नम्र और मृदु भाषी हुए नेता… (शब्द बाण -68)

नम्र और मृदु भाषी हुए नेता… (शब्द बाण -68)

साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम शब्द बाण (भाग-68)

(28 जनवरी 2025)

शैलेन्द्र ठाकुर @ दंतेवाड़ा

उम्मीदवार तय करने में छूट रहा पसीना

नगरीय निकाय और पंचायत चुनावों के लिए उम्मीदवार तय करने में भाजपा और कांग्रेस दोनों के ही पसीने छूट रहे हैं। बड़ी कश्मकश के बाद उम्मीदवारों की सूची जारी होने लगी है। लेकिन उम्मीदवार घोषित करने के बाद वंचित टिकटार्थियों की बगावत से निपटने की चुनौती काफी बड़ी हो गई है। दंतेवाड़ा पालिका अध्यक्ष पद के लिए भाजपा ने निवर्तमान अध्यक्ष पायल गुप्ता पर फिर से भरोसा जताया है, लेकिन कांग्रेस ने सुमित्रा शोरी को मैदान में उतारकर इस चुनाव को और भी दिलचस्प बना दिया है। गीदम में अध्यक्ष पद के लिए कांग्रेस से रविश सुराना और भाजपा से रजनीश सुराना ताल ठोंक रहे हैं, दोनों आपस में चचेरे भाई हैं। वहीं, किरंदुल निकाय में दो पूर्व अध्यक्षों की पत्नी आमने-सामने होंगी। यह बात भी जगजाहिर है कि स्थानीय निकाय चुनाव के बाद आपसी मनमुटाव और बैर भाव काफी बढ़ जाता है।
——-

मृदुभाषी और नम्र हुए नेता

इन दिनों नेताओं के स्वभाव में काफी बदलाव महसूस किया जा रहा है। नम्र, मृदुभाषी और पहले से काफी शिष्ट हुए नेताओं ने कोई आध्यात्मिक शिविर ज्वाइन नहीं किया है, बल्कि
आगामी नगरीय निकाय व पंचायत चुनाव का असर है। टिकट फाइनल होने और जीतने-हारने तक यह मृदुभाषिता बनी रहेगी, यह उम्मीद तो की ही जा सकती है।
इसी सिचुएशन पर किसी कवि की ये पंक्तियां याद आती हैं..
जब नेता मीठा बोलने लगे,
कानों में मिश्री सी घोलने लगे ।
सड़क, चौराहों पे दिख जाए,
तो समझो कि चुनाव आए।”
———-

भाजपा में बगावत
सुकमा जिले में भाजपाई नेताओं के बगावती तेवर से पार्टी सकते में है। पार्टी के निष्ठावान व पुराने कार्यकर्ताओं की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए वरिष्ठ भाजपाई नेता ने अन्य 18 दावेदारों के साथ न सिर्फ पार्टी से इस्तीफा दे दिया, बल्कि उम्मीदवारों का अपना पैनल उतारने की तैयारी में हैं।
कोंटा विधानसभा सीट पर कांग्रेस के कद्दावर नेता दादी का विजय रथ रोक पाने में हमेशा नाकाम रही भाजपा के लिए यह और भी बड़ी मुसीबत है। वह भी ऐसे समय में जब ईडी की कार्रवाई का सामना कर रहे दादी और उनके परिजनों का ध्यान चुनाव से भटका हुआ है और नगरीय निकाय व जिला पंचायत चुनाव में कांग्रेस के पंजे से पद छुड़ाने एक बड़े ब्रेक थ्रू की उम्मीद भाजपाई खेमे में जागी हुई है। अब देखना यह है कि भाजपा के बागी कांग्रेस के हाथ से हाथ मिलाते हैं या फिर निर्दलीय ही ताल ठोंकते हैं। यही हाल बीजापुर जिले का है, जहां महिला मोर्चा ने टिकट वितरण पर असंतोष जताते पार्टी के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया है। अब पार्टी फूफ़ाओं की तरह रूठे कार्यकर्ताओं को कैसे मनाती है, यह देखने वाली बात होगी।
———-

बीजापुर की बाजी 

कभी नक्सली हिंसा के लिए कुख्यात रहे बीजापुर जिले की तस्वीर अब बदलती दिख रही है। जिला मुख्यालय व्यवस्थित इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में बाजी मार चुका है। बाकी चीजें जैसी भी हों, पर कलेक्ट्रेट के सर्व सुविधायुक्त आरामदायक प्रतीक्षा कक्षों की तारीफ करते लोग नहीं थकते हैं। अफसर कितना भी इंतजार करवा लें, लोग शिकायत नहीं करते। दफ्तर के सामने गार्डनिंग भी बढ़िया है। अन्य जिलों के गार्डन सूखे पड़े हैं या झाड़ियों से पट चुके हैं। उजड़े गार्डन को संवारने-सींचने की चिंता न कर्मचारी करते हैं, न ही अफसर। स्टाफ और फंड भरपूर होने के बाद भी उसका इस्तेमाल नहीं हो रहा है।
—–
कहां गया तेंदुपत्ता का बोनस??

सुकमा वन मंडल में तेंदूपत्ता संग्राहकों के पिछले 2 सीजन का बोनस कहां गया, इसका हिसाब विभाग को नहीं मिल रहा है। खबर है कि पौने 6 करोड़ की बोनस राशि प्रबंधकों के खाते में ट्रांसफर हुए करीब साल भर होने को हैं, पर ये राशि अब तक संग्राहकों में बंट ही नहीं सकी है। जांच पर जांच बिठाने के बाद भी रकम डकारने वालों के हलक से पैसे विभाग नहीं उगलवा सका है। गरीब आदिवासियों के पैसे हजम करने वालों का हाजमा इतना दुरुस्त है कि अपच, गैस, कब्ज जैसा कोई लक्षण अब तक नजर नहीं आया। तमाम विवादों का ठीकरा भूपेश सरकार पर फोड़ने वाली भाजपा सरकार के कार्यकाल में गरीबों के हक का बोनस सांय-सांय ट्रांसफर होने की उम्मीद की जा रही थी, पर अब तक ऐसा नहीं हुआ।
——-

ब्लैक में टिकट

कभी सिनेमाघरों में टिकट ब्लैक में बेचने की बातें आम थीं, लेकिन हालिया नगरीय निकाय चुनाव में अध्यक्ष और पार्षद की टिकट ब्लैक में बेचने के आरोप-प्रत्यारोप लगने शुरू हो गए हैं। इस वक्त सबसे ज्यादा हमलावर मोड में भाजपा दिख रही है। असंतुष्ट कांग्रेसियों के आक्रोश की आग को हवा देने भाजपा नेता टिकट बेचने का आरोप जमकर लगा रहे हैं।
— —- —-
उधार की बूंदी से मनायी गणतंत्र की खुशी
पहली बार दक्षिण बस्तर में उधार की बूंदी – नमकीन से गणतंत्र दिवस पर्व मनाने की नौबत आई। बेचारे सरपंचों को कार्यकाल पूरा होने से पहले ही आहरण अधिकार से वंचित कर दिया गया। न तो सरपंचों को राशि निकालने दी गई, न कार्यकारी के तौर पर जनपद सीईओ को। नियमों की जानकारी के अभाव में ऐसी नौबत आई। इससे स्कूल-आंगनबाड़ी के बच्चों के लिए बूंदी-नमकीन दिलाने सरपंच हलवाइयों के चक्कर काटते दिखे। चुनाव हारने पर भुगतान फंसने के डर से ज्यादातर मिठाई दुकान वालों ने उधार देने से हाथ खड़े कर दिए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

शिक्षक खरीद रहे तेंदूपत्ता (शब्द बाण-83)

शिक्षक खरीद रहे तेंदूपत्ता (शब्द बाण-83)

साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम 'शब्द बाण' भाग- 83 11 मई 2025 शैलेन्द्र ठाकुर । दंतेवाड़ा दीया तले अंधेरा जिला मुख्यालय का वार्ड होने के बावजूद दंतेवाड़ा...