साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम ‘शब्द-बाण’ भाग-114
14 दिसम्बर 2025
शैलेन्द्र ठाकुर । दंतेवाड़ा
जुगाड़ पे जुगाड़
माओवाद के सिमटते दायरे के बावजूद बस्तर के अबूझमाड़ इलाके में ग्रामीण विकास को तरस रहे हैं। कहीं आदिवासी ग्रामीण श्रमदान कर सड़क बना रहे हैं, तो कहीं जुगाड़ से अस्थाई पुल तैयार कर रहे हैं। सबसे ज्यादा मामले इंद्रावती नदी के पार से सामने आने लगे हैं, जहां ग्रामीणों को पहले पुल-पुलिया और सड़क मांगने पर मौत मिलती थी। अब जन अदालत लगाने वाले खुद सरेंडर की मुद्रा में हैं। यह भी गजब है कि जब सरकार के पास फंड की कमी नहीं थी, तब अफसरों के पास माओवादी बाधा का बहाना था। अब जब सरकार के प्रहार से माओवाद खुद पानी मांग रहा है, तब फंड की कमी से सरकार के हाथ बंध गए हैं। वहीं, दूसरी तरफ खनिज रॉयल्टी वाले डीएमएफ जैसे खजाने पर सरकार नित नए नियम-कायदों के पेंच फंसाने में जुटी हुई है। ताजा पेंच खनन क्षेत्र के 10-15 किमी के दायरे में ही राशि खर्च करने को लेकर है। इससे बस्तर संभाग के बाकी अनसुलझे क्षेत्रों के विकास के लिए फंड जुटाने में दिक्कत होगी, इसमें कोई शक नहीं। इधर, आम जनता कितना भी श्रमदान या जुगाड़ से पुल वाला आईना सरकार को दिखाती रहे, कोई फर्क नहीं पड़ने वाला।
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भुगतान की भी गारंटी हो तो अच्छा है…
यह चर्चा आम है कि सरकार मनरेगा यानी महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना का नाम बदलने जा रही है। बस्तर में इस योजना की छवि ऐसी बन चुकी है कि लोग तो कहते हैं कि इस योजना में रोजगार मिलने की तो गारंटी तो है, लेकिन भुगतान की गारंटी नहीं। ग्रामीण क्षेत्रों में लोग तो मनरेगा यानी रोजगार गारंटी योजना के नाम से ही बिदकने लगते हैं। इस योजना का काम पंचायत में मंजूर होने के बावजूद लोग पड़ोसी राज्यों में पलायन कर मिर्च तोड़ना और ईंट भट्ठों में काम करना ज्यादा पसंद करते हैं। अच्छा हो कि योजना का नाम बदलने के साथ ही सरकार भुगतान की गारंटी भी पक्की कर दे।
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फिर बाहर कौन है?
सरकार की अर्थव्यवस्था चलाने में मदद करने वाला राज्य का आबकारी विभाग ही सरकार की आबरू लूटने में अव्वल है। दक्षिण बस्तर के बचेली में अब करीब डेढ़ करोड़ का शराब घोटाला उजागर हुआ है, जो पिछली नहीं, बल्कि नई सरकार के कार्यकाल में अंजाम दिया गया। सरकारी शराब के पैसों को जुए-सट्टे में हारने जैसा खुलासा हुआ है। सरकार की समझ में ये नहीं आ रहा है कि वैश्विक महामारी कोरोना के वायरस को तो कोवैक्सीन, कोविशील्ड जैसे वैक्सीन देकर विदा किया गया था, लेकिन आबकारी विभाग के भीतर के बार-बार नया वैरिएंट ला रहे वायरस के लिए कौन सा वैक्सीन इस्तेमाल करें? पिछली सरकार में ढाई सौ करोड़ का शराब घोटाला करने के आरोप में ईडी ने पूर्व मंत्री-संत्री समेत कइयों को जेल में डाल दिया, इसके बाद भी शराब घोटाला होना आश्चर्यजनक है।
जब सारे कथित घोटालेबाजों को जेल दाखिल करने के दावे किए गए तो फिर बाहर कौन इन घोटालों को अंजाम दे रहा है।
डॉ राहत इंदौरी साहब की इन पंक्तियों की तरह-
किसने दस्तक दी इस दिल पर, कौन है??
तुम तो अंदर हो, बाहर कौन है?
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मेरे करन-अर्जुन आएंगे!!
छत्तीसगढ़ में भाजपा की साय सरकार ने 2 साल पूरे कर लिए हैं, लेकिन सरकार के पास बताने लायक कोई खास उपलब्धि दिखाई नहीं पड़ रही है। यह आरोप विपक्षी कांग्रेस तो लगा ही रही है, सत्ताधारी भाजपाई कार्यकर्ता भी इस पर मौन सहमति जताते दिख रहे हैं। उस पर सरकार ने हाफ बिजली बिल योजना और जमीन की गाइड लाइन दरों में छेड़छाड़ कर उड़ता तीर ले लिया है। किसानों के धान खरीदी का रकबा महंगाई में समोसे की साइज की तरह घटकर 21 क्विंटल से 12 क्विंटल तक छोटा रह गया है। ऊपर से अन्नदाता किसान को किसी क्रिमिनल की तरह जगह जगह सशरीर उपस्थित होकर फोटो खिंचवाना पड़ रहा है। स्वयं भाजपा कार्यकर्ता सरकार की रफ्तार से खुश नहीं है, फिर भी ज्यादातर का कहना है कि अभी काम करने के लिए 2 से ढाई साल बाकी हैं, इसमें सारा खेल पलट देंगे। ऐसा नहीं भी हुआ तो सरकार बचाने मेरे “करन-अर्जुन” तो आएंगे ही।
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अंडा निगलने लगा विभाग
दक्षिण बस्तर में महिला व बाल विकास विभाग अपने कारनामों के चलते आए दिन सुर्खियों में रहता है। कभी पूर्व से विवाहित जोड़ों की शादी करवाने का मामला सामने आता है, तो कभी ट्रांसफर-पोस्टिंग-रिलीविंग जैसा कोई दूसरा फसाद सामने आ जाता है। इस बार आंगनबाड़ी के नौनिहालों की थाली से अंडा गायब होने पर खूब हल्ला मचा है। अब ये अंडा विभाग का सिस्टम निगल रहा है या फिर पीपली लाइव मूवी वाली ‘महंगाई डायन’ इसे खाय जात है? कहा तो ये जा रहा है कि अंडा महंगा हो गया है, इसीलिए बजट के अभाव में थाली से अंडा गायब कर दिया गया है। विभाग के अधिकारी राजनीतिक संरक्षण प्राप्त होने की वजह से अनेक विवादों के बावजूद यहां पंचवर्षीय योजना के तहत जमे हुए हैं।
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बैकफुट पर खेलने की तैयारी
छत्तीसगढ़ में जमीन की गाइड लाइन दरों के पुनर्निर्धारण को लेकर बवाल मचने से लगा कि सरकार बैकफुट पर आ गई। विरोधी, खासकर कांग्रेसी थोड़े शांत हो गए हैं। लेकिन मामला अभी खत्म नहीं हुआ। जानकारों की मानें तो सरकार ने क्रिकेट के कुशल बल्लेबाज की तरह बैकफुट पर जाकर लेट कट शॉट मारने की पूरी तैयारी कर ली है। इसके लिए बल्लेबाज ने अंपायर से ऑफ स्टम्प का स्टांस भी ले लिया है। अब देखना यह है कि इस लेट कट से गेंद सीधे बाउंडरी के पार जाती है, या गली में कैच आउट होते हैं।
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रेल्वे से कैसे निपटे सरकार?
बस्तर में अब तक विकास में बाधक बनने का सारा ठीकरा नक्सलियों पर फोड़ दिया जाता था, अब नक्सलवाद ढलान पर है, तब भी सरकार सड़कों को पूरी तरह नहीं खुलवा पा रही है। ये सड़कें नक्सलियों ने नहीं, बल्कि केंद्र सरकार के रेल्वे विभाग ने काटकर रखी हुई है। 6 दशक से लौह अयस्क ढुलाई कर मालामाल हो रहे रेल्वे को सिर्फ अपने मुनाफे से मतलब है। केके रेलमार्ग के जरिए दर्जनों ग्रामीण सड़कों को बंद करने से क्षेत्र का विकास बाधित हो रहा है। इन जगहों पर अंडरब्रिज या ओवरब्रिज का निर्माण ही इस समस्या का एकमात्र समाधान है, लेकिन राज्य सरकार सिर्फ ओलंपिक और बस्तर पंडुम को ही सारी समस्याओं का हल मानकर चल रही है। रेलवे तो अंदर वाले ‘दादाओं’ की तरह लोन वर्राटू और पूना मार्गेम जैसी नीति से प्रेरित होकर सरेंडर करने से रहा। अब सरकार को ही भौहें टेढ़ी करनी पड़ेगी।

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