शाह की आमद को लेकर हलचल (शब्द बाण – 60)

शाह की आमद को लेकर हलचल (शब्द बाण – 60)

साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम शब्द बाण (भाग – 60)

8 दिसंबर 2024

शैलेन्द्र ठाकुर @ दंतेवाड़ा

दक्षिण बस्तर में फिर से खेल संस्कृति हरियाने लगी है, यह राहत की बात है। हाल ही में बस्तर ओलंपिक, फिर उसके बाद बैडमिंटन की राज्य स्तरीय स्पर्धा का आयोजन हुआ। अब महिलाएं आउटडोर स्टेडियम में चल रही क्रिकेट स्पर्धा में चौके छक्के उड़ाने लगी हैं। वरना, इसके पहले मैदानी खेलों के आयोजन लगभग ठप हो गए थे। विदा हो चुके महोदय और चौकड़ी का सारा ध्यान डीएमएफ के खेला पर केंद्रित होकर रह गया था।
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पलायन की पीड़ा और भुगतान का संकट

दक्षिण बस्तर में पलायन की पीड़ा खत्म ही नहीं हो रही है। रोजगार की तलाश में आदिवासी मजदूर दीगर राज्यों में जाते हैं और दलालों-सेठों के कुचक्र में फंस रहे हैं। ऐसा भी नहीं है कि जिले में रोजगार की कमी है। रोजगार तो पर्याप्त है, पर भुगतान संकट की वजह से ग्रामीणों का भरोसा मनरेगा जैसी योजना से उठ गया है। कहा जाने लगा है कि मनरेगा में ‘काम’ की तो गारंटी है, पर ‘भुगतान’ की नहीं। यही हाल डीएमएफ का भी है। भुगतान की जटिलता की वजह से काम करवाने वाले ठेकेदार और सरपंच अपनी व्यवस्था से मजदूरी भुगतान करते हैं, ताकि राशि जारी होने तक मजदूरों के आक्रोश से बच सकें। ऐसा नहीं कर पाने वाले कुछ पंच- सरपंच नक्सलियों के हाथों जान गंवा चुके हैं। इसके बावजूद सिस्टम पुराने ढर्रे पर ही चल रहा है। फाइलें जल्द खिसकती ही नहीं हैं।
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जनभागीदारी समिति का पता नहीं

दक्षिण बस्तर में सरकारी कॉलेजों में जनभागीदारी समितियों का पुनर्गठन नई सरकार अब तक नहीं कर सकी है। जबकि शिक्षण सत्र लगभग आधा बीत चुका है। इस मामले में कका की पिछली सरकार ज्यादा फुर्तीली दिख रही थी। वैसे पीजी कॉलेज में लंबे समय से अंगद के पांव की तरह जमे एक प्रभारी प्राचार्य के तबादले के बाद से व्यवस्था में सुधार की उम्मीद जागी तो है, लेकिन जनभागीदारी समितियों की सक्रियता के बगैर कॉलेजों का काम-काज सुस्त पड़ा हुआ है। बगैर रिलीवर के ही आधा दर्जन से ज्यादा नियमित सहायक प्राध्यापकों को रातों-रात रिलीव कर इस प्रभारी प्राचार्य ने पीजी कॉलेज की शिक्षण व्यवस्था को निपटा दिया था।
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रंग दिखाने लगी करतूत
विदा हो चुके ‘महोदय’ ने अच्छे खासे हिंदी मीडियम सरकारी स्कूलों को आत्मानंद स्कूल में कन्वर्ट करने का जो खेला किया था, उसके रुझान आने लगे हैं। इन स्कूलों को उत्कृष्ट बनाने के नाम पर एक भी शिक्षक या चपरासी तक अलग से नहीं मिला, लेकिन रिनोवेशन के नाम पर जमकर फंड की बंदरबांट हुई। यह कारनामा अब रंग दिखाने लगा है। इसके पहला विकेट गीदम ब्लॉक के रोंजे हाई स्कूल में गिरा है, जहां ‘महोदय’ के रायपुर से बुलाए गए चहेते ठेकेदार ने फॉल्स सीलिंग लगवाई थी। पूरी फॉल्स सीलिंग एक मानसून सत्र के बाद ही गिर गई है। वो तो गनीमत रही कि शिक्षक और बच्चों के ऊपर यह नकली छत नहीं गिरी, वरना अगले विधानसभा सत्र में यह मामला जरूर गूंजता।

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डुबान क्षेत्र में चिलिंग प्लांट

पड़ोसी सुकमा जिले में डुबान क्षेत्र में दूध की प्रोसेसिंग के नाम पर मिल्क चिलिंग प्लांट लगाने पर सवाल उठ खड़े हुए हैं। आखिर करोड़ों की मशीनों के लिए ऐसी जगह क्यों चुनी गई, जहां हर साल शबरी नदी में आई बाढ़ से इलाका जलमग्न हो जाता है। यह भी स्मरणीय है कि दंतेवाड़ा में लगे जिस क्षीरसागर प्लांट वाले खरबूजे को देखकर इस खरबूजे ने रंग बदला और नकल करने की कोशिश की, उसी ने क्षीरसागर प्रोजेक्ट को अर्श से वापस फर्श पर लाकर पटकने में कोई कसर नहीं छोड़ी। दो जिले में एक साथ प्रभारी रहने के बाद साहब खुद रिटायर हो गए।
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शाह की आमद से हलचल

वर्तमान राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले केंद्रीय गृहमंत्री अपने बस्तर प्रवास को लेकर चर्चा में हैं। सुना है कि इस बार दुर्दांत नक्सली हिड़मा के गांव में नाईट कैंपिंग करने वाले हैं। वैसे एक बात तो तय है कि मोटा भाई के रणनीतिक दांव-पेंच से राजनीतिक विरोधी जितनी दशहत में रहते हैं, उतना ही ‘अंदर वाले दादा’ भी। मोटा भाई ने राजधानी रायपुर में सिर्फ एक बैठक की और दादाओं का एक पूरा प्लाटून ही साफ हो गया। अब तो वे और नजदीक आकर चुनौती देने वाले हैं।
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ये रिश्ता क्या कहलाता है?

दक्षिण बस्तर के गीदम इलाके में जमीन की खरीद-फ़रोख़्त मामले में पुलिस की भूमिका पर सर्व आदिवासी समाज नाराज है। आखिर जमीन की रजिस्ट्री करवाने के लिए भूमि स्वामी आदिवासी युवक को पुलिस पकड़कर ले जाने का अपनी तरह का पहला मामला जो सामने आया है। लौटकर आए भूमि स्वामी की मौत हो गई थी। समाज इसे दबाव और सदमे से मौत का मामला मान रहा है। अब देखना यह है कि पुलिस और भू-माफिया के बीच रिश्ते के सवाल पर क्या सफाई मिलती है। वैसे, दक्षिण बस्तर में भूमाफियाओं के बढ़ते दबाव की बात नई नहीं है। 3 साल पहले जिला मुख्यालय के चितालंका में एक ग्रामीण का मकान निजी बुलडोजर से ढहाने जैसा कारनामा भी चर्चित रहा है। पीड़ित पक्ष की गरीबी की वजह से मामले की फ़ाइल दब गई।
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