खोखा-पेटी नहीं, अब सीआर में डिमांड.. (शब्द बाण-110)

खोखा-पेटी नहीं, अब सीआर में डिमांड.. (शब्द बाण-110)

साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम ‘शब्द-बाण’ भाग – 110
16 नवम्बर 2025

शैलेन्द्र ठाकुर । दंतेवाड़ा

खोखा-पेटी नहीं, अब सीआर में डिमांड

जेडी की भूमिका खुद निभा रहे कुछ पटवारी अब इतने हाईली अपडेटेड हो गए हैं कि डिमांड में खोखा-पेटी की जगह सीआर शब्द वापरने लगे हैं। हजार की जगह ‘के’ लाख की जगह ‘एलसी’, इसी तरह सीआर यानी करोड़। सरकारी जमीन की अवैध खरीद-फरोख्त और नक्शा-खसरा में हेराफेरी के लिए बदनाम एक पटवारी का वायरल ऑडियो काफी चर्चा में है, जो दक्षिण बस्तर में उद्योगपतियों को जमीन बिकवाने के एवज में सीआर में मांग रख रहा है। सलवा जुडूम के दौर में घर-बार छोड़ने पर मजबूर हुए ग्रामीणों की जमीन रायपुर के उद्योगपतियों के नाम चढ़ने को लेकर मचा बवाल अभी थमा भी नहीं है और नई-नई करतूतों से कुछ पटवारी सरकार की मुसीबत बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
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हालर मिल का बिल भर रहे घरेलू उपभोक्ता
सरकार बदलने के बाद नई भाजपा सरकार में हॉफ बिजली बिल की योजना बंद तो हो ही गई है, नया स्मार्ट मीटर लगने के बाद से बिजली बिल घोड़े की रफ्तार से सरपट दौड़ रहा है। बारसूर में सरकारी आवास में निवासरत एक छोटे कर्मचारी की पीड़ा है कि बिजली विभाग ने 25 हजार का बिल थमा दिया है। इतना बिल तो किसी राइस मिल में भी नहीं आता होगा। ऐसे ही कई उपभोक्ताओं की शिकायतें हैं, जो विपक्षी दल कांग्रेस को हमलावर होने का भरपूर मौका दे रही हैं। इधर, सरकार के मंत्री और मुख्यमंत्री बिजली महंगी होने और हाफ बिजली पर सवाल पूछते ही पीएम सूर्यघर योजना का नाम जपने लगते हैं। बिजली के झटके ऐसे ही लगते रहे तो अगला चुनाव कहीं भाजपा विरोधी अंडर करेंट की चपेट में न आ जाए।
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गर्दन काटने वाले हाथ अब सब्जी काट रहे
बस्तर से लेकर पड़ोसी राज्यों तक नक्सल सरेंडर की बाढ़ सी आ गई है। पुनर्वास नीति के तहत विभिन्न व्यवसायों में लोगों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। जो हाथ पहले लोगों की गर्दन काटने से नहीं झिझकते थे, वो अब होटल व्यवसाय का प्रशिक्षण लेते व सब्जी काटते दिख रहे हैं, तो कहीं पर पर्यटकों की नाव का चप्पू चलाने में भी यही हाथ व्यस्त हो गए हैं। बदलाव की यह बयार क्या रंग दिखाएगी, यह तो भविष्य ही बताएगा।
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नींबू काटने वाले सांसद
दो सीट वाले बस्तर संभाग के एक सांसद ने जनता का काम नहीं करने और फोन नहीं उठाने वाले अफसरों को चेतावनी देते कह दिया कि नहीं माने तो नींबू काटकर उनका भूत उतार देंगे। खैर, नींबू काटना तो तांत्रिक प्रक्रिया का एक सर्वाधिक प्रचलित तरीका है। शायद इससे कुछ लोग सुधर जाएं। पर जो लोग एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति रेसिस्टेंट पॉवर की तरह गुण विकसित कर चुके होते हैं, उनका इलाज नींबू-मिर्ची से कैसे कर पाएंगे। आम लोगों के फोन नहीं उठाना, तो एक लाइलाज समस्या है और यह समस्या सिर्फ अफसरों तक ही सीमित नहीं है। चुने हुए जन प्रतिनिधि भी फोन नहीं उठाते, उनका नींबू कौन काटे?

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पावर का नया गेम

सुकमा जिला छत्तीसगढ़ के अंतिम छोर में स्थित होने के बावजूद हमेशा सुर्खियों में बना रहता है। नक्सली हिंसा के हताहतों की सर्वाधिक संख्या हो, या फिर राजनीतिक हलचल के लिहाज से, किसी न किसी मामले में यह जिला चर्चा का विषय बना रहता है। जिले में विधानसभा चुनाव में आज तक भाजपा का अपना खाता नहीं खुलवा सके नेता पॉवर की लड़ाई में पीछे नहीं रहते है। कई गुटों में बंटे नेता पोस्टर वार और विज्ञापन वार के जरिए अस्तित्व साबित करने में लगे रहते हैं। हालिया बस्तर ओलंपिक के आयोजन में बैठने की जगह को लेकर दो कद्दावर नेता आपस में भिड़ गए। खास बात है कि दोनों ही सरकारी सुरक्षा प्राप्त हैं और दोनों पर ही सुरक्षा गार्ड्स के दुरुपयोग का आरोप लगा हुआ है। वहीं, विपक्षी दल कांग्रेस में जिलाध्यक्ष पद को लेकर रस्साकशी जगजाहिर हो गई है। दो प्रमुख दावेदार एक दूसरे की पत्ती काटने में लगे रहते हैं। दादी के नाम से लोकप्रिय स्थानीय विधायक कवासी लखमा की लंबे समय तक क्षेत्र में गैर मौजूदगी से पार्टी में बिखराव होता दिख रहा है। यह रवैया जारी रहा तो आने वाले समय में पार्टी के विजय अभियान पर ब्रेक लगने की आशंका से भी इंकार नहीं किया जा सकता।
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कश्मीर से भी जटिल सड़क समस्या
देश मे कश्मीर जैसी जटिल समस्या भी लगभग सुलझ गई है, लेकिन दंतेवाड़ा जिले में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना की अधूरी सड़कों की समस्या सुलझती ही नहीं है। विभाग के अफसर कुछ अधूरी सड़कों को इतनी सफाई से छिपा देते हैं कि अधूरी और रीटेंडर करवाने योग्य सड़कों की सूची में नाम ही नहीं आ पाता है। मसलन, जिला मुख्यालय के कतियाररास से पटेलपारा डेगलरास की सड़क हो, या फिर टेकनार में कतियारपारा की सड़क। दोनों का नाम अधूरी सड़कों की सूची से गायब है। लोगों को संदेह है कि ऑन रिकॉर्ड ये सड़कें पूरी हो चुकी हैं। लेकिन वास्तव में लोग गिट्टी वाली कच्ची सड़क पर चल रहे हैं। सबसे बड़ी समस्या यह है कि मौजूदा अफसर पुराने अफसरों की गलती या गड़बड़ी पर पर्दा डालने में कोई कसर बाकी नहीं रखते हैं, ताकि अगला अफसर उनकी गलतियों को उजागर नहीं करने की परंपरा पर कायम रहे। इस के चक्कर मे ग्रामीणों की समस्या जस की तस रह जाती है।

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हेल्थ डिपार्टमेंट को हुआ मोतियाबिंद
दंतेवाड़ा जिले के बाद अब पड़ोसी जिला बीजापुर में भी मोतियाबिंद सर्जरी में संक्रमण कांड हो गया है। अब ये संक्रमण दवाओं की वजह से हुआ या फिर कोई अन्य लापरवाही, यह तो जांच से ही पता चलेगा। उसके बाद ही किसी न किसी पर ठीकरा फूटेगा। लेकिन सबसे बड़ा मोतियाबिंद का जाला तो स्वास्थ्य विभाग की आंखों में ढंका हुआ दिखता है। सरकारी अस्पतालों में दवा व उपकरण सप्लाई में घोटाले पर घोटाले करने वाली सीजीएमएससी को विभाग अब तक दुरुस्त नहीं कर पाया है। कहीं दवाओं के सैंपल फेल हो रहे हैं, तो कहीं उपकरणों के अभाव में पूरी जांच नहीं हो पा रही है। इन्हें अलग से खरीदने के लिए न तो फ्री हैंड दिया जा रहा है, न ही फंडिंग हो रही है। जरूरतमंद मरीज भगवान भरोसे रह गए हैं। पिछली बार दंतेवाड़ा प्रवास पर आए हेल्थ मिनिस्टर ने तो इस मामले में सीएमएचओ और सीएस को फ्री हैंड देने का दावा तो किया था, लेकिन बिना फंड के हैंड्स फ्री होने का भला क्या तुक है?
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नई मुसीबत
दंतेवाड़ा बायपास मार्ग का पुल बह जाने से नगर में नई मुसीबत खड़ी हो गई है। अब सारे भारी वाहन नगर के बीच से दौड़ने लगे हैं, जिनकी रफ्तार पर कोई नियंत्रण नहीं होता है। अब तक कई हादसे भी हो चुके हैं। नगर की अच्छी खासी नाजुक, मखमली सड़क भारी वाहनों के दबाव में टूटती जा रही है।
दूसरी तरफ निर्माणाधीन बायपास-2 का बालूद वाला पुल बनकर कब तैयार होगा, यह कह पाना अभी मुश्किल है। अभी इसकी ढलाई का काम ही शुरू नहीं हुआ, जबकि मानसून की विदाई हुए काफी वक्त गुजर चुका है। इस पुल की सुध न सरकार ले रही है, न ही जन प्रतिनिधियों को इसमें दिलचस्पी है।

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