साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम ‘शब्द बाण’ (भाग-89)
22 जून 2025
शैलेन्द्र ठाकुर । दंतेवाड़ा
बीआरसी हुए अतिशेष
शिक्षकों के युक्तियुक्तकरण और अतिशेष शिक्षकों का मामला सरकार के गले की फांस बन गया है। पुराने शिक्षकों को अतिशेष घोषित करते हुए दूसरी जगह फेंकने की पूरी कोशिश जारी है। वहीं, सबसे मजेदार बात यह है कि सुकमा जिले के कोंटा बीआरसी खुद अतिशेष घोषित हो चुके हैं। अतिशेष की सूची में मनमाना फेरबदल करने और अतिशेष होने से बचाने के लिए मनमानी कीमत वसूलने की शिकायतें भी भीतरखाने से मिल रही हैं। इस पूरे प्रकरण में अजीबो-गरीब नियम और उसे लागू करने वाले हास्यास्पद फैसलों से सरकार की खूब किरकिरी हो रही है।
युक्तियुक्तकरण में कुछ स्कूल एकल शिक्षकीय हो गए हैं, जबकि शिक्षकों की कमी दूर करने के नाम पर ही युक्तियुक्तकरण की चोंचलेबाजी हो रही है। कई साल पुराने शिक्षकों पर परिवीक्षाधीन शिक्षकों को ज्यादा वरीयता दी जा रही है। अगर एक ही विषय के दो शिक्षक संस्था में पदस्थ पाए जा रहे हैं, तो बाद में आने वाले शिक्षक को सिर्फ इसीलिए अभयदान मिल रहा है, क्योंकि वह परिवीक्षाधीन है। भले ही सेवा सिर्फ एक साल की क्यों न हो।
इसके पीछे का लॉजिक यह भी है कि परिवीक्षाधीन शिक्षक नई नवेली नौकरी में ज्यादा जमा पूंजी जुटाए हुए नहीं होते और पोस्टिंग कैंसल करवाने के लिए बड़ी रकम खर्च करने की स्थिति में नहीं होते। यहां तक कि नई नौकरी के उत्साह में कहीं भी ज्वाइन करने को तैयार हो जाते हैं, जो वसूली वाले सिस्टम के लिए घाटे का सौदा हो सकता है। जबकि पुराने शिक्षक मुंहमांगी रकम तक चुकाने को तैयार रहते हैं।
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सैंया भए डीएसपी तो डर काहे का
छत्तीसगढ़ के एक जिले में पुलिस के डीएसपी की पत्नी और सहेलियों द्वारा नीली बत्ती वाली कार की बोनट पर केक काटने और गाड़ी में स्टंट करते हुए जश्न मनाने का मामला सुर्खियों में है। आखिर सैंया भए कोतवाल तो डर काहे का। और अगर मामला सैंया भए डीएसपी का हुआ, तो फिर क्या कहने। हल्ला मचा तो ठीकरा किसी न किसी पर फोड़ना था, सो विभागीय अफसरों ने डीएसपी के बेकसूर गरीब ड्राइवर पर ही एफआईआर दर्ज कर दिया, जबकि जश्न के वक्त रीलबाज महिलाएं खुद ही गाड़ी ड्राइव कर रही थीं। अब साहब की मैडम को गाड़ी चलाने से भला कोई ड्राइवर कैसे रोक सकता है।
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जिला बदर टाइप फीलिंग
राष्ट्र निर्माता कहे जाने वाले शिक्षकों की स्थिति वर्तमान में ऐसी हो गई है, मानों आपराधिक प्रवृत्ति वालों को जिला बदर किया गया हो। कुछ महीने पहले एक बीईओ द्वारा शिक्षकों के लिए बदमाश शब्द का प्रयोग करने से बवाल मच ही चुका था, अब पनिशमेंट पोस्टिंग की तरह दूसरे जिलों में भेजा जा रहा है। कुछ शिक्षक दबी जुबान कहते हैं कि ऐसे लगने लगा है, जैसे शिक्षक की नौकरी ज्वाइन कर कोई गुनाह कर लिया है। यह पीड़ा बेवजह नहीं है। बस्तर संभाग मुख्यालय जगदलपुर में अतिशेष शिक्षकों की काउंसलिंग के दौरान गणित के एक शिक्षक की पोस्टिंग दूसरे जिले सुकमा में कर दी गई। गलत तरीके से अतिशेष घोषित कर जिला से बाहर पोस्टिंग देने से उक्त शिक्षक इस कदर सदमे में आ गए कि काउंसलिंग स्थल पर ही बेहोश होकर गिर पड़े। शिक्षक को आईसीयू में भर्ती करने नौबत आ गई। इसके बावजूद संवेदनहीन अधिकारी लकीर के फकीर बनकर पोस्टिंग वहीं पर देने को अड़े हुए हैं।
पिछली कांग्रेस सरकार में जगदलपुर में पदस्थ ज्वाइंट डायरेक्टर ने जिस तरह प्रमोशन-पोस्टिंग में खेला कर दिया था और शिक्षकों को दूसरे जिले में पोस्टिंग दी थी, ताकि वापसी के लिए बड़ी रकम ऐंठी जा सके। तब इस खेल का विरोध करने वाली भाजपा अब सत्ता में हैं, और दुर्भाग्य से वही इतिहास दोहराया जा रहा है। वहीं सत्ताधारी पार्टी के नेता अब इस प्रकरण पर मुंह में दही जमाए व बहती गंगा में हाथ धोने को तत्पर दिख रहे हैं। सनद रहे कि यह वही भाजपा है, जिसने शिक्षकों को शिक्षाकर्मी जैसे शब्द वाले पदनाम से मुक्ति दिलाकर शिक्षकीय पेशे की गरिमा लौटाई थी, अब अचानक शिक्षकीय हित से यू टर्न लेने की बात हजम नहीं हो रही।
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सिस्टम का गर्भपात
दक्षिण बस्तर में नाबालिग छात्रा के गर्भधारण और प्रसव की घटना ने एक बार फिर पूरे सिस्टम पर सवाल खड़े कर दिए हैं। सवाल यह नहीं है कि जिस आवासीय संस्थान में रहकर छात्रा पढ़ रही थी, वह शिक्षा विभाग का है, या फिर ट्राइबल विभाग का। बड़ा सवाल जवाबदेही और मॉनीटरिंग का है। विपक्षी दल कांग्रेस ने तो इस मसले पर शिक्षण संस्थान के साथ ही आईसीडीएस विभाग को भी जिम्मेदार ठहराया है। कुल मिलाकर अवैध गर्भधारण छात्रा का नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम का हुआ। और न जाने कितनी बार सिस्टम का गर्भधारण और गर्भपात होता रहता है। थोड़े हो- हल्ले के बाद सिस्टम फिर से उसी पुराने ढर्रे पर चल पड़ता है।
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सन्यासी बीएमओ का रिटायरमेंट
दंतेवाड़ा जिले में स्वास्थ्य विभाग के एक बीएमओ का रिटायरमेंट इसी माह के अंत में होने वाला है। उक्त बीएमओ रिटायरमेंट से पहले ही इलाज के एलोपैथी सिस्टम से उकता कर ज्योतिष विद्या पर ज्यादा भरोसा करने के लिए चर्चित हो चुके हैं। दफ्तर में आगंतुकों की हस्तरेखा और कुंडली देखकर भविष्य बांचने में तत्पर दिखते हैं। अब बड़ा सवाल यह है कि सन्यासी बाबा के रिटायरमेंट के बाद बीएमओ की कुर्सी कौन संभालेगा। वहीं, कुर्सी को लेकर खींचतान शुरू होने के आसार अभी से दिखने लगे हैं। कुछ भाजपा नेता एक ऐसे डॉक्टर को इस कुर्सी पर बिठाने की तैयारी में हैं, जिनकी गीदम में पहली पोस्टिंग के दौरान विरोधियों ने एनएच पर चक्का जाम तक कर दिया था। अब देखना यह है कि ऊंट किस करवट बैठता है।
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अधूरा स्वागत द्वार और रिकवरी नोटिस
गीदम-दंतेवाड़ा के रास्ते में कारली के पास बना आधा-अधूरा स्वागत द्वार फिर सुर्खियों में है। प्रशासन ने ठेकेदार और सरपंच-सचिव से 38 लाख रुपए की राशि वसूलने का नोटिस दिया है। अब बड़ा सवाल यह है कि 92 लाख की लागत वाले काम को निर्माण कार्य शुरू होने के बाद निरस्त क्यों किया गया? जबकि विभागीय इंजीनियर के मूल्यांकन के आधार पर ही स्टेप बाय स्टेप राशि जारी होती है। फिर रिकवरी की नौबत क्यों आई? टेंडर करवाने की बजाय इतनी बड़ी लागत वाले तकनीकी काम के लिए ग्राम पंचायत को एजेंसी क्यों बनाया गया? वैसे काम के बीच में मंजूरी निरस्त करने और ठेकेदार बदलने का ट्रिक ‘महोदय’ ने खूब आजमाया था। इसमें आम के आम गुठलियों के भी दाम वाला फायदा हुआ करता था।
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योग दिवस पर नदारद नेता
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर जिला स्तरीय कार्यक्रम में ज्यादातर भाजपाई नदारद रहे। विधायक, जिला पंचायत अध्यक्ष, नगर पालिका अध्यक्ष जैसे निर्वाचित जनप्रतिनिधि और गिनती के कुछ भाजपाई ही योगासन का अभ्यास करते दिखे। सरकार बदलने के बाद राज योग सुख भोग रहे सत्ताधारी पार्टी के लोगों में ध्यान योग व क्रिया योग के प्रति अनासक्ति साफ नजर आई। इसके पीछे चाहे जो भी वजह रही हो, पर भारत को विश्व गुरु और आध्यात्मिक गुरु की प्रतिष्ठा दिलाने प्रयासरत सत्ताधारी पार्टी के लिए यह चिंतनीय विषय है।
