14 अक्टूबर 2024
साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम भाग-52
शैलेन्द्र ठाकुर @ दंतेवाड़ा
फोर्स की नाक के नीचे चोरी, सुनने में यह अजीब लगता है, पर दंतेवाड़ा में यह सच्ची घटना हो गई। चोर ने न सिर्फ आर्म्ड फोर्स की कैंटीन में आराम से चोरी कर पौने 8 लाख की नगदी पार कर दी, बल्कि चोरी की रकम के कुछ पैसों से घर गृहस्थी का सामान भी खरीद लिया। गनीमत यह रही कि पड़ोस के जिले में मुर्गा बाजार में दांव लगाते वक्त पुलिस ने उसे दबोच लिया। मजेदार बात यह रही कि चोर ने पूछताछ के दौरान कैंटीन की कमजोर सुरक्षा व्यवस्था की शिकायत की। उसने शिकायती अंदाज में बताया कि चोरी कर निकलते वक्त वह छत से गिर गया था, जोर की आवाज भी हुई, लेकिन बंदूक साथ में रखे हुए, पर घोड़े बेचकर सो रहे जवानों को इसका पता भी नहीं चला। वैसे इस चोर का ट्रैक रिकार्ड पुलिस के ही माल पर हाथ साफ करने की ही रही है, पहले भी उसने पुलिस लाइन के इर्द-गिर्द ही चोरियां की थी।
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आयुर्वेद विभाग हुआ बीमार
दंतेवाड़ा में आयुष पॉली क्लीनिक के नाम पर मोटी रकम खर्च की गई, लेकिन अपेक्षित परिणाम नहीं मिला। इसमें इलाज की विशेष पद्धति पंच-कर्म जैसी सुविधा भी उपलब्ध है, लेकिन गंभीरता की कमी से यह पॉली क्लीनिक सफेद हाथी ही साबित हो रहा है। इसकी ओपीडी का समय इतना कम है कि जब तक मरीज यहां पहुंचता है, ओपीडी बंद कर कर्मचारी जा चुके होते हैं। वैसे भी आयुर्वेद विभाग में अंदरूनी गांवों में पदस्थ डॉक्टरों की ड्यूटी को लेकर पहले से ही काफी बवाल मचता रहा है। कुपेर और मोखपाल में सरपंच द्वारा अनुपस्थिति चढ़ाए जाने पर ऊपर से कागज चिपकाकर दस्तखत करने का विवाद काफी सुर्खियों में रहा। फिर अरनपुर जैसी जगह में डॉक्टर के मुख्यालय में नहीं रहने और सिर्फ झंडा फहराने पहुंचने का मामला भी कुछ साल पहले उजागर हुआ था। ऐसे कई मामले हैं। यानि लोगों का उपचार करने वाला आयुर्वेद विभाग खुद ही कई तरह की “व्याधियों” से ग्रस्त है। समय रहते आयुर्वेद विभाग का ही “पंच-कर्म” से इलाज हो जाए, तो शायद आयुर्वेद जैसी प्राचीन भारतीय विधा पर लोगों का भरोसा फिर से जाग उठे।
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करोड़पति इंजीनियर
दक्षिण बस्तर में एक करोड़पति सरकारी इंजीनियर चर्चा में है, जिसने कांग्रेस सरकार में भी जमकर ठेकेदारी की, बड़े-बड़े प्रोजेक्ट हाथ में लिए। अब भाजपा सरकार में भी पांचों उंगलियां घी में सनी हुई हैं। चूंकि पैसा बोलता है, तो अफसरों के कान भरने का विशेषाधिकार भी मिला हुआ है। और मौका पाकर मैदानी कर्मचारियों को यहां से वहां ट्रांसफर कर शिफ्ट करने के पीछे भी इसी इंजीनियर का हाथ माना जाता है।
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गरबा पर रार
नवरात्रि पर गरबा इवेंट को लेकर बड़ी अजीब स्थिति बन गई थी। कुछ हिंदुत्व वादी संगठनों ने इस पर आंखें तरेरने की कोशिश जरूर की। आयोजन पर सवाल उठाए, लेकिन सांसद, विधायक ने खुद इस इवेंट के आयोजकों का आतिथ्य स्वीकार कर उनकी कोशिशों पर पानी फेर दिया। वैसे भी नगर में गरबा इवेंट आयोजन की शुरूआत कांग्रेसी सरकार के वक्त हुई थी, तब भी कोई विरोध या आपत्ति जैसी बात नहीं हुई। अब तो सरकार खुद बीजेपी की है, तो पार्टी से प्रत्यक्ष-परोक्ष तौर पर जुड़े संगठनों का विरोध वैसे भी आश्चर्यजनक होता।
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फोर्स का सर्जिकल स्ट्राइक
फोर्स ने अबूझमाड़ में सर्जिकल स्ट्राइक कर अंदर वाले दादाओं को बता दिया कि जब सरकार ठान ले तो कुछ भी असंभव नहीं है, बस इच्छाशक्ति मजबूत होनी चाहिए। पहले मुठभेड़ स्थल पर खून के छींटे के आधार पर नक्सलियों के मारे जाने का दावा किया जाता था। शव और हथियार बरामद करने जैसी स्थिति बनती ही नहीं थी। ऊपर से जवानों की शहादत के आंकड़े बढ़ते जाते थे। पिछले कुछ सालों से फोर्स ने अंदर घुस कर ऑपरेशन करना शुरू किया, तो शव और हथियार दोनों ही बरामद होने लगे। लेकिन इस बार जो कामयाबी फोर्स ने हासिल की है, वह अकल्पनीय है। 31 शव और घातक ऑटोमेटिक हथियारों का जखीरा फोर्स के जवान साथ लेकर लौटे। अब तो खुद नक्सलियों ने 35 साथियों के मारे जाने का खुलासा कर दिया है।
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अंतत: गिर ही गया सी-मार्ट का गेट
कांग्रेस सरकार के समय बने सी-मार्ट का गेट सरकार की चला-चली की बेला में ही झुक गया था। अंतत: अब यह महंगा गेट धराशायी हो गया। विवादों से घिरे इस सी-मार्ट को ढोना सरकार की मजबूरी है। वरना, यह उत्पादक नहीं, बल्कि सिर्फ सामान सप्लाई की एजेंसी बनकर रह गया है।
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नवरात्रि पर ‘उपवास’
शारदीय नवरात्रि पर लाखों पदयात्रियों ने मां दंतेश्वरी के दर्शन किए। भीड़ इतनी ज्यादा हुई कि अफरा-तफरी जैसी स्थिति बन गई। सबसे बड़ी समस्या भोजन की रही। इसे अवसर मानते हुए होटल व्यवसायियों ने चांदी काटी। कमेटी श्रद्धालुओं के लिए अपनी तरफ से दाल-भात का इंतजाम तक नहीं कर सकी। यह पुरानी परंपरा चली आ रही है। असहयोग के चलते भंडारा चलाने वाले भी अपना हाथ खींच लेते हैं। 5 रूपए में दाल-भात सेंटर चलाने वाली भाजपा सरकार दंतेश्वरी माता के दर्शन के बाद ही अपने ज्यादातर अभियानों की शुरूआत करती है। उसके कार्यकाल में श्रद्धालुओं को माता के दरबार में भोजन न मिले, यह बात लोगों को हजम नहीं हो पा रही है। शक्तिपीठ के मेंडका डोबरा मंच पर भी एक अजीब स्थिति बनी, जब कोंडागांव से आए जगराता कलाकारों को भुगतान के लिए स्थानीय लोगों ने चंदा लेकर जनसहयोग से पैसे जुटाए। पहले कभी ऐसी स्थिति निर्मित नहीं हुई थी। यह भी चिंतनीय विषय है कि इतने बड़े आयोजन की कमियों व उपलब्धियों की न तो समीक्षा होती है, न ही खामियों को दुरूस्त करने की चिंता की जाती है।
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बिना नंबर की बाइक
शहर में बिना नंबर की बाइक फर्राटे भरती हुई दौड़ती दिखती हैं, जिन पर लगाम नहीं कसा जा रहा है। ये होनहार मजे से स्टंट करते हैं, डरावने हार्न बजाते और पुलिस को चिढ़ाते हुए आराम से निकल भी जाते हैं। सनद रहे, हाल ही में जिले के बच्चा चोरी की घटना को बाइक सवारों ने ही अंजाम दिया था, जिनका पता लगाने में पुलिस के पसीने छूट गए। इसके बावजूद लोगों की नंबर प्लेट में नंबर लिखवाने को लेकर गंभीरता नहीं दिखती।
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भाजपाईयों की केटेगरी
दक्षिण बस्तर में भाजपाई मुख्यत: 3 कैटेगरी वाले हो गए हैं। एक सांसद का आदमी, दूसरा विधायक का, तीसरा मंत्री का। अपना-अपना काम साधने के लिए इस फार्मूले का इस्तेमाल हो रहा है। इन सबसे बाहर चौथा आदमी असहाय, उपेक्षित खड़ा कलेजे पर पत्थर रखकर अगले चुनाव का इंतजार करने की बात कहता नजर आता है।
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मेडिकल कॉलेज पर ठनी
अंतत: दंतेवाड़ा में मेडिकल कॉलेज का भवन बनाने ई-टेंडर जारी हो ही गया। इसका निर्माण जिला मुख्यालय के चितालंका में होना तय हो गया है। केंद्र सरकार की स्कीम वाले इस मेडिकल कॉलेज की घोषणा मुख्यमंत्री रहते भूपेश बघेल ने कर दी थी, लेकिन जाते-जाते कूटनीतिक चतुराई का इस्तेमाल कर इसे गीदम मेडिकल कॉलेज बता दिया। कान में फुसफुसाकर घोषणा करवाने वाली राजनीति तत्कालीन मुख्यमंत्री नहीं समझ सके। मेडिकल कॉलेज की जगह को लेकर खींच-तान शुरू हो गई थी। वो तो अच्छा हुआ कि लोग समय रहते जाग गए। वैसे भी कृषि विज्ञान केंद्र, कृषि अभियांत्रिकी दफ्तर समेत कुछ अन्य महत्वपूर्ण उपक्रमों के गीदम चले जाने से कटेकल्याण व कुआकोंडा के लोगों को पहले ही काफी नुकसान उठाना पड़ा है।