साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम “शब्द बाण” (भाग-90)
29 जून 2025
शैलेन्द्र ठाकुर । दंतेवाड़ा
विकास पर सेंसरशिप
विकास कार्यों की मंजूरी नहीं मिलने से परेशान सरपंचों ने बड़े अफसरों से मुलाकात कर अपनी व्यथा सुनाई। सरपंचों की पीड़ा यह थी कि कहने को तो यह बड़े डीएमएफ फंड वाला जिला है, लेकिन सरकार बनने के बाद से पंचायतों को काम-काज की मंजूरी देने में कंजूसी की जा रही है। चुनाव जीतने के बाद से सरपंच बेकार बैठे है। पिछली सरकार के कार्यकाल में सरपंचों का आक्रोश ही इस सीट को ले डूबा था। इस बार भी वही कहानी दोहराई जा रही है। नियमों में जटिलता बढ़ाए जाने से कुछेक छुटभैये नेता ही लौह अयस्क के लाल पानी से लाल हुए जा रहे हैं, बाकी लोग लाल पानी के जहर से सूख कर कांटा हो रहे हैं। सरपंचों के कहने पर भी इंजीनियर इस्टीमेट नहीं बना रहे हैं। काम मंजूर करवाने से ज्यादा इस्टीमेट बनवाने में पापड़ बेलने पड़ रहे हैं। विकास पर सेंसरशिप और सरपंचों की नाराजगी क्या रंग दिखाती है, यह तो वक्त ही बताएगा।
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कपिलदेव हुए क्लीन बोल्ड !
इस बार स्वास्थ्य विभाग की तबादला सूची चौंकाने वाली रही। सुकमा के प्रभारी सीएमएचओ डॉ कपिलदेव को विभाग ने क्लीन बोल्ड करते हुए बीजापुर जिला हास्पिटल में पोस्टिंग दे दी। वह भी मेडिकल ऑफिसर यानी बिना नख-शिख-दंत वाले पोस्ट पर। यह ठीक वैसा ही है, जैसे सचिन तेंदुलकर या धोनी जैसे आक्रामक खिलाड़ी को किसी मैच में 12 वां खिलाड़ी बनाया जाना। दंतेवाड़ा जिला हास्पिटल में सिविल सर्जन रहकर ताबड़-तोड़ चौके-छक्के लगा चुके साहब ने अपनी मर्जी से सुकमा सीएमएचओ का कांटों भरा ताज खुद स्वीकार किया था। इसके बाद अचानक से डिमोशन हो जाना, विभागीय लोगों के पल्ले नहीं पड़ रहा। वैसे भी, तगड़े राजनीतिक कनेक्शन व एप्रोच के बल पर मन मुताबिक पोस्टिंग पाने के लिए डॉ साहब खासे चर्चित रहे हैं। दंतेवाड़ा जिले में सीएमएचओ के अधिकार क्षेत्र वाले मद की करोड़ों रूपए की राशि को जिला हास्पिटल में ट्रांसफर करवाने के मामले में भी रायपुर के चक्कर काटने पड़े थे। इस केस में क्लीन बोल्ड होते-होते बचे डॉक्टर साहब की मुसीबत खत्म होने का नाम नहीं ले रही है।
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बिजली गुल करने का अभ्यास
जरा सी बूंदा-बांदी में भी बिजली गुल होने से लोग हलाकान हैं। प्री मानसून मेंटेनेंस तो जैसे एक जुमला हो गया है। लोग तो यह कहने लगे हैं, कि यह सिर्फ ट्रेलर है, पूरी पिक्चर अभी बाकी है। मानसून पूरी तरह सक्रिय होने पर गुल होने वाली बिजली की परेशानियों के लिए विभाग अभी लोगों को अभ्यास करवा रहा है, ताकि बाद में बार-बार बिजली चली जाने पर भी लोगों को तकलीफ न हो। मौसम खराब होते ही बिजली विभाग के कंट्रोल रूम में टेलीफोन का रिसीवर उठाकर साइड में रख देने की परंपरा भी ठीक ढंग से निभाई जा रही है, ताकि लोगों की शिकायत और सवाल-जवाब झेलने वाली स्थिति न रहे।
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निकायों का युक्तियुक्तकरण कब?
सरकार बनने के बाद शिक्षकों का युक्तियुक्तकरण तो कर दिया गया, लेकिन बस्तर में नगरीय निकायों में पदस्थ सीएमओ और रेगुलर कर्मचारियों का युक्तियुक्तकरण कब होगा, यह बड़ा सवाल है। मुख्य नगर पालिका अधिकारी के पदों पर बाबुओं को बिठाए जाने से निकायों के विकास का समीकरण गड़बड़ा रहा है। इतनी बड़ी संख्या में क, ख, ग वर्ग के सीएमओं की भर्ती प्रक्रिया होने के बाद भी बस्तर के अधिकांश निकायों में पूर्णकालिक सीएमओ की पोस्टिंग नहीं हो रही है। लंबे समय से एक ही निकाय में जमकर बैठे ये अफसर ठेकेदारों व सप्लायरों से सेटिंग के बल पर जमकर मलाई खाते हैं, भले ही नगर में नागरिक सेवाएं अस्त-व्यस्त रहें। कभी ट्रांसफर हो भी जाए, तो समंदर में जहाज के पंछी की तरह फिर से घूम-फिरकर वहीं लौट आते हैं।
इसी तरह एक ही निकाय में वर्षों से जमे रहकर कुर्सियां तोड़ने वाले कई बड़े कर्मचारी व अफसर भर्ती के बाद उसी निकाय से ही रिटायरमेंट लेने तक पदस्थ रहते हैं।
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एक चुटकी सिंदूर की कीमत…
नापाक पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक और ऑपेरशन सिंदूर चलाकर भले ही हाल में उसकी नानी याद दिलाई गई हो, लेकिन बस्तर संभाग में शिक्षा विभाग शिक्षकों पर इस तरह के ऑपेरशन पहले से चलाता आ रहा है। पिछली सरकार में तत्कालीन जेडी ने सर्जिकल स्ट्राइक कर शिक्षकों को प्रमोशन के नाम पर जिला बदलकर धुर नक्सल प्रभावित इलाकों में पोस्टिंग दी। घर-परिवार से काफी दूर फेंके गए शिक्षकों को एक चुटकी सिंदूर की कीमत तब पता चली, जब पत्नी के पास घर वापसी के लिए जमा पूंजी से मोटी रकम खर्च करने की नौबत आई थी। अब सरकार बदली तो इतिहास फिर से खुद को दोहराता दिख रहा है। शिक्षकों का कहना है कि अभी सर्जिकल स्ट्राइक ही हुई है। जल्द ही आपरेशन सिंदूर भी चलेगा। पति-पत्नी प्रकरण और आपरेशन घर वापसी के लिए जीपीएफ निकासी और बैंकों से एफडी तुड़वाने की नौबत भी आएगी।
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शिकायतों का पुलिंदा
दंतेवाड़ा प्रवास पर पहुंचे बस्तर सांसद से मुलाकात कर स्थानीय भाजपा नेताओं व जनप्रतिनिधियों ने अपना दुखड़ा कह सुनाया। उनकी सबसे बड़ी पीड़ा यह थी कि अधिकारी सुनते ही नहीं है, चाहे सचिवों-शिक्षकों के ट्रांसफर का मामला हो, या फिर विधिवत करवाए गए काम का भुगतान अटकाने का। ज्यादा शिकायत हुई तो सरकार अधिकारी तो बदल देती है, पर उनका ‘ईगो’ नहीं बदल पाती है। इसके चलते 2 साल बीतने पर भी बताने लायक कोई काम जिले में नहीं हो पाया है।
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बिना मुहूर्त वाली सरकारी शादियां
महिला व बाल विकास विभाग ने जून महीने के अंतिम सप्ताह में सामूहिक विवाह का आयोजन किया। इसमें 125 जोड़ों की शादी करवाई गई। बिना मुहूर्त के शादियां करवाने वाले विभाग को टारगेट जो पूरा करना था। शादी को लेकर विभाग में उत्साह भी नदारद था। इसकी वजह साफ है। इसके पहले तक नव दम्पतियों को मिलने वाले पैसे से विभाग खुद घर-गृहस्थी का सामान खरीदकर उपहार में देता था, इसमें थोड़ी बहुत “खुशी” की गुंजाईश रहती थी। अब नए प्रावधान में नव दंपति को 35 हजार का चेक थमाया जाने लगा है।
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कांग्रेस की धाकड़ बल्लेबाजी
शिक्षकों के युक्तियुक्तकरण की विसंगतियों और अव्यवहारिक नीतियों से भाजपा सरकार ने कांग्रेस को बैठे-बिठाए बड़ा मुद्दा दे दिया है। अब इस पिच पर कांग्रेस जमकर बल्लेबाजी कर रही है। दंतेवाड़ा हो, या फिर संभाग मुख्यालय जगदलपुर, कांग्रेस ने घेराव और प्रदर्शनों से शिक्षकों का हमदर्द बनकर शक्ति प्रदर्शन करने में कोई कसर बाकी नहीं रहने दिया। यहां तक कि उत्साह में एक कांग्रेसी विधायक ने अगली बार कांग्रेस सरकार बनने पर स्कूलों में शिक्षकों का पुराना सेटअप लागू करने की घोषणा तक कर दी। हालांकि अगला चुनाव होने में 3 साल बाकी है।
