साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम ‘शब्द-बाण’ (भाग-62)
22 दिसंबर 2024
शैलेन्द्र ठाकुर । दंतेवाड़ा
गधे खा रहे च्यवनप्राश…
कांग्रेसियों ने बड़ा गज़ब का मुद्दा खोज निकाला है। उनका आरोप है कि बस्तर के एक गांव में नामी पोर्न स्टार के नाम से महतारी वंदन का पैसा रिलीज हो रहा है। अब ये मसला तो ठीक वैसा ही ही है, जैसा मंत्री-विधायकों के स्वेच्छानुदान का होता है। जो वास्तव में तकलीफ में होता है, उसका आवेदन खारिज हो जाता है, जो पार्टी कार्यकर्ता होता है, या फिर महोदय का नजदीकी, वह स्वेच्छानुदान से उपकृत हो जाता है। इस स्तम्भकार के पास इस बात का प्रत्यक्ष अनुभव रहा है कि बीपीएल होने के बावजूद किसान की किडनी फेल धर्मपत्नी के इलाज में मदद का आवेदन सभी माननीयों ने अनसुना कर दिया। मरीज ने दुनिया को अलविदा भी कह दिया, लेकिन किसी भी बंगले से कोई जवाब तक नहीं आया। इसीलिए स्वेच्छानुदान मद माननीयों के लिए पर्सनल बटुए की तरह होता है, जिसका इस्तेमाल जनहित में कम, स्व हित मे ज्यादा होता है। अब महतारी वंदन योजना का मामला भी ऐसा ही है, जैसे-
“यहां घोड़ों को नहीं मिल रही घास, वहां गधे खा रहे च्यवनप्राश।”
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चिपकू गम वाली कुर्सी
दंतेवाड़ा जिले में लोक निर्माण विभाग के कार्यपालन अभियंता का पद कितना मलाईदार होगा, यह ताजा घटनाक्रम से समझा जा सकता है। ऐसा लगता है कि इस कुर्सी पर कोई चिपकू गम लगा हुआ है। लंबे समय से यहां जमे कार्यपालन अभियंता का तबादला दूसरी जगह हो चुका है। नए अफसर ने ज्वाइनिंग भी दे दी है, लेकिन पुराने साहब हैं कि टलने का नाम ही नहीं ले रहे। जबकि ताजा नियमों के अनुसार सप्ताह भर के भीतर तबादले पर नहीं जाने वालों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई और एकतरफा रिलीविंग होना तय है। वैसे भी उक्त अफसर के कार्यकाल में ही सुस्त मॉनीटरिंग की वजह से दंतेवाड़ा-बैलाडीला मार्ग के चौड़ीकरण कार्य का बंटाधार हुआ है। इस सड़क की खस्ता हालत ने पिछली और अब वर्तमान सरकार को किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा है। इसके बाद भी अफसर पर सरकार की नरमी की बात गले नहीं उतर रही।
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चार दिन की चांदनी
मां दंतेश्वरी कॉरीडोर में लाइट की जगमगाहट “चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात” वाली कहावत को चरितार्थ कर रही है। इतने भारी-भरकम बजट से बने कॉरीडोर की कमी-खामियों पर यही जगमगाहट ही रात में पर्दा डालती है। शारदीय नवरात्रि तक तो यह खूब चर्चित रहा, लेकिन अब यह कॉरीडोर अक्सर रात के अंधेरे में डूबा रहता है। वीआईपी प्रवास पर ही इसकी जगमगाहट दिखती है। बाकी समय लोग इसके सामने रील्स बनवाने के लिए तरसते रह जाते हैं।
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बदले गए टीआई
दक्षिण बस्तर में पुलिस कप्तान ने कई थानों के टीआई बदल दिए हैं। गीदम-दंतेवाड़ा जैसे बड़े थाने में आपसी अदला-बदली हुई। बाकी जगह टीआई एक से दूसरे थाने भेजे गए हैं। पुलिसिंग में कसावट लाने के मकसद से किया गया यह बदलाव भविष्य में क्या रंग दिखाता है, यह तो वक्त ही बताएगा। वैसे भी गीदम और दंतेवाड़ा थाने की थानेदारी करना किसी चुनौती से कम नहीं है। नक्सली चुनौती के लिहाज से बाकी थाने जितने संवेदनशील हैं, इन दो थानों में राजनीतिक लिहाज से उतनी ही संवेदनशीलता और धैर्य की जरूरत तो पड़ती ही है, सटोरियों, गंजेड़ियों और जुआड़ियों पर ‘काबू’ पाने की ‘चुनौती’ भी रहती है। बाकी, अंदर की बात जो है सो हइए ही।
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विधानसभा में भी दंतेवाड़ा की धमक
इस बार विधानसभा सत्र में दंतेवाड़ा के मुद्दे छाए रहे। वो तो गनीमत है कि विपक्ष इस बार कमजोर पड़ गया। मामला उठाया भी तो सत्ता पक्ष के विधायक ने और विपक्षियों को हंगामा करने का मौका तक नहीं मिला। असल वजह यह है कि सरकार बदले भी जुम्मा-जुम्मा साल भर ही हुआ है। एक साल पहले तक जो कर्मकांड हुए, उनकी गिनती तो सत्ता पक्ष से पहले विपक्ष के खाते में ही आएगी। विपक्षी पत्थर भी फेंकते, तो खुद के ऊपर गिरना तय था। यही हुआ भी। चाहे बैलाडीला सड़क का मसला हो, वन विभाग या दंतेश्वरी कॉरीडोर हो, या फिर पीएमजीएसवाय की सड़कों का। पूरे मामले उठते तो बाकियों को मौका ही नहीं मिल पाता। सबको पता है कि सब कुछ आपसी अंडर स्टैंडिंग में चलता आ रहा है।
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फिरेंगे बारसूर के दिन
अरसे बाद बारसूर महोत्सव फिर शुरू होने के संकेत मिले हैं। इसी बहाने ऐतिहासिक व पर्यटन नगरी के दिन फिरते नजर आ रहे हैं। महोत्सव से पहले नगर के एक छोर से दूसरे छोर तक स्ट्रीट लाइट से जगमगाने की तैयारी है। ऐतिहासिक बूढ़ा तालाब में बोटिंग शुरू हो गई है। पर्यटन जंक्शन के तौर पर इस नगरी के विकास की संभावनाएं तो काफी हैं, पर इस दिशा में काम होता हुआ अब तक नहीं दिखा था। स्थानीय लोग खुश हैं कि महोत्सव के नाम पर कुछ तो सुधार होगा। अवैध कब्जों से कसमसा रही पुरातात्विक महत्व की नगरी को सिरपुर की तरह गम्भीरता से लिया जाए तो ऐतिहासिक रहस्यों के कई दबे हुए खजाने धरती से बाहर आ सकते हैं और पिछले भ्रष्टाचार की कई परतें भी उधड़ सकती हैं।
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गोटियां फिट करने का सिलसिला
नगरीय निकायों में वार्ड वार पदों का आरक्षण घोषित होते ही नए-नए समीकरण बनने लगे हैं। कुछ तो अपनी पसंद के वार्ड में जाकर जन सम्पर्क में अभी से जुट गए हैं। सरकार की नई पॉलिसी से दंतेवाड़ा निकाय में ओबीसी की एक भी सीट आरक्षित नहीं हुई, अलबत्ता, अनारक्षित कोटे की सीट जरूर बढ़ गई। अब ओबीसी कैटेगरी वाले उम्मीदवारों के पास सामान्य यानी अनारक्षित सीट पर ताल ठोंकने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं बचा। इसके बाद सबसे ज्यादा उत्सुकता अध्यक्ष पद के आरक्षण की घोषणा को लेकर है। अब तक एसटी सीट के रूप में आरक्षित रहे इस पद पर इसी कैटेगरी में महिला या मुक्त होने की संभावना ज्यादा है, पर पहली बार यहां ओबीसी या अनारक्षित होने की उम्मीद पर भी कुछ लोग जी रहे हैं।
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भाजपा का खुला पिटारा
भाजपा ने दंतेवाड़ा जिले में नए मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति वाला पिटारा आखिर खोल ही दिया। पद पाने की आस में उत्साहित ज्यादातर नामचीन दावेदारों के सारे अनुमान धरे के धरे रह गए। हमेशा की तरह पार्टी रणनीतिकारों ने फिर से चौंका दिया। चूंकि सरकार भाजपा की है, इसीलिए फंड जुटाने के नाम पर खेला करने वालों से बचने की पूरी कोशिश पार्टी ने की है। इसके बाद असली सस्पेंस नए जिलाध्यक्ष की घोषणा को लेकर बाकी रह गया है। लेकिन कांग्रेस से पहले भाजपा का नया जिलाध्यक्ष घोषित हो जाए, इसकी संभावना कम है।
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चलते-चलते…
दक्षिण बस्तर में जनपद पंचायतों के कई सीईओ सुशासन वर्ष में बदले जा चुके, लेकिन ब्लॉकों में बीईओ को बदलने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पा रहा है। शिकायतों और लचर काम के बावजूद बीईओ को अभयदान मिलने की वजह का पता नहीं चल रहा। कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि सीईओ के मुकाबले बीईओ मौजूदा सिस्टम के साथ ज्यादा एडजस्टेबल एवं फ्रेंडली साबित हो रहे हैं।