अंगद के पांव की तरह जमे बाबू..(शब्द बाण-91)

अंगद के पांव की तरह जमे बाबू..(शब्द बाण-91)

साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम शब्द बाण (भाग-91)
6 जुलाई 2025

शैलेन्द्र ठाकुर । दंतेवाड़ा

और कितना अभयदान?
दक्षिण बस्तर में पदस्थ एक आबकारी अफसर का नाम बहुचर्चित शराब घोटाले में जुड़ने के बाद भी विभाग की कृपा बनी हुई है। आरोप है कि साहब इधर का माल उधर पहुंचाने में एक्सपर्ट रहे।
यह मैनेज करने के हुनर का ही नतीजा है कि मलाईदार प्रभार पर अब तक बने हुए हैं। वरना, कोई और निरीह और बेसहारा टाइप अफसर होता तो केस में नाम जुड़ते ही लूप लाइन में फेंक दिया गया होता। उसकी जगह वेटिंग लिस्ट वाले किसी और अफसर को मौका मिलता।
किसी ने क्या खूब कहा है –
” हर कोई दीवाना है बनावटी उसूलों का
हम ये सादगी लेकर कहां जाएं…?”
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पालिका के शौचालय में मयखाना!

जिला मुख्यालय दंतेवाड़ा की नगर पालिका के कई ऐसे कारनामे हैं, जिन्हें देखकर मशहूर जादूगर पीसी सरकार के जादुई करतब भी फीके पड़ जाएं। कहीं लाखों रुपए के तैरते फव्वारे औंधे मुंह पड़े हुए दिखते हैं, तो कहीं सफेद हाथी साबित हो रहे व्यवसायिक काम्प्लेक्स। ताजा मामला हाई स्कूल मैदान के पास और एसबीआई चौक स्थित सार्वजनिक शौचालयों का है, जिनका निर्माण के बाद से कोई उपयोग ही नहीं हो रहा है। हाई स्कूल मैदान वाला शौचालय तो अघोषित मयखाना बन चुका है, जिस पर देसी दारू विक्रेताओं ने किराए के मकान-गोदाम की तरह कब्जा कर लिया है। शौचालय के नजदीक स्थित जिला हॉस्पिटल में आने वाले मरीजों के परिजन खुले में शौच के लिए पास के जंगल का उपयोग करते हैं।
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अंगद के पांव की तरह जमे बाबू

दक्षिण बस्तर में स्वास्थ्य विभाग के सीएमएचओ दफ्तर में एक बाबू को कुर्सी से इतना मोह हो गया है कि दूसरी जगह जाने से बचने के लिए प्रमोशन को भी ठुकराने से परहेज नहीं है। सबसे महत्वपूर्ण शाखा में विभागीय काम-काज व भुगतान की रफ्तार को कंप्यूटर वायरस की तरह सुस्त करने वाले इस बाबू के खिलाफ एक्शन लेने में अफसरों के भी हाथ कांपते हैं। बाबू के राजनीतिक एप्रोच की वजह से कोई कुछ नहीं बिगाड़ पा रहे हैं। जिला हॉस्पिटल में भी इसी तरह सालों से जमे हुए एक कर्मचारी से लोग हलाकान थे। बाद में एक मामले में सस्पेंशन आर्डर से ही कुर्सी हिल पाई थी।
कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि आम जनता की सेहत का ध्यान रखने वाला स्वास्थ्य विभाग खुद ही कई लाईलाज बीमारियों से हमेशा ग्रस्त रहता है। ये बीमारियां शारीरिक कम, व्यवस्थागत ज्यादा हैं। कभी अफसर, तो कभी कर्मचारी ही विभाग की तकलीफ बढ़ाने लगते हैं। अब विभाग भी क्या करे।
“दिल में अगर दर्द हो तो दवा करे कोई..
जब ज़िंदगी ही मर्ज हो तो क्या करे कोई..”

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पर्यटन के रास्ते में हिचकोले
कहने को तो बारसूर दक्षिण बस्तर की पर्यटन नगरी है और सरकारें पर्यटन को बढ़ावा देने का हर जतन करती हुई दिखती हैं, लेकिन गीदम से बारसूर को जोड़ने वाली सड़क को पूरी तरह ठीक नहीं कर पा रही हैं। बारसूर तक सही सलामत पहुंचना पर्यटकों और आम लोगों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। इस सड़क पर हिचकोले खाते हुए जाना पड़ता है। स्टेट हाईवे -5 का हिस्सा होने के बावजूद सड़क की हालत किसी ग्रामीण सड़क से भी ज्यादा बदतर हो गई है।
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3 माह में भी नहीं पहुंची बजट पुस्तिका

छत्तीसगढ़ विधानसभा में राज्य का बजट पारित हुए 3 माह से ज्यादा वक्त बीत गया है, लेकिन बजट पुस्तिका अब तक लोक निर्माण विभाग के दंतेवाड़ा डिवीजन में नहीं पहुंची है। राजधानी से 400 किमी दूरी तय करने में और कितना वक्त लगेगा, यह कोई बता नहीं पा रहे हैं। दरअसल, बजट पुस्तिका से मंजूर हुए बजट प्रस्तावों की जानकारी मिलती है। इसके आधार पर नए काम शुरू करने में आसानी होती है। बताया जाता है कि भेजने वालों को खर्च-पानी देने में कंजूसी की वजह से ऐसी नौबत आई है।
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जय-वीरू की जोड़ी
दक्षिण बस्तर में डीएमओ और फ़ूड ऑफिसर की जुगलबंदी से धान की बम्पर खरीदी तो हुई, पर जिले में लंबे समय से जमे जय-वीरू की इस जोड़ी ने धान के उठाव को गंभीरता से नहीं लिया। समय पर कस्टम मिलिंग नहीं होने से मंडी में रखे-रखे ही धान अंकुरित होने लगे हैं। नुकसान की भरपाई के लिए जय और वीरू ठीकरा दूसरों पर फोड़ने की पूरी तैयारी कर चुके हैं। जबकि ट्रांसपोर्टिंग से लेकर कस्टम मिलिंग तक के लिए यही दोनों विभाग जिम्मेदार होते हैं। खरीदी केंद्रों से लेकर मिलर्स तक को साधकर रखने के बाद अब ये अफसर मामले से पल्ला झाड़ने में लग गए हैं।

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पोस्टिंग पर बवाल!
दंतेवाड़ा जिले में कुछ समय से ट्रांसफर-पोस्टिंग पर बवाल मचता चला आ रहा है। एक साथ 43 सचिवों का थोक में ट्रांसफर करना हो, या फिर शिक्षकों के युक्तियुक्तकरण व नई पोस्टिंग पर मचा बवाल। ये बवाल पूरी तरह से थमे भी नहीं थे, अब ट्राइबल और शिक्षा विभाग में भृत्य जैसे छोटे कर्मचारियों के ट्रांसफर को लेकर विवाद होता दिख रहा है। कटेकल्याण में पदस्थ एक भृत्य ने तो मंडल संयोजक और संस्था प्रमुख पर वसूली का आरोप मढ़ा है। ट्रांसफर का अधिकार बदला लेने का औजार बन गया है। वैसे, बदला लेने के लिए कर्मचारियों के तबादले का आरोप पहले कांग्रेस सरकार में भाजपा लगा रही थी। अब सरकार बदल गई है, तो आरोप लगाने की बारी कांग्रेस की आई है।
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शैलेन्द्र ठाकुर
✍ शैलेन्द्र ठाकुर की कलम से

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