प्रख्यात धातु शिल्पी स्व..जयदेव बघेल की स्मृति में “संवाद” का आयोजन हुआ कोंडागांव में
शिल्पकला से जुड़े विशेषज्ञों ने रखी अपनी बात
Bastar Update/ कोंडागांव
आदिवासी लोक कला अकादमी, छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद् संस्कृति विभाग रायपुर की ओर से प्रख्यात धातु शिल्पी डा.जयदेव बघेल की स्मृति में “संवाद” का आयोजन 24 सितंबर की शाम शिल्प नगरी चिखलपुटी में किया गया। इस दौरान स्व. बघेल के सुपुत्र भूपेंद्र बघेल सहित शिल्पकला से जुड़े विशेषज्ञों ने अपनी बात रखी और स्व. डा. बघेल के शिल्पकला के प्रति योगदान को रेखांकित किया।
शुरूआत में अकादमी के अध्यक्ष नवल शुक्ल ने सभी वक्ताओं का अभिनंदन करते हुए कहा कि स्व. जयदेव बघेल की कला को देश-विदेश में जो सम्मान मिला वह अभूतपूर्व रहा। बस्तर और यहाँ की आदिवासी कला के सर्वमान्य प्रतिनिधि एवं प्रवक्ता के रूप में स्व. बघेल को मान्यता थी। उन्होंने कहा कि जयदेव बघेल ने ग्रामीण पारम्परिक कलाकारों एवं आधुनिक शहरी कलाकारों के मध्य एक सेतु का कार्य किया और उनके मध्य संवाद को संभव बनाया।
स्व. बघेल के सुपुत्र भूपेंद्र बघेल ने अपने पिता से जुड़े कई संस्मरण सुनाए। उन्होंने कहा कि उनके पिता ने घड़वा शिल्प को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। इसलिए उन्हें देश और दुनिया में सम्मान मिला। देश में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी उन्हें सम्मानित किया था। उन्हें वर्ष 2003 में पंडित रविशंकर शुक्ल विवि रायपुर ने डॉक्टरेट की मानद उपाधि दी। भूपेंद्र ने बताया कि मास्को, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, लंदन, स्काटलैंड, सिंगापुर, हांगकांग, बैंकाक, टोक्यो, इटली और पेरिस में उनके पिता की कृतियों की प्रदर्शनी लगाई गईं और विदेश में घड़वा शिल्प के माध्यम से बस्तर की कला को सराहा।
लोक चित्रकार खेम वैष्णव ने स्व. जयदेव बघेल के कला संसार पर कहा कि उनकी रचनात्मकता केवल धातु शिल्प तक ही सीमित नहीं थी वरन् बस्तर अंचल में सभी शिल्पों के विकास और उन्नयन हेतु उनकी सहकारिता की भावना प्रबल थी।
धातु शिल्प में राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त राजेन्द्र बघेल कहा कि स्व. बघेल ने हरेक वर्ग के लोक शिल्पियों को महत्व देते हुए आगे बढ़ाने में प्रेरणा स्रोत के रुप में काम किया। उन्होंने बताया कि डॉ बघेल ने महुए के पेड़ की कृति मुंबई के ताज होटल में बनाई,जिसमें बस्तर नजर आता है। मुंबई स्थित जानी मानी जहांगीर आर्ट गैलरी में प्रदर्शनी से लेकर देश के लगभग हर जाने पहचाने शिल्प मेले में बस्तर को बघेल ने सम्मान दिलाया है।
साथी समाज सेवी संस्था कुम्हार पारा के अध्यक्ष भूपेश तिवारी ने कला के इतिहास, सांस्कृतिक पक्ष में बोलते हुए, कला के निर्माण और उसके मार्केटिंग पक्ष पर भी अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने बताया कि महामारी कोरोना काल में 40 से 50 प्रतिशत शिल्पकारों ने अपना मूल कार्य छोड़ अन्य कार्य शुरु कर दिया है। कलाविद् अनिरुद्ध कोचे ने डाक्टर बघेल की कला की उपलब्धियों, उसकी प्रासंगिकता के बारे में अपने विचार से विस्तार से अवगत कराया।
किड़ई छेपड़ा शिल्प में नेशनल एवार्डी तीजूराम विश्वकर्मा तीजूराम विश्वकर्मा ने स्व. डा. बघेल के योगदान का उल्लेख करते हुए कहा कि 80 के दौर में तत्कालीन मध्यप्रदेश में भारत भवन की स्थापना लोक एवं आदिवासी कलाकारों के लिए एक स्वर्णिम काल था, यही वह दौर था जब स्व. बघेल की शिल्पकला को नए आयाम मिले।
अध्यक्षता कर रहे लोक कला के जानकार महेंद्र सिंह ने डाक्टर जयदेव बघेल के धातु शिल्प कला संसार पर प्रकाश डालते हुए बताया कि स्व. बघेल का आरम्भिक जीवन और धातुशिल्प का शुरूआती प्रशिक्षण उनके पिता की देखरेख में हुआ था ।
वे कभी स्कूल नहीं गए , बचपन में वे अपने पिता के साथ अपना पैतृक धातु शिल्प का कार्य करते थे और कोंडागांव स्थित दण्डकारणी कार्यालय में चौकीदार का कार्य करते थे। यहाँ बंगाली कर्मचारियों के बीच रहकर वे पढ़ना-लिखना सीख गए। उन्होंने कहा कि जयदेव बघेल बस्तर के पहले धातुशिल्पी थे जिन्होंने घर से अलग कार्यशाला बनवाई और अनेक धातु शिल्पियों को एक साथ बैठाकर एक वर्क यूनिट के रूप में कार्य आरम्भ किया।
… जयदेव बघेल ने बस्तर में पहले-पहल आधुनिक मशीनों जैसे वेल्डिंग मशीन , ग्राइंडर , कटर आदि का प्रयोग आरम्भ किया। स्व. जयदेव बघेल को श्रद्धांजलि के साथ इस संवाद का समापन हुआ।