घेरा पहाड़ निकली गुफ़ा.. (शब्द बाण-82)

घेरा पहाड़ निकली गुफ़ा.. (शब्द बाण-82)

साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम ‘शब्द बाण‘ (भाग- 82)
4 मई 2025

शैलेन्द्र ठाकुर । दंतेवाड़ा

बासी हुई बोरे बासी की रस्म

कई रस्में सरकार बदलने के साथ ही बदल जाती हैं, या फिर हाशिए पर चली जाती हैं। पिछली सरकार की गोठान जैसी योजना हो या फिर राज्य गीत ‘अरपा पैरी की धार का गायन’… सभी भुला दिए गए हैं। ताजा किस्सा बोरे बासी खाने का है। बोरे बासी यानि पानी में रात भर भिगोकर रखा हुआ बासी भात। इसका सुबह-सुबह नाश्ते की तरह सेवन कर छत्तीसगढ़ के श्रमवीर अपने काम पर निकला करते थे। भूपेश कका की सरकार ने पहली मई को मजदूर दिवस के अवसर पर बोरे बासी को श्रमशक्ति के प्रतीक के रूप में स्थापित किया। इस बार मई दिवस पर बोरे बासी खाने का किस्सा लुप्तप्राय हो गया। न तो सत्ता पक्ष के नेताओं ने, और न ही अधिकारी-कर्मचारियों ने बोरे बासी खाकर चटखारे लेने के फोटो-वीडियो शेयर या अपलोड किया। वरना पिछली सरकार में तो ऐसे फोटो-वीडियो से सोशल मीडिया अटे पड़े हुए थे। किसी ने घर में, तो किसी ने गोठान में जाकर बोरे-बासी खाते हुए फोटो सेशन करवाया था, भले ही होटल-रेस्टोरेंट से गर्मागर्म भात मंगवाया गया हो। फिर सरकार बदली तो अफसर-कर्मियों तक ने इसका नाम लेना बंद कर दिया। वैसे पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह का यह वक्तव्य आज भी समीचीन है कि अफसर हमेशा सूरजमुखी की तरह होते हैं, जो सत्ता वाले सूरज की तरफ मुंह घुमाए रखते हैं। उन पर किसी दल विशेष का होने का लेबल नहीं चिपकाया जा सकता है।

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आधे करोड़ की जालसाजी

दंतेवाड़ा जिले में पुलिस ने 61 लाख रुपए की ऑनलाइन ठगी के मामले का पर्दाफाश किया और शातिर ठगों को धर दबोचा है। यह पुलिस की कार्यकुशलता का नतीजा है। बात यहां तक तो ठीक है, पर अब आधा करोड़ से ज्यादा बैंक बैलेंस संविदा तकनीकी सहायक ने कैसे बना लिया, इस पर पुलिस की जांच की सुई घूम गई है। मामूली मानदेय वाले एक अदना से तकनीकी सहायक से 61 लाख के ऑनलाइन फ्रॉड पर सवाल उठ खड़े हुए हैं। वह भी तब, जब राज्य के सारे आईएएस-आईपीएस की संपत्ति का ब्यौरा मांग कर सार्वजनिक किया जा रहा हो। वैसे, दक्षिण बस्तर में संविदा पर काम करते हुए धन कुबेर बनने की परंपरा कोई नहीं बात नहीं है।
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घेरा पहाड़, निकली गुफा…
बस्तर के कोर इलाके में फैंटम बन चुके हिड़मा समेत बड़े-बड़े नक्सली लीडर्स समेत सैकड़ों नक्सलियों को फोर्स द्वारा घेर लेने का दावा किया। मीडिया में खबरें आने लगी कि महाराष्ट्र, आंध्र-तेलंगाना और छत्तीसगढ़ की फोर्स ने मिलकर घेरा लगाया है। बाद में ग्रे-हाउंड्स फोर्स और सी-60 का नाम धीरे से गायब हुआ। फिर तेज धूप में 8-9 दिनों तक जवानों का खून पसीना बहाकर की गई मेहनत पर आशातीत सफलता नहीं मिली। कर्रेगुट्टा की पहाड़ी पर सिर्फ खाली अंधेरी सुरंगनुमा गुफा ही मिली। वरना, जिस तरह के अति उत्साह वाले पूर्वानुमान लगाए जा रहे थे, उससे तो एकबारगी लगा था कि इस मेगा एनकाउंटर के बाद नक्सलवाद का अंजाम खत्म… बाय-बाय… टाटा.. वाला हो ही जायेगा। लेकिन मामला खोदा पहाड़ निकली चुहिया वाला साबित हुआ।

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बेगानों की शादी में अब्दुल्ला दीवाना

  1. दक्षिण बस्तर में आजाक विभाग के सहायक आयुक्त यहीं पदस्थ रहते हुए रिटायर हुए। उनकी विदाई और नए साहब के स्वागत के समारोह अलग-अलग जगह पर आयोजित हुए और धूम-धाम से विदाई हुई। इस कार्यक्रम में कुछ छुटभैये नेता और गैर विभागीय लोगों की दिलचस्पी ज्यादा दिखी, जो पार्टी में चम्मच चलाते और परोसते भी दिखे। सवाल पुराने साहब के प्रति आस्था से ज्यादा पिछले भुगतान और नए साहब से परिचय करवाने का जो था। बेगानों की शादी में अब्दुल्ला के दीवाना होने के असल वजह तो यही थी।

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नेम प्लेट की डिमांड
नए कलेक्टर साहब ने आते ही दफ्तरों का औचक निरीक्षण किया और सभी अफसर-कर्मियों को नाम व पद वाली तख्तियां टेबल पर अनिवार्यतः रखने की सख्त हिदायत दी। इसका असर यह हुआ कि जिले में टेबल नेम प्लेट की डिमांड बढ़ गई। अब अमूमन सभी दफ्तरों में हरेक टेबल पर टेबल नेम प्लेट दिखाई पड़ रहे हैं। आम जनता भी कर्मचारियों के नाम जानकर काफी खुश है। कर्मचारी के मौजूद रहने या गायब रहने का पता चलने लगा है। वरना, संबंधित टेबल के जिम्मेदार का नाम पता करने में ही पसीने छूट जाते थे।

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कन्यादान में घटी दिलचस्पी

महिला व बाल विकास विभाग में वर्षों से जमे हुए अफसरों की वजह से विभाग की फजीहत हो रही है। यही वजह है कि कुपोषण से मुक्ति जैसा अभियान विभाग की बजाय पंचायत व प्रशासन को अलग से चलाना पड़ रहा है। मुख्यमंत्री कन्यादान योजना में वधुओं को दान-दहेज में नकली चांदी के मंगलसूत्र पहनाने और संदूक के साइज की आलमारी भेंट करने के मामले में कुख्यात विभागीय अफसरों की विदाई दक्षिण बस्तर से कब होगी, यह कहना अभी मुश्किल है। पूरक पोषण आहार बांटने वाला विभाग खुद ही कब्ज़ की बीमारी से परेशान है। वैसे भी नई सरकार ने जब से राशि सीधे नव दम्पतियों के खाते में डायरेक्ट ट्रांसफर करने की घोषणा की है, सामूहिक विवाह से अफसरों का रेट ऑफ इंट्रेस्ट कम हो गया है। यही वजह है कि इस बार बगैर मुहूर्त वाली शादियां मार्च क्लोजिंग से पहले आयोजित नहीं हुईं।
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सुशासन तिहार की फरियादें..

सुराज अभियान का नया वर्ज़न सुशासन तिहार के नाम पर साय सरकार ने लांच कर दिया। पहले चरण में इसे काफी अच्छा रिस्पांस मिला है। लोगों ने बड़ी संख्या में मांगों व समस्याओं को लेकर आवेदन तो दिया है, लेकिन उनके निराकरण को लेकर संशय अभी भी बना हुआ है। खासकर दक्षिण बस्तर में अधूरी पड़ी पीएमजीएसवाय सड़कें पूरी करने, कुपेर व कमालूर में रेल्वे अंडरब्रिज निर्माण, घनी बस्तियों में खड़े जर्जर पेड़ों को हटाने, मोबाइल टावर लगाने जैसी कुछ पारंपरिक मांगें, जो कभी पूरी ही नहीं होती। इस बार भी ये मांगे पूरी होंगी, इसकी कोई गारंटी नहीं है। दरअसल, केंद्र सरकार के अफसर राज्य सरकार को घास ही नहीं डालते हैं। लौह अयस्क ढुलाई से हर साल अरबों कमाने वाले रेल्वे को सड़कों से भला क्या लेना-देना? अर्थवर्क, जीएसबी लेवल और पुल-पुलिया निर्माण वाले मलाईदार स्तर तक काम कर चुके पीएमजीएसवाय विभाग को डामरीकरण में ज्यादा दिलचस्पी नहीं रहती। इस विभाग पर भी राज्य सरकार का नियंत्रण नहीं है।
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चलते-चलते…

दक्षिण बस्तर में प्रशासन के नए मुखिया ने आते ही अपनी तेज तर्रार शैली से काम-काज में कसावट लाना शुरू तो कर दिया है, लेकिन डीएमएफ शाखा के बाबुओं के काम करने का ढर्रा बदल पाएंगे, यह कहना मुश्किल है। सबसे ज्यादा लाल फीताशाही इसी शाखा में चलती है। फाइलों को लटकाने, गायब करने और भुगतान लंबित रखने के चक्कर में मनरेगा की तरह डीएमएफ पर भी लोगों का भरोसा उठने लगा है।
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✍🏻 शैलेन्द्र ठाकुर

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