साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम शब्द बाण भाग-32
✍️ शैलेन्द्र ठाकुर @ दंतेवाड़ा
दंतेवाड़ा जिले में वेटनरी यानि पशुपालन विभाग को अब नया कप्तान नहीं मिल पा रहा है। पहले तो सुकमा के अफसर को यहां की कमान सौंपी गई थी, जिनके कार्यकाल में कुर्सी को लेकर खंदक और खाई वाली लड़ाई हुई थी। जिसमें अंतत: सुकमा वाले अफसर ने बाजी मारी। इस अफसर के रिटायरमेंट के बाद अब स्थिति ऐसी है कि दूसरे विभाग के एक अफसर को यहां की कमान देने की नौबत आई है। वैसे, यहां पर डिप्टी डायरेक्टर की कुर्सी हमेशा विवादों में घिरी रही है। किसी पर गौमाता और कड़कनाथ तक के चारे हजम करने का आरोप लगा, तो किसी पर लॉक डाउन में आपदा में अवसर तलाशने का।
मेडिकल कॉलेज का मामला
जो-जो मामले ठंडे बस्ते में जा चुके, उनमें दंतेवाड़ा जिले का मेडिकल कॉलेज भी शामिल है। सेंट्रल कोटे से दंतेवाड़ा जिले के लिए मेडिकल कॉलेज की मंजूरी मिली, लेकिन सीएम के कान में फुसफुसाने वाले एक नेताजी ने इसे गीदम मेडिकल कॉलेज के नाम से घोषणा कका से करवा दी। टीएस बाबा खेमे को पस्त करने कका कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहते थे। घोषणा के बाद जमीन भी उसी इलाके में जोर-शोर से तलाशी जाने लगी। लेकिन सरकार बदलने के बाद इसका कोई नामलेवा नहीं दिख रहा। इसके पहले केवीके, कृषि अभियांत्रिकी से लेकर तमाम दफ्तर भी लोकेशन की वजह से सिर्फ गीदम ब्लॉक के होकर रह गए हैं। कुआकोंडा, कटेकल्याण जैसे ब्लॉक के हित हाशिये पर धर दिए गए।
आचार संहिता से आचरण बाहर!
जिले के एक अफसर के आचार संहिता में प्रेयसी संग सैकड़ों मील दूर हिल स्टेशन भ्रमण की चर्चा जोरों पर है। इसके पहले भी ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं, जिन पर जोरों से चर्चा तो हुआ, पर कुछ खास हुआ नहीं। कोई छोटा-मोटा नाचीज़ कर्मचारी होता, तो आचार संहिता उल्लंघन के मामले में सस्पेंड हो चुका होता। वैसे शराब, शबाब और कबाब के शौकीन रहे कुछ हुनरमंदों की विदाई पहले हो चुकी है। वरना, किस्से और भी सुनने को मिल सकते थे।
हेलमेट वाला टाकीज
दंतेवाड़ा टॉकीज में छत की फाल्स सीलिंग गिरने से लोग खासे चिंतित हैं। गनीमत है कि औसत दर्जे की फ़िल्म अजय देवगन वाली थी और सीलिंग के गिरते वक्त दर्शक मौजूद नहीं थे। अगर हॉउसफुल रही कान्तारा फ़िल्म में चीखने वाले अभूतपूर्व सीन में सीलिंग गिर गई होती तो पता नहीं क्या होता? अब, खदानों में इस्तेमाल होने वाला हेलमेट फ़िल्म देखते वक्त पहनने की जरूरत लोग महसूस कर रहे हैं। ऐसा ही हाल रहा तो जल्द ही हेलमेट की अनिवार्यता वाला पहला टाॅकीज यहां देखने को मिल सकता है।
खाने-पीने वाले डिपार्टमेंट में सूखा!!
पीडब्ल्यूडी की तरह खाद्य विभाग में भी पिछले कई सालों से सूखा पड़ा हुआ है। डॉ रमन के अंतिम कार्यकाल तक यह विभाग काफी मलाईदार हुआ करता था। शासन-प्रशासन के अमूमन हर आयोजन में यह विभाग सह प्रायोजक बनाया जाता था। अब सरकारें तरह-तरह के उपक्रम करते हुए विभाग पर लगाम कस रही है, कभी राशन दुकान में बायोमेट्रिक, तो कभी राशन की गाड़ियों में जीपीएस सिस्टम, जिसका रोना अक्सर अफसर रोते दिखते हैं। यह अलग बात है कि होनहार बिरवान के चिकने पात की तर्ज पर घाघ लोग सिस्टम में छेद आसानी से बना लेते हैं, जिस तरह सैंपलिंग के नाम पर चावल की बोरियों में लोहे का सुआ घुसेड़ा जाता है। इंस्पेक्टर से लेकर अफसर तक इस सिस्टम की ठंडी-मीठी फुहारें पहुंचती हैं।
जिलाध्यक्षों की वैकेंसी !!
दंतेवाड़ा जिले में जल्द ही भाजपा व कांग्रेस के नए जिलाध्यक्षों की पोस्टिंग होने कयास लगाए जा रहे हैं। दरअसल, भाजपा जिलाध्यक्ष अब विधायक चुने जा चुके हैं और पार्टी व संगठन की जिम्मेदारी के लिए नए जिलाध्यक्ष की तलाश जारी है और दावेदारों के मन में लडडू फूट रहे हैं। ऐसा ही हाल कांग्रेस पार्टी में भी है। विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त मिलने के बाद यहां भी कप्तान बदलने की सुगबुगाहट है। संभवत: लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया समाप्त होने के बाद दोनों ही पार्टियां जिलाध्यक्ष नियुक्त कर दें।
कॉलेजों में प्रिंसिपल की पोस्टिंग कब?
दंतेवाड़ा जिले में उच्च शिक्षा विभाग के 6 कॉलेज संचालित हैं, और पूर्णकालिक प्राचार्य एक में भी नहीं हैं। सब कुछ उधार में चल रहा है। सीएम कका के कार्यकाल में उच्च शिक्षा विभाग के मंत्री के दर्शन तक इस जिले के निवासियों को नहीं हुए थे। भला दर्शन होते भी कैसे? पर कतरे हुए मंत्री भी अपने विधानसभा क्षेत्र तक सीमित थे। अब देखना यह है कि अब ‘विष्णु देव’ की कृपादृष्टि कॉलेजों पर पड़ती है, या नहीं।