(14 जुलाई 2024)
साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम शब्द बाण भाग-39
शैलेन्द्र ठाकुर @ दंतेवाड़ा
महोदय तो दंतेवाड़ा से रिलीव होकर यहां की जिम्मेदारियों से मुक्त हो गए, लेकिन मुक्तिधाम उजाड़कर चले गए। सांसारिक भव बंधन से राहत के लिए शरीर छोड़ने वाली आत्माएं अब अपनी मुक्ति के लिए तरस रही हैं। पार्थिव देह के अंतिम संस्कार के लिए परिजनों को काफी मशक्कत करनी पड़ रही है।
दरअसल, दंतेवाड़ा में मुक्तिधाम को सौंदर्यीकरण के नाम पर उजाड़ा जा चुका है। दाह संस्कार वाला शेड निकाला गया, तो दूसरा शेड अब तक नहीं बना। बारिश में भीगते-भीगते परिजन मृतकों का दाह संस्कार करने को मजबूर हैं। यहां सूखी जलाऊ लकड़ी तक नसीब नहीं होती। पहले कहा गया कि मुक्तिधाम को दूसरी जगह शिफ्ट किया जाएगा, अब बताते हैं कि पहले वाली जगह पर ही मुक्तिधाम बना रहेगा, लेकिन कब तक बनेगा, इसकी कोई टाईम लाइन तय नहीं है। महोदय ने निर्माण के लिए कार्य एजेंसी का जिम्मा पीडब्ल्यूडी या आरईएस जैसे तकनीकी विभागों की बजाय गैर तकनीकी ट्राइबल विभाग को सौंपा था, जिसकी कार्यप्रणाली हमेशा ही विवादित रही है।
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सिपहसालारों पर आफत
कहते हैं कि घूरे के भी दिन फिरते हैं। कभी महोदय की ‘स्माल एक्शन’ टीम में शामिल रहकर कहर बरपाने वाले कुछ सिपहसालारों के बुरे दिन अब शुरू हो गए हैं। एक पर साहब के बॉडीगार्ड ने मुक्के बरसाए, ऐसा आरोप लग रहा है, तो दूसरे के खिलाफ सरपंचों ने मोर्चा खोलने की तैयारी की है। पीड़ा झेल चुके विरोधी अब दिन बदलने से खुश हैं। वैसे भी दंतेवाड़ा जिला सिर्फ नक्सली हिंसा के लिए नहीं, बल्कि लात कांड और अब घूंसा कांड के लिए चर्चित होने लगा है। कुछ साल पहले बाजार में सब्जी की टोकरी पर लात मारने को लेकर विवाद खूब गहराया था।
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आत्मानंद स्कूलों का हाल
पूरे छत्तीसगढ़ में जब हरेक ब्लॉक में एक-एक अंग्रेजी मीडियम स्वामी आत्मानंद स्कूल खोलने और जिले में एक-एक हिंदी मीडियम हाई स्कूल को आत्मानंद आदर्श हिंदी मीडियम स्कूल में कन्वर्ट करने का ऐलान हुआ, तो दंतेवाड़ा ही राज्य का इकलौता जिला था, जहां शत-प्रतिशत हाई व हायर सेकेंड्री स्कूलों को स्वामी आत्मानंद स्कूलों में बदलने का जिम्मा महोदय ने ले लिया था। ऐसे लगने लगा जैसे सम्पूर्ण शिक्षण व्यवस्था का कायाकल्प हो जाएगा। इंग्लिश मीडियम में तो नए सिरे से सेटअप-शिक्षक की व्यवस्था हुई, लेकिन पहले से ठीक-ठाक चल रहे हिंदी मीडियम स्कूलों को बड़ी सफाई से छला गया। इनमें पुराने स्कूल की आत्मा ने तो परकाया प्रवेश कर लिया, लेकिन शरीर यानी स्टॉफ और संसाधन दोनों अब भी वही हैं। सिर्फ बच्चों का यूनिफार्म बदला, स्टाफ की नियुक्ति की जगह प्रतिनियुक्ति हो गई और करोड़ों का वारा-न्यारा हो गया। हरेक स्कूलों में नए-नए गेट और मरम्मत के नाम पर लाखों रूपए की हेराफेरी हुई। वैसे तो, पुराने जमाने मे परकाया प्रवेश वाली साधना यानी एक आत्मा को दूसरे शरीर मे प्रवेश कराने वाली साधना के चर्चे बहुत थे। यह फार्मूला कई फिल्मों में भी देखा गया। पर यहां ये साधना सफल नहीं हो सकी। खैर, लोगों की तकलीफें तो कम होने का नाम ही नहीं ले रहीं। किसी ने क्या खूब कहा है-
दिल में अगर दर्द हो तो दुआ करे कोई।
ज़िंदगी ही जब मर्ज हो तो क्या करे कोई।।
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लाल किला बनते-बनते रह गया कलेक्टर दफ्तर
राज्य में सरकारी भवनों के लिए कोई एक रंग निर्धारित नहीं है, लिहाजा सभी जिलों में अफसर बदलते ही अपनी-अपनी पसंद के रंग से शासकीय भवनों को रंगवा दिया जाता है। दंतेवाड़ा जिले में दो साल पहले सरकारी दफ्तरों और भवनों को गेरू के रंग से पोतने और इसी रंग वाले पेंट से रंगने का सिलसिला शुरू हुआ था। इसमें गोबर पेंट खपाने का टारगेट भी पूरा हो रहा था, और एसीपी वाले महंगे गेट बनवाने का भी। स्कूलों, दफ्तरों के गेट तक गेरू वाले कत्थे रंग से रंगे जा चुके थे। गनीमत यह रही कि यह रंग दंतेवाड़ा के मेंडका डोबरा तक पहुंचा ही था और कलेक्ट्रेट परिसर पहुंचने से पहले साहब का तबादला हो गया। इसके बाद कलेक्ट्रेट की सफेदी की चमक बरकरार रह गई।
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अपराधियों का को ऑर्डिनेशन
आपने इंटर स्टेेट और इंटर डिस्ट्रिक्ट को-आर्डिनेशन जैसे शब्द सुने होंगे, जो नक्सल विरोधी अभियानों के लिए सरकार व पुलिस इस्तेमाल करती है, लेकिन आपकाे यह जानकर हैरानी होगी, कि चोरी और अन्य अपराधों में संलिप्त लोगों ने भी यह रणनीति अपना ली है। पुलिस सूत्रों के मुताबिक चोरी की घटनाओं को अंजाम देने वालों में यह गजब का को-ऑर्डिनेशन दिखने लगा है। चोरी के माल को अपने पास नहीं रखते, बल्कि तत्काल दूसरे जिले के चोरों के हवाले कर देते हैं, ताकि पुलिस आकर हाथ मलती रह जाए।
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गाय गरू का मुद्दा
मुख्यमंत्री बनते ही भूपेश कका ने भाजपा से गाय-गरू का मुद्दा लपक लिया और साफ्ट हिंदुत्व के जरिए भाजपाई वोट बैंक में सेंध लगाने की पूरी तैयारी कर ली। देखते ही देखते नरवा-गरवा-घुरवा-बाड़ी वाला कांसेप्ट लागू कर दिया। गांवों में गोठान बनाए। गोबर खरीदी, गोबर पेंट से लिपाई-पुताई तक चालू करवा दी। हालांकि कका चुनावी समय में गौमाता की सेवा से विमुख हो गए, नतीजतन चुनावी वैतरणी पार नहीं कर सके। कालांतर में सरकार बदली, तो अब गौठान का कांसेप्ट विष्णुदेव सरकार को न तो उगलते बन रहा है, और न ही निगलते। आम जनता के हक के करोड़ों रूपए खर्च कर बनवाए गए गोठानों में जंगली झाड़ियां उग आई हैं और गौवंशी पशु पक्की सड़कों पर पसरे हुए दिखाई पड़ते हैं। हालांकि विष्णुदेव सरकार ने गौ-अभ्यारण्य बनाने का ऐलान तो कर दिया है, लेकिन काम अब तक शुरू नहीं हुआ। देखना यह है कि सरकार उन्हीं गोठानों की सुध लेकर उनका कायाकल्प करती है, या फिर नई जगहों पर यह प्रयोग किया जाता है।
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दीया तले अंधेरा
पूरे जिले को स्वच्छता का पाठ पढ़ाने वाले एक निकाय के दफ्तर के सामने ही घास-फूस और घनी जंगली झाड़ियां उगी रहती हैं। मोबाइल पर नजरें गड़ाए ही साहब गाड़ी में चढ़ते-उतरते हैं। दफ्तर के चपरासी तक साहब के नियंत्रण में नहीं हैं।
सवाल आपके लिए…
◆ सरकारी राशि के चेक पर आईएएस अफसर के फर्जी दस्तखत करने वाले स्वच्छ भारत मिशन समन्वयक की गिरफ्तारी कब तक होगी?
◆ आखिर किसके सिर सजेगा भाजपा जिलाध्यक्ष का ताज?