सीएम बनाम एक्स सीएम (शब्द बाण -84)

सीएम बनाम एक्स सीएम (शब्द बाण -84)

साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम ‘शब्द बाण’ (भाग-84)

18 मई 2025

शैलेन्द्र ठाकुर । दंतेवाड़ा

सीएम बनाम एक्स सीएम

यह भी गज़ब संयोग रहा कि बस्तर में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने एक ही समय पर 2 दिनों तक डेरा जमाए रखा। मुख्यमंत्री साय सुशासन तिहार मनाने आए थे और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश कका साय सरकार की बखिया उधेड़ने। पहले सिर्फ सुशासन तिहार में सीएम साय का हेलीकाप्टर किसी भी गांव में उतरने की जानकारी लोगों को थी, लेकिन पूर्व सीएम की यकायक एंट्री से कहानी में नया ट्विस्ट आ गया। दोनों को ये पता है कि सत्ता की चाबी बस्तर के दंडकारण्य में ही रखी हुई है। अब से 3 साल बाद इसी चाबी से सत्ता का ताला खुलना है, तो क्यों न इस पर अभी से कब्जा जमाया जाए।

इधर सीएम साय साहब अपने वर्तमान काल पर नाज जताते दिख रहे थे कि नियद नेल्ला नार जैसी कई योजनाओं से लोगों की बल्ले-बल्ले हो गई है। वहीं एक्स सीएम कका ने भूतकाल का स्मरण करते कहा कि उनके कार्यकाल में जनता ज्यादा सुखी थी और जेब में सदा हरियाली रहती थी।
दोनों पक्ष के दावे कितने सच हैं, इसकी कसौटी तो जनता ही चुनाव में कसकर बताएगी। जनता जनार्दन की स्थिति कुछ ऐसी है-

मुझको तो होश नहीं, तुमको खबर हो शायद।
लोग तो कहते हैं कि तुमने मुझे बर्बाद किया।

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जगरगुंडा पहुंचे ओपी
स्वयं के दंतेवाड़ा कलेक्टर रहते ओपी चौधरी जिस अरनपुर तक जाने की कल्पना भी नहीं कर सकते थे, तब अन्दरवाले दादा हावी हुआ करते थे। अरनपुर थाना में फोर्स और रसद तक सिर्फ हेलीकॉप्टर से पहुंचाई जाती थी। अब वे वित्तमंत्री बनकर उसी अरनपुर के रास्ते सड़क मार्ग से जगरगुंडा पहुंचे। वित्त मंत्री ओपी ने साबित किया कि बदलाव तो हुआ है। पहली बार किसी मंत्री का काफिला अरनपुर घाट से होकर गुजरा। वैसे, बस्तर में हालात काफी बदले हैं। सुकमा, बीजापुर, दंतेवाड़ा जिले में डिप्टी सीएम से लेकर अन्य मंत्री तक सड़क मार्ग से दौरा करने लगे हैं, जिससे आम लोगों में भी भरोसा जागा है।

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कांग्रेस में जोश का उबाल !
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पद से हटने के बाद पहली बाद दक्षिण बस्तर दौरे पर पहुंचे, तो कांग्रेसियों के जोश में उबाल मारता दिखा। दंतेवाड़ा के अलावा सुकमा जिले तक से बड़ी तादाद में कांग्रेसी पूर्व सीएम से मिलने पहुंचे। कका-बाबा वाली खेमेबाजी को भुलाकर सभी कांग्रेसी एक दिखे। किसी समय एक दूसरे को निपटाने को आतुर रहे कांग्रेस आपस मे गले मिलते और कका का स्वागत करते दिखे। तब और अब में बड़ा फर्क ये था कि सीएम सिक्योरिटी के नाम पर रहने वाला तामझाम ग़ायब था और कोई भी कार्यकर्ता सीधे हाथ मिलाने पहुंच रहा था।

कका ने कार्यकर्ताओं संग खूब सेल्फी भी खिंचवाई। कार्यकर्ताओं ने भी वर्तमान सीएम की तरह ही अपना सुख दुःख व दुखड़ा कह सुनाया। कका दुबारा सीएम बन जाएं तो शायद समस्या ही न रहे। किसी ने क्या खूब कहा है-

हर शब जलाए रखता हूँ दहलीज़ पे चिराग़
कि लौट के आओगे… उम्मीद अब भी बाकी है।

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बदमाश कौन ??

दंतेवाड़ा जिले के एक बीईओ ने अपने आदेश में ‘बदमाश’ शिक्षक शब्द का प्रयोग करते हुए ऐसे शिक्षकों की सूची मंगवाई तो बवाल ही मच गया। शिक्षक जैसे सम्मानित पेशे के लिए ऐसे शब्द का प्रयोग करना पूरी बिरादरी को नागवार गुजरा है। वह भी तब, जब उक्त बीईओ स्वयं भी मूलतः शिक्षक ही हैं, जिनके खिलाफ शिक्षक संगठन पहले भी धरना-प्रदर्शन कर चुके, लेकिन बाल भी बांका नहीं कर सके। कांग्रेस सरकार में कुशलता पूर्वक कार्यकाल पूरा करने के बाद छुटभैये भाजपाइयों को भी मैनेज कर चुके बीईओ अंगद के पांव की तरह जमे हुए हैं।

अभी तक ठीक तरह से स्टार्ट नहीं हो सकी भाजपा सरकार ने एक तरह से अभयदान दिया हुआ है। दरअसल, सादगी की प्रतिमूर्ति सीएम शिक्षा विभाग खुद के पास ही रखे हुए हैं। उनके पास किसी एक विभाग पर फोकस करने समय की काफी कमी है। यही वजह है कि कई विवादास्पद और दागी बीईओ-बीआरसी इस सरकार में भी अपनी नैया पार लगाने की फ़िराक में हैं।
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तू डाल-डाल मैं पात-पात
सुकमा जिले से तेंदूपत्ता ले जाकर पड़ोसी जिले में बेचने का मामला दिलचस्प मोड़ पर पहुंच गया है। मामला उजागर होते ही वन विभाग ने शबरी नदी के पुल पर पहरा बिठा दिया, ताकि तेंदूपत्ता को ओड़िशा जाने से रोक सकें, लेकिन तेंदूपत्ता की तस्करी में संलिप्त लोग वन विभाग के साथ ही तू डाल-डाल मैं पात-पात वाला खेल खेलने लग गए। अब तेंदूपत्ता कई जगहों पर नदी पार कर बेचने भिजवाया जा रहा है। इससे ग्रामीणों की जान जोखिम में बनी रहती है।
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एसीबी के छापे ही छापे
राज्य भर में एन्टी करप्शन ब्यूरो ने शनिवार को अचानक ही 15 जगहों पर छापामार कार्रवाई कर दी। शराब घोटाला मामले में पूर्व आबकारी मंत्री लखमा के करीबियों पर ये छापे पड़े। छापे में क्या हासिल हुआ, यह तो पता नहीं, लेकिन इतनी देर से हुई कार्रवाई पर सवाल उठने लगे हैं।

छापामार कार्रवाई झेलने वालों का यहां तक कहना है कि कुछ तो मिला नहीं। ऐसी कोई रकम होती भी तो भला इतने दिनों तक अपने पास रखकर ‘आ बैल मुझे मार कहता’। वह भी तब, जबकि कभी कद्दावर मंत्री रह चुके कांग्रेसी नेता को गिरफ्तार कर लिया गया हो। दंतेवाड़ा प्रवास पर आए पूर्व सीएम ने भी कह दिया कि नोट गिनने की मशीन लेकर उनके घर गए थे, लेकिन क्या मिला ये नहीं बताया।

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जरा सी हवा में बिजली हवा-हवाई

दक्षिण बस्तर में बिजली सप्लाई की दशा किसी से छिपी नहीं है। इस भीषण गर्मी में तो पंखे तक घिघियाते दिख रहे हैं। सरकार बदलने के बाद भी वही स्थिति है। आउटसोर्सिंग वाले कर्मचारियों के भरोसे चल रहे विभाग का खुद का वोल्टेज डाउन है। बिजली सांय-सांय आ रही है और उसी रफ्तार से जा भी रही है।

“बिजली बिल ही नहीं, बल्कि बिजली भी हाफ” कहने वाले ग़ायब हो चुके हैं। प्री मानसून मेंटेनेंस का तो हाल ऐसा है कि जिला मुख्यालय में ही जरा सी बारिश व अंधड़ से घन्टों बिजली गुल हो जाती है। गांवों में तो सप्ताह भर बिजली गुल रही भी तो विभाग को कोई परवाह नहीं। बिजली विभाग का फोन किसी तरह लग जाए तो बड़ी बात है, उससे भी बड़ा सौभाग्य तो तब है कि रिंग चला जाए और उसे उठा लिया जाए।

अफसरों का ‘दिखवाता हूं’, ‘करवाता हूं’, रटा-रटाया जुमला टाइप जवाब सुन सुन कर उपभोक्ता त्रस्त हैं। कभी कम स्टाफ, तो कभी मेन लाइन फाल्ट, कभी फलाना फीडर फाल्ट,कभी ढिकाना फीडर फाल्ट सुन सुन कर आम उपभोक्ता बिजली भाषा साहित्य में भी पारंगत हो रहे हैं। सुशासन तिहार के माध्यम से मंत्रमुग्ध सरकार और छोटी-छोटी बातों में रौद्र रूप दिखाने वाले अधिकारी भी बिजली विभाग के आगे नतमस्तक हैं।
हालत यह है कि बिजली गुल के दौरान लोग मुख्य मार्गों से गुजरते हुए जनरेटर से जगमगाते सरकारी बंगलों को देख कर दबी जुबान कहने से बिल्कुल नहीं चूकते कि
जनरेटर और एसी में बैठ कर बिजली गुल का दर्द तुम क्या जानो,
कभी हमारे हालातों से गुजर कर तो देखो साहब।

✍🏻 शैलेन्द्र ठाकुर

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