साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम ‘शब्द बाण‘ भाग- 83
11 मई 2025
शैलेन्द्र ठाकुर । दंतेवाड़ा
दीया तले अंधेरा
जिला मुख्यालय का वार्ड होने के बावजूद दंतेवाड़ा के नयापारा व पातररास इलाके में बुनियादी सुविधाएं कोसों दूर हैं। इस तरफ न तो नल जल योजना पहुंचती है, और न ही मोबाइल नेटवर्क पहुंचता है। स्थानीय बाशिंदे आवेदन देते थक चुके, लेकिन न तो मोबाइल टॉवर लगा, न ही सुविधाएं बढ़ी। खास बात यह है कि उपेक्षा से परेशान नयापारा व पातररास वासी पहले भी नगरीय निकाय से अलग कर ग्राम पंचायत गठन की मांग करते आ रहे हैं, लेकिन उन्हें न तो सुविधाएं मिलती हैं, न ही ग्राम पंचायत का दर्जा। नक्सल प्रभावित इलाके के अंदरूनी गांवों तक विकास पहुंचाने के दावे के बीच शहर की यह स्थिति विरोधाभास उत्पन्न करती है।
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हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट या ढकोसला ?
परिवहन विभाग को वाहनों के सामान्य नम्बर प्लेटों पर भरोसा नहीं रहा। इसीलिए अब अनिवार्य रूप से हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट लगाने का अभियान चला रहा है। वहीं, दूसरी तरफ बगैर नंबर प्लेट के काले शीशे वाली गाड़ियों पर कोई लगाम नहीं है। ऐसी गाड़ियों में सवार होकर रात बेरात जुआ खेलने, शराबखोरी कर हुड़दंग मचाने, हूटर बजाने वालों को पुलिस ने खुली छूट दे रखी है। हिट एंड रन हादसों की बढ़ती संख्या के बावजूद पुलिस की चेतना विलुप्त है। हाई सिक्योरिटी प्लेट का मतलब तो तब है, जब गाड़ी में इसे लगाया जाए। नक्सली इलाके में वीआईपी सुरक्षा के नाम पर बिना नंबर प्लेट वाली गाड़ियों की अघोषित छूट का बेजा फायदा उठाते लोग सिरदर्द बन चुके हैं। वह भी तब, जबकि किसी समय धुर नक्सल प्रभावित रहे पोटाली -मुलेर जैसे अति संवेदनशील गांवों को नक्सलमुक्त घोषित करने का सिलसिला चल रहा हो और जिले को केंद्र सरकार ने अति संवेदनशील की श्रेणी से हटा दिया हो।
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जहां सोच वहीं शौचालय
शक्तिपीठ सौंदर्यीकरण और कॉरीडोर निर्माण के नाम पर दंतेवाड़ा में जिन अच्छे खासे भवनों को ढहाकर जमींदोज कर दिया गया, उनमें से एक जयस्तंभ चौक के पास तहसीलदार निवास भी था। अच्छी हालत में रहे इस हवादार भवन की जगह अत्याधुनिक टूरिस्ट इनफार्मेशन एंड मीडिया सेंटर बनाने की बात कही गई थी। निर्माण कार्य शुरू भी हुआ। बाद में राज्य का निजाम बदला और कलेक्टर बदले गए, फिर यह प्रोजेक्ट अधर में लटक गया।
खैर, आधे-अधूरे पड़े नए स्ट्रक्चर को लेकर छींटाकशी चलने लगी, तब इसे किसी तरह पूरा तो करवा दिया गया, लेकिन टूरिस्ट इनफार्मेशन सेंटर नहीं, बल्कि सामुदायिक शौचालय के तौर पर। तहसीलदार आवास के सार्वजनिक शौचालय में बदलने तक का यह किस्सा दिलचस्प हो गया है, स्वच्छता अभियान की ब्रांड एंबेसेडर रहीं मशहूर सिने तारिका विद्या बालन के डॉयलॉग “जहां सोच, वहीं शौचालय” की तरह।
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तेंदूपत्ता ठेकेदारों की बल्ले-बल्ले
बस्तर में आपदा को अवसर में बदलने वाले होनहारों की कमी कभी नहीं रही है। ताजा मामला सुकमा जिले का है, जहां तेंदूपत्ता संग्राहकों के बोनस की करोड़ों रुपए की राशि हड़पने के मामले ने नया मोड़ ले लिया है। यहां पदस्थ रहे पूर्व डीएफओ जेल भेजे गए हैं और विभाग ने भ्रष्टाचार के खिलाफ ज़ीरो टॉलरेंस की नीति अपनाते हुए सभी 11 वनोपज समितियों को भंग कर दिया है।
इससे ऐन तेंदूपत्ता खरीदी सीजन में व्यवस्था डगमगा गई। इसे देखते हुए तेंदूपत्ता की सरकारी खरीदी के लिए शिक्षकों की ड्यूटी लगा दी गई। इस मामले में अप्रशिक्षित और अनुभवहीन शिक्षकों को तेंदूपत्ते की गुणवत्ता की एबीसीडी तक नहीं पता। वे या तो जुगाड़ से छुट्टी पर चले गए हैं या फडों में खरीदी छोड़कर मुख्यालय में मंडराते दिखते हैं। इसका फायदा तेंदूपत्ता ठेकेदार व बिचौलिए उठा रहे हैं। तेंदूपत्ता संग्राहक ग्रामीणों को पास स्थित ओड़िशा बॉर्डर ले जाकर औने-पौने दाम पर उनका पत्ता खरीद रहे हैं।
दरअसल, ओड़िशा में तेंदूपत्ता की खरीदी पर कोई टैक्स नहीं लगता है। खरीदा गया पत्ता वापस छत्तीसगढ़ में खपाने या फिर अन्य प्रान्त के बड़े ठेकेदारों को बेचने की पूरी तैयारी है। कुल मिलाकर संग्राहकों की स्थिति आसमान से गिरे, खजूर पर अटके जैसी हो गई है।
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मिशन कर्रेगुट्टा हुआ ड्रॉ
पुलिस का बहुचर्चित कर्रेगुट्टा ऑपरेशन किसी क्रिकेट टेस्ट मैच की तरह बगैर परिणाम के ही ‘ड्रा’ हो गया। गनीमत यह रही कि भारत-पाक के बीच जंग छिड़ने जैसे हालात ने पुलिस को पारी घोषित करने का मौका दे दिया और उसकी लाज बच गई। वरना, जिस शोर-शराबे के साथ शिकार वाला हांका लगाया गया था, उस हिसाब से पुलिस को काफी बड़ी सफलता मिलने वाली थी।
अति उत्साही मीडिया ने तो अपने समाचारों में 43 नक्सली तक मार गिराए थे। इतने से भी मन नहीं भरा तो 22 नक्सली और मारे जाने की खबर ब्रेक करवा दी। बाद में इन खबरों की हवा निकल गई। स्वयं विभागीय मंत्री को खंडन करना पड़ा। इस ऑपरेशन में कुछ नक्सली मारे जरूर गए, पर कितने और कौन-कौन मारे गए, इसका खुलासा अब तक नहीं हुआ।
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जिलाध्यक्ष ही अघोषित विधायक
बीजापुर में शिक्षा व ट्राइबल विभाग के निर्माण कार्यों पर भाजपा के एकाधिकार को लेकर कांग्रेस ने मोर्चा खोल दिया है। कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा जिलाध्यक्ष ने शिक्षा विभाग से लिस्ट लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं को ठेकेदारी का काम अपनी मर्जी से बांटा है और नई तरह की मनमानी कर रहे हैं। कांग्रेसियों की यह पीड़ा जायज भी है। कद्दू कटने पर सबको बराबर बंटना चाहिए। लेकिन सत्ता सुख वाला अमृत भला कोई क्यों बेगानों में बांटे।
वैसे, यह कोई नई परंपरा नहीं है। यह भी सच है कि सरकार किसी भी पार्टी की हो, जिन जगहों पर सत्ताधारी पार्टी के विधायक नहीं होते, वहां उस पार्टी के जिलाध्यक्ष ही उस जिले के अघोषित विधायक का दर्जा प्राप्त होते हैं। कुछ साल पहले कांग्रेस की सरकार में तत्कालीन कद्दावर मंत्री व जिला प्रभारी दादी ने पीजी कॉलेज दंतेवाड़ा में एक कार्यक्रम में अपने जिलाध्यक्ष को ऐसे ही इंट्रोड्यूस करवाया था- ”कलेक्टर साहब! ये अपना जिलाध्यक्ष है, यही यहां का विधायक है, और यही अपना कलेक्टर !!”
तब दादी की साफगोई से लोग काफी खुश दिखे थे। वक्त का पहिया अब फिर से घूम गया है।
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सीएम के उतरने का इंतजार
लोक सुराज बनाम सुशासन तिहार के तीसरे चरण में दक्षिण बस्तर के किस गांव में मुख्यमंत्री का उड़नखटोला उतरेगा, इसे लेकर लोगों में उत्सुकता है। पिछली सरकार में सीएम भूपेश बघेल ने दंतेवाड़ा जिले के कटेकल्याण और बारसूर पहुंचकर चौपाल लगाई थी। अब देखना यह है कि सीएम विष्णुदेव साय किस ब्लॉक में पहुंचकर सौगातें देते हैं। अच्छा हो कि दिवंगत पूर्व विधायक भीमा मंडावी के गृहग्राम जैसी जगह पर पहुंचकर गांव की सुध लें। इसी बहाने सबसे पिछड़े गांव का कुछ तो विकास हो जाएगा।
चलते-चलते…
भारत-पाक टकराव का सीजफायर हुआ तो विधवा विलाप करते पाकी पीएम ने अपनी हार स्वीकार कर ली, फिर 3 घन्टे बाद गिरगिट की तरह रंग बदल लिया और जीत का जश्न मनाने का ऐलान किया। वैसे भी पाक में शरीफ नाम होने से कोई वाकई शरीफ हो जाएगा, इसकी कतई गारंटी नहीं होती। चाहे नवाज हो या शाहबाज।
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