6 सितारा भवन के सितारे गर्दिश में..

साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम ‘शब्द बाण’ (भाग-17)

शैलेन्द्र ठाकुर / दंतेवाड़ा

‘महोदय’ की मनमानी के चलते दंतेवाड़ा जिले का इकलौता 6 मंजिला सरकारी भवन यानी ट्रांजिट हास्टल संकट में आ गया है। कभी यह भवन जिले के लिए दिखने में किसी 5 सितारा होटल से कम नहीं हुआ करता था। नए भवन की मंजूरी और आहरण की हड़बड़ी में महोदय ने दो दर्जन से ज्यादा हरे-भरे फलदार पेड़ों पर जेसीबी चलवाकर उखड़वा दिया और ट्रांजिट होस्टल के रास्ते में वर्किंग वुमन होस्टल वाली नई इमारत की नींव खुदवा दी। ग्राम पंचायत और कॉलेज स्टाफ का मुंह बंद करवाने विभागीय जांच की धमकी दी गई। अब स्थिति यह है कि कलेक्टर रहते जिस 6 मंजिला भवन का निर्माण कर वर्तमान वित्त मंत्री ओपी चौधरी खुशी से फूले नहीं समाते थे, अब उसका ही रास्ता बंद हो गया है।

मनरेगा यानी रोजगार की गारंटी, भुगतान की नहीं

कहा जाता है कि दंतेवाड़ा जिले में जो हो जाए, वो कम है। ब्लाकों में आरईएस के एसडीओ वर्षों से जड़ें जमाए बैठे हैं। बगैर इंजीनियरिंग की डिग्री/डिप्लोमा वाले तकनीकी सहायक बड़े-बड़े प्रोजेक्ट का ले-आउट, मूल्यांकन कर रहे हैं और मूल सब इंजीनियर प्रभार के बगैर खाली बैठे हैं। दरअसल, बीएससी गणित वालों को तकनीकी सहायक के तौर पर मामूली प्रशिक्षण देकर मनरेगा के मिट्टी कार्यों की नाप-जोख, मूल्यांकन की ट्रेनिंग दिलवाई गई थी, वो कालांतर में दक्षिण बस्तर का अनुभव पाकर खासे ‘मजबूत’ हो गए हैं। ऐसी ही स्थिति जिला पंचायत की है। प्रधानमंत्री आवास वाले परियोजना अधिकारी को मनरेगा का प्रभार दिया गया है। मनरेगा से भले ही रोजगार मिले न मिले पोस्ट आफिस वालों से लेकर रोजगार सहायक तक लाल हुए चले जाते हैं। हालात यह हैं कि ग्रामीण पलायन करना पसंद करते हैं, लेकिन मनरेगा में काम करना नहीं। वजह यह है कि मनरेगा में रोजगार की गारंटी तो है, लेकिन भुगतान की नहीं।

छोटे महोदय की पेवेलियन वापसी

दंतेवाड़ा जिले में डेढ़ साल तक जयसूर्या स्टाइल में धुंआधार बैटिंग करने वाले महोदय चुनाव परिणाम आने के बाद हिट विकेट हो गए। इसके बाद छोटे महोदय ने कुछ दिनों तक मोर्चा संभालने की कोशिश की। लेकिन खबर है कि ओपनर ‘महोदय’ के बाद नॉन स्ट्राइकर एंड वाले छोटे महोदय की भी पेवेलियन वापसी हो गई है। सीईओगीरी छीनकर जिला पंचायत में मूल पद पर बिठा दिया गया है। अब वो कर्मचारी खुशी से फूले नहीं समा रहे, जो कभी डीलिंग-रिकवरी प्रभारी छोटे महोदय की दादागिरी से हलाकान थे।

आचार संहिता सिर पर, काम कुछ भी नहीं

विधानसभा चुनाव की खुमारी से जिले का प्रशासनिक तंत्र अब तक उबर नहीं पाया है, और इधर लोकसभा चुनाव का बिगुल बजने की घड़ी भी करीब आ गई है। 16 अप्रैल को चुनाव की संभावित तिथि प्रस्तावित है। अगर ऐसा हुआ तो 15 फरवरी के बाद कभी भी आचार संहिता की तलवार लटकने लगेगी। ऐसे में नए कार्यों की मंजूरी से लेकर काम शुरू करने में महीनों लग जाएंगे। इसके बाद मानसून काल शुरू हो जाएगा।

वनवास से वापसी
इस बार गणतंत्र दिवस समारोह में नजारा बदला-बदला सा नजर आया। पांच साल का वनवास काटने के बाद वीआईपी गैलरी में भाजपाइयों की वापसी हुई। उनकी जगह दर्शक दीर्घा में कांग्रेसी नजर आए।

मीटिंग ही मीटिंग

सूबे में काम हो न हो, समीक्षा बैठक जरूर निरंतर होती रहती है। बड़े अफसर से लेकर आंगनबाड़ी कार्यकर्ता तक सप्ताह में 3 दिन मीटिंग, समीक्षा में व्यस्त रहते हैं। बाकी 2 दिन शनिवार-रविवार की छुट्टी। इस बीच कोई सरकारी छुट्टी पड़ गई तो सोने पे सुहागा। फील्ड के कर्मचारी परेशान हैं कि आखिर कब काम करवाएं? सरकार के पास गैर जरूरी मीटिंग्स कम करने और कार्य संस्कृति को बढ़ावा देने की कोई नीति फिलहाल नहीं दिख रही है।

हारे को हरि नाम

धान खरीदी का पूरा सीजन बीतने को है, और कर्ज माफी को लेकर नई भाजपा सरकार ने अब तक पत्ते नहीं खोले हैं। मायूस किसान थक-हारकर लंबे इंतजार के बाद अपना धान खरीदी केंद्रों तक पहुंचा आए हैं। वहीं, कांग्रेसी कार्यकर्ता चुनावी सभाओं में कुछ भाजपाई नेताओं के कर्ज माफी की घोषणा वाली वायरल वीडियो क्लिप तलाशने में जुटे हैं, ताकि लोकसभा चुनाव में किसानों को याद दिला सकें कि भूपेश कका के ‘भरोसे’ पर भरोसा न करना कितना महंगा पड़ा है।

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

खुद की काबिलियत को पहचानना ही सफलता की पहली सीढ़ी – मीणा

नवोदय जीवन किसी तपस्या से कम नहीं नवोदय विद्यालय बारसूर के बच्चों ने दी शानदार प्रस्तुति विद्यालय का पैनल इंस्पेक्शन करने पहुंची टीम ड्रिल, सांस्कृतिक...