गूगल बाबा के भरोसे इलाज (शब्द बाण-51)

गूगल बाबा के भरोसे इलाज (शब्द बाण-51)

 

साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम शब्द बाण (भाग-51)

6 अक्टूबर 2024

 

शैलेन्द्र ठाकुर @ दंतेवाड़ा

हिसाब बराबर…

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने मां दंतेश्वरी मंदिर के सामने बने रिवर फ्रंट डेवलपमेंट कार्य का भौतिक रूप से लोकार्पण कर दिया। इसके पहले भूपेश कका ने सीएम रहते ही विधानसभा चुनाव से पहले हड़बड़ी में इसका उद्धाटन किया था।  दाेनों में फर्क इतना रहा कि कका ने वर्चुअल माध्यम से रायपुर में बैठे-बैठे ही लोकार्पण किया, तो अब सीएम विष्णुदेव ने यहां भौतिक रूप से सशरीर उपस्थित होकर इसे जनता को समर्पित किया। यानि एक ही काम का दो-दो बार लोकार्पण। वह भी एक बार अपूर्ण व दूसरी बार पूर्णता पर।

वैसे, इस लोकार्पण के जरिए कांग्रेस से भाजपा ने अपना पुराना हिसाब बराबर कर दिया। दरअसल, अबूझमाड़ को भेदने छिंदनार में इंद्रावती नदी के पाहुरनार घाट पर पुल निर्माण की शुरूआत डॉ रमन सरकार ने की थी, और काम पूरा होने पर उद्घाटन कर सारा क्रेडिट भूपेश कका ने ले लिया था। क्रेडिट लेने के साथ ही उपेक्षा की होड़ भी मची हुई है। भाजपा कार्यकाल वाले मुख्यमंत्री डीएवी मॉडल स्कूलों को कांग्रेस सरकार ने उपेक्षित कर हाशिए पर डाल दिया था, तो अब भूपेश सरकार के समय वाले आत्मानंद स्कूलों और गांवों में बने गौठानों के साथ यही सलूक होने लगा है। हिसाब बराबरी की इस चक्की में आम जनता पिस रही है।

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इकोनॉमी बूस्टर पेय की ताकत

शराब को भले ही दुनिया खराब कहती हो, पर सरकार इसे अमृततुल्य पेय की तरह प्रोजेक्ट करती है। इसी शराब ने कोरोना काल जैसे विपरीत हालात में भी सरकार की अर्थव्यवस्था को संभाले रखा था। तभी तो भले ही अनाज की दुकानें बंद रहीं, लेकिन दारू यानी शराब की दुकान लॉक डाउन में खुली रहीं। इसे ‘इकोनॉमी बूस्टर’ पेय का दर्जा मिला था और इसका उपयोग करने वाले सुरा प्रेमियों को ‘इकोनॉमी वारियर्स’ का तमगा। यह तो होना ही था। आखिर इतने खतरनाक कोरोना वायरस के खतरे के बीच भी लोग जान की परवाह किए बिना मास्क लगाकर लाइन में लगे जो दिखते थे। फिर सरकार से उनकी पीड़ा देखी नहीं गई, और ऑनलाइन बुकिंग कर घर बैठे दारू मंगवाने का इंतजाम भी भूपु सरकार ने कर दिया था। इस इकोनॉमी बूस्टर तरल पदार्थ की ताकत का एक और उदाहरण देखने को मिला, जब दंतेवाड़ा के टेकनार औद्योगिक क्षेत्र में संचालित सरकारी दारू दुकान को हटाने की अर्जी राष्ट्रीय अजजा आयोग तक पहुंची। आयोग अध्यक्ष खुद ग्रामसभा का प्रस्ताव लेकर गए, लेकिन सरकारी दारू दुकान अपनी जगह से टस से मस नहीं हुई। कालांतर में सरकार बदली। दारू दुकान तो नहीं हटी, अब इस दुकान के ठीक पड़ोस में एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय का संचालन भी शुरू हो गया है। आखिर इकोनॉमी को बूस्ट करने की बुनियादी शिक्षा नई पीढ़ी को कैसे मिलेगी?

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गूगल बाबा के भरोसे इलाज

दंतेवाड़ा के सबसे बड़े जिला हास्पिटल में अनुभवी डॉक्टरों की कमी का असर साफ दिखने लगा है। पुराने डॉक्टरों को दरकिनार कर नए-नवेले डॉक्टरों को विभिन्न जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं। ओपीडी से लेकर आपातकालीन तक ऐसे ही डॉक्टर बैठे मिलते हैं, जो हाल ही में पढ़ाई पूरी कर फील्ड में उतरे हैं। ये न तो मरीज का नब्ज खुद देखना चाहते हैं, न ही ब्लडप्रेशर मापना। ज्यादातर समय मोबाइल पर आंख गड़ाए ये डॉक्टर मरीजों का मर्ज पूछने के बाद गूगल पर सर्च कर पर्ची पर प्रिस्क्रिप्शन लिखते हैं। अब गूगल बाबा या एआई यानि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से पूछ कर किए गए इलाज पर मरीज कितना भरोसा करे।

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ढाई-ढाई का हिसाब

शनिदेव की साढ़े साती व अढ़ैया से लोग काफी सतर्क रहते हैं। अढ़ैया यानि ढाई का अंक । सनद रहे पिछले सीएम भूपेश कका के समय ढाई-ढाई साल वाले इसी अढ़ैया का असर पूरे कार्यकाल में दिखा। बाबा-कका के बीच ढाई-ढाई साल की पारी का समझौता फेल तो हुआ ही, पांच दिन वाले क्रिकेट टेस्ट मैच की तरह 5 साल में ही कका को पारी घोषित करना पड़ा। अब बैटिंग की पारी भाजपा की है। इसी तरह दंतेवाड़ा वाले ‘महोदय’ भी शनिदेव की इसी अढ़ैया का शिकार हो गए।  अब लोग वो माइल स्टोन ढूंढ रहे हैं, जहां से शुरू होकर ढाई किमी वाला कॉरीडोर बनना था। खैर, कॉरीडोर दिखने में तो बेहद खूबसूरत है,  शाम को इसकी खूबसूरती बढ़ जाती है,  मटेरियल की गुणवत्ता के हिसाब से अगर ढाई साल तक भी सही सलामत रह गया, तो महोदय को इस अढ़ैया के प्रभाव से मुक्ति मिल जाएगी।


जनपद सीईओ बनाम सरपंच

गीदम जनपद सीईओ के खिलाफ सरपंचों व जनप्रतिनिधियों ने मोर्चा खोल रखा है। जिले के अन्य जनपदों में भी एप्रोच के बल पर कुर्सी से चिपके सीईओ की कार्यप्रणाली को लेकर नाराजगी तो है, लेकिन गीदम के सरपंचों जितना साहस इन जनपदों में नहीं जुटाया जा रहा।

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क्राइटेरिया में उलझे भाजपाई

मुख्यमंत्री प्रवास पर फिर कुछ भाजपाईयों में नाराजगी दिखी। दंतेवाड़ा में पहले मां दंतेश्वरी कॉरीडोर उद्घाटन स्थल पर, फिर उसके बाद सर्किट हाऊस में एंट्री नहीं मिली। गिने चुने और तय क्राइटेरिया वाले लोग ही मुख्यमंत्री से मिल सके। बाकी लोगों को निराशा हाथ लगी। उन्हें भी अपना सुख-दु:ख सीएम के साथ बांटना था। कैडरबेस पार्टी कही जाने वाली भाजपा में अनुशासन को खास महत्व दी जाती है। वैसे, सर्किट हाऊस में मीडिया के लिए भी नो-एंट्री थी। इसकी एक ठोस वजह भी है। अक्सर गिले-शिकवे दूर करने के चक्कर में हुई बातें मीडिया के जरिए बाहर आ जाती हैं, तो काफी बदनामी होती है।

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चलते-चलते..

धान खरीदी का नया सीजन शुरू होने वाला है। लेकिन दंतेवाड़ा में खाद्य और विपणन के अधिकारी अब भी यहीं जमे हुए हैं। इन्हीं विभागों के भरोसे धान खरीदी होती है।  कांग्रेस सरकार में काफी विश्वस्त रहे इन अफसरों पर नई सरकार ने भी अपना भरोसा जताया है। आम तौर पर सरकार बदलने पर अफसर भी बदल दिए जाते रहे हैं, पर इस बार यह परंपरा टूटती दिख रही है।

विशेष आभार…

साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम शब्द-बाण का यह 51 वां एपिसोड आप सभी सुधि पाठकों को समर्पित है। कॉलम की निरंतरता का श्रेय आप सभी के स्नेह व समर्थन को जाता है। भविष्य में भी आपका स्नेह, समर्थन यूं ही बना रहे, इसकी कामना के साथ…

सदैव आपका ही…

शैलेन्द्र ठाकुर, दंतेवाड़ा

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