लोगों के तोते उड़ाने की तैयारी… (शब्द बाण- 45)

लोगों के तोते उड़ाने की तैयारी…  (शब्द बाण- 45)

 

साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम ‘शब्द बाण’ (भाग-45)

25 अगस्त 2024

शैलेन्द्र ठाकुर @ दंतेवाड़ा

अब वन विभाग ने भी लोगों के तोते उड़ाने की तैयारी कर ली है। दरअसल, रस्सी का सांप बनाने का फार्मूला वन विभाग के पास भी आ गया है। पहले यह कला सिर्फ पुलिस के पास थी। वन विभाग को अपने पुराने कानून की याद आई तो उसे सख्ती से लागू करने का नया फरमान बड़े अफसर ने जारी करवा दिया है। जिसमें कहा गया है कि सप्ताह भर के भीतर अपने घर के तोते आज़ाद नही किए, तो जेल की हवा खानी पड़ेगी। इससे बस्तर के बहुचर्चित गांजा प्लांटिंग प्रकरण को देखते हुए वन विभाग के अफसरों की बांछें खिल आई हैं। यानी किसी को जेल भिजवाना हो तो उसके पास तोते का एक पिंजरा रखवा दो। वैसे ये फार्मूला यानी मंत्र नया नहीं है, पर विभाग के साधकों ने अपनी साधना व तपस्या से इसे जागृत कर लिया है। वो दिन दूर नहीं, जब वन कर्मी घर-घर झांकते फिरते नजर आएं। विभाग के लोग नवजात तोते को बाजार में बिकते हुए तो रोक नहीं पाते हैं।
———
रैली पर लगी रही निगाहें
आरक्षण यथावत रखने की मांग को लेकर एसटी-एससी वर्ग की रैली व प्रदर्शन दंतेवाड़ा में शांतिपूर्वक निपटने से प्रशासन व पुलिस ने राहत की सांस ली। बलौदाबाजार के पिछले अग्निकांड से सबक लेते हुए पुलिस ने तगड़ी तैयारी कर रखी थी। पल-पल की अपडेट ली जा रही थी। वैसे दंतेवाड़ा की शांतिप्रिय जनता इस तरह से बेकाबू नहीं होती है। एससी-एसटी समुदाय की इस रैली से ज्यादातर भाजपाई नेताओं ने दूरी बनाए रखी थी। केंद्र व राज्य में उनकी ही सरकार काबिज होने से उनके सामने धर्मसंकट की स्थिति थी। लेकिन कांग्रेस की तरफ से भी गिनती के नेता ही दिखाई पड़े। इसके बावजूद समाज ने दमदारी से विरोध प्रदर्शन कर अपनी एकजुटता दिखाई।
——–
सरपंचों का ट्रांसफर !!
दंतेवाड़ा जिले में स्वास्थ्य विभाग में दो सरपंच वाली स्थिति की चर्चा आम थी। जिला हॉस्पिटल के सिविल सर्जन की सीएमएचओ से ज्यादा पॉवरफुल होने और अनावश्यक दखलंदाजी के किस्से बाहर सुनाई पड़ रहे थे। दरअसल, सिविल सर्जन का दायरा हॉस्पिटल तक ही सीमित होता है और सीएमएचओ का दायरा जिले भर में विस्तृत। लेकिन दोनों पद के अधिकारों के बीच की ‘लक्ष्मण रेखा’ को लगातार नजरअंदाज करने और ‘फंड” के ‘हरण’ का सिलसिला जारी था। यह सीएमएचओ के सीधेपन का ही नतीजा था। वैसे भी कहा गया है कि जब तार में लंबे समय तक करेंट न हो तो लोग उस पर कपड़े सुखाने लगते हैं। यह मामला भी वैसा ही था। फिर अचानक सिविल सर्जन की मुराद पूरी हो गई और अपनी पसंद के जिले में पसंदीदा पोस्ट यानी सीएमएचओ बनाने का फरमान जारी हो गया।

———–
बगैर मैच खेले ही बाहर हुए खिलाड़ी

दंतेवाड़ा जिले की डीएमएफ शासी परिषद में 4 खिलाड़ियों को मैच खेले बगैर ही टीम से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। प्लेइंग इलेवन में शामिल होने का मौका तक नहीं मिला। चर्चा है कि उन्हें डीएमएफ शासी परिषद की पहली बैठक में जानबूझकर शामिल नहीं होने का खामियाजा भुगतना पड़ा। उनकी जगह टीम में नए लोगों को मौका मिला है। अब देखना यह है कि इसके पीछे की मंशा क्या है? कुछ लोग इसे सत्ता पक्ष में शीतयुद्ध का परिणाम बता रहे हैं, तो कोई पिछली कांग्रेस सरकार का इतिहास दोहराए जाने की बात कह रहा है। वजह चाहे जो भी हो, बदलाव तो हो चुका। किसी ने कहा भी है-

कुछ तो मजबूरियां रही होंगी,
वरना, कोई भी यूं बेवफा नहीं होता।

खैर, आम जन को इससे क्या लेना-देना? बस विकास की रफ्तार सुस्त नहीं पड़नी चाहिए।
———

वेटनरी और शिक्षा विभाग में शांति

पिछली सरकार में वेटनरी और शिक्षा विभाग में गृहयुध्द जैसे हालात थे।
सबसे बड़े ओहदे और कुर्सी को लेकर खींचतान मची हुई थी। वेटनरी विभाग के चेम्बर में ताला जड़ने तक की नौबत आई। शिक्षा विभाग में एक समय 2-2 डीईओ यहां पदस्थ हो गए थे। किसे प्रभार मिला है, यह समझने में स्टाफ भी कंफ्यूज थे।
अब सरकार बदलने के बाद दोनों विभाग में शांति छाई हुई है। लेकिन विभाग के लोग आशंकित हैं कि जरूरत से ज्यादा शांति कहीं आने वाले किसी तूफान का संकेत तो नहीं?
——–
पानी ने खुद बना लिया रास्ता

कहते हैं कि कुदरत और पानी अपना रास्ता खुद बना लेते हैं। ठीक ऐसे ही दंतेवाड़ा के बहुचर्चित चितालंका तालाब में हुआ है। जिस तालाब को करोड़ों रुपए का सौंदर्यीकरण कार्य करवाने के लिए पानी निकालकर सुखाया गया और 2 मानसून काल में भी न तो काम पूरा किया गया और न ही पानी भरा जा रहा था, उस तालाब में अब पानी लबालब भर गया है। पानी ने खुद अपना रास्ता बना लिया और सड़क व रिटेनिंग वॉल तोड़ते हुए तालाब में प्रवेश कर लिया। इससे आस-पास आधा किमी के दायरे में दर्जनों बोरवेल का भूजल स्तर फिर से सुधर गया है।

———–
शिक्षकों की बढ़ी टेंशन
नई सरकार ने अब अपना रंग दिखाना शुरू किया तो शिक्षकों के होश फाख्ता होने लगे हैं। युक्तियुक्तकरण के नाम पर अतिशेष हो जाने और जिले से बाहर फेंके जाने की आशंका से ज्यादातर शिक्षकों की नींद-चैन उड़ी हुई है। इसके पहले भूपेश सरकार ने प्रमोशन के नाम पर दूसरे जिलों का रास्ता दिखाया था, जिसे निरस्त व संशोधित करवाने में शिक्षकों को मोटी रकम चढ़ाना पड़ा। तगड़ा खर्च कर वापसी भी हुई तो फिर से मूल पोस्टिंग वाली जगह में जाने का फरमान जारी हो गया। अब शिक्षकों को यह बात समझ में आने लगी है कि सरकार बदलती है, तो सिर्फ चेहरा ही बदलता है, मूल शरीर और आत्मा वही रहती है। नीति निर्धारण करने वाले अफसर नहीं बदलते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

खुद की काबिलियत को पहचानना ही सफलता की पहली सीढ़ी – मीणा

नवोदय जीवन किसी तपस्या से कम नहीं नवोदय विद्यालय बारसूर के बच्चों ने दी शानदार प्रस्तुति विद्यालय का पैनल इंस्पेक्शन करने पहुंची टीम ड्रिल, सांस्कृतिक...