साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम ‘शब्द बाण’ (भाग-86)
1 जून 2025
✍ शैलेन्द्र ठाकुर । दंतेवाड़ा
कांग्रेस ने दंतेवाड़ा में बैलाडीला की खदानों के निजीकरण के खिलाफ पदयात्रा कर न सिर्फ अपना शक्ति प्रदर्शन किया, बल्कि यह भी बता दिया कि सत्ता खोने के बाद भी उसके पास कार्यकर्ताओं की कमी नहीं है। गंगा गए गंगा दास, जमुना गए जमुना दास टाइप दल-बदलु नेताओं के बगैर भी पार्टी चल रही है। वैसे, वाम पंथी पार्टी को इस बात का मलाल है कि जल, जंगल, जमीन वाला उनका पारंपरिक मुद्दा कांग्रेस ने हाईजैक कर लिया है। पीसीसी अध्यक्ष बैज तो ‘मनवा नाटे – मनवा राज’ का नारा लगाते भी दिखे।
इस पदयात्रा की अहमियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अपने कार्यकाल में नंदराज पहाड़ की नीलामी और हसदेव अरण्य में कटाई का विरोध झेल चुके पूर्व सीएम भूपेश कका खुद इसमें शामिल होने पहुंच गए और पीसीसी अध्यक्ष के साथ कदमताल किया। वैसे, आदिवासी मुख्यमंत्री बनाने की मुहिम ट्राइबल एक्सप्रेस के मामले में बैज और कका की प्रतिद्वंद्विता किसी से छिपी नहीं रही है। यह बात जरूर है कि इस त्रिकोणीय संघर्ष में सिर्फ कका-बाबा का ढाई-ढाई साल वाला फार्मूला ही हाई लाइट हुआ।
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वादा खिलाफी बनाम ब्लैकमेलिंग
ट्राइबल विभाग के एक बड़े अफसर पर यौन शोषण और वादे से मुकरने का आरोप लगा और मामला पुलिस तक पहुंच गया। ब्लैकमेलिंग के आरोप दोनों पक्ष से लग रहे हैं। इस मामले में जितने मुंह, उतनी बातें हो रही हैं। वास्तव में यह मामला प्रेम प्रसंग का है या हनी ट्रेप का, यह तो वही जानें। लेकिन उलझन ऐसी है कि इस गुत्थी को सुलझाने में सीआईडी के इंस्पेक्टर दया व एसीपी प्रद्युम्न जैसे अफसरों के भी दांत खट्टे हो जाएं।
यह भी सच है कि सार्वजनिक जीवन मे शुचिता बनाए रखने में अफ़सर नाकाम रहे। इससे विभाग की बदनामी तो हुई है, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता। धन-संपदा के मामले में सबसे अमीर इस विभाग में अफसरों की परिक्रमा करने वाले ठेकेदार-सप्लायरों की कमी कभी नहीं रही, जो ईमानदारी से काम करने की कोशिश करने वाले एसी की तपस्या भंग करने ‘अप्सरा’ भेजने में भी पीछे नहीं रहते हैं। जिला गठन के बाद से ही दंतेवाड़ा में एसी ट्राइबल का पद हमेशा विवादों में रहा है।
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मैदान है या प्रैक्टिकल वाला मेंढक ?
दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय के हाई स्कूल मैदान पर अब सिंथेटिक ट्रैक का निर्माण किया जा रहा है। इस मैदान की हालत बायोलॉजी विषय के प्रैक्टिकल के लिए चीर-फाड़ किए जाने वाले मेंढक की तरह हो गई है, जिसे विज्ञान के छात्र डिसेक्शन औजारों से काट-पीट कर बॉडी पार्ट्स को देखते-समझते हैं। नगर के बीच बचे इस इकलौते खेल मैदान में खेलकूद छोड़कर बाकी सारी गतिविधियां साल भर चलती रहती हैं। जिससे मैदान खेलने या पैदल चलने लायक ही नहीं रह गया है। 3 साल पहले पिछली सरकार के कार्यकाल में पौन करोड़ खर्च कर इसकी मरम्मत की गई थी। पहले से बने बनाए स्टेडियम के ऊपर 2 से 3 फीट ईंट जुड़ाई की और कुछ म्यूरल आर्ट बनवा दिया गया। इसकी लागत आश्चर्यजनक ढंग से 84 लाख आ गई थी। इतनी बड़ी रकम के कार्यों का मूल्यांकन कैसे हुआ होगा, ये तो इंजीनियर ही बता पाएंगे।
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पुलिस के चक्रव्यूह में कांग्रेसी
बैलाडीला की खदानों के निजीकरण के विरोध में पदयात्रा कर प्रदर्शन करने कलेक्ट्रेट पहुंच रहे कांग्रेसियों के लिए पुलिस ने तगड़ा इंतजाम किया था। महाभारत के चक्रव्यूह की तरह कई स्तर का घेरा बनाया। स्टॉपर को मजबूती से 3-4 स्तर तक खड़ा कर उस पर प्रोफाइल शीट भी लगा दिया। तैयारी इतनी तगड़ी थी कि इस चक्रव्यूह की रक्षा के लिए फायर ब्रिगेड की गाड़ी भी तैयार थी, ताकि पानी की तेज बौछार कर रोका जा सके। जिले में पहली बार बलवा रोधी पोशाक से सुसज्जित जवानों को तैनात किया गया था। इसके बाद भी कांग्रेसियों के जोश व जुनून के आगे चक्रव्यूह टिक नहीं सका। कुछ कांग्रेसी गेट को फांदकर अंतिम बाधा भी पार करने में कामयाब हो गए। हालांकि, कांग्रेसी सेनापति ने इसके आगे जाने से रोक दिया। तब जाकर मामला शांत हुआ।
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गब्बर इज बैक
तीन साल तक आफ़त मचाने वाला कोरोना फिर से गब्बर इज बैक की तरह लौटता दिख रहा है। छत्तीसगढ़ में भी कोरोना की एंट्री हो चुकी है। इससे भुक्तभोगी लोग तो सहमे हुए हैं, लेकिन आपदा को अवसर की तरह पिछली बार भुना चुके लोगों की बांछें खिल आई हैं। जिनमें सप्लायर, नेता व ठेकेदार ज्यादा हैं। कोरोना काल में मास्क, सेनिटाइजर से लेकर उपकरणों की सप्लाई कर लाल हो चुके लोगों की उम्मीदें फिर से हरी-भरी होती दिख रही हैं।
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उधार के इंजीनियरों के भरोसे आरईएस
दक्षिण बस्तर में आरईएस यानी ग्रामीण यांत्रिकी सेवा विभाग उधार के इंजीनियरों के भरोसे चल रहा है। इस विभाग का मुख्य कार्य पंचायत एवं ग्रामीण विकास संबंधी निर्माण कार्यों का तकनीकी मार्गदर्शन करना है। विभाग का वर्कलोड ज्यादा है। लेकिन इंजीनियरों की पोस्टिंग नहीं हो रही है। जल संसाधन, पीएचई जैसे अन्य विभागों से सब इंजीनियर उधार लेकर काम चलाया है। कई जगहों पर मनरेगा और आवास वाले गैर इंजीनियर गणित स्नातक तकनीकी सहायक ही सब इंजीनियर की भूमिका निभा रहे हैं। इसके बावजूद इस विभाग में इंजीनियरों की पोस्टिंग नहीं हो रही है। यहां तक कि कार्यपालन अभियंता का प्रभार भी दूसरे विभाग के एसडीओ को देने को नौबत आ चुकी है। देखना यह है कि विभाग कब तक उधार की ज़िंदगी गुजारता रहता है।
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पुलिस की दबंगई
तेजी से नक्सलमुक्त हो रहे बीजापुर में पुलिस की दबंगई को लेकर जबर्दस्त थू-थू हो रही है। इस जिले में पदस्थ एसडीओपी की वाहन को साइड नहीं देना पंचायत सचिव व तकनीकी सहायक पर भारी पड़ा। अब जिसकी लाठी है, भैस तो उसकी ही होगी। एसडीओपी साहब व उनके गार्ड्स ने निरीह कर्मचारियों पर भरपूर मर्दानगी दिखाते हुए उनकी बेदम पिटाई की। यह कारनामा ऐसे वक्त पर दिखाया गया है, जबकि नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई में पुलिस व सरकार जीत के काफी क़रीब पहुंच चुके हैं। ऐसे में मानवाधिकार हनन संबंधी आरोपों के चलते हमेशा कटघरे में खड़ी होती रही पुलिस की साख इस घटना से फिर दांव पर लग गई है। सनद रहे कि किसी जमाने में पुलिस, राजस्व और वन अमले के अत्याचारों ने ही नक्सलवाद को बस्तर में जड़ें जमाने का मौका दिया था।
