ऊंची दुकान, फीके पकवान.. (शब्द बाण – 64)

ऊंची दुकान, फीके पकवान.. (शब्द बाण – 64)

साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम शब्द- बाण (भाग-64)

6 जनवरी 2025

शैलेन्द्र ठाकुर @ दंतेवाड़ा

ऊंची दुकान, फीके पकवान

शक्तिपीठ दंतेश्वरी मन्दिर के सामने करोड़ों रुपए से कॉरीडोर और रिवर फ्रंट डेवलपमेंट पर खर्च हुए हैं। ढांचा बनकर तैयार है, लेकिन इसकी नियमित साफ-सफाई के लिए न तो स्वीपिंग मशीनें हैं, न ही इतने कर्मचारी। हर तरफ डस्ट ही डस्ट बिखरा पड़ा हुआ दिखता है। बाहर से आने वाले सैलानी धूल-धक्कड़ देखकर मुंह बिचकाते नजर आते हैं। हैरत की बात है कि बैलाडीला की खदानों से अरबों-खरबों का टर्न ओवर कमाने वाले एनएमडीसी, एएमएनएस जैसे बड़े दिग्गजों की तरफ से अब तक कोई स्वीपिंग मशीन जैसा अत्याधुनिक व जरूरी उपकरण डोनेट करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई गई है। जबकि इन दोनों संस्थानों के अफसर आपदा को अवसर में बदलने कोताही नहीं बरतते। ये अफसर चेक डैम फूटने से आई तबाही के दौरान प्रभावितों को राहत सामग्री बांटकर खुद को ‘देवदूत’ प्रचारित करवा चुके हैं।
————

जिला हॉस्पिटल की बदली कमान

जिला हॉस्पिटल दंतेवाड़ा में अंततः सिविल सर्जन बदले गए। नए सिविल सर्जन ने बिना समय गंवाए फौरन ज्वाइन भी कर लिया। इस व्यंग्य कॉलम में महीने भर पहले 26 नवंबर के एपिसोड में लिखी गई बात नास्त्रेदमस की भविष्यवाणी की तरह अक्षरशः सत्य साबित भी हो गई। कहते हैं कि सब कुछ पूर्व नियोजित और ‘ऊपर’ वाले की मर्जी से होता है। खैर, अब उम्मीद है कि जिला हॉस्पिटल को लेकर मचा बवाल शांत होगा और फिर से अमन-चैन कायम होगा।

———

बैंक वाले फूफाजी

दंतेवाड़ा के एक सबसे बड़े और नामी बैंक के कर्मचारी ग्राहकों को परेशान करने के लिए कुख्यात हैं। यहां कर्मचारी भले ही बदल जाएं पर अपनी आदत से बाज नहीं आते। हमेशा दूल्हे के फूफा की तरह मुंह फुलाए रहने की आदत जो है। ये बुजुर्ग पेंशनरों को भी नहीं बख्शते हैं। अपने ही हक का पैसा निकलवाने के लिए दसियों खाना पूर्ति करवाते हैं। कभी-कभी तो साफ इंकार भी कर देते हैं। सनद रहे, कि यह वही बैंक है, जिसने एक बड़े महकमे के होनहार बाबू के सरकारी खाते से निजी लेन-देन पर कभी कोई आपत्ति नहीं जताई।
——–

शुगर की गोली की तरह सरकार

छत्तीसगढ़ में सरकार के एक साल पूरे हो चुके हैं और कई लोगों का मानना है कि डबल इंजन वाली सरकार का यह दूसरा इंजन अब तक रफ्तार नहीं पकड़ पाया है। भूपेश कका की सरकार से नाखुश होकर जनता ने जिस उम्मीद के साथ 5 साल में ही उलटफेर कर दिया, उसके हिसाब से काम नहीं हो रहा है।
सरकार अभी तक सिर्फ स्टार्ट लेती दिख रही है। एक भुक्तभोगी का कहना है कि यह सरकार शुगर की गोली की तरह है, जो स्वाद में भले ही अच्छी न हो, पर इसे खाना जीवन भर पड़ता है। ऐसे ही अब पूरा कार्यकाल इसी उम्मीद में बिताना पड़ेगा कि शायद अब कुछ अच्छा हो।

—————
परदेसी हो गए उम्मीदवार

नगरीय निकाय चुनाव के लिए वार्ड आरक्षण के बाद से मन मुताबिक सीट मिलने से कई उम्मीदवारों की बांछें खिल गई हैं। ऐसे भावी उम्मीदवारों ने तो चुनाव कार्यक्रम घोषित होने से काफी पहले जन सम्पर्क भी शुरू कर दिया है।
वहीं, दूसरी तरफ अपने ही वार्ड में लड़ने से वंचित हो गए उम्मीदवारों को दूसरे वार्ड में जाकर वोटरों के सामने हाथ-पैर जोड़ने की नौबत आ गई है। वह भी ऐसे समय में, जब मतदाताओं में बढ़ती राजनीतिक जागरूकता और भीतरी-बाहरी वाले फैक्टर के चलते मुश्किलें बढ़ गई हों। अब देखना यह है कि परदेसी बालम वाला फैक्टर चुनाव में क्या गुल खिलाता है।
————

मीडिया की कब्रगाह बन रहा बस्तर

बस्तर में पत्रकारों के उत्पीड़न की घटनाएं आम होती जा रहीं हैं। पहले नक्सलियों ने नेमीचंद जैन और साईं रेड्डी को मारा, फिर कोंटा थानेदार द्वारा पत्रकारों को गांजा केस में फँसवाने के आरोप पर बवाल मचा। अब तो हद ही हो गई है। खबर लिख कर ठेकेदार से दुश्मनी मोल लेने वाले पत्रकार की हत्या कर सेप्टिक टैंक में डलवा दिया गया । आरोपी ठेकेदार का बड़ा राजनीति कनेक्शन सामने आया है। ठेकेदार पहले कांग्रेसी था। सुनते हैं कि हाल ही में भाजपाई हो गया था। अब दोनों ही पार्टियां एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने में लगी हैं। इस आरोप-प्रत्यारोप के बीच न्याय दिलाने का असली मुद्दा कहीं गौण न हो जाए।

—–
लिफाफा खुलने का इंतजार

दंतेवाड़ा जिले में भाजपा की कमान संभालने वाले नए जिलाध्यक्ष को लेकर सस्पेंस सोमवार तक कायम रहा। रविवार को जिन 15 जिलों के अध्यक्ष के नामों की सूची आई, उनमें दंतेवाड़ा जिले का नाम नहीं दिखने से कार्यकर्ताओं का सब्र जाता रहा। लोग सुबह से आधी रात तक सोशल मीडिया के मैसेज बॉक्स बार-बार टटोलते रहे। बाद में अगले दिन यानी सोमवार को लिफाफा जिले के पार्टी दफ्तर में खुलने का ऐलान हुआ। अंततः घोषणा हुई और संतोष गुप्ता नए जिलाध्यक्ष बने।

—-
चलते-चलते…

आपके कॉलम का इंतजार रहता है दादा। पूरा पढ़ता हूँ।” यह कहने वाले ऊर्जावान, मिलनसार पत्रकार साथी मुकेश चंद्रकार की कमी अब हमेशा खलेगी। पखवाड़े भर पहले दंतेवाड़ा-बीजापुर मार्ग पर हुई अंतिम मुलाकात में मुकेश ने फिर ये शब्द कहे थे। आतताई हत्यारों ने असमय मुकेश को काल का ग्रास बना दिया।
मुकेश भाई को भावभीनी श्रद्धांजलि 💐

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

नवोदय विद्यालय में बच्चों के आसमान छूने के सपने हो रहे साकार

एयरो मॉडलिंग तकनीक सीख रहे बच्चे जवाहर नवोदय विद्यालय में दिया जा रहा प्रशिक्षण विज्ञान के सिद्धांतों को प्रेक्टिकल के जरिए सीखने का मिल रहा...