किसानों के लिए काफी फायदेमंद होगी।
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शैलेन्द्र ठाकुर
✍ शैलेन्द्र ठाकुर की कलम से

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