‘पायलट’ उड़ाएंगे कांग्रेस का प्लेन… (शब्द बाण -112)

‘पायलट’ उड़ाएंगे कांग्रेस का प्लेन… (शब्द बाण -112)

साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम “शब्द-बाण” भाग- 112

30 नवम्बर 2025

शैलेन्द्र ठाकुर । दंतेवाड़ा

रियल एस्टेट कारोबार पर ‘कहर
राज्य सरकार ने जमीन खरीदी बिक्री की नई गाइड लाइन दर तय कर होम करते हाथ जला लिया है। गाइड लाइन रेट बढ़ाने के इस फैसले से जमीन की रजिस्ट्री महंगी हुई है, जिससे इस फैसले ने भूचाल ला दिया है। लोग इसे रियल एस्टेट कारोबार पर ‘कहर’ ढाने वाला फैसला बता रहे हैं, तो वहीं खिलाफत में उतरने वालों में भाजपाई खेमे के वही लोग ज्यादा हैं, जो सरकार के हर सही-गलत फैसले के समर्थन में आंख मूंदकर कूद पड़ते थे। अब सोशल मीडिया पर इस फैसले के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। वहीं, दूसरी तरफ विपक्षी दल कांग्रेस को बैठे-बिठाए एक बड़ा मुद्दा मिल गया है। हॉफ बिजली बिल योजना बंद करने के मामले में सरकार पहले ही बैकफुट पर आ चुकी है, अब जमीन की रजिस्ट्री महंगी कर नई आफत भी मोल ले ली है। जमीन खरीद कर खुद के सपनों का आशियाना बनाने या किसानी करने के आम आदमी के सपने पर ‘कहर’ ढाने वाले फैसले पर सरकार अडिग रहती है, या कुछ संशोधन करती है, यह तो वक्त ही बताएगा।
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अब पायलट से उड़ान की उम्मीद

खेमेबाजी और आपसी खींचतान से हलाकान कांग्रेस संगठन का हाल-चाल जानने राष्ट्रीय स्तर के नेता सचिन पायलट दौरे पर बस्तर पहुंचे। कई स्तर पर कार्यकर्ताओं से मुलाकात कर पायलट यह जानने की कोशिश करते दिखे कि आखिर कांग्रेस की फ्लाइट का सफल टेकऑफ कैसे हो? पिछले चुनाव में टेक ऑफ करते ही कांग्रेस का प्लेन क्रैश हो गया था। कका-बाबा की आपसी खींचतान में प्लेन का इंजन हवा में ही बंद हो गया। छत्तीसगढ़ समेत बस्तर में भी प्लेन औंधे मुंह गिरा। सिर्फ कोंटा, बीजापुर, बस्तर जैसी गिनती की सीटें ही बच सकी थीं। अब पायलट साहब के दौरे के बाद पार्टी के मनोबल पर क्या असर पड़ेगा और गुटबाजी के चलते सिकुड़कर छोटे हो चुके रनवे पर कांग्रेस का प्लेन कैसे टेकऑफ करेगा, यह देखने वाली बात होगी।
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अस्पताल खुद बीमार है…

दक्षिण-पश्चिम बस्तर के तीनों जिलों में सरकारी अस्पतालों की स्थिति दयनीय हो गई है, खासकर जिला अस्पतालों की। लाखों रुपए फूंक कर बनाए गए हमर लैब की जान निकल गई है। अत्याधुनिक बायोकेमेस्ट्री एनालाइजर मशीनों को मेंटेन करने में अस्पताल प्रशासन का पसीना छूट रहा है। मशीनें रीएजेंट के इंतजार में सूखी पड़ी हुई हैं। न तो सीजीएमएससी से रीएजेंट की सप्लाई मिल रही, न स्थानीय खरीदी हो रही है। स्वास्थ्य मंत्री के इस दावे की कलई खुल चुकी है कि जरूरत पड़ने पर स्थानीय स्तर पर खरीदी करने पर कहीं कोई रोक-टोक नहीं है। अस्पतालों के पास फंड ही बाकी नहीं रहा, तो अफसरों की स्थिति क्या नहाएं, क्या निचोड़ें जैसी हो गई है। अस्पताल के लैब में जांच बंद होने से मरीज या तो बाहरी लैब से महंगी जांच करवा रहे, या भगवान भरोसे हैं। लैब रिपोर्ट के बगैर डॉक्टर सिर्फ लक्षण आधारित इलाज कर रहे। डबल इंजन सरकार में अस्पताल मरणासन्न स्थिति में जा रहे हैं और मरीजों की जान की कोई कीमत नहीं है।
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डबल इंजन की बैटरी
कांग्रेस की भूपेश सरकार को निपटाने के लिए भाजपा ने “अब न सहिबो, बदल के रहिबो” का जो मारक नारा दिया था, वो काफी कारगर साबित हुआ था। सरकार बदली और 2 साल के भीतर अब खुद भाजपा के लोग ही यह नारा बुदबुदाते सुनाई पड़ रहे हैं। अब बदलने वाली यह बात डबल इंजन सरकार की एक बैटरी के बदलाव को लेकर है, या फिर पूरा इंजन, यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है। उनकी दिक्कत यह है कि नई सरकार में भूपेश कका और टीएस बाबा की तरह ढाई-ढाई साल वाला आंतरिक समझौता भी नहीं हुआ है। दरअसल, सरकार बदलने के बाद कामकाज और हालात अच्छे होने की आस लगाए बैठे भाजपा कार्यकर्ताओं को अब तक मायूसी ही हाथ लगी है। ज्यादातर कार्यकर्ता और नेता मन मुताबिक काम नहीं मिलने से बेकार बैठे हैं।
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स्वास्थ्य विभाग में भी जेडी कल्चर

बस्तर संभाग में स्वास्थ्य विभाग में भी जेडी यानी संयुक्त संचालक का दफ्तर चर्चा का केंद्र बना हुआ है। खबर है कि यहां कर्मचारियों के प्रमोशन की फाइलों पर दबाए गए ‘पेपरवेट’ हल्के पड़ रहे हैं, जिसकी वजह से फ़ाइल के पन्ने उड़ रहे हैं। इन पेपरवेट का वजन बढ़ाए जाने पर ही मामला आगे बढ़ सकता है। ट्रांसफर-प्रमोशन के मामलों में अक्सर ऐसे ही ‘पेपरवेट’ की जरूरत पड़ती है। जिन लोगों को ट्रांसफर-प्रमोशन की जल्दी रहती है, वो उत्सुकता दिखाते हैं, लेकिन बाकी की उदासीनता की वजह से पूरी लिस्ट ही पेंडिंग रह जाती है।
वैसे भी बस्तर में जेडी का पद हॉट केक बनता जा रहा है। शिक्षा विभाग के जेडी को लेकर मचा बवाल हाल ही में शांत हुआ है। शिक्षकों के लंबे धरना-प्रदर्शन के बाद सरकार ने मजबूरन जेडी को निपटा दिया, तब कहीं शिक्षकों का गुस्सा शांत हुआ।
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विकास पर नया बहाना

सबसे ज्यादा नक्सल प्रभावित रहे बस्तर संभाग के अलग-अलग जिलों में फंड के अभाव में विकास कार्य ठप होने को लेकर पंच-सरपंच और जनप्रतिनिधि आक्रोशित हैं। प्रायः सभी जिलों में सरपंचों ने ज्ञापन सौंपकर अपनी नाराजगी जाहिर भी की है। कहने को तो रत्नगर्भा बस्तर से खनिज के दोहन के एवज में हर साल सैकड़ों करोड़ की राशि डीएमएफ मद में जारी हो रही है, लेकिन यह धन राशि कहां और कैसे खर्च होना है, इसे लेकर सरकार हर साल नई-नई गाइड लाइन बना रही है, कभी 15 किमी के दायरे में खर्च करने का बंधन, तो कभी शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल और ढांचागत विकास का अनुपात तय करने की आड़ में सीलिंग तय की जा रही है,
ताकि येन-केन प्रकारेण यह राशि राज्य के कोष में चली जाए। इस पाबंदी की वजह से ग्राम पंचायतों में अपेक्षित विकास के लिए पर्याप्त फंड नहीं मिल पा रहा है।
एक समय था जब विकास नहीं होने देने का ठीकरा सरकार अंदर वाले दादाओं पर फोड़ देती थी, लेकिन अब जबकि लगभग सारे दादा हथियार छोड़कर मुख्य धारा में शामिल होने की कतार में लग गए हैं, तो सरकार के पास विकास कार्यों के लिए फंड का टोटा पड़ गया है। ऐसे में नक्सलवाद के उन्मूलन के बाद आम लोगों को विकास और बेहतर ज़िंदगी दिलाने का वादा सरकार कैसे पूरा कर पायेगी, यह समझना बहुत मुश्किल है। पहले जिन गांवों में सड़क, पुल, पुलिया नहीं बन पाते थे, वहां अब पंचायतें बाधा रहित विकास करना चाहती हैं, तो फंड ही बाकी नहीं है।
शायर सागर आज़मी कहते हैं-
जब हाथ में कलम था तो अल्फ़ाज़ न थे।
अब लफ्ज़ मिले तो मिरे हाथ कट गए।
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कांग्रेस के नए कप्तान
कांग्रेस ने सत्ता की संजीवनी के अभाव में मृतप्राय हो रहे संगठन में नया प्राण फूंकने की गरज से नए कप्तानों यानी जिलाध्यक्षों की नियुक्ति की है। इनमें जगदलपुर जिलाध्यक्ष का नाम तो पहले से लगभग तय माना जा रहा था, लेकिन अन्य जिलों में घोषणाएं अप्रत्याशित साबित हुईं। सुकमा में दुर्गेश राय का नाम तय माना जा रहा था, लेकिन परिणाम कुछ और निकला। संगठन ने दादी के परिवार के योगदान को तवज्जो देते हुए जिपं अध्यक्ष कवासी हरीश को कमान सौंपी है। दंतेवाड़ा में कांग्रेस ने कुछ नया करते हुए इस बार गीदम और नकुलनार शक्ति केन्द्र से परे हटकर बचेली शक्ति केंद्र को तवज्जो देकर सबको चौंका दिया। सभी मामलों में इक्कीस साबित हो रहे मौजूदा जिलाध्यक्ष को सिर्फ इसीलिए किनारे कर दिया कि उनका कार्यकाल कुछ ज्यादा ही लंबा हो गया था। इसी तरह गीदम शक्ति केन्द्र से उठे कुछ ताकतवर नामों पर विचार इसीलिए नहीं किया गया कि सत्ता, प्रशासन और संगठन के मामले में पूरी तरह गीदममय हो चुके भाजपा के सामने नजीर पेश करने की मजबूरी थी। इस तरह कांग्रेस आलाकमान ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं। भाजपा व कांग्रेस की राजनीति में इसके पहले अब तक किसी भी दल ने बचेली-किरंदुल शक्ति केंद्र को कमान नहीं सौंपी थी। अब देखना यह है कि कांग्रेस का यह दांव कितना असरदार साबित होता है।
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धान खरीदी का मसला
दक्षिण-पश्चिम बस्तर में धान खरीदी की जिम्मेदारी वही पुराने अफसर निभा रहे हैं, जो वर्षों से यहां जमे हुए हैं। इनमें से एक अफसर पर उगाही और पार्टनरशिप में राइस मिल चलाने के आरोप लगते रहे हैं। इसके बावजूद यहां से टलने को तैयार नहीं है। उक्त अफसर के साथ सांठगांठ के चलते मिलर्स अपनी शर्तों पर धान का देर से उठाव करते हैं, जिससे सूखत बढ़ने का नुकसान समितियों को भरना पड़ता है। जितना अधिक देर से उठाव होता है, उतना ज्यादा वजन घटता चला जाता है। इसकी भरपाई को लेकर हमेशा समितियों और सरकार के बीच खींचतान मची रहती है। इसका नतीजा हर साल समिति प्रबंधकों की हड़ताल के तौर पर सामने आता है। इसके बावजूद सरकार फसाद के मूल कारणों की तलाश पर ध्यान नहीं देती है।
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✍🏻 शैलेन्द्र ठाकुर की कलम से

 

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