नाना चाय और मंत्रियों का आश्वासन (शब्द बाण-50)

नाना चाय और मंत्रियों का आश्वासन (शब्द बाण-50)

 

साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम शब्द बाण ( भाग-50)

शैलेन्द्र ठाकुर @ दंतेवाड़ा (29 सितंबर 2024)

रायपुर के बड़े मार्केट की ‘नाना’ चाय काफी फेमस है। यहां व्यापारी बड़े व्यवहार कुशल होते हैं। अपनी दुकान पर पधारे ग्राहक को खुश करने व्यापारी चाय का आर्डर देने जोर से आवाज लगाता है कि फलाना चाय लाना। असली खेल तो यहीं होता है। चाय शब्द के बाद ‘लाना’ कहा ताे चाय जरूर इठलाती हुई पहुंच जाती है। अगर लाना की जगह अस्पष्ट  ‘नाना’ हुआ, तो चाय कभी आती ही नहीं है। आर्डर में ना सायलेंट होता है। इस बीच ग्राहक ‘चियास’ यानि चाय की चाह में कुछ देर रूकता तो है, लेकिन इंतजार लंबा खिंचता देखकर ससम्मान विदाई ले लेता है। इससे दो फायदे होते हैं, एक तो ग्राहक को भी महसूस होता है कि दुकानदार आवभगत में कोई कमी नहीं कर रहा है, दूसरी बात, दुकानदार को भी चाय के खर्च पर अपनी अंटी ढीली नहीं करनी पड़ती है।

ठीक यही फार्मूला छत्तीसगढ़ के कुछ मंत्रियों ने अपना रखा है। अपने ‘कट्टर’ व ‘खासम-खास’ समर्थकों की शिकायत या मांग पर कुछ मंत्री उनके सामने ही संबंधित अफसर को फाेन मिलाकर काम करने का निर्देश दे देते हैं। इससे मंत्रियों का इंप्रेशन बना रहता है। बाद में काम होता ही नहीं है। समझदार लोग तो समझ जाते हैं कि उन्हें ‘नाना’ चाय पिलाई गई है, जो नहीं जानते, वो यह सोचकर अफसोस जताते रह जाते हैं कि यहां अफसर मंत्रियों की भी नहीं सुन रहे हैं।

————

सड़क के रास्ते विकास

पीडब्ल्यूडी मिनिस्टर ने बस्तर संभाग मुख्यालय की बैठक में कह तो दिया है कि सड़कों के रास्ते विकास आएगा। लेकिन जिस तरह दंतेवाड़ा- बैलाडीला सड़क की हालत है, उसे देखकर ऐसा नहीं लगता। इसे विकास से पूर्व की प्रसव पीड़ा बताने वाले अब गायब हैं। उन्हें भी समझ में आ गया है कि ऐसे उबड़-खाबड़ रास्ते से भविष्य में गर्भस्थ विकास आने की कोशिश भी करे, तो रास्ते में ही प्री मेच्योर डिलवरी हो जाएगी। सड़कों के निर्माण की जो रफ्तार है, उससे तो लगता है कि कहीं भूमिपूजन भाजपा सरकार में और लोकार्पण अगली कांग्रेस सरकार में न हो जाए। 5 साल में ही भुपू सरकार से उकता कर फर्श पर बिठाने वाली जनता के नए ट्रेंड में ये नामुमकिन भी नहीं।

——-

एक म्यान में दो तलवारें

क्षिण बस्तर में ओबीसी मोर्चा के दो-दो जिला प्रभारी बनाए गए हैं। यानि मोर्चा के एक म्यान में दो तलवारें। इस खींचतान में दोनों तलवारें ही नहीं चमक पा रही हैं।  दरअसल, पहले एक लिस्ट जारी हुई।  इसके पहले कि नवनियुक्त प्रभारी काम शुरू कर पाते, दूसरे ने अपनी पहुंच का फायदा उठाते सूची में संशोधन करवाकर अपनी नियुक्ति करवा ली। बात यहीं बिगड़ गई। अब इगो के चक्कर में कोई भी दूसरे जिले में काम नहीं करना चाहते। अब पंचायत और निकाय चुनाव भी सिर पर आ चुके हैं। देखना यह है कि इस खींचतान में मोर्चा के भीतर ही खंदक की लड़ाई न शुरू हो जाए।

——-

मुर्गा लड़ाई का मामला

धार्मिक नगरी दंतेवाड़ा के हृदय स्थल में मुर्गा लड़ाई का बड़ा आयोजन होने वाला ही था कि आयोजकों के मंसूबे पर घड़ों पानी फिर गया। सरकारी सहयाेग से चल रहे एक संगठन ने किसानों के सम्मेलन के नाम पर हाई स्कूल मैदान पर यह आयोजन करने की पूरी तैयारी कर ली थी। परेड और विभिन्न आयोजनों के नाम पर मैदान का सीना साल भर छलनी होता ही रहता है। रही-सही कसर मुर्गा लड़ाई से पूरी होने वाली थी। लेकिन इससे पहले कि मुर्गा लड़ाई पर लाखों के दांव लगते, स्थानीय विधायक ने इसे जुआ का स्वरूप बताते आपत्ति जताई।  इसके बाद हाई स्कूल मैदान में मुर्गा लड़ाई स्थगित हुई।

——

हुडको बना भाजपा के गले की फांस

दंतेवाड़ा में हुडको कॉलोनी का मामला भाजपा के गले की फांस बनता जा रहा है। असली गिद्ध भले ही दर्द निवारक दवा ‘डायक्लोविन’ के असर से विलुप्त प्राय हो गए हैं, पर कुछ लोगों की ‘गिद्ध-दृष्टि’ इस कॉलोनी पर शुरू से ही बनी हुई है। कॉलोनी वासियों की मांग पर पालिका में पार्षदों में एक राय बन चुकी थी और मामला सकारात्मक रहा, लेकिन कद्दावर भाजपाई पार्षद हमेशा ही इसमें रोड़े अटकाते आ रहे हैं। प्रभारी मंत्री रहते लखमा दादी ने भी कॉलोनीवासियों के हक में फैसला लेने का निर्देश सीएमओ काे दिया था, लेकिन भाजपा के कब्जे में होने की वजह से सीएमओ ऐसा नहीं कर सके।

इस बार कॉलोनीवासियों ने अचानक ही चक्का-जाम और धरना प्रदर्शन का मन बना लिया। प्रशासन की समझाईश पर चक्काजाम तो टल गया, लेकिन कॉलोनी की महिलाओं ने शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन कर अपनी मांग रख दी। मांग पूरी नहीं होने पर निकाय चुनाव में वोट नहीं डालने का ऐलान तक कर दिया है। अब देखना यह है कि भाजपाई खेमे से इसका क्या तोड़ निकाला जाता है। पिछले चुनाव में स्टांप पेपर पर लिखकर शपथपत्र बांटने और बाद में उससे मुकर जाने को लेकर पहले ही पार्टी की काफी बदनामी हाे चुकी है।

—————-

कश्मीर समस्या सुलझी पर डेगलरास सड़क नहीं बनी

संभव समझी जाने वाली कश्मीर समस्या भी आधी सुलझ गई है, लेकिन दंतेवाड़ा के साप्ताहिक बाजार के सामने वाली अधूरी पीएमजीएसवाय सड़क का कोई समाधान निकलता नहीं दिख रहा है। कतियाररास से डेगलरास तक की इस सड़क पर न तो नक्सली चुनौती है, न ही फंड की कोई कमी। फिर भी इसे बनाया नहीं जा सका है। काम शुरू होने के बाद 2 ठेकेदार और 8-10 कलेक्टर भी बदल गए, नहीं बदली तो सिर्फ सड़क और ग्रामीणों की किस्मत। देखना यह है कि दीया तले अंधेरा वाली यह स्थिति कब तक बनी रहती है।

————–

कलेक्टर को बना दिया याचक

नलाइन फ्रॉड करने वालों ने इस बार पड़ोसी जिले के कलेक्टर को भी नहीं बख्शा। कलेक्टर के नाम पर फर्जी वाट्सअप अकाउंट बनाकर लोगों से रूपए मांगने लगा। लोग हैरान हो गए कि इतना बड़ा अधिकारी भी याचक बनकर उनसे आर्थिक मदद मांग रहा है। वो तो गनीमत रही कि समय रहते इस फर्जीवाड़े का पता चल गया और लोगों को अलर्ट कर दिया गया। वैसे भी, फ्रॉड करने वाले लोग बड़े-बड़े आईपीएस अफसरों के नाम पर सोशल मीडिया में फेक आईडी बनाने का मौका तक नहीं चूकते है। इसके बाद मैसेंजर पर ऑनलाइन भीख मांगने का सिलसिला शुरू हाे जाता है। जब पुलिस अफसरों का खौफ ही जालसाजों पर नहीं रहा, तो फिर दूसरों की क्या बिसात।

——

बिजली विभाग का फोन
दंतेवाड़ा में बिजली विभाग के कंट्रोल रूम का फोन नंबर फैंटम के किस्से की तरह रहस्यमय है। यहां पर लगा लैंड लाइन नंबर अक्सर लगता नहीं है। अगर लग भी गया, तो फोन उठाए जाने की गारंटी नहीं होती। किसी इलाके की लाइन में कोई बड़ी फॉल्ट हुई तो रिसीवर क्रेडिल से उठाकर नीचे रख दिया जाता है, या फिर रिंगर की वॉल्यूम को म्यूट कर कर्मचारी शांत बैठ जाते हैं।

——-

न धूप से राहत, न बारिश से

मां दंतेश्वरी शक्तिपीठ परिसर में जयस्तंभ चौक के सामने सौंदर्यीकरण के नाम पर करोड़ों रूपए से जो स्ट्रक्चर तैयार हुआ है, वह भले ही दिखने में खूबसूरत हो, पर यहां लगा हुआ मंडपनुमा शेड न तो श्रद्धालुओं को बारिश में भीगने से बचा पा रहा है, न ही तेज धूप से। बारिश में यह तालाब की तरह बन जाता है। बारिश थमने के बाद पानी उलीचने के लिए अलग से कर्मचारी लगाने की जरूरत पड़ रही है। ज्यादा ऊंचाई की वजह से किनारों से तेज धूप पड़ती है।  अब स्थिति यह है कि इस स्ट्रक्चर को ही मौसम की मार से बचाने अलग से कवर लगाने की जरूरत पड़ सकती है।

राहत इंदौरी साहब कहते हैं-

न सुकून नसीब है, न राहत जिंदगी में

भटक रहा हूं अंधेरे में , तन्हाई के लिए”

—————–

चलते-चलते..

क्तिपीठ वाले हनुमानजी के दक्षिणमुखी स्वरूप में साकार होते ही ‘महोदय’ और चौकड़ी की यहां से विदाई हो गई। वैसे भी मान्यता है कि दक्षिणमुखी हनुमानजी का विशेष महत्व है, जो प्राकृतिक आपदा और बुरी शक्तियों से बचाते हैं।

——————-

 

विशेष आभार…

साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम  ‘शब्द-बाण’ का यह 50 वां एपिसोड आप सभी सुधि पाठकों को समर्पित है। कॉलम की निरंतरता का श्रेय आप को जाता है। भविष्य में भी आपका स्नेह, समर्थन यूं ही बना रहे, इसकी कामना के साथ…

सदैव आपका ही…

शैलेन्द्र ठाकुर, दंतेवाड़ा

————————–

 

2 thoughts on“नाना चाय और मंत्रियों का आश्वासन (शब्द बाण-50)

  1. शैलेन्द्र भाई
    भाषा सैली में अच्छी पैठ जमा ली गई है
    शानदार
    सात समंदर पार का सफर समय आने पर बनेगा
    बहुत अच्छा है

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

खुद की काबिलियत को पहचानना ही सफलता की पहली सीढ़ी – मीणा

नवोदय जीवन किसी तपस्या से कम नहीं नवोदय विद्यालय बारसूर के बच्चों ने दी शानदार प्रस्तुति विद्यालय का पैनल इंस्पेक्शन करने पहुंची टीम ड्रिल, सांस्कृतिक...