साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम ‘शब्द बाण’ (भाग 71)
16 फरवरी 2025
शैलेन्द्र ठाकुर @ दंतेवाड़ा
वोटर की हालत सनी देओल जैसी..
ग़दर फ़िल्म के तारा सिंह यानी सनी देओल और सकीना यानी अमीषा पटेल जिस तरह भारत-पाकिस्तान विभाजक रेखा में फंस गए थे, वैसे ही मतदाताओं की स्थिति दक्षिण बस्तर में बड़ी खराब थी। पति का नाम एक वार्ड में, पत्नी का नाम दूसरे वार्ड में। माता-पिता एक वार्ड में, वोटर बन चुके बच्चे दूसरे वार्ड में। मृतकों के नाम वोटर लिस्ट में मौजूद थे, तो कुछ जिंदा लोग अपना नाम ढूंढते रह गए, जबकि पिछले विधानसभा व लोकसभा चुनाव में वोट डाल चुके थे। लोगों का गुस्सा इस बात को लेकर है कि जब इतनी त्रुटियां लिस्ट में रहनी ही है, तो फिर हर साल मतदाता सूची का पुनरीक्षण करने का ढोंग सरकार क्यों रचती रहती है?
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प्रकट हुए चुनावी जिन्न
इस बार नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव में कोई डीजे बांट रहा, तो कोई गंजी-बर्तन और पैसे। कोई दारू पिलवा रहा है। किसी ने चांदी के सिक्के बांटे, तो कोई रातों रात बोर करवाकर पेयजल संकट दूर कर रहा है। यानी मतदाताओं को मुंह मांगी मुराद पूरी करने वाले कई जिन्न मिल गए हैं। चिराग घिसने की भी जरूरत नहीं पड़ रही है। जिन्न खुद प्रकट हो रहे हैं। रात-रात में खेल पलटने का खेला जारी है। मुफ्त की चुनावी शराब पीकर कुछ लोगों के परलोक सिधारने की भी चर्चा है। कुछ इतना पी गए कि अगले दिन हैंग ओवर के चलते वोट देने ही नहीं जा सके। नगरीय निकाय चुनाव में कुछ हाई प्रोफाइल सीटों पर 3 से 5 हजार रुपए में हरेक वोट खरीदने जैसे किस्से सुनने को मिले। निष्पक्षता और नियमपूर्वक चुनाव कराने को जिम्मेदार आयोग खुद धृतराष्ट्र बनकर मौन हो गया है। बड़ा सवाल तो यह है कि इतनी चुनावी शराब गली-कूचों तक कैसे बह रही है? वह भी तब, जब कथित तौर पर सारे शराब घोटालेबाज जेल में बंद हैं।
डॉ राहत इंदौरी साहब का यह शेर कुछ मिलता-जुलता लगता है…
” किसने दस्तक दी इस दिल पर..कौन है… ?
आप तो अंदर हो, फिर बाहर कौन है ???”
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मेहनत ने दिखाया रंग
दक्षिण बस्तर में भाजपा नेताओं की साख दांव पर लगी थी। प्रभारी मंत्री केदार कश्यप ने तीनों जिले में जन सम्पर्क कर वोट मांगा। दंतेवाड़ा में विधायक चैतराम अटामी को भी नगर-नगर जन
संपर्क करते देखा गया। अंततः चुनाव परिणाम भाजपा के पक्ष में आया। पांचों निकाय में भाजपा ने अपना परचम लहराया। वैसे, गीदम, बचेली और बारसूर के परिणाम को लेकर खुद भाजपाई ही आश्वस्त नहीं थे। ये बात और है कि जीतने के बाद क्रेडिट लेने तमाम किस्से-कहानियां गढ़ी जा रही है।
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चला विष्णुदेव का सुशासन चक्र
बस्तर संभाग की सबसे बड़ी नगर सरकार यानी जगदलपुर नगर पालिक निगम के चुनाव में अंततः विष्णुदेव का सुशासन चक्र चल ही गया। पीसीसी चीफ और भाजपा प्रदेशाध्यक्ष समेत दोनों ही पार्टियों की साख दांव पर लगी थी। यही वजह है कि नगरीय निकाय चुनाव में खुद मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को जगदलपुर आकर रोड शो और चुनावी सभा करने की जरूरत पड़ गई। उन्होंने सुशासन का जो भरोसा दिलवाया, उस पर भरोसा जताते हुए मतदाताओं ने ‘संजय’ को शहर की कमान सौंपी है। अब देखना यह है कि वो मतदाताओं के भरोसे पर कितना खरा उतरते हैं।
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उपाध्यक्ष बनाम एपी
आजकल चुनाव भी जुए के दांव से कम नहीं रह गए हैं। किसी पर दांव भारी पड़ता है, तो किसी की निकल पड़ती है, बस किस्मत में राजयोग होना चाहिए। दंतेवाड़ा के किरंदुल पालिका में महिला आरक्षित सीट होने पर दो पूर्व पालिका अध्यक्षों ने पत्नी को चुनावी मैदान में उतारा। ताकि एसपी यानी सरपंच पति की तरह एपी बन सकें। इनमें से एक ने तो एक वार्ड से खुद पार्षद का चुनाव भी लड़ा, ताकि एपी न सही कम से कम पार्षद बनकर उपाध्यक्ष की कुर्सी पा सकें। अब उनके सितारे बुलंद कहें, या प्रबल राजयोग। मैडम अध्यक्ष चुनी गई हैं, और वे खुद पार्षद चुनाव नहीं जीत सके। अब उपाध्यक्ष बनाने भाजपा को जोड़-तोड़ करने की जरूरत पड़ेगी।
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दो राजा जीते, अब कौन बनेगा उपाध्यक्ष
नगर पालिका दंतेवाड़ा के चुनाव में दो राजा पार्षद चुनकर आए हैं। एक पंकज राजा शर्मा भाजपा से हैं, तो दूसरे एन नागराज राजा कांग्रेस से, और दोनों ही नगर के सबसे हाई प्रोफाइल वार्ड चुनाव जीतकर आए हैं। यह भी संयोग यह है कि दोनों अपने-अपने पक्ष से उपाध्यक्ष पद के प्रबल दावेदार हैं। पार्षदों की संख्या के हिसाब से कांग्रेस के लिए यह राह मुश्किल तो जरूर है, पर राजनीतिक गणित के हिसाब से असंभव बिल्कुल भी नहीं।
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अपनों ने लूटा, गैरों में कहां दम था
नगर पालिका चुनाव में हारे हुए उम्मीदवारों को इस बात का मलाल है कि उन्हें अपनों ने ही लूटा। कुछ जगह बागियों ने समीकरण बिगाड़ दिया। न खुद जीते, न उन्हें जीतने दिया। अपनों ने भीतरघात तो किया ही, परायों ने चुनावी भोज व गिफ्ट तो ले लिया और वोट किसी और को दे दिया। जनता भी अब भोली नहीं रह गई, काफी चतुर हो गई है।