जीने भी नहीं देते तेरे शहर के लोग… (शब्द बाण-59)

जीने भी नहीं देते तेरे शहर के लोग… (शब्द बाण-59)

साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम शब्द बाण (भाग-59)
2 दिसंबर 2024
शैलेन्द्र ठाकुर @ दंतेवाड़ा

लातों के भूत …

बस्तर में अब तो पुलिस भी उतनी मारपीट नहीं कर रही, जितना दीगर महकमे के लोग कर रहे। वैसे लातों के भूत बातों से तो मानते नहीं। दरअसल, ठेकेदार कम नेता ने पहले तो एक अफसर को रिश्वत ऑफर किया, फिर देख लेने की धमकी दी। इसके बाद जो कुछ हुआ, वह लोगों की जुबान पर है। लोगों को यह भी पता चल गया है कि प्रोटीन खाकर सिक्स पैक एब्स बनाने वाले मारपीट नहीं करते। वो तो सिर्फ दिखावा होता है। असल पिक्चर तो अब शुरू हुई है। वैसे भी कुछ दिन पहले सीएम साहब ने कहा था कि जीरो टोलरेंस की नीति पर चलेंगे। यानी रिश्वत खोरी बर्दाश्त नहीं होगी। अब तिरंगा फ़िल्म वाले राजकुमार का डायलाग अपनाया जाने लगा है। यानी पहले बात फिर मुक्का-लात यानी मुलाकात।
यहां पुलिस तो “हैसियत” देखकर अपराधियों को अभयदान दे रही है। पर कम से कम दीगर महकमे के अफसर तो ठुकाई-पिटाई की परंपरा को जीवित रखे हुए हैं। अब नेता दुहाई देने लगे हैं कि लोकतंत्र में हिंसा का कोई स्थान नहीं होना चाहिए।

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गमले में गोभी…
धार्मिक नगरी दंतेवाड़ा में हमेशा की तरह इस बार भी नया प्रयोग हुआ है। डंकनी के पुल की रेलिंग के ऊपर गमले प्लांट किए गए हैं। इन गमलों में खूबसूरत दिखने वाले कागज फूल यानी बोगनविलिया के पौधे लगे हैं। वैसे गमलों वाला यह प्रयोग नया नहीं है। कांग्रेस के एक राष्ट्रीय नेता को गमलों में गोभी उगाकर करोड़ों की आमदनी को टैक्स फ्री करने का क्रेडिट मिल चुका है। मजेदार बात यह है कि गमलों में गोभी वाले कांसेप्ट का मजाक भाजपा उड़ाती रही है, और संयोग से दंतेवाड़ा में गमला नवाचार खुद भाजपाई जनप्रतिनिधि कर रहे हैं और मजाक उड़ाने की बारी कांग्रेस की आई है। अब देखना यह है कि यह गमला पॉलिटिक्स क्या गुल खिलाती है।

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सूखे पड़े डैम..
दक्षिण बस्तर में स्टॉप डैम की संख्या इतनी ज्यादा है कि पानी रोकने पर किसी तरह की समस्या ही नहीं होती। हर तरफ पानी ही पानी नज़र आता। लेकिन फसल कटाई के बाद भी डैम के फाटक बंद नहीं होते। स्टॉप डैम सिर्फ निर्माण कर पैसे बनाने का उपक्रम बन कर रह गए हैं। इसके बारे में यह चर्चित है कि डैम पानी रोकने के लिए नहीं होते। इसकी परिभाषा कुछ ऐसी है-
स्टॉप डैम ठेकेदारों का, ठेकेदारों के लिए, ठेकेदारों द्वारा बनाया गया स्ट्रक्चर होता है।”  इसका पानी रोकने से कोई लेना देना नहीं होता। समलूर और तुमनार में नदी पर बने 4-4 करोड़ के एनीकट के कई टुकड़े होना इस परिभाषा को सच साबित करने को काफी है।
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नए कप्तान का इंतज़ार

दक्षिण बस्तर में भाजपा व कांग्रेस दोनों ही दलों में नए जिलाध्यक्ष की नियुक्ति की सुगबुगाहट अरसे से चल रही है। चर्चा है कि दिसंबर में नए कप्तानों की सूची जारी हो जाएगी। फिलहाल दोनों पार्टियों में शीत निद्रा जैसी स्थिति बनी हुई है। ग़लत कितना भी हो जाए, विपक्ष सुप्त अवस्था से बाहर नहीं आता है। सिर्फ चुनाव के वक्त ही कागज़ी मिसाइलें दागी जाती हैं। मानो रूस-यूक्रेन या ईरान-इराक का युद्ध चल रहा हो। बाकी समय गुट निरपेक्ष आंदोलन और सीज फायर की स्थिति बनी रहती है।

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सारे तावीज़ बांधकर देख लिए…

हफ्ते भर से ज्यादा समय से नगरीय निकायों के प्लेसमेंट कर्मचारी हड़ताल पर हैं। इन कर्मियों ने शुरुआती दिनों में पानी-बिजली बंद करवा दी। फिर भिक्षा मांगने से लेकर देवी-देवताओं को बिठाने का उपक्रम करके भी देख लिया, लेकिन सरकार है कि सुनती ही नहीं। पानी-बिजली की सेवा अस्त-व्यस्त होने के बाद भी सरकार पर कोई फर्क नहीं पड़ा।

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सरपंचों की बेचैनी
सरपंचों का कार्यकाल समाप्त होने को है, लेकिन डीएमएफ शाखा में बाबुओं की लेटलतीफी और फ़ाइल अटकाने की आदत से करोड़ों के भुगतान लंबित पड़े हैं। कुछ लेन-देन की उम्मीद में बैठे बाबू फ़ाइल सरकने की रफ्तार को कंप्यूटर वायरस की तरह धीमी कर रहे हैं। अब अब अपनी निजी पूंजी और उधार में मटेरियल खरीदकर काम करवा चुके सरपंचों की धड़कनें बढ़ रही हैं कि आचार संहिता लगी और अगली बार पद में नहीं लौटे तो भुगतान का क्या होगा। वैसे भी सरपंचों को हेलमेट पहन कर घूमने की आदत पड़ चुकी है। ऐसा ट्रैफिक रूल या चालान की वजह से नहीं, बल्कि पंचायत के कामकाज वाले मटेरियल भुगतान के लेनदारों से मुंह छिपाने की मजबूरी में करना पड़ता है।
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उप कप्तान की कप्तानी
पश्चिम बस्तर में प्रशासन के उप कप्तान की कार्यप्रणाली चर्चा में है। यहां फाइलें नीचे से सरक कर ऊपर तक आती तो हैं, लेकिन ऊपर जाकर चकरघिन्नी बन जाती हैं। छोटे महोदय फाइलों को तब तक घुमाते हैं, जब तक कि काम की मियाद पूरी नहीं हो जाती है।

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बीआरसी का दांव
सुकमा जिले में पदस्थ एक बीआरसी आए दिन आश्रम-स्कूलों के बच्चों को लेकर जिला मुख्यालय पहुंच जाते हैं। इसके बाद बड़े अफसर के सामने समस्याएं गिनवा देते हैं। समस्या का निराकरण हो या न हो, लेकिन संबंधित अधीक्षक लाइन में आ जाते हैं। अपनी धाक जमाने और मांगे मनवाने का यह गज़ब फार्मूला इन दिनों चर्चा में है। वैसे भी बीआरसी के पास पहले की तरह वित्तीय तरलता बची नहीं, तो ऐसा हथकंडे आजमाना स्वाभाविक ही है।

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मरने भी नहीं देते तेरे शहर के लोग

धार्मिक नगरी दंतेवाड़ा में मुक्तिधाम यानी श्मसान घाट का मसला सुलझता नहीं दिख रहा है। पहले श्मसान घाट की मिट्टी तक ठेकेदार खोदकर निकालने में लगे थे, जिससे मृतकों की याद में बने कब्र तक ढहने लगे। कुछ समय बाद शेड की जगह बदल कर दूसरी तरफ कर दी गई। अब फिर इसकी शिफ्टिंग की मांग उठने लगी है। कुल मिलाकर लोगों को प्राण त्यागने के बाद भी चैन से रहने नहीं दिया जा रहा। किसी ने क्या खूब लिखा है-

“जीने भी नहीं देते तेरे शहर के लोग ।
मरने भी नहीं देते तेरे शहर के लोग ।।
कैसे मरे कोई बताए अब तो,
कि ज़हर पीने भी नहीं देते , तेरे शहर के लोग ।। “

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