·साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम ‘शब्द बाण’ भाग-18
शैलेन्द्र ठाकुर @ दंतेवाड़ा
दंतेवाड़ा जिला हॉस्पिटल में जिस तरह डॉक्टरों की कमी हो गई है, जरूरी लैब टेस्ट बंद हो गए हैं, और रेफर केस की संख्या बढ़ गई है, उससे मरीजों की जान आफत में है। जिम्मेदार अफसर हर सवाल को ओके-ओके कहकर निपटा रहे हैं। डॉक्टर टेस्ट के लिए लिख रहे हैं और टेस्ट हो नहीं रहे हैं। इसके बाद सिर्फ लक्षण और अनुमान आधारित इलाज ही बाकी रह जाता है। अब वह दिन दूर नहीं, जब यहां मुन्ना भाई एमबीबीएस की तरह “जादू की झप्पी” वाली थेरेपी का इस्तेमाल किया जाने लगे। अब जो रेफर करने पर बाहर जा नहीं सकता, उसके पास वापस सिरहा-गुनिया-बैगा की शरण में जाने के अलावा कोई विकल्प भी तो नहीं रह जाता है।
स्थिति कुछ यूं हो गई है..
इलाज-ए-दर्द-ए दिल तुमसे मसीहा हो नहीं सकता।
तुम अच्छा कर नहीं सकते, मैं अच्छा हो नहीं सकता।
सरकार में इंजन के साथ हर चीज डबल
केंद्र के साथ छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार आने से डबल इंजन वाली सरकार क्या बन गई, दंतेवाड़ा जिले के भाग्य ही खुल गए लगता है। यहां की अमूमन हर चीज डबल होती दिख रही है। अपर कलेक्टर, संयुक्त कलेक्टर, जिला शिक्षा अधिकारी तक 2-2 की संख्या में पदस्थ हो गए हैं। यह भी संयोग है कि पहली बार दो अलग-अलग जनपद में सीईओ की जिम्मेदारी 2 महिला अफसरों पर है और संयोग से दोनों का सरनेम भी एक ही है।
गनीमत है कि कलेक्टर व जिला पंचायत सीईओ एक-एक ही हैं।
अटल चौक बनाम पीएमजीएसवाय
दंतेवाड़ा जिले में पहली पारी में भाजपा ने अमूमन हरेक ग्राम पंचायत में एक-एक अटल चौक बनवा रखा था, जो कांग्रेस की सरकार में धूल खाते झाड़ियों में दब गए थे। भाजपा की नई सरकार बनी तो अटल चौक की खोज खबर लेने में देर नही की गई। सुशासन दिवस के पहले तक अटल चौक की रंगाई-पुताई भी करवा दी। लेकिन उन्हीं अटल बिहारी बाजपेयी के ड्रीम प्रोजेक्ट प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना की दर्जनों अधूरी सड़कों की सुध किसी ने नहीं ली, जो डेढ़ से दो दशक बाद भी अधूरी पड़ी हुई हैं। दंतेवाड़ा के बुधवारीय साप्ताहिक बाजार के ठीक सामने ऐसी ही एक सड़क प्रशासन व सरकार को मुंह चिढ़ाते दिखती है।
भाजपा का सेनापति तय नहीं
लोक सभा चुनाव सिर पर है, लेकिन दंतेवाड़ा जिले में भाजपा का अगला सेनापति अब तक तय नहीं हुआ। पार्टी जिलाध्यक्ष रहे चैतराम अटामी अब विधायक चुने जा चुके हैं, लिहाज़ा पार्टी को नए जिलाध्यक्ष की तलाश है। लेकिन अब तक यह तलाश पूरी नहीं हो सकी है। दक्षिण बस्तर में सबसे ज्यादा चुनौती गीदम, दंतेवाड़ा और नकुलनार जैसे पावर सेंटर के बीच शक्ति संतुलन बनाने की रहती है, जिसे भाजपा व भाजयुमो जिलाध्यक्ष के पदों से संतुलित करने की कोशिश होती है। चूंकि विधायक गीदम क्षेत्र से हैं, तो अब स्वाभाविक रूप से भाजपा जिलाध्यक्ष का पद दूसरे पावर सेंटर के पाले में जाना तय माना जा रहा है।
कैसे होगा महतारी वंदन?
जिसका डर था आखिर वही हुआ। महतारी वंदन योजना में नई-नई क्राइटेरिया और शर्तें लागू होने से महिलाएं परेशान हैं। प्राइवेट फाइनेंस कंपनियों की तरह छोटे व बारीक अक्षरों में लिखी नियम व शर्तें लागू वाले कॉलम पर महिला वोटरों का ध्यान ही नहीं रहा। अति उत्साह में वोटिंग के बाद अब गृह क्लेश शुरू हो गया है। जो मातृ शक्तियां हजार रुपए महीना वाली इस नई ‘पेंशन’ को लेकर उत्साहित थीं, वो छिपी हुई शर्तों के उभरने से मायूस होती दिख रही हैं। पहले अविवाहित, फिर 21 वर्ष से कम उम्र की महिलाएं क्राइटेरिया से बाहर हुईं, अब पता नहीं आगे और क्या होगा।
यज्ञ से पहले राहत
दंतेवाड़ा के हाई स्कूल मैदान में गायत्री परिवार का 108 कुंडीय महायज्ञ शुरू हो गया है। इसी जगह पर आयोजन की अनुमति देने से ‘महोदय’ ने महीनों पहले साफ इंकार कर दिया था। इसके बाद नई जगह तलाशने में आयोजकों के पसीने छूट रहे थे। अंततः चुनाव के बाद महोदय की विदाई हुई और महायज्ञ इसी जगह आयोजित करने की अनुमति मिल गई।
अब यज्ञ निर्विघ्न सम्पन्न होने की ओर अग्रसर है।
डॉक्टरों की आवाजाही
जिला हॉस्पिटल में पतझड़ की तरह डॉक्टरों का आना-जाना लगा हुआ है। पिछले 4-5 साल में कुछ ने सैलरी नहीं मिलने से परेशान होकर, तो कुछ ने नया निजी क्लिनिक खोलने लायक मोटी रकम जमा होने के बाद नौकरी छोड़ दी। सालाना जॉब रिनीवल के लिए एक सैलरी के बराबर मोटी रकम चढ़ाने की मजबूरी को भी इसकी एक वजह बताया जाता है। वहीं, कुछ चौंकाने वाले मामले भी सामने आए हैं। एक डॉक्टर ने जिला हॉस्पिटल में लाखों रुपए महीने के पैकेज पर स्पेशलिस्ट की नौकरी कई साल तक की। साउथ में पीजी की पढ़ाई करने के नाम पर नौकरी अब छोड़ गए हैं। यह बात भी किसी को हजम नहीं हो रही।