साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम ‘शब्द बाण’ भाग -66
दिनांक 19 जनवरी 2025
शैलेन्द्र ठाकुर @ दंतेवाड़ा
देव की फिर से ताजपोशी
बस्तर की राजनीति से उठकर सीधे राज्य की राजनीति में छलांग लगाने वाले जगदलपुर विधायक किरणदेव की दोबारा ताजपोशी भाजपा प्रदेशाध्यक्ष के पद पर हुई है। यह संगठन को साधने की उनकी प्रतिभा को मिला ईनाम है या फिर मन्त्रिमण्डल में एक कुर्सी बचाने की जुगत , यह तो पार्टी के रणनीतिकार ही बता सकते हैं। लेकिन सत्ताधारी पार्टी का प्रदेशाध्यक्ष होने के मायने भी कम नहीं होते। यह मामला लगभग वैसा ही है, जैसा मंत्री-मुख्यमंत्री पद की दावेदारी करने से रोकने पिछली बार कका एंड कंपनी ने विधायक दीपक बैज को लोकसभा चुनाव में उतारकर सांसद बनवा दिया था। हालांकि यह दांव उल्टा पड़ गया। लोकसभा में मुखरता के चलते बैज राहुल के ज्यादा करीबी हो गए। फिर इसके बाद बैज को पीसीसी अध्यक्ष बनवा दिया। इसके पीछे सोच यही थी कि अक्सर पार्टी संगठन के सिलसिले में प्रदेश भर में दौरा करने के चक्कर में अपने निर्वाचन क्षेत्र के वोटरों से दूर हो जाएं और अगले चुनाव में निपट जाएं। पर यहां भी मामला बिगड़ गया। कका तो कुर्सी से उतर गए, लेकिन बैज भले ही चुनाव हार गए, पर पार्टी के प्रदेश स्तरीय नेता के तौर पर स्थापित हो गए। कुल मिलाकर अब देखना यह है कि भाजपा के इस नए प्रयोग का देव व पार्टी के भविष्य पर क्या असर पड़ता है।
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जिधर छुओ उधर दर्द
ओबीसी आरक्षण का मुद्दा भाजपा सरकार के गले की फांस बन गया है। इसे न तो उगलते बन रहा है, और न ही निगलते। समूचे बस्तर में ओबीसी समुदाय खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहा है। डैमेज कंट्रोल की कोशिश में भाजपा ने अनारक्षित सीटों पर ओबीसी को तवज्जो देने का ऐलान तो कर दिया है, लेकिन इससे सामान्य वर्ग की नाराजगी का खतरा बढ़ने लगा है। अब ओबीसी और सामान्य वर्ग के बीच चुनाव को लेकर सिर फुटौव्वल जैसे हालात बनते नजर आ रहे हैं। सत्ताधारी भाजपा के लिए यह स्थिति उस मरीज की तरह हो गई है, जिसके बदन में जिधर छुओ, उधर दर्द उठने लगता है।
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फ़ूड विभाग में नए अफसर की पोस्टिंग
अरसे बाद दंतेवाड़ा जिले में खाद्य अधिकारी की पोस्टिंग हुई है, लेकिन ट्रांसफर सूची में नाम आने के बाद राजनांदगांव से उक्त अफसर आएंगे या नहीं, यह कहना अभी मुश्किल है। वैसे भी राशन दुकानों में कार्डधारियों के लिए बॉयोमेट्रिक सिस्टम लागू होने के बाद से यह जिला अफसरों के लिए कमाऊ और मलाईदार जिले की सूची से बाहर हो चुका है। फर्जी राशनकार्डों के जरिए खेला करते आ रहे खाद्य निरीक्षक खुद नहीं चाहते कि उनके ऊपर कोई खाद्य अधिकारी आकर बैठ जाए। इस वजह से यहां की दिक्कतें, खामियां गिनवाकर माहौल तैयार करने में जुट गए हैं।
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आखिर टल ही गई बला
जिले के एक चर्चित अफसर का तबादला अन्यत्र हो गया है। सुर-सुरा-सुंदरी से खासा मोह रखने वाले अफसर की जहां भी पोस्टिंग रही, कुछ न कुछ ऐसा कारनामा कर दिखाया कि वहां के लोग बला टालने की गुहार लगाते दिखे। आश्रम-छात्रावास अधीक्षकों से वसूली करने की शिकायत तक हो चुकी थी। गनीमत यह रही कि जिले से बाहर ट्रांसफर होते ही तत्काल रिलीविंग भी हो गई। वरना, देर होने पर धूमकेतु टाइप के कुछ दूसरे अफसरों की तरह ट्रांसफर आर्डर में संशोधन या निरस्तीकरण करवाने की आशंका बनी रहती। साहब के मातहत कर्मचारी भी खुश हैं कि हर फ़ाइल को पैसे की नजर से देखने वाले साहब के चक्कर में कोई बड़ी मुसीबत में फंसने का चांस नहीं रहेगा।
इसके बावजूद जाते वक्त भी भागते भूत की लंगोटी की तरह पेंडिंग रह गई भुगतान वाली फाइलों पर चिड़िया बिठाने की भरपूर कोशिश भी साहब ने की।
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आबकारी और ईमानदारी का कनेक्शन
आबकारी विभाग में दक्षिण बस्तर में पदस्थ एक अफसर ईडी की राडार में बताए जाते हैं। इसके बावजूद ईमानदारी की घण्टी बजाने और खुद को पाक-साफ बताने से नहीं हिचकते हैं। उनका दावा है कि विवादों के दलदल वाले विभाग में उनका दामन बिल्कुल झक्कास, उजला है। बिल्कुल दादी की तरह मासूमियत वाले इस अफसर की ईमानदारी का पता तो बाद में चलेगा, जब शराब घोटाले का मामला पूरी तरह खुलेगा। वैसे भी दारू बिक्री वाले आबकारी विभाग और ईमानदारी के बीच छत्तीस का आंकड़ा जगजाहिर है। ऐसा ही कुछ हाल पीएमजीएसवाय विभाग का है। दंतेवाड़ा जिले में सबसे ज्यादा अधूरी सड़कों वाले और मरम्मत के नाम पर फण्ड का काला-पीला करने के लिए कुख्यात इस विभाग में अफसरी कर साफ निकलना काजल की कोठरी से बेदाग़ निकलने जैसा मुश्किल काम है। फिर भी अफसर दावा करने से पीछे नहीं हटते।
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संक्रांति पर कट गई पतंग
मकर संक्रांति पर उड़ने की बजाय पतंग कटने जैसे हालात दक्षिण बस्तर में बन गए हैं। खुद चुनाव लड़ने की तैयारी ओबीसी कई नेताओं के अरमानों की पतंग कट गई। ठीक वैसे ही बारसूर महोत्सव भी छूट गया है। मकर संक्रांति पर होने वाला यह महोत्सव इस बार फिर आयोजित होने की उम्मीदें जागी थीं, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। अब इसके आगे चुनावी आचार संहिता, फिर वार्षिक परीक्षा का माहौल इसमें आड़े आ सकता है। कुल मिलाकर महोत्सव आयोजन के अरमानों की स्थिति कटी पतंग जैसी ही हो गई है।
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कुर्सी बचाने साम-दाम-दंड-भेद
फिलहाल ईडी के शिकंजे में फंसे दादी के कर्मक्षेत्र सुकमा जिले में बीआरसी पद को लेकर घमासान मचा हुआ है। पात्रता के तमाम मापदंडों को बायपास कर बीआरसी बने जूनियर गुरुजी की मुश्किलें दूसरे सीनियर गुरुजियों ने बढ़ा दी है। कलेक्टर, डीईओ तक अर्जी लगा दी। इसके बाद भी न्याय नहीं मिला तो अदालत की शरण तक ले ली। अब राह में कांटे बिछाने वालों को शांत करने साम-दाम-दंड-भेद की नीति भी अपनाई जा रही है। सूत्रों की मानें तो बीईओ बनाने या थाईलैंड टूर पैकेज तक का ऑफर देने से लेकर सस्पेंशन भुगतने तक की बात कही जा रही है। अब देखना यह है कि पद के दावेदार क्या रूख अपनाते हैं?
चलते-चलते..
दक्षिण बस्तर के प्रवास पर बैलाडीला पहुंचे सीएम विष्णुदेव साय से किसी बड़ी घोषणा की उम्मीद कर रहे आम जन को मायूसी ही हाथ लगी। लॉ कॉलेज खोलने समेत कई महत्वपूर्ण बहु प्रतीक्षित प्रोजेक्ट पर घोषणा नहीं हुई। सिर्फ “चिड़ियाघर” बनाने और लैम्प्सों में जैविक खाद दिलाने की बात सीएम कह गए।