डीईओ पर भारी पड़ रहे बाबू..(शब्द बाण-87)

डीईओ पर भारी पड़ रहे बाबू..(शब्द बाण-87)

साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम ‘शब्द बाण’ भाग-87
9 जून 2025

✒️ शैलेन्द्र ठाकुर । दंतेवाड़ा

तबादला उद्योग फिर से
सरकार ने नई तबादला नीति जारी कर दी है। इससे तबादलों को लेकर सुगबुगाहट फिर शुरू हो गई है। यानी तबादला उद्योग की चिमनी फिर से कालिख वाला धुंआ फेंकती नजर आएगी। सरकार किसी भी पार्टी की हो, तबादला उद्योग हमेशा ही बिचौलियों के लिए फायदे का सौदा साबित होता आया है। पिछली सरकार में शिक्षकों के प्रमोशन सह पोस्टिंग का मामला काफी चर्चित रहा। प्रमोशन के नाम पर शिक्षकों को दूसरे जिलों में फेंक दिया गया। बस्तर संभाग में जिसे सुकमा जिले के जितने ज्यादा दूरस्थ व नक्सल प्रभावित इलाके में पोस्टिंग दी गई, अपने जिले में वापसी के नाम पर उतनी ज्यादा रॉयल्टी वसूली गई। ऐसे-ऐसे गांवों के स्कूल, जिन गांवों के नाम बड़ी-बड़ी नक्सली वारदातों की खबर अखबारों में छपी या टीवी की सुर्खियां में ही देखी हुई होती है। जाहिर है कि पोस्टिंग वाले गुरुजी नाम से ही सिहर उठे होंगे। कुल मिलाकर पोस्टिंग और संशोधन के नाम पर जो खेला होता है, वही तबादला उद्योग कहलाता है। सरकार को इसे उद्योग का विधिवत दर्जा दे ही देना चाहिए। इससे ट्रांसफर पर वसूले जाने वाले अघोषित ‘सेवा शुल्क’ को विनियमित कर इस पर जीएसटी भी वसूला जा सकेगा।
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भूखे पेट टारगेट पूरा करने का दबाव

बस्तर में पंचायत सचिवों पर कई सारे टारगेट पूरा करने का दबाव है। वह भी ऐसे वक़्त में जब कई महीनों से सचिवों को तनख्वाह ही नहीं मिली है। महीने भर चली हड़ताल से पहले भी वेतन नहीं मिला था, हड़ताल खत्म होने के बाद अब भी अधिकांश जिलों में वेतन नहीं मिला है। सचिवों पर सबसे ज्यादा दबाव प्रधानमंत्री आवास पूरा करवाने को लेकर है, जिसे लेकर कई सचिव सस्पेंड हो चुके हैं। मजेदार बात यह है कि आवास का हितग्राही स्वयं बैंक खाता होल्डर होता है, फिर भी अपना ही मकान बनाने में दिलचस्पी नहीं दिखाता है। ऊपर से अफसर आवास निर्माण में प्रोग्रेस को लेकर निलंबन वाला भाला लिए तैयार दिखते हैं। इधर, बीजापुर जिले में पुलिस के एसडीओपी और अंगरक्षकों द्वारा सचिव व तकनीकी सहायक से मार-कुटाई का मामला तूल पकड़ता दिख रहा है। सचिव संघ रैली, प्रदर्शन, ज्ञापन के जरिए दोषियों पर कार्रवाई की मांग कर रहा है, लेकिन सिर्फ 2 जवानों को सस्पेंड कर खानापूर्ति कर दी गई है। ऐसे में सरकार की योजनाओं को आम जन तक पहुंचाने वाले मैदानी अमले का मनोबल कैसे बढ़ेगा, यह बड़ा सवाल बन गया है।

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पीठ थपथपाने की बारी
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने नक्सल विरोधी अभियान में मिल रही सफलता के लिए बस्तर के चुनिंदा आईपीएस अफसरों की पीठ थपथपाई। उनकी काबिलियत पर किसी को शक नहीं, पर दक्षिण बस्तर में पदस्थ रहकर बुनियाद मजबूत करने वाले अफसरों की अनदेखी काफी आश्चर्यजनक लगी। नक्सलियों के खिलाफ फोर्स के मजबूती से उठ खड़े होने, अंदरूनी इलाकों तक फोर्स की पैठ बढ़ाने और खुफिया तंत्र तैयार करने के पीछे जिन अफसरों ने दिन रात एक किया, नक्सलवाद की जड़ों पर मट्ठा डाला, पीठ थपथपाने की अगली बारी उनकी आएगी, ऐसी उम्मीद जताई जा रही है।
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सुलभ काम्प्लेक्स हुआ दुर्लभ

“जहां सोच वहीं शौचालय” वाली पंचलाइन दंतेवाड़ा पर फिट बैठती है। फिल्मी हीरोइन विद्या बालन के इस एड को लोग इतना आत्मसात करेंगे, यह मेकर्स ने भी नहीं सोचा होगा। दरअसल, यहां दंतेवाड़ा बस स्टैंड परिसर में बना सुलभ शौचालय गायब होकर दुर्लभ हो गया है। नया निर्माण करने के नाम पर इसे हटाए 2 साल हो गए, पर निर्माण शुरू नही हुआ। अब इस रूट के पुराने यात्री बस से उतरकर सुलभ काम्प्लेक्स तलाशते रह जाते हैं। इसके बाद ज्यादा इमरजेंसी हुई तो नीचे नदी में उतरकर “जहां सोच वहीं शौचालय” वाली अवधारणा को मूर्त रूप में ढालने पर मजबूर हो जाते हैं।
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डीईओ पर भारी बाबू
बीजापुर में डीईओ दफ्तर में पदस्थ राजनीतिक रसूखदार एक प्रतापी बाबू के आगे मंत्री-विधायकों की दाल भी नहीं गल पाती है। शिक्षकों के युक्तियुक्तकरण में भी उक्त बाबू की दखल इतनी ज्यादा है कि किसे अतिशेष घोषित करना है या किसे नहीं, इसका निर्धारण करने बीईओ-डीईओ भी बाबू साहब का मुंह ताकते हैं। अतिशेष घोटाले में राज्य में अब तक 3 बीईओ नप चुके हैं, ठीक से जांच हुई तो बीजापुर में भी ऐसा बड़ा मामला उजागर होते देर नहीं लगेगी।
दफ्तर में वर्षों से कुंडली जमाए बैठे उक्त बाबू का रसूख इतना ज्यादा है कि प्रभारी मंत्री समेत दूसरे बड़े कद्दावर मंत्रियों तक के निर्देश के बाद भी अनुकंपा नियुक्ति के एक प्रकरण की फ़ाइल टस से मस नहीं हुई। कांग्रेस के सत्ता से चले जाने के बाद भी कांग्रेसी नेताओं के चहेते बाबू की कुर्सी पर असर नहीं पड़ा है।

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हेलमेट क्रांति और नौलखा कलेक्ट्रेट

बस्तर संभाग मुख्यालय जगदलपुर का कलेक्ट्रेट भवन नौलखा भवन कहलाता है। बताते हैं कि पुराने जमाने में नौ लाख की लागत से इसका निर्माण हुआ था, तब 9 लाख की कीमत बहुत ज्यादा हुआ करती थी। नौ लाख वाले नौ लखा हार की तर्ज पर इसका नाम भी नौलखा बिल्डिंग पड़ गया। खैर, असल मसला यह है कि इस नौलखा कलेक्ट्रेट परिसर में घुसने वाले बाइक सवार कर्मचारियों व आम जनता को हेलमेट पहनकर आना अनिवार्य कर दिया गया है। कुछ महीने पहले यह व्यवस्था लागू हुई थी। अब यहां पदस्थ कर्मचारियों व आगंतुक आम जनों ने इसका भी तोड़ निकाल लिया है। अब परिसर के बाहर सड़क को ही बाइक पार्किंग का अड्डा बना लिया है। भले ही सिर सलामत रहे न रहे, हेलमेट नहीं पहनेंगे।

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‘बदमाशी’ पड़ी भारी

दक्षिण बस्तर में जिस बीईओ ने शिक्षक जैसे गरिमामय पेशे के लिए बदमाश शब्द का उपयोग करते हुए ‘बदमाश’शिक्षकों की सूची मंगवाई थी, उसी बीईओ पर खुद की बदमाशी भारी पड़ गई है। उक्त बीईओ क्रिकेट के किसी बल्लेबाज की तरह स्टम्प पर बैट मारकर हिट विकेट होते नज़र आ रहे हैं। मामला युक्तियुक्तकरण का है, जिसमें बीईओ ने अपने रिश्तेदारों और हितग्राहियों को अनुचित ढंग से फायदा पहुंचाते हुए सीनियर्स को अतिशेष घोषित करवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अब उक्त बीईओ पर निलंबन की तलवार लटक रही है। जिला स्तर से फ़ाइल चल गई है। बस थर्ड अंपायर के निर्णय का इंतजार है। वैसे भी राज्य में तीन बीईओ ऐसे ही मामले में निपट चुके हैं। अब चौथा बीईओ भी निपटने की कगार पर है।
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शैलेन्द्र ठाकुर
✍ शैलेन्द्र ठाकुर की कलम से

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