पुलिस की दिव्य-दृष्टि पर सवाल.. (शब्द बाण – 49)

पुलिस की दिव्य-दृष्टि पर सवाल.. (शब्द बाण – 49)

साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम शब्द बाण (भाग-49 )

22 सितंबर 2024

शैलेन्द्र ठाकुर @ दंतेवाड़ा

जिले में पुलिस की ‘दिव्य- दृष्टि’ यानी सीसीटीवी कैमरों पर सवाल खड़े हो गए हैं। ये सीसीटीवी कैमरे बड़ी ईमानदारी से लगाए तो जाते हैं, लेकिन कुछ महीने बाद इन कैमरों को या तो रात में नहीं देख पाने वाली रतौंधी बीमारी हो जाती है, या फिर मोतियाबिंद। इसके बाद मोटी रकम खर्च कर फिर से नए-नए कैमरे लगा दिए जाते हैं, भले ही चाइना माल टिका दिया जाए। इस पूरी प्रक्रिया में ठेकेदारों की बल्ले-बल्ले हो जाती है। पता नहीं कहां से आते हैं ये लोग। यह प्रक्रिया सतत चलती ही रहती है। फिर हमेशा की तरह होता वही है, कोई क्राइम कर भागता भी है, तो उसकी परछाई तक नहीं मिलती है। बच्चा चोरी मामले में भी यही हुआ। वो तो गनीमत रही कि अज्ञात बच्चा चोरों ने पुलिस को वॉक ओवर दे दिया और बच्चा वापस मिल गया। खैर, अंत भला तो सब भला।

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खटारा वाहन में सवार बीडीएस

पुलिस के बीडीएस यानि बम डिस्पोजल स्क्वाड पर नक्सलियों के विस्फोटक ढूंढकर नष्ट करने की महती जिम्मेदारी होती है। जहां भी जरूरत पड़ती है, यह स्क्वाड अपनी जान हथेली पर लेकर सिर पर कफ़न बांधे चल पड़ता है। लेकिन दुनिया भले ही चांद पर पहुंच गई हो, तब भी दंतेवाड़ा की बीडीएस टीम दशकों पुरानी खटारा गाड़ी पर चलती है। जंग लगी यह खटारा धन्नो जहां-तहां बिगड़कर खड़ी हो जाती है। यह तो गनीमत है कि ‘अंदर’ वाले ‘दादा’ लोग शोले वाले गब्बर सिंह टाइप से घोड़े पर सवार होकर पीछा नहीं करते, वरना पुलिस को लेने के देने पड़ जाते।
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भाजपा में अपनी ढपली अपना राग

सदस्यता अभियान जोर-शोर से चला रही भाजपा के लिए दक्षिण बस्तर में सब कुछ सही नहीं चल रहा है। मतभेद धीरे-धीरे धीरे मन भेद में बदल रहा है। पदाधिकारी और कार्यकर्ता सीधे पार्टी से तय लक्ष्य को ध्यान में रखकर काम तो कर रहे हैं, लेकिन अपनी ढपली अपना राग वाले स्टाइल में। देवरानी-जेठानी, ननद-भाभी की तरह एक दूसरे से रूठे हुए जमीनी कार्यकर्ताओं को पार्टी से कम, स्थानीय संगठन से ज्यादा नाराजगी है। उनकी पीड़ा है कि अपनी सरकार बनने के बाद भी उनकी पूछ-परख न तो पार्टी में हो रही है, न ही प्रशासन में।
यानी
दुःख में सुमिरन सब करें, सुख में सुमिरन करें न कोय।
जो सुख में सुमिरन सब करें, तो दुःख काहे को होय।।”

खैर, अनुशासित व कैडरबेस कही जाने वाली पार्टी के इस आपसी सिर फुटौव्वल का असर आने वाले पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव में दिख जाए, तो कोई आश्चर्य वाली बात नहीं होगी।
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सिस्टम बड़ी या भैंस ?
आपने अक्ल बड़ी या भैंस वाली कहावत सुनी रही होगी, लेकिन दंतेवाड़ा में ठीक थाना के सामने एक भैंस ने खुद को बड़ा साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पगलाए भैंस ने कइयों को हॉस्पिटल पहुंचा दिया। पुलिस ने बैरिकेड और स्टॉपर से, तो पालिका कर्मियों ने जेसीबी की मदद से काबू पाने की कोशिश की। घंटों मशक्कत के बाद आखिर जेसीबी से भैंस को काबू किया जा सका। जो भी हो भैंस ने बता दिया कि दुनिया के लिए अक्ल बड़ी हो, लेकिन शारीरिक व भौतिक रूप से भैंस ही बड़ी होती है।
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बंद के मामले में कांग्रेस की किरकिरी

कवर्धा कांड के विरोध में छत्तीसगढ़ बंद करा रही कांग्रेस की दंतेवाड़ा में किरकिरी हो गई। व्यापारियों से सीधे संवाद करने की जगह सोशल मीडिया पर मैसेज छोड़ने की आदत नेताओं पर भारी पड़ गई। ज्यादातर व्यापारियों ने बंद की पूर्व सूचना नहीं होने से इंकार कर दिया। नतीजतन, बंद का कार्यक्रम फेल हो गया। स्थिति यह रही कि खुद कांग्रेस भवन के काम्प्लेक्स में संचालित दुकानें तक बंद नहीं करवाई जा सकी। जबकि सप्ताह भर पहले किये गए सामाजिक संगठन के बंद में दुकानें खुलना तो दूर सब्जी के पसरे तक नहीं लगे थे।
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मंडल संयोजक या कमीशन एजेंट ?

बस्तर संभाग में मंडल संयोजक का पद महज कमीशन उगाही एजेंट बनकर रह गया है। बीजापुर जिले में कमिश्नर के नाम पर आश्रम-स्कूलों से उगाही का मामला हो, या फिर बस्तर जिले के बास्तानार में विधायक के नाम पर आश्रम अधीक्षिका से 1 लाख वसूलने का किस्सा हो, दोनों में ही मंडल संयोजक चर्चित रहे। उगाही में कितने परसेंट का शेयर रहा होगा, या खुद के प्राइवेट लिमिटेड के लिए पूरी उगाही हो रही थी, यह तो नहीं पता, लेकिन ठीकरा जरूर मंडल संयोजक पर फूटा और दोनों सस्पेंड हो गए। उगाही की डील सफल हो जाती तो दुनिया को पता भी नहीं चल पाता। लोगों को अब समझ में आने लगा है कि मंडल संयोजक बनने कुछ लोग इतने लालायित क्यों रहते हैं। विषय विशेषज्ञ शिक्षक और व्याख्याता तक स्कूल में पढ़ाना छोड़कर मंडल संयोजक बने बैठे हैं। हालिया घटनाओं के बाद इस पद का नाम बदलकर मंडल कमीशनर/ कमिश्नर या कमीशन संयोजक रखे जाने के सुझाव भी मिलने लगे हैं।
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काला पानी की सजा
दक्षिण बस्तर में शिक्षा विभाग से संबंधित समग्र शिक्षा अभियान में बड़ा बदलाव हुआ है। इन अभियानों की कमान डीएमसी यानी जिला मिशन संयोजक संभालते हैं। सरकार बदलने के बाद बदलाव होना तो स्वाभाविक ही था, लेकिन जिस तरह से बदलाव हुआ, उसने सबको चौंका दिया है। सुकमा और दंतेवाड़ा के डीएमसी को न सिर्फ पद से हटाया गया, बल्कि अंग्रेज जमाने के काला-पानी की सजा की तरह नारायणपुर के अबूझमाड़ में भेज दिया गया। पिछली कांग्रेसी सरकार में सत्ता के काफी करीबी रहने का ये सिला मिलने से बाकी लोग सकते में हैं।

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