(साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम)
शैलेन्द्र ठाकुर
मोटा भाई यानि बड़े भाई के नाम से मशहूर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का दंतेवाड़ा प्रवास ऐन वक्त पर रद्द हो गया। शाह परिवर्तन यात्रा को हरी झंडी दिखाने के साथ भी भूपेश सरकार के खिलाफ चुनावी शंखनाद करने वाले थे, जिसे लेकर भाजपाई ही नहीं, बल्कि कांग्रेसी खेमे में भी बड़ी उत्सुकता थी। उनके प्रवास के रद्द होने के पीछे खराब मौसम की वजह से प्लेन के दिल्ली से टेक ऑफ नहीं कर पाने का हवाला दिया गया, लेकिन यह तर्क न तो कांग्रेसियों के गले उतर पर रहा है, न ही भाजपाइयों के। इसके पीछे के कारणों को लेकर जितनी मुंह उतनी बातें हो रही है।
बहरहाल, वजह चाहे जो भी हो, मोटा भाई का प्रवास टलने से पुलिस, प्रशासन और राज्य सरकार ने राहत की लंबी सांस ली है। दरअसल, पुलिस व प्रशासन को शाह का प्रवास सुरक्षित व बगैर किसी बखेड़ा के संपन्न करवाने की चुनौती तो थी ही, कका की सरकार को शाह के आक्रामक तेवरों से भाजपाइयों व मतदाताओं में नई कम्पन पैदा होने की चिंता भी थी।
सड़क पर गड्ढे या चांद की तस्वीर
शक्तिपीठ माँ दंतेश्वरी मंदिर तक पहुंचाने वाला गीदम-दंतेवाड़ा मार्ग कहने को तो एनएच है, लेकिन इस 12 किमी लंबी सड़क पर जितने गड्ढे हो चुके हैं, उनकी तस्वीरें भयावह है। सोशल मीडिया पर इनकी मीम्स बनाकर मजाक उड़ाया जा रहा है। इसकी तुलना मिशन चंद्रयान द्वारा चंद्रमा से भेजी जा रही गड्ढों की तस्वीरों से की जा रही है। यह स्थिति बनी रही तो जल्द ही आगामी शारदीय नवरात्रि पर फिर से पदयात्रियों के लिए सड़क पर जूट के बोरे बिछाने की नौबत आ सकती है। इतना ही नहीं, आगामी चुनाव में सड़क के गड्ढे चुनावी मुद्दा भी बन सकते हैं। अब सरकार को तय करना है कि बारदानों से धान खरीदे या सड़क के जख्म ढंके।
सुकमा से दंतेवाड़ा की ओर बहता विकास
किसी समय दंतेवाड़ा जिले का हिस्सा रहे सुकमा को अलग जिले का दर्जा मिले महज कुछ साल ही हुए हैं। अब सुकमा जिले के रास्ते दंतेवाड़ा जिले का विकास तय हो रहा है। यह महज इत्तेफाक नहीं कि जिले के प्रभारी मंत्री से लेकर वेटनरी, हॉस्पिटल व पीएमजीएसवाय तक के प्रभारी सुकमा से आते हों, जंगल अधिकारी से लेकर तमाम अफसर भी इसी जिले से अनुभव लेकर यहां आ रहे हों। भौतिक विज्ञान का सिद्धांत भी कहता है कि द्रव्य का प्रवाह अधिक दबाव से कम दबाव वाले क्षेत्र की ओर होता है। जल्द ही इस टीम को बस्तर के बाद अपने अनुभव से राजधानी रायपुर को समृद्ध बनाने का मौका मिल जाए, तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। यह भी दिलचस्प बात है कि पहले पोस्टिंग का प्रवाह दंतेवाड़ा से सुकमा की तरफ हुआ करता था।
रेल रोकने का अनुभव
भाजपाइयों को रेल रोको आंदोलन का अच्छा खासा तजुर्बा रहा है। कुछ साल पहले तक भाजपाइयों ने कई बार ऐसा कर दिखाया है । यह और बात है कि बाद में रेल्वे एक्ट के तहत दर्ज मामले में कोर्ट-कचहरी के चक्कर भी काटे। इस बार कांग्रेसियों ने राज्य व्यापी कार्यक्रम के तहत मजबूरी में ट्रेन रोकने का कार्यक्रम बना तो लिया, लेकिन रास्ते की बजाय रेल्वे स्टेशन को आंदोलन की जगह चुनी। ताकि विरोध भी हो जाए और फ़ोटो सेशन भी। दरअसल, दंतेवाड़ा के मौजूदा हालातों में कोई उड़ता तीर लेना नहीं चाहता था। इस बात पर सोशल मीडिया में जमकर मजाक बना कि स्टेशन में खड़ी मालगाड़ी के सामने फ़ोटो खिंचवाने में क्या हर्ज है? सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।