साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम शब्द बाण (भाग-69)
(2 फरवरी 2025)
शैलेन्द्र ठाकुर @ दंतेवाड़ा
जिला हॉस्पिटल पर ठठेरों का कब्जा
जिला हॉस्पिटल दंतेवाड़ा की स्थिति ऐसी हो गई है कि भवन में जिस तरफ भी जाएं ठक-ठक की आवाज गूंजती रहती है। दीवारों को ठोंकते-पीटते और टाइल्स उखाड़ते, नए काउंटर बनाते लोगों का काम घण्टों चलता रहता है।
बचपन में ‘ठ’ से ठठेरा पढ़कर बड़े हुए लोगों को वास्तव में ठठेरों को देखने सुनने का मौका यहां जरूर मिल जाएगा। हाल ही में आपरेशन थियेटर में बैक्टीरिया से संक्रमण पर काफी बवाल मच चुका है। पहले ही इतनी ठोक-पीट मची रहती तो शायद ओटी का बैक्टीरिया तो क्या, कोरोना वायरस तक आस-पास नहीं फटकते। मोदी जी ने बेकार ही घण्टी-थाली बजवा दिया था।
कुछ डॉक्टरों का कहना है कि इतनी ज्यादा ठक-ठक की आवाज होती है कि ड्यूटी पर आने का मन नहीं करता। अब यहां भर्ती मरीजों का क्या हाल होता होगा। वैसे अच्छे खासे लगे हुए टाइल्स और बने-बनाए काउंटर को तोड़ने का यह रिवाज कोई नया नहीं है। मरीजों के इलाज से ज्यादा चिंता यहां नए-नए कंस्ट्रक्शन करवाने की रहती है। भले ही एक्सरे फ़िल्म या जरूरी दवाओं का स्टॉक हफ्तों से खत्म रहे।
— —
नौकरी छोड़कर सरपंची पर उतरे
हालिया पंचायत व नगरीय निकाय चुनाव में दक्षिण बस्तर में सरकारी नौकरी छोड़कर चुनाव लड़ने की होड़ सी मच गई है। एक पुलिस कर्मी ने नौकरी से इस्तीफा देकर सरपंच पद के लिए धूम-धाम से नामांकन भरकर सबका ध्यान खींचा है। वैसे भी जब कोई पत्नी को सरपंच बनवाकर डायरेक्ट एसपी यानी सरपंच पति बन सकता है, तो फिर भला कोई 5 किलो का बंदूक टांग कर कब तक अफसरों की नौकरी बजाना पसंद करे। इस क्षेत्र में सरपंचों की ज्यादातर सीटें महिला आरक्षित होने से कई नेता एसपी बनने की तैयारी में जुट गए हैं। वैसे तो नौकरी छोड़कर विधायक-सांसद चुनाव लड़ने का चलन कोई नया नहीं है। पर इस बार स्थानीय निकाय चुनाव में भी ज्यादा उत्साह दिख रहा है। शिक्षित और पढ़े लिखे लोगों के आने से राजनीति का भला ही होता है।
—–
‘गोवा ‘पर टिकी बस्तर की चुनावी व्यवस्था
अगर कोई कहे कि दक्षिण-पश्चिम बस्तर की चुनावी व्यवस्था ‘गोवा’ पर टिकी हुई है, तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। यहां गोवा का मतलब समुद्री तट वाले गोवा से नहीं है। चुनाव में बंटने वाली चेप्टी में ‘गोवा’ ब्रांड काफी लोकप्रिय है। सबसे सस्ते में इसका पौवा, अद्धी सब कुछ मिल जाता है। मुफ्त की पीने वालों की भी कमी नहीं रहती, भले ही सस्ती दारू से लीवर-किडनी की बैंड बज जाए। यही वजह है कि सुरा के शौकीन वोटरों को साधने उम्मीदवार गोवा का इंतजाम काफी पहले से कर चुके होते हैं।
नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव में एक-एक वोट का महत्व होता है। इधर-उधर छिटके हुए वोटों को इकट्ठा करने में यही गोवा काम आता है। पूर्व आबकारी मंत्री के गृह जिला सुकमा में भी गोवा की व्यवस्था जमकर होने की खबर है। अब देखना यह है कि यह ‘गोवा’ मैनेजमेंट फार्मूला क्या गुल खिलाता है।
——
पुलिस गिरफ्त में दंतेवाड़ा की मिनी सौम्या
जिला हॉस्पिटल दंतेवाड़ा में डीएमएफ-सीएसआर घोटाला मामले में पुलिस ने अंततः विभाग की मिनी ‘सौम्या’ को गिरफ्तार कर ही लिया। विवादों में घिरे रहने के बावजूद कई साल तक इस दफ्तर की कुर्सी से चिपकी रहने के बाद इस बार ट्रेन पटरी से उतर ही गई। जनता की गाढ़ी कमाई और सरकारी खाते के पैसे को निजी बटुए की तरह इस्तेमाल कर लाखों की हेराफेरी का आरोप पुलिस ने लगाया है। याद दिला दें कि ईडी की गिरफ्त में राज्य स्तरीय ‘सौम्या’ पहले से ही सलाखों के पीछे है।
——– —
क्यूआर कोड वाली दीदी
इस बार नगर पालिका दंतेवाड़ा का चुनाव बड़ा ही दिलचस्प हो गया है। भाजपा ने पिछली बार की सहज, सरल व निर्विवादित अध्यक्ष रहीं पायल गुप्ता को मैदान में उतारा है, जिनके पास गिनाने को कई उपलब्धियां हैं। वहीं, कांग्रेस ने नौकरी से इस्तीफा देकर राजनीति में उतरीं शिक्षिका सुमित्रा शोरी को मौका देकर भाजपा का समीकरण बिगाड़ दिया है।
उच्च शिक्षित और राजनीतिक बैकग्राउंड वाली सुमित्रा ‘दीदी’ के क्यूआर कोड वाले अस्त्र का तोड़ निकालने में विपक्षियों के पसीने छूट रहे हैं। हाई टेक प्रचार पर्चे में जारी क्यूआर कोड का स्कैन कर न सिर्फ उम्मीदवार की पूरी जानकारी ली जा सकती है, बल्कि भविष्य में वार्डवार समस्याओं की जानकारी सीधे देने का ऑफर भी दिया गया है।
इसी तरह जिले के किरंदुल में दो पूर्व अध्यक्षों की पत्नी आमने – सामने हैं, तो बारसूर में 2 पूर्व अध्यक्ष बागी के तौर पर चुनावी मैदान में हैं।
सबसे दिलचस्प मामला गीदम नगर पंचायत का है। यहां कांग्रेस से रविश सुराना और भाजपा से रजनीश सुराना अध्यक्ष पद के लिए आमने-सामने है। आम जनता के लिए किष्किंधा कांड वाले बाली-सुग्रीव प्रसंग जैसी दुविधा हो गई है। आखिर दोनों है भी चचेरे भाई। खैर, लोग मजाक में कहने लगे हैं – चाहे जो भी जीते, मोदी की तरह आएगा तो एक बंधु ही… ।
—–
सड़क की लड़ाई
बैलाडीला-दंतेवाड़ा मार्ग पर दो साल से धूल खा रही पातररास दंतेवाड़ा की जनता इस सड़क का डामरीकरण होने से इन दिनों गदगद है। डामरीकरण कार्य शुरू होते ही लोग एक दूसरे को बधाई तक देने लगे थे। यह नगरीय निकाय चुनाव का असर था या ठेकेदार की उदारता, यह तो वही जानें, पर इससे सत्ताधारी भाजपा के पार्षद व अध्यक्ष पद के उम्मीदवारों की राह थोड़ी आसान जरूर हो गई है। कम से कम सड़क कब बनेगी वाला एक सवाल मतदाता नहीं पूछ पाएंगे।
ऐसा ही कुछ हाल जिला मुख्यालय के टेकनार व वन मंदिर रोड का है। इस सड़क पर दो साल से गड्ढों को लोग झेलते आ रहे हैं। इस बीच 2 दिन पहले इसी सड़क से होकर महामहिम राज्यपाल का काफिला भी गुजरा था, लेकिन पीडब्ल्यूडी ने इन गड्ढों पर एक तगाड़ी डामर नहीं लगवाया।
वह तो भला हो नगर के एक संभ्रांत ठेकेदार का, जिसने बाद में जनता पर तरस खाकर अपने खर्च से गड्ढों को भरवा दिया। वरना कांग्रेसी शासनकाल से लेकर भाजपाई शासनकाल तक लोग इस त्रासदी को झेलने मजबूर थे।
———
जनता हुई जनार्दन
अभी चुनावी माहौल में आम जनता की पूछ परख बढ़ गई है। लोगों के हाल-चाल तक पूछे जा रहे हैं। कुल मिलाकर जनता अभी जनार्दन बनी हुई है। चुनाव बीतने के बाद भले ही उसकी गर्दन पकड़ी जाए, फिलहाल आदर-सत्कार में कोई कमी नहीं दिखती। काश ! यह अपनापन और भाईचारा पूरे 5 साल बना रहे, तब किसी फसाद की गुंजाईश ही नहीं रहेगी।