साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम शब्द बाण (भाग – 65)
दिनांक : 12 जनवरी 2025
शैलेन्द्र ठाकुर । दंतेवाड़ा
एक अनार, सौ बीमार !
दंतेवाड़ा में जिला पंचायत अध्यक्ष का पद पिछली बार एसटी कैटेगरी की महिला कर लिए आरक्षित था। तब सिर्फ महिलाएं ही दावेदार थीं। इस बार एसटी (मुक्त ) आरक्षण तय होने से अब पुरुष भी चुनाव लड़ सकेंगे। लाटरी खुलने के बाद दावेदारों की संख्या में भारी इजाफा होने के आसार बढ़ गए हैं। इनमें ज्यादातर ऐसे हैं, जो विधायक पद के लिए टिकट की दावेदारी कर चुके थे। यह स्थिति भाजपा में विकट है, क्योंकि कांग्रेस में दावेदार कम थे। इसके उलट भाजपा में दावेदारों की अधिकता थी, उनमें से टिकट किसी एक को ही मिलनी थी, सो मिली भी। अब जिनकी तत्काल टिकट कन्फर्म नहीं हुई, उन्हें पार्टी से सांत्वना पुरस्कार के रूप में जिला पंचायत अध्यक्ष बनाए जाने का एक अवसर मिल सकता है। सो, इस अवसर को भुनाने का मौका कोई छोड़ना नहीं चाहते हैं।
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ओबीसी का गुस्सा
छत्तीसगढ़ में जैसे-जैसे नगरीय निकाय व जिला-जनपदों में आरक्षण का पिटारा खुलता जा रहा है, बस्तर में ओबीसी समुदाय का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंचता जा रहा है। राज्य के मैदानी क्षेत्रों में वोटरों को साधने का यह फार्मूला अनुसूचित क्षेत्र बस्तर में ओबीसी पर भारी पड़ा है।
किसी भी निकाय या जिला-जनपद में पार्षद व सदस्य के लिए एक भी सीट आरक्षित नहीं हुई। जितनी शिद्दत से भाजपा सरकार ने संशोधन के जरिए आरक्षण का फार्मूला तय करवाया, अब उतनी ही दिक्कत ओबीसी वर्ग को मनाने में हो रही है। इसका असर आगामी नगरीय व त्रिस्तरीय चुनाव के परिणामों पर साफ दिख सकता है।
वहीं, दूसरी तरफ भूपेश कका एंड कंपनी को इस गुस्से को हवा देने का मौका मिल गया है। सनद रहे कि राज्य में सरकार बनाने में बस्तर के जनादेश का अहम रोल रहता है। अब देखना यह है कि आने वाले विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी ओबीसी समुदाय के जख्मों पर मरहम लगा पाती है या नहीं। डैमेज कंट्रोल के लिए क्या फार्मूला अपनाया जाएगा, यह भी बड़ी चुनौती रहेगी।
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पोस्टिंग, फिर संशोधन
दंतेवाड़ा में लोक निर्माण विभाग के ईई का पद कितना मलाईदार है, इसे समझना हो तो ताज़ा घटनाक्रम से अंदाज़ा लगा सकते हैं। लंबे समय से यहां अंगद के पांव की तरह जमे हुए अफसर का नाम ट्रांसफर लिस्ट में आ गया। रिलीवर ने आकर ज्वाइनिंग भी दे दी। लेकिन यहां पदस्थ अफसर जाने को राजी नहीं हुए। मिनिस्टर के करीबी नेताओं से ‘सेटिंग’ के बूते पर अपनी पोस्टिंग को संशोधित करवाकर ही माने। सरकार की स्वच्छ, सुशासन वाली नीति में सेंध लगवा दी। अब फिर से जमकर बल्लेबाजी करने जुटे हुए हैं। बचेली में प्रस्तावित सीएम प्रवास के लिए बगैर टेंडर के ही एक टेंट हाउस संचालक को लाखों रुपए की कैटरिंग का ठेका दे दिया। इससे नाराज अन्य टेंट संचालकों ने आकर पीडब्ल्यूडी दफ्तर का घेराव कर दिया। माहौल बिगड़ने से अफसर दिन भर दफ्तर में नहीं बैठ सके। खैर, पीडब्ल्यूडी में टेंट हाउस टेंडर विवाद कोई नई बात नहीं है। असली मसला, सेटिंग का होता है।
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कप्तान नए, पुराने
छत्तीसगढ़ में आगामी स्थानीय निकाय चुनाव अधिकांश जिलों में भाजपा और कांग्रेस के नए जिलाध्यक्षों की कप्तानी में लड़े जाने की पूरी तैयारी थी। भाजपा ने नए जिलाध्यक्ष घोषित कर इस मामले में बाजी मार ली है। वहीं, कांग्रेस की सूची फाइनल होने के बावजूद अब तक घोषित नहीं हुई। जिलाध्यक्ष पद के कई दावेदार तो नई शेरवानी, पायजामा तक सिलवाकर इंतजार में बैठे हैं।
खबर है कि गुटबाजी बढ़ने की संभावना को देखते हुए कांग्रेस ने इस पर ब्रेक लगा दिया है। उनका मानना है कि ठीक चुनाव से पहले घोषणा हुई तो गुटबाजी और असंतोष को शांत करवाने के लिए पर्याप्त वक्त नहीं मिल पायेगा।
फिलहाल, पार्टी के इस दांव से नगरीय और ग्रामीण सरकारों के चुनाव तक पार्टी कश्मकश के दौर से गुजरती रहेगी, इसकी पूरी संभावना है।
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सीएम प्रवास के मायने
चुनावी आचार संहिता लगने से ठीक पहले 13 जनवरी को सीएम विष्णुदेव साय लौह नगरी बैलाडीला के प्रवास पर आ रहे हैं। जाहिर सी बात है कि स्थानीय निकाय चुनाव से सरकार की उपलब्धियां गिनवाकर मतदाताओं को साधने की कोशिश होगी। लेकिन बैलाडीला क्षेत्र का सबसे बड़ा जख्म व दर्द बन चुके दंतेवाड़ा-बैलाडीला जर्जर रोड के मसले पर शायद ही कोई जवाब उनके पास हो। हवाई सफर में इस सड़क की प्रसव पीड़ा को महसूस करना नामुमकिन है।
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सेप्टिक शॉक
बीजापुर में पत्रकार हत्याकांड की घटना के बाद से लोगों के दिलो-दिमाग में सेप्टिक टैंक बैठ गया है। हत्यारों का यह आइडिया फिल्मों की स्क्रिप्ट से भी कहीं ज्यादा नया रहा। अब जहां भी सेप्टिक टैंक बनता दिखता है, लोग बातें करने लगते हैं। 1-2 दिन पहले दंतेवाड़ा में सिटी कोतवाली और पोस्ट आफिस के सामने कुछ मजदूर सेप्टिक टैंक की ढलाई करते दिखे तो कई लोग अनायास ही रुक कर जिज्ञासावश पूछते देखे गए कि आखिर यहां बन क्या रहा है?
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राजनैतिक शीत निद्रा
इन दिनों दक्षिण बस्तर की राजनीति में शीत निद्रा जैसी स्थिति निर्मित हो गई है। न विपक्ष सरकार को घेरने लायक मुद्दे उठा पा रहा है, न ही सत्ताधारियों के पास उंगलियों में गिनवाने लायक स्थानीय उपलब्धियां रह गई हैं। ज्यादातर नेता-कार्यकर्ता या तो नगरीय निकाय चुनाव लड़ने की जोड़-तोड़ में व्यस्त हो गए हैं, या फिर ग्रामीण इलाकों में सरपंच, जनपद व जिला पंचायत सदस्य बनने-बनवाने की गणित में उलझे हुए हैं। सबसे बड़ी दिक्कत की बात यह है कि दक्षिण बस्तर में इस बार महिला सरपंचों की संख्या ज्यादा रहेगी। इस लिहाज से उपयुक्त एसपी यानी सरपंच पतियों को तलाशने की चुनौती ज्यादा रहेगी।
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