✒️ शैलेन्द्र ठाकुर /दंतेवाड़ा
( 🏹 साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम “शब्द बाण” ✒️🎯 )
महोदय का कॉकटेल
इस इलाके के सबसे चर्चित “महोदय” ने अतुल्य दंतेवाड़ा के नाम से जो प्रोजेक्ट शुरू किया, उसके एक-एक साइन बोर्ड की कीमत ही लाखों में बताई जाती है। कहीं-कहीं सड़क घेरकर बनाए गए ये बोर्ड हादसे का सबब बनने लगे हैं। ज्यादातर जगहों पर ये बोर्ड रास्ता बताने की बजाय लोगों को भटकाने का काम कर रहे हैं। गीदम-बारसूर मार्ग पर लगे एक साइन बोर्ड में जिस झारावाड़ा जलप्रपात का सचित्र जिक्र है, उस नाम का कोई भी जलप्रपात समूचे बस्तर संभाग तो क्या, पूरे छत्तीसगढ़ में नहीं है। बिल-वाउचर सबमिट करने की हड़बड़ी में हांदावाड़ा और झारालावा नामक दो अलग-अलग जलप्रपातों का कॉकटेल बना दिया। मजेदार बात यह है कि दोनों जलप्रपातों का आपस मे कोई कनेक्शन नहीं है। और तो और, बोर्ड में तस्वीर किसी तीसरे जलप्रपात की लगी हुई है। बाहर से बुलवाए गए चहेते ठेकेदार के इस कारनामे से महोदय के दामन में एक और नया दाग जुड़ गया। खैर! क्या फर्क पड़ता है-
“सौ दाग़ दामन में, एक इज़ाफ़ा और सही।”
ये कोई नई बात तो नहीं।
पोहा खिलाकर अवार्ड जीता महोदय ने
सिर्फ पोहा खिलाकर मतदान दलों से चुनाव ड्यूटी करवाने वाले महोदय को भारत निर्वाचन आयोग से अवार्ड मिल गया। इससे मतदान दलों में शामिल रहे कर्मचारी हैरत में हैं। इसके पहले के चुनावों में प्रशासन ने भरपेट भोजन और जलपान का माकूल इंतजाम किया था। शांतिपूर्ण ढंग से और बगैर किसी को खरोंच आए चुनाव सम्पन्न करवाने का क्रेडिट पुलिस कप्तान को मिलने की बजाय महोदय को मिलने से तमाम तरह की चर्चा होने लगी है। कैम्पेनिंग पर पानी की तरह पैसा बहाने के बाद भी मतदान प्रतिशत में कोई खास बढोत्तरी नहीं दिखी। इसलिए सवाल उठना भी लाजिमी है।
सड़कों के दिन फिरे
सरकार बदलने के महीने भर बाद जिले में कुछ प्रमुख सड़कों का कायाकल्प शुरू हो गया है। पहले जिन सड़कों पर कई साल से बीटी रिनीवल तो दूर, पैच वर्क तक नहीं हो पा रहा था, उन सड़कों पर अचानक से चिकनाई बढ़ने लगी है।
हालांकि, दंतेवाड़ा-बैलाडीला मार्ग पर धूल-स्नान के हालात जल्द बदलने की संभावना दूर-दूर तक नहीं दिख रही है।
सर्जरी बीजापुर में, दर्द दंतेवाड़ा में
पड़ोसी जिला बीजापुर में नए कलेक्टर ने आते ही शिक्षा विभाग में सर्जरी शुरू कर दी। वर्षों से जमे संकुल समन्वयकों को वापस स्कूल का रास्ता दिखा दिया। पड़ोस में हुए इस बदलाव से दंतेवाड़ा जिले में बेचैनी बढ़ गई है। लेकिन, दंतेवाड़ा में बगैर राजनीतिक एनीस्थिशिया दिए इस तरह की बड़ी सर्जरी सम्भव नहीं है। कारण यह है कि दोनों ही पार्टियों की सरकार में एडजस्ट होने की गज़ब की क्षमता वाले होनहारों की यहां कमी नहीं है।
बारूद के ढेर पर दंतेवाड़ा
नक्सली हिंसा के नाम से पहले ही काफी बदनाम रह चुके दंतेवाड़ा में अब नया खतरा दस्तक देता दिख रहा है। पिछले कुछ सालों में नक्सली हिंसा में गिरावट आने से कुछ राहत मिली थी, लेकिन अवैध हथियारों की खरीद-फरोख्त के मामले और पखांजुर मर्डर केस में हुई कुछ गिरफ्तारियों ने पुलिस व प्रशासन के साथ ही आम जनमानस को भी सकते में डाल दिया है। भीतर ही भीतर ज्वालामुखी सुलग रही है और इसके मुहाने पर बैठे लोगों को खबर ही नहीं।
अपना ही इलाज नहीं करवा पा रहा वेटनरी विभाग
वेटनरी विभाग ने मवेशियों के इलाज के लिए भले ही एम्बुलेंस सेवा शुरू कर दी है, लेकिन विभाग दंतेवाड़ा जिले में ही अपने सिस्टम का इलाज नहीं कर पा रहा है। कर्मचारी फील्ड में जाते ही नहीं। दशकों से एक ही टेबल पर कब्जा जमाए कुछ कर्मचारी फाइलों को ग़ायब कर देते हैं, या फिर आपसी गुटबाजी में एक-दूसरे पर ठीकरा फोड़ने में लगे रहते हैं।
विभाग का प्रभार पड़ोसी सुकमा जिले के प्रभारी अफसर के पास है, जिनके खिलाफ खुद स्टाफ ने ही मोर्चा खोल रखा था, जिसकी कीमत बड़े बाबू को सस्पेंड होकर चुकानी पड़ी थी। प्रभार को लेकर दो अफसरों के बीच जिस तरह की लंबी लड़ाई चली थी, उससे विभाग की पहले ही काफी बदनामी हो चुकी है।
राम की महिमा
दंतेवाड़ा के बस स्टैंड की सड़क व प्लेटफार्म की दशकों से जो दुर्गति थी, वो किसी से छिपी हुई नहीं थी। लेकिन प्रभु श्रीराम के नाम से ही यह ‘अहिल्या’ की तरह तर गई। यह भी अद्भुत संयोग है कि इस बदलाव की मुख्य वजह यहां विराजे संकटमोचक हनुमान जी बने। दरअसल, 22 जनवरी को अयोध्या में भगवान श्रीराम मन्दिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होने वाली है, इस उपलक्ष्य में नगर के राम भक्तों ने इस बस स्टैंड का कायाकल्प कर दिया। अब बस स्टैंड जगमगाने लगा है।