पिंजरे से कब आजाद होंगे गरीब शिल्पकार? (शब्द बाण-54)

पिंजरे से कब आजाद होंगे गरीब शिल्पकार? (शब्द बाण-54)

साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम ‘शब्द बाण‘ (भाग-54)

27 अक्टूबर 2024

शैलेन्द्र ठाकुर @ दंतेवाड़ा

धार्मिक नगरी दंतेवाड़ा में मेन रोड किनारे बस स्टैंड से धर्मशाला तक लगवाई गई विवादास्पद रेलिंग अब तक वैसी ही तनी हुई है। कांग्रेस सरकार में दमन का प्रतीक बनी इस रेलिंग को भाजपा सरकार में भी सहलाया जा रहा है। भाजपाइयों ने चुनाव के बाद इसे हटाने का ऐलान तो किया था, लेकिन किसी ‘अज्ञात’ शक्ति के दबाव में ऐसा नहीं कर पा रहे हैं। गनीमत यह है कि किसी स्टाम्प में लिखकर इसकी घोषणा नहीं की थी। पहले त्यौहारी सीजन में ग्रामीण यहां बैठकर फूल-पत्ती बेचा करते थे और कुम्हार मिट्टी के दीये।
दीपावली करीब पहुंच गई है और पारंपरिक मिट्टी कला से गुजारा करने वाले कुम्हार अब इसी पिंजरानुमा रेलिंग के भीतर बैठकर दुकानें सजाने को मजबूर हैं।
जो डॉ बशीर बद्र का यह शेर याद दिलाता है-

ज़िंदगी तूने मुझे कब्र से भी कम दी है जमीं..
पांव फैलाऊँ तो.. दीवार में सर लगता है..

—- —
अंततः हुई विदाई
पहले ही विदा हो चुके ‘महोदय’ के दरबारी ‘नवरत्नों’ में से एक की बहुप्रतीक्षित विदाई अब हो ही गई। इसे लेकर लोगों में खुशी की लहर तो थी, लेकिन पिछली बार जैसे पटाखे नहीं फूट सके। खुशी तो भाजपाई-कांग्रेसी दोनों ही खेमे में थी, बस इज़हार करने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। देर शाम तक मैदानी अमले की ऑन/ऑफलाइन बैठकें लेना हो, या फिर सरपंचों से बदसलूकी करने का मामला। शिकायतों की लंबी फेहरिश्त थी। वैसे, इन शिकायतों से ख़फ़ा प्रभारी मंत्री ने भी साहब की जमकर क्लास ली थी। बंगले से लेकर दफ्तर, फील्ड से लेकर राजनीतिक गलियारे में लोग आहें भरते थे। चहेते सचिव को एक साथ 2 ब्लॉक की 5 पंचायतों का प्रभार सौंपने जैसा कीर्तिमान भी साहब ने रचा था।
—–

तालाब से देव भी हलाकान

दंतेवाड़ा का चितालंका तालाब ऐसा है, जहां चल रहे निर्माण कार्यों से देव-दनुज-अफसर-ठेकेदार और मछली जैसे जलीय जीव-जंतु तक परेशान हैं। हाल ही में यहां निर्माणाधीन स्ट्रक्चर के स्लैब का सेंट्रिंग ढहने से इन दिनों बवाल मचा हुआ है। दरअसल, तालाब के भीतर पुल नुमा स्ट्रक्चर बनाने बगैर प्लानिंग के अचानक तालाब का पानी उलीचकर फेंका गया। काम शुरू करने गलत समय का चयन करने का ही नतीजा रहा कि 2 मानसून सीजन बीतने के बाद भी तालाब में पानी नहीं भरा जा रहा है। इससे मछलियों का आसरा तो छिन ही गया, यहां महाशिवरात्रि पर स्नान करने वाले देवी-देवता भी पानी को तरसते रह गए। त्रिवर्षीय आयोजन में यहीं देव विग्रहों के स्नान की परंपरा है। इतने बवाल के बाद उम्मीद है, अगली बारिश में यह शिकायत न रहे।

——––

बविप्रा का पावर
बस्तर विकास प्राधिकरण में नई सरकार ने बड़ा बदलाव किया है। अब फिर से अध्यक्ष मुख्यमंत्री होंगे और मंत्री भी बैठकों में शामिल होंगे। इसके पहले भूपेश सरकार ने बस्तर विधायक को ही अध्यक्ष और बीजापुर विधायक को उपाध्यक्ष बनाकर नई परंपरा शुरू की थी, लेकिन पावर के नाम पर कुछ भी नहीं दिया, उल्टे पावर कट कर दिया। सीएम और मंत्रिमंडल के इन्वॉल्वमेंट के बगैर यह प्राधिकरण बिना दांत और नाखून वाले शेर की तरह हो गया था, जिसकी सिर्फ औपचारिक बैठकें ही होती थी।
पिकनिक की तरह जिला बदल-बदल कर हुई बैठकों में लिए गए फैसलों पर अधिकारी तक अमल नहीं करते थे। प्रमोशन के नाम पर बाहर फेंके गए शिक्षकों की जिलों में निःशर्त वापसी का निर्णय भी इसी प्राधिकरण की बैठक में लिया गया था, लेकिन नतीजा सिफर रहा। फाइलों पर वजन रखने वाले गुरुजी ही लौट सके, बाकी जो लोग ऐसा नहीं कर पाए, वो अब भी दूरस्थ इलाकों में वनवास काट रहे हैं। अब देखना यह है कि प्राधिकरण के सेटअप में बदलाव का ऊंट किस करवट बैठता है।

——–

दंतेवाड़ा में आंख फोड़वा कांड

जिला हॉस्पिटल दंतेवाड़ा के ग्रह-नक्षत्र ठीक नहीं लग रहे हैं। आए दिन यहां कुछ न कुछ असामान्य होता रहता है। सिविल सर्जन यानी हॉस्पिटल हेड की कुर्सी को लेकर यहां पहले से ही काफी होड़ मचती रही है। हो-हल्ला के बीच 100 बिस्तर के सेटअप वाले इस हॉस्पिटल को 200 बेड में प्रमोट करने की घोषणा हवा-हवाई रह गई। बुनियादी जरूरत के उपकरण और स्टाफ बढ़ाने की चिंता किसी को नहीं रहती। अब नेत्र शिविर में सर्जरी के बाद मरीजों की आंखों में इन्फेक्शन का बड़ा मामला आया है। देखना यह है कि इस घटना के बाद भी विभाग के कर्ता-धर्ता जागते हैं, या आंखों में सूरमा लगाए बैठे रहते हैं।

———-

मंडल संयोजक बनाम सीईओ

राज्य भर में जनपद सीईओ के पद पर हाल ही में मंडल संयोजकों को बिठाया गया है। इसे लेकर कहीं खुशी, कहीं ग़म वाला माहौल बना हुआ है। जिनकी कुर्सी छिन गई, उनमें तो ग़म ही ग़म है। ऐन दीवाली के वक्त सोने का अंडा देने वाली मुर्गी को छोड़ने जैसा कठिन वक़्त सामने जो आ गया। दंतेवाड़ा में भी सीईओ पद पर बदलाव हुआ है। वैसे पिछले कुछ समय से डीसी यानी डिप्टी कलेक्टरों को जनपद सीईओ बनाने का ट्रेंड चला आ रहा है। भले ही मूल विभाग राजस्व का काम सीखें या न सीखें, जमीन नापने वाले गुंटर जरीब, मीटर जरीब, चेन जरीब को न पहचानें, पर जनपद की सीईओगिरी करने का गज़ब का उतावलापन कुछ नए नवेले डीसी में दिखाई पड़ता रहा है। इसकी वजह भी सबको पता है।

——-
अफसर नहीं मिल रहे खाद्य विभाग को

दंतेवाड़ा जिले को कई साल से जिला खाद्य अधिकारी नहीं मिल पा रहा है। राज्य में वास्तव में अधिकारी कम हैं, या ऐसी परिस्थिति बनाई गई है, यह बड़ा सवाल है। जनता को अनाज खिलाने वाले इस विभाग का दाना-पानी प्रभारी के भरोसे चल रहा है। फर्जी राशन कार्डों के जरिए फर्जी आबंटन और राशन गोलमाल करने की अगर ठीक से जांच हो जाए तो सारे रिकॉर्ड ही टूट जाएंगे। कोरोना काल में आबंटित मुफ्त और दोहरे कोटे के राशन का हिसाब भी पूरा नहीं मिला है। राशन दुकानों तक पहुंचने वाले चावल की बोरियों की माप-तौल में कमी को लेकर पहले भी सेल्समैन मोर्चा खोल चुके हैं, लेकिन उनकी आवाज़ शोरगुल में गुम हो गई।

चलते-चलते..

सुकमा जिले में बीईओ-बीआरसी-सीआरसी से लेकर तमाम पदों पर एक ही परिवार का कब्ज़ा होने को लेकर बवाल मचा हुआ है। वैसे, इसमें नया कुछ भी नहीं है। आखिर जिसकी लाठी होगी, भैंस तो उसकी ही होगी। आज के दौर में ‘एडजस्टेबल’ होना ही बड़ी काबिलियत मानी जाती है। कांग्रेस आई तो कांग्रेसी, भाजपा आई तो भाजपाई। समझदार भाई-बंधु तो एक-एक अलग पार्टी पकड़े रखते हैं, ताकि सरकार किसी की भी बने, एक भाई पक्ष में, दूसरा विपक्ष में रहे। भाईचारा भी बना रहे।

 

खुद की काबिलियत को पहचानना ही सफलता की पहली सीढ़ी – मीणा

नवोदय जीवन किसी तपस्या से कम नहीं नवोदय विद्यालय बारसूर के बच्चों ने दी शानदार प्रस्तुति विद्यालय का पैनल इंस्पेक्शन करने पहुंची टीम ड्रिल, सांस्कृतिक...