सलाखों के पीछे वन पशु… (शब्द बाण -80)

सलाखों के पीछे वन पशु… (शब्द बाण -80)

साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम ‘शब्द बाण‘ भाग-80

20 अप्रैल 2025

✍शैलेन्द्र ठाकुर / दंतेवाड़ा

बदले गए कलेक्टर
भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति पर काम करने वाली साय सरकार ने आईएएस तबादला की सूची जारी कर दी है। दंतेवाड़ा कलेक्टर भी यहां से रायगढ़ जिला शिफ्ट कर दिए गए हैं। दरअसल, जीरो टॉलरेंस अपनाते हुए युवा आईएएस मयंक चतुर्वेदी ने ‘न खाऊंगा, न खाने दूंगा’ की नीति अपनाई और किसी की दाल गलने ही नहीं दी। पहले वाले ‘महोदय’ के कार्यकाल में डीएमएफ और सीएसआर मद को निजी बटुए की तरह इस्तेमाल किया गया था, जिससे इन मदों में जितना बड़ा गड्ढा हुआ था, उसे भरने और प्रशासन की छवि सुधारने में ही उनका डेढ़ साल का कार्यकाल निकल गया।

सावधानी पूर्वक बल्लेबाजी करते हुए उन्होंने पारी को संभाला। ‘दशवंद’ वसूली गैंग और राजनीतिक दबाव समूहों पर सख्त रवैया अपनाया। इतने बड़े डीएमएफ फंड वाले जिले में स्वच्छ, बेदाग़ व ईमानदार प्रशासक होने की मिसाल वे पेश कर गए। बगैर पर्ची के आगंतुकों से सीधी मुलाकात का उदाहरण भी उन्होंने रखा। पर वित्तीय फाइलों के साथ ही ठेकेदारों को भी ‘ठोक-बजाकर’ देखने की स्टाइल सत्ता पक्ष के नेताओं को रास नहीं आई। सत्ता पक्ष के नेताओं के ‘मन मुताबिक’ काम नहीं हो पा रहा था, वे भले ही रेडियो पर ‘मन की बात’ मन लगाकर सुन रहे थे। सीटी बदलने पर भी दाल गलती नहीं दिखी, तो इस बार कुकर ही बदल डाली। अब न सहिबो, बदल के रहिबो की तर्ज पर साहब बदले गए।

डॉ बशीर बद्र कहते हैं-
यहां लिबास की क़ीमत है आदमी की नहीं,
मुझे गिलास बड़े दे , भले शराब कम कर दे।

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प्याऊ ढूंढ रहे लोग
इस बार गर्मी मार्च महीने से ही कहर ढा रही है, लेकिन जिला मुख्यालय दंतेवाड़ा से प्याऊ नदारद हैं। हर साल नगरीय निकाय की ओर से जगह-जगह निःशुल्क प्याऊ की व्यवस्था रहती है, ताकि राह चलते लोग मटके के ठंडे पानी से गला तर कर सकें। लेकिन विभाग के निर्देश के बाद भी इस बार प्याऊ नहीं खोले गए। निकाय के जिम्मेदारों का तर्क है कि जगह-जगह वाटर एटीएम लगे हुए हैं, जिससे अब प्याऊ की जरूरत नहीं रह गई है। वाटर एटीएम को भले ही ढाल बनाया जा रहा हो, लेकिन यह भी हकीकत है कि यह व्यवहारिक नहीं है। एटीएम में डालने के लिए सिक्का लेकर चलना होगा। प्यासा आदमी चिल्हर कहां खोजता फिरे। पानी की बोतल खरीदना आसान है पर सिक्के वाला चिल्हर कहाँ से लाएं।  वैसे भी, बस स्टैंड वाला एक वाटर एटीएम किसी जिन्न की तरह गायब हो गया है। लाखों की मशीन कहां गई, इसका जवाब किसी के पास नहीं है।
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वीवीआईपी वाली फीलिंग
केंद्रीय गृहमंत्री 5 अप्रैल को दंतेवाड़ा प्रवास पर आए, तब सुरक्षा और सुविधा के मानकों के हिसाब से अलग-अलग कैटेगरी में वाहन पार्किंग पास वाले स्टीकर जारी किए गए थे। वाहन में इन स्टीकरों को शीशे पर चिपकाए लोग बेधड़क आवाजाही कर पाते थे। लेकिन कुछ नेता-अफसरों को वीआईपी पार्किंग वाले स्टीकर से कुछ ज्यादा ही मोह हो गया है। दरअसल, इससे किसी लालबत्ती वाले पद के नेम प्लेट की तरह फीलिंग आ रही है। यही वजह है कि कार्यक्रम सम्पन्न हुए कुछ हफ्ते बीतने के बाद भी अब तक ये स्टीकर वाहनों से नहीं निकले हैं।
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सलाखों के पीछे वन पशु

बस्तर के जंगलों में सक्रिय रही 2 चर्चित हस्तियां इन दिनों सलाखों के पीछे हैं। इनमें से एक राष्ट्रीय पशु बाघ है, जो शिकारियों के फंदे में फंसने की वजह से पिंजरे में कैद होकर इलाज करवा रहा है और दूसरा वन महकमे का पूर्व डीएफओ है, जो ईओडब्ल्यू की गिरफ्त में है। दोनों जंगल की पावरफुल हस्तियां हैं, फर्क सिर्फ इतना है कि एक वन पशु अपने हक की लड़ाई लड़ रहा था, तो दूसरा धन पशु बनने गरीबों का हक मारने में लगा हुआ था, जिसे तेंदुपत्ता संग्राहकों की बोनस राशि में करोड़ों के घपले का आरोपी बनाया गया है। देखना यह है कि दोनों कब तक सलाखों के पीछे रहते हैं।
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सचिवों की वापसी
महीने भर से हड़ताल कर रहे पंचायत सचिवों ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर जाकर मोदी की गारंटी याद दिलाने की तैयारी पूरी कर ली थी। इस बीच राज्य सरकार की फजीहत रोकने के लिए विभाग के अफसरों ने किसी तरह हड़ताली सचिवों को मना लिया और वे काम पर लौट आए। वरना ट्रिपल इंजन वाली सरकार बनने के बाद सचिवों ने विकास वाली ट्रेन की पटरियों की फिश प्लेट ही उखाड़कर रख दी थी। लेकिन इससे पहले कि विकास की ट्रेन पूरी तरह बेपटरी हो जाती, हड़ताल समाप्त करवा दी गई। चर्चा है कि इसमें साम-दाम-दंड-भेद की नीति अपनाने से भी परहेज नहीं किया गया।

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पीएम आवास का चकल्लस

दंतेवाड़ा में साप्ताहिक बाजार स्थल के पास निर्माणाधीन प्रधानमंत्री आवास किसी किवदंती से कम नहीं रह गया है। दशक भर से यह आवास निर्माण कार्य अधूरा पड़ा है। बहुमंजिली इमारतों में कई गरीब और आवासहीन परिवारों को आशियाना मिलने वाला था। अधूरा निर्माण कार्य कब पूरा होगा, इसे लेकर संदेह बना हुआ है। शहर के बीच ही योजना का बुरा हाल है। इस बीच सरकार ने नए हितग्राहियों की पहचान का सर्वे गांवों में शुरू कर दिया है।

शायर मुनव्वर राणा कहते हैं-

ज़िंदगी तू कब तलक दर – दर फिराएगी हमें
टूटा फूटा ही सही, घर बार होना चाहिए। ”

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बस्तर में बीईओ का पद
दंतेवाड़ा जिले में शिक्षा विभाग को नए बीईओ दीया लेकर ढूंढने पर भी नहीं मिल रहे हैं, पिछली सरकार के सारे बीईओ शिक्षा विभाग की गाड़ी अब तक घसीट रहे हैं, लेकिन वहीं पड़ोसी बस्तर जिले के बस्तर ब्लॉक में बीईओ के पद के लिए बड़ी उठा-पटक चर्चा में है। यहां पदस्थ बीईओ को हटाकर नए बीईओ की पोस्टिंग की गई, तो पुराने बीईओ टस से मस होने को तैयार नहीं दिखे। खिलौने नहीं छोड़ने के लिए अड़े बच्चे की तरह चार्ज देने से इंकार करते रहे। इसके बाद भी अनुशासनात्मक कार्रवाई की हिम्मत बड़े अफसर नहीं जुटा सके। इसकी बजाय चार्ज नहीं ले पाने वाले बीईओ को ही बदल दिया गया। अब दूसरे अफसर को बीईओ बनाने का आदेश फिर जारी हुआ है। देखना यह है कि यह खींचतान क्या रंग दिखाती है।

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चलते-चलते….
मुख्यमंत्री ने बस्तर में कैम्प कर विकास पर मंथन किया। कई सारे मसलों पर रोडमैप बनाए गए। इनमें मक्का की फसल को प्रमोट करने का फैसला भी शामिल है। लेकिन इसके साइड इफ़ेक्ट पर कोई बात नहीं हुई। इसकी फसल के लिए अंधाधुंध पानी खींचकर नदी-नालों को सुखा दिया जा रहा है, वह किसी अलार्म से कम नहीं है। अच्छा हो कि कम पानी में ज्यादा उपज वाली दूसरी फसलों को प्रमोट किया जाए।

 

✒️ शैलेन्द्र ठाकुर

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