साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम शब्द बाण भाग-58
24 नवंबर 2024
शैलेन्द्र ठाकुर @ दंतेवाड़ा
किसी अभय को अभयदान का इंतजार
जिला हास्पिटल दंतेवाड़ा में चल रही उठापटक से व्यथित डॉक्टर ने खुद को इस जिम्मेदारी से अलग करने चिट्ठी लिख दी है। बताते हैं कि इस पोस्ट के लिए ‘अभय’दान और यहां लैंडिंग में एयरट्रैफिक कंट्रोल की एनओसी के इंतजार में बैठे डॉक्टर की खुशी का पैमाना छलकने लगा है। पर सवाल यह उठता है कि 12 स्पेशलिस्ट या पीजीएमओ डॉक्टर के पोस्ट वाले इतने बड़े जिला हास्पिटल की कमान किसी पीजी डॉक्टर की जगह प्लेन एमबीबीएस को कैसे सौंपी जा सकती है? सीधे शब्दों में कहें तो यह ठीक ऐसा ही जैसे एमए, एमएससी पास वालों के ऊपर सिर्फ बीए-बीएससी पास को अफसरी करने बिठा दिया जाए। वैसे, भूपेश है तो भरोसा है, वाले दौर में एक ऑलराउंडर ने ऐसा कर दिखाया था, जिसकी करतूतों को मरीज से लेकर हास्पिटल के स्टाफ तक भोग रहे हैं। अब देखना यह है कि प्रदेश के नए ‘पालनहार’ बने विष्णुदेव भी कका के नक्शे-कदम पर चलते हैं या किसी काबिल सीनियर डॉक्टर को यह जिम्मेदारी सौंपते हैं।
————
हमने लगाया, हम ही उजाड़ेंगे..
जिला मुख्यालय की नगर पालिका में इन दिनों अजीब नूरा-कुश्ती चल रही है। पालिका के दो कद्दावर पदाधिकारी आपस में एक-दूसरे को निपटाने में लगे हुए हैं। कभी होर्डिंग वार, तो कभी पोस्टर वार चलता है। भाजपा सरकार का सूत्र वाक्य ‘हमने बनाया, हम ही संवारेंगे’ यहां सिर के बल शीर्षासन करता दिखता है। एक पौधे रोपता है, तो दूसरा जाकर पहले से लगी हुई तार फैंसिंग हटवा देता है। आपसी प्रतिद्वंद्विता और नाक की इस लड़ाई में आवारा मवेशियों की बल्ले-बल्ले हो गई है। उन्हें महंगी-महंगी वनस्पतियां जो खाने को मिल रही हैं। मजेदार बात यह है कि यह लड़ाई भाजपा बनाम कांग्रेस जैसी सिचुएशन की वजह से नहीं है, दोनों एक ही पार्टी के हैं।
ऐसा भी नहीं है कि भाजपा के शीर्ष नेताओं को इस लड़ाई की जानकारी नहीं है। ‘संजय’ वाली ‘दिव्य-दृष्टि’ से सारा हाल पता चल रहा है, इसके बावजूद वे इस ‘महाभारत’ को रोक नहीं पा रहे हैं। वह भी ऐसे समय में जब नगरीय निकाय चुनाव सिर पर हैं। इस सिर फुटौव्वल का क्या अंजाम होता है, यह तो वक्त ही बताएगा। जिला पंचायत में जीती हुई बाजी को हारने और अपना राजमुकुट विपक्ष को सौंपने का पिछला इतिहास दोहराने की ओर भाजपा जाती दिख रही है।
———
गुरूजियों को लॉलीपॉप
शिक्षाकर्मी से शिक्षक घोषित हुए गुरूजियों को दक्षिण बस्तर में प्रमोशन वाला लॉलीपॉप थमा दिया गया है। जिले में 28 शिक्षकों को प्रमोशन मिलना था। इसके एवज में करीब 80 शिक्षकों की वरिष्ठता सूची जारी कर उम्मीद जगा दी गई। हेडमास्टर बनने की आस में ये गुरूजी पटाखे और मिठाई रखकर बैठे हैं, लेकिन बड़ी दीवाली और देव उठनी एकादशी बीतने के बाद भी प्रमोशन आर्डर नहीं आया। अब गुरूजियों को भी यह आशंका होने लगी है कि कहीं यह चुनावी लॉलीपॉप तो नहीं। दरअसल, पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव की आचार संहिता लागू होने में ज्यादा दिन बाकी नहीं रह गया है। ऐसे में अगर आचार संहिता लग गई तो प्रमोशन पेंडिंग होने और बाद में ठंडे बस्ते में डाले जाने की पूरी गुंजाईश रहेगी।
——————
टीएसएस के फेर में उलझा दंतेवाड़ा
यह बात जगजाहिर हो गई है कि टीएसएस के फेर में दंतेवाड़ा का हमेशा नुकसान होता रहा है। टीएसएस बाबा के मोह के चक्कर में दंतेवाड़ा सीट को कका ने निपटाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। टीएस बाबा ने जिला हॉस्पिटल को 200 बेड में अपग्रेड करने की घोषणा की, तो कका ने सरकार में रहते तक ऐसा होने ही नहीं दिया।
अब दूसरे टीएसएस यानी टामन साहब की कल्याणकारी योजना से सिलेक्टेड कुछ ‘हितग्राही’ दंतेवाड़ा में पोस्टेड हैं। आगे क्या होगा ये राम ही जाने । आश्रम-छात्रावास अधीक्षकों से वसूली के मामले में बदनाम अफसर को पनिशमेंट की जगह और बड़ी जिम्मेदारी मिल गई है, यह भी अनोखा न्याय है। सुनते हैं कि नई जगह पर भी इस रिवाज को आगे बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है।
——-
विष्णुदेव ने पहनी वर्दी
अंदर वाले दादाओं से लड़ रहे जवानों का मनोबल बढ़ाने प्रदेश के मुखिया बस्तर में न सिर्फ जवानों के बीच जा पहुंचे, बल्कि फोर्स की वर्दी भी पहनी और कैम्प में रात भी गुजारी। जवानों के साथ खाना खाया, उन्हें भोजन भी परोसा। सीएम की इस सादगी पर जवान फिदा हो गए हैं। वैसे, डबल इंजन सरकार के बड़े मुखिया यानी मोदी जी भी खास अवसरों पर सेना की वर्दी पहनते रहे हैं। ऐसे में उनके रास्ते पर चलने का कोई मौका पार्टी के लोग खोना नहीं चाहते।
————–
दूध का जला बैंक
कहते हैं कि दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है। यही स्थिति दंतेवाड़ा में बैंकों की हो गई है। स्वास्थ्य विभाग और जिला हॉस्पिटल के किसी भी तरह के भुगतान को लेकर बैंक अफसर कुछ ज्यादा ही सजग हो गए हैं। कोई भी चेक पहुंचता है तो दस्तखत की जांच कर कई स्तर पर तस्दीक करने लगते हैं। हस्ताक्षर ओरिजिनल है या नहीं, सील-सिक्का सही है या नहीं, ये सब देखने के बाद ही मामला आगे बढ़ रहा है। दरअसल, चेक पर फर्जी हस्ताक्षर कर सरकारी धन निकालने, मनमाने ढंग से अपने चहेतों और रिश्तेदारों के खाते में राशि ट्रांसफर कर कुछ होनहारों ने बैंक वालों का भरोसा ही डिगा दिया है। अब देखना यह है कि यह सजगता कितने दिनों तक बनी रहती है।
————–
सुकमा जिले में फोर्स को बड़ा ब्रेक थ्रू
सुकमा जिले में फोर्स को क्रिकेट मैच की तरह बड़ा ब्रेक थ्रू मिल गया है। ब्रेक थ्रू यानी लंबे समय से आउट नहीं हो रहे बल्लेबाजों की जोड़ी को तोड़ पाना। इस बार सुकमा की फोर्स ने 10 नक्सलियों को मार गिराने में कामयाबी हासिल की है। न सिर्फ नक्सलियों के शव, बल्कि ऑटोमेटिक वेपन भी बरामद हुए। इससे नई शुरुआत की उम्मीद पुलिस कर रही है। इसके पहले झीरम घाटी , टहाकवाड़ा, ताड़मेटला कांड जैसी बड़ी-बड़ी घटनाओं, भेज्जी, एर्राबोर में दर्जनों जवानों की शहादत ही इस जिले के हिस्से में आती रही है। जवान आपरेशन पर जाते तो थे, पर उनके सकुशल लौटने की गारंटी कम होती थी।
—–
सवाल ज़ीरो टॉलरेन्स का
पूर्व सीएस और आरएसएस के तार पर पत्रकारों के सवालों का जवाब देते सीएम ने जीरो टॉलरेंस का हवाला दिया था, लेकिन हुआ कुछ नहीं। पिकनिक मनाकर चले गए पूर्व सीएस ने सीएम के दावे तक को धता बता दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि किसी को भी बख्शा नहीं जाएगा। उन्होंने उदाहरण भी टीएसएस यानी टामन साहब का दिया, तो इससे लोगों का भरोसा जागा। लेकिन पूर्व सीएस बयान देने समिति के सामने हाजिर तक नहीं हुए। अब कांग्रेसियों को भी ये रिश्ता क्या कहलाता है, कहने का मौका मिल गया है। वैसे, इतने बड़े राष्ट्रवादी संगठन से जुड़ाव और रिश्ते को ढाल की तरह कोई इस्तेमाल करे, तो भला संगठन क्या करे? यह तो वही बात हुई कि कोई नीम की छांव में खड़े होकर अपराध करे और दोष पेड़ पर लगाया जाए।
———